RE: Chodan Kahani घुड़दौड़ ( कायाकल्प )
मैंने विस्मय से देखा.. जिन तारों को मैं मिज़ार और अल्कोर के नाम से जानता हूँ, उनको रश्मि एकदम सही पहचान कर एक भिन्न दृष्टिकोण रख रही है। मैंने उसको आगे उकसाया,
“ऐसा क्यों?”
“एक कहानी है.. आप सुनेंगे?”
“हाँ हाँ.. बिलकुल!”
“ये जो सातों ऋषि हैं, दरअसल उन्ही सूर्य का उदय-अस्त नियंत्रित करते हैं। इन सभी का विवाह सात बहनों से हुआ था जिनको कृत्तिका कहते हैं। ये सभी साथ साथ रहते थे। लेकिन एक दिन एक हवं के दौरान अग्नि देवता प्रकट हुए और उन सातों कृत्तिकाओं के रूप से मुग्ध हो गए और उसी पागलपन में इधर उधर भटकने लगे। ऐसे में एक दिन उनकी मुलाकात स्वाहा से हुई