RE: Chodan Kahani घुड़दौड़ ( कायाकल्प )
पापा सभी को कहते फिर रहे थे की रश्मि के लिए रूद्र के जैसा वर वो ढूंढ ही नहीं सकते थे.. मजे की एक बात यह है की रूद्र और मेरे पापा की उम्र में कोई खास अंतर नहीं है... मुश्किल से सात-आठ साल का! लेकिन वो देखने में एकदम नौजवान लगते हैं, और पापा बूढ़े! और तो और, मेरी और इनकी उम्र में तो कोई बारह तेरह साल का अंतर है! लेकिन फिर भी कभी कभी ऐसा लगता है की ये एक बच्चे ही हैं।
पापा को शुरू शुरू में उन पर बहुत शक हुआ – न जाने कहाँ से आया है? क्या पता कोई लम्पट, शोहदा या उचक्का हो – हमें ठगने आया हो? बेचारी रश्मि को ब्याह कर ले जाय, और कहीं बेच दे – अखबार तो ऐसे अनगिनत किस्सों से आते पड़े हैं! मेरी फूल सी बच्ची! अगर उसको कुछ भी हो गया तो उसकी माँ को क्या जवाब देंगे! ऐसे न जाने कैसे बुरे बुरे ख्याल पिताजी को दिन-रात आते.... लोगो ने उनको समझाया की सब के बारे में सिर्फ बुरा नहीं सोचा जाता.. सतर्क रहना अच्छी बात है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं की सभी को बुरी और शक की निगाह से जांचा जाय। और फिर, बंगलौर में तो हमारे कस्बे और जान-पहचान के कितने सारे लोग हैं.. पता लगा लेंगे। सब कुछ। रश्मि तो पूरे कस्बे की बिटिया है.. ऐसे ही उसका बुरा थोड़े न होने देंगे!
फिर आई हमारी शादी.....
हमारी शादी जैसे एक किंवदंती बन गई... पूरा गाँव शामिल हुआ – सिर्फ दिखाने के लिए नहीं, बल्कि सभी ने अपनी अपनी तरफ से कुछ न कुछ मदद भी करी। पापा ने तो सब की सब रीतियाँ निभा डालीं – कहीं भी कोई कोर कसर नहीं! सब के सब देवताओं की पूरी दया बनी रहे बिटिया और दामाद पर! ऐसी शादी होती है कहीं भला? देखने वाले हम दोनों को राम-सीता जैसी जोड़ी बताते। सभी ने मन से ढेरों आशीर्वाद दिए – सच में, भाग्य हो तो ऐसा! और सभी ने हमको बोला की शादी ऐसी होनी चाहिए!
हमारे मिलन की रात!
वैसे तो लड़की शादी के बाद ससुराल चली जाती है, लेकिन ये तो इतनी दूर रहते हैं! इसीलिए हमारे लिए घर में ही सारी व्यवस्था कर दी गई थी.. कहा जाता है की पति-पत्नी की यह पहली अन्तरंग रात उनके वैवाहित जीवन के भविष्य का निर्णय कर देता है। सुहागरात में पति-पत्नी का यह पहला मिलन शारीरिक कम, बल्कि मानसिक और आत्मिक अधिक होता है। इस अवसर पर दो अनजान व्यक्तियों के शरीरों का ही नहीं बल्कि आत्माओं भी मिलन होता है। जो दो आत्माएँ अब तक अलग थीं, इस रात को पहली बार एक हो जाती हैं।
