Chodan Kahani घुड़दौड़ ( कायाकल्प )
12-17-2018, 02:14 AM,
#46
RE: Chodan Kahani घुड़दौड़ ( कायाकल्प )
मैंने प्यार से सोचा और उनके गाल पर धीरे से अपनी उंगलियाँ फिराईं। मेरे स्पर्श से वे थोड़ा कुनमुनाए और फिर अपने गाल को स्वतः ही मेरी उँगलियों से सटा कर सो गए। 

‘अरे मेरे मासूम साजन!’ मैंने मन ही मन सोचा और मुस्कुराई, ‘....कैसे बच्चों के सामान सो रहे हो! यही बच्चा रोज़ मेरे क्रोड़ में उथल पुथल मचा देता है! ’

‘और इनका लिंग! बाप रे! पहली बार उनके लम्बे तगड़े अंग को देखते ही मुझे दहशत सी हो गई! इतना मोटा! मेरे कलाई से भी अधिक मोटा! उसकी त्वचा पर नसें फूल कर मोटी हो रही थी और आगे का गुलाबी हिस्सा भी कुछ कुछ दिख रहा था... आखिर यह मुझमें समाएगा कैसे?’ उस समय मुझे पक्का यकीन हो गया की आज तो दर्द के मारे मैं तो मर ही जाऊंगी! यह सब सोचते हुए मेरी दृष्टि रूद्र के जघन भाग पर चली गई, जहाँ चद्दर के नीचे से उनका अंग सर उठा रहा था। 

मेरे होंठों से एक हलकी सी हंसी छूट पड़ी, ‘हे भगवान्! क्या ये कभी भी शांत नहीं रहता?!’ 

मुझे याद है जब मैंने इसको पहली बार छुआ था... मैंने छुआ क्या था, दरअसल उन्होंने ही मेरे हाथ को पकड़ कर अपने आग्नेयास्त्र पर रख दिया। 

आग्नेयास्त्र! हा हा! सचमुच! मानो अग्नि की तपन निकल रही थी उसमें से!! मेरी हथेली उनके लिंग के गिर्द लिपट तो गई, लेकिन घेरा पूरा बंद ही नहीं हुआ। इतना मोटा! बाप रे! और तो और, उनके लिंग की लम्बाई का कम से कम आधा हिस्सा मेरी पकड़ से बाहर निकला हुआ था। शरीर और मन की इच्छाएँ जब अपने मूर्त-रूप में जब इस प्रकार उपस्थित हो जाती हैं, और उनसे दो-चार होना पड़ता है तो डर और लज्जा – बस यही दो भाव मन में आते हैं। मैं भी डर गई...!

लेकिन उनके अंतहीन मौखिक प्रेम प्रलाप ने मेरा सारा डर खींच कर बाहर निकाल दिया! ऐसा तो कुछ भी भाभियों ने नहीं बताया था। न जाने कितनी देर बाद अंततः वह समय आ ही गया जब हम दोनों संयुक्त होने वाले थे। मन में अनजान सा डर था की उनका लिंग मेरी क्या दुर्दशा करेगा, लेकिन एक विश्वास भी था की वे मुझे कोई परेशानी नहीं होने देंगे। एक आशंका थी की अगर भाभियों की बात सच हो गई तो..? और साथ ही साथ एक चिंता थी की यदि उनकी बात सच न हुई तो..?? इस प्रकार के विरोधी भाव आते जाते गए, और फिर मैंने स्वयं को उनकी निपुणता के हवाले कर दिया।

जब उन्होंने मेरी जांघें फैला दीं तो मुझे लगा की जैसे मेरी योनि तरल हो गई है... पूरी तरह से भिन्न आभास! जब उन्होंने अपनी उँगलियों से उसको फैलाया, तब जा कर मुझे वापस आभास हुआ की मेरी योनि स्नायु, ऊतकों और पेशियों से बनी है। वो कुछ कहते, लेकिन मुझे कुछ भी सुनाई न देता! मानो, सब इन्द्रियों की संवेदनशीलता सिमट कर मेरी योनि और चुचक में ही रह गई हो।

उनका लिंग!

पहली बार उसको अपनी योनि में महसूस करना अद्भुत था! उनके जोर लगाने से वह धीरे-धीरे मेरे अन्दर आने लगा। मुझे लगा की जैसे एक नया जीव मेरे अन्दर घर बना रहा हो। भराव का ऐसा अनुभव मेरी कल्पना से परे था। मैंने नीचे देखा – अभी तो लिंग के आगे के हिस्से का सिर्फ आधा भाग ही अन्दर घुसा था! उन्होंने एक क्षण रुक कर एक जोरदार धक्का लगाया और उनके विकराल अंग का आधा हिस्सा मेरी योनि के भीतर समा गया।

"आआह्ह्ह..." ऐसी क्रूरता! मेरी चीख निकल गयी – जो की मुझे भी सुनाई दी। वो एक दो पल ठहर कर मुझे देखने लगे.. उनकी आँखों में चिंता थी – किस बात की यह तो नहीं मालूम, लेकिन इतना कह सकती हूँ की मेरे लिए नहीं। क्योंकि एक दो पल रुकने के बाद ही उन्होंने अपना लिंग मेरी योनि से थोड़ा बाहर निकाला और फिर पुनः और अन्दर डाल दिया। ऐसे ही उन्होंने कई बार अन्दर बाहर किया। ह्म्म्म.. दर्द कुछ कम तो हुआ! लेकिन उनके हर धक्के से मेरी कराह ज़रूर निकल रही थी। फिर अचानक ही उन्होंने पूरे का पूरा लिंग मेरे भीतर ठेल दिया और मेरा विधिवत भोग करना आरम्भ कर दिया। वासना और आनंद के सम्मिश्रण से मेरी आँखें बंद हो गईं – सांस और कराह का आवागमन मुंह से ही हो रहा था। उत्तेजना के मारे मैंने उनके कन्धों को जोर से जकड रखा था। अजीब अजीब सी आवाजें – कुछ हमारी कामुक आहों की, तो कुछ पलंग के पाए के भूमि पर घिसने की, तो कुछ हमारे जननांगों के घर्षण की! मुझे अचानक ही मेरे अन्दर गर्म तरल की बूँदें गिरती महसूस हुईं – और ठीक उसी समय मुझे एक बार पुनः कामुक आनंद के अनोखे स्वाद का आभास हुआ। मेरी पीठ एक चाप में मुड़ गयी.. और मेरे भोले साजन मेरे चुचक को एक बार फिर से पीने लग गए और मुझ पर ही गिर कर सुस्ताने लगे! मुझे नहीं मालूम था की मर्दों को स्त्रियों के स्तनों का स्वाद लेने की ऐसी इच्छा हो सकती है। मैंने उनके लिंग को अपने अन्दर मुलायम होते महसूस किया; ऊपर से उनका दुलार, चुम्बन और चूषण जारी रहा। 

रति निवृत्ति जहाँ अति आनंददायक हो सकती है, वहीँ पहली बार करने पर एक प्रकार की लज्जा भी होती है। उनको तो खैर नहीं हो रही थी, लेकिन मैं शरम से दोहरी हुई जा रही थी और उनसे आँखे ही नहीं मिला पा रही थी। पता नहीं क्यों! आखिर इस खेल में हम दोनों ही बराबर के भागीदार थे, लेकिन फिर भी शरम मुझे ही आ रही थी। एक वो दिन था, और एक आज का दिन है! मैं भी किसी छंछा (निर्लज्ज स्त्री) की तरह निर्बाध यौन आनंद उठा रही हूँ। 

सपनों के ब्रह्माण्ड में विचरण करते हुए अगला पड़ाव मेरी विदाई का आया... 

अप्रत्याशित रूप से मुझे एक दिन पहले ही अपने पिया के घर को निकलना पड़ा। एक पल के लिये भी मुझे अपने पिता के घर को छोड़ने का मलाल नहीं हुआ। रूद्र के साथ जीवन के हसीन सपने संजोंते हुए मैंने सबसे खुशी-खुशी विदा ली। मन में कई प्रकार की खुशियाँ घर करने लगी। मुझे मालूम था की रूद्र जैसे पति को पाकर मैं धन्*य हो गई थी। बंगलौर पहुँच कर मेरा ऐसा स्वागत हुआ कि मैं खुद को किसी राजकुमारी से कम नहीं मान रही थी। लेकिन इस घर का अहसास कुछ ही घंटों में मुझे अपना सा लगने लगा। मैं तो एक दिन में ही पापा का घर भूल गई। यह मेरा घर था... अद्वितीय वास्*तु शिल्*प से निर्मित घर! मैं दंग रह गई थी। सब कुछ जैसे मीठा स्वप्न हो! मुझे ऐसा लगा जैसे मैं एक ऐसे स्थान में हूँ, जहां रिश्*तों की तपिश का संसार बसाया जा सकता है। प्रेम के इन्*द्रधनुषी रंगों की वितान (शामियाना) के नीचे हम दोनों की देहों के मिलन से सृष्*टि सृजन को गति दी जा सकती है।

सच है.... एक वो दिन था, और एक आज का दिन है! निर्बाध यौन आनंद! जब मैं उनकी बांहों में जाती हूँ तो पूर्णतः तनाव मुक्*त हो जाती हूँ। साहचर्य की कायापलट करने वाली ऊर्जा की कांति मानो मेरी त्*वचा से फूट फूट कर निकलने लगी है। सचमुच, यौन क्रिया, संसर्ग के अतिरिक्त भी ऐसी प्राप्*य है जो चेतना को सुकून और शरीर को पौष्*टिकता देती है। कुछ लोग कहते हैं की जब स्*त्री शरीर, पुरुष रसायन प्राप्त करता है, तो देह गदरा जाती है।
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