एक बार टीवी पर मैंने वो गाना देखा था... “आज फिर तुम पे प्यार आया है...” उसमें माधुरी दीक्षित और विनोद खन्ना के बीच प्रथम प्रणय का संछिप्त दृश्य दिखाया गया था। उस दृश्य को देख कर मेरे मन में भी एक अनजान तपन, एक बेबस इच्छा और न जाने कितने कोमल सपने अंकुर लेने लगे। रूद्र से विवाह की बात पक्की हो जाने पर वह सारे सपने परवान चढ़ गए ... लेकिन, भाभियों के बताये यौन ज्ञान ने सब पर पानी फेर दिया। ज्यादातर स्त्रियों के यौन जीवन, या कह लीजिये वैवाहिक जीवन की सच्चाई तो वैसी ही है... मुझे उनकी बातों से जो एक बात समझ में आई थी वह यह थी की स्त्रियों के लिए सेक्स का आनंद उठाने जैसी कोई व्यवस्था नहीं है। पतिदेव आयेंगे, और कुछ कुछ करके सो जायेंगे! स्त्री के लिए तो बस पूरे दिनभर चौका-चूल्हा, सेवा-टहल, बस यही सब चलता रहता है। हमारी (स्त्रियों की) तो बस नींद ही पूरी हो जाय, यही बहुत है।
‘क्या रूद्र भी ऐसे ही होंगे?’ यह विचार मेरे मन में अनगिनत बार आता... लेकिन मुझे इस प्रश्न का कोई उत्तर नहीं मिल पाता.. मिलता भी कैसे? आखिर उनके बारे में मुझे मालूम ही क्या था? मन में बस डर सा लगा रहता। मेरा भविष्य तो तय हो गया था। ठीक है, रूद्र अच्छे इंसान हैं, और मैं संभवतः बहुत भाग्यशाली हूँ की मुझे उनसे विवाह कर उनकी संगिनी बनने का अवसर मिला था। परन्तु फिर भी, समाज में स्त्रियों की स्थिति और अन्य भाभियों के अनुभव – इन सबने मेरे मन में एक अनजान सा डर भर दिया था।
माँ ने हमारी सुहागरात से पहले मुझे इनकी हर बात मानने की हिदायद दे दी और फिर सभी मुझे कमरे में अकेला छोड़ कर चले गए। मैं अकेली ही डरी, सहमी सी उनका इंतजार करने लगी। समय के एक एक पल के बढ़ते हुए मेरे दिल की धड़कन भी बढती जा रही थी और इंतजार का एक-एक पल मानो एक-एक घंटे जैसा बीत रहा था। खैर, अंततः रूद्र कमरे में आये और मेरे पास आकर बैठ गए। उनकी उपस्थिति मात्र से ही मेरे शरीर का रोम रोम रोमांचित हो गया।
"मैं आपका घूंघट हटा सकता हूँ?" उन्होंने पूछा...
‘आप को जो करना है, करेंगे ही!’ ऐसा सोचते हुए मेरे दिमाग में भाभियों की बताई हुई शिक्षा, सहेलियों की नटखट चुहल और छेड़खानी और मेरी खुद की न जाने कितनी ही कोमल इच्छाएँ कौंध गईं ... मैंने सिर्फ धीरे से हाँ में सर हिलाया।
‘क्या मैं इनको पसंद आऊंगी? इन्होने तो मुझे दूर से ही देख कर पसंद कर लिया! आज इतने पास से मुझे पहली बार देखेंगे..’ वो मुझे आँखें खोलने को बोल रहे थे – लेकिन रोमांच के मारे मेरी आँखें ही नहीं खुल रही थीं। जब मेरी आँखें खुली तब इनका मुस्कुराता हुआ चेहरा दिखाई दिया। राम-सीता का नहीं मालूम, लेकिन ये सचमुच मेरे लिए कृष्ण का रूप थे... मेरी आँखें तुरंत ही नीचे हो गयीं। फिर उन्होंने मुझे चुम्बन के लिए पूछा! कहाँ दूँ चुम्बन? गाल पर, या होंठ पर? फिल्मों में देखा है की हीरो-हेरोइन होंठों पर चूमते हैं.. लेकिन, क्या इनको यह पसंद आएगा? खैर, मैंने इनके होंठो पर जल्दी से एक चुम्बन दिया, और पीछे हट गयी। शरम आ गई...।
लेकिन इनका मन नहीं भरा शायद... इन्होने मेरी ठुड्डी पकड़ कर मुझे कुछ देर निहारा और फिर मेरे होंठो को चूमना शुरू कर दिया। मैं तो सिहर ही गई, मेरे शरीर पर किसी मर्द का यह पहला चुम्बन था। मेरा उनके होंठों के स्पर्श से ही कांप गया, गाल लाल हो गये, और रौंगटे खड़े हो गए। उनके गर्म होठों का स्पर्श – एकदम नया अनुभव! मेरे पूरे बदन में झुरझुरी सी दौड़ गई। समय का सारा एकसास न जाने कहीं खो गया। कुछ याद नहीं की यह चुम्बन कब तक चला। लेकिन, उतनी देर में मेरा हाल बहुत बुरा हो चला था – मैं बुरी तरह कांप रही थी, उसके गालों से गर्मी छूट रही थी और साँसे भारी हो गयी थी।
न जाने क्या सोच कर उन्होंने मेरी नथ उतार दी। पारंपरिक विवाहों में सुहागरात में पति सम्भोग से पहले अपनी पत्नी की नथ उतारता है। सम्भोग! सहसा ही मुझे ऐसा एहसास हुआ जैसे मुझे किसी ने नग्न कर दिया हो। डर और लज्जा की मिली-जुली भावाना के कारण सेक्स क्रिया तो दूर की बात है, उनका आलिंगन, चुम्बन और स्पर्श में भी मेरे दिल को दहला दे रही थी। मन में बस यही भावना आ रही थी की उनके सामने पूरी नंगी न होना पड़े। लेकिन जिस निर्लज्जता से उन्होंने मेरा ब्लाउज उतारा था, मैं तो समझ गई की मेरी भी दशा मेरी भाभियों जैसी ही होने वाली है। उन्होंने धीरे-धीरे एक-एक करके मेरे सारे कपड़े मेरे शरीर से उतार दिए और मुझे उसी डर की खाईं में धकेल दिया। सब कुछ बहुत ही अस्वाभाविक प्रतीत हुआ। जिस आकर (खज़ाना) को मैं अब तक सुरक्षित रखे हुए थी, वह उसी पर सीधी सेंधमारी कर रहे थे। लेकिन जब उन्होंने मुझे प्रेम से आलिंगनबद्ध कर दुलराया, तो मन में कुछ साहस आया।
और फिर वह हुआ जिसकी कल्पना मैंने अपने सबसे सुखद स्वप्न में भी नहीं करी थी... उनके होंठ, जीभ, हाथ, उँगलियों और लिंग ने एक समायोजित ढंग से मेरे सर्वस्व पर कुछ इस प्रकार आक्रमण किया की मैं सब कुछ भूल गई। मेरे यौवन के खजाने को पहली बार कोई मर्द ऐसे लूट रहा था, और उस समय होने वाले सुखद अहसास को मेरे लिए शब्*दों में बयान करना नामुमकिन है। मेरे चुचक पहले भी कभी-कभी कड़े हो जाते थे – जब अधिक ठंडक होती, या फिर तब जब मैं नहाते समय अपने स्तनों पर कुछ ज्यादा ही साबुन रगड़ लेती.. लेकिन उस समय तो कुछ और ही बात थी। मेरे चुचक उनके मुँह में जाकर पत्थर के सामान कड़े हो गए थे। वह उनको किसी बच्चे की तरह चूसते हैं.... मैं तो जैसे होश ही खो देती हूँ। पता नहीं उनको मेरे स्तन इतने स्वादिष्ट क्यों लगते हैं! उनको पिए जाने पर मेरा मन भी नहीं भरता... मन में बस यही आता है की रूद्र मेरे दोनों चुचक लगातार पीते रहें। हालांकि उनके चूसने और पीने से मेरी दोनों निप्पलों में दर्द होने लगता है, लेकिन उनके ऐसा करने से जो मुझे जो असीम आनन्द का अनुभव होता है, उसके लिए यह दर्द कुछ भी नहीं।
मैंने सोते हुए रूद्र को देखा – वो एकदम से बेख़बर, एक भोले बच्चे के समान सो रहे थे। नींद में भी वो कितने मासूम और प्यारे लग रहे थे... चेहरे पर संतोष के भाव एकदम स्पष्ट। मैं मुस्कुराई... इतने दिनों में यह एक अनोखी रात थी, जब मेरे शरीर पर कपड़े थे!
‘मेरे कपड़ो के दुश्मन...!’
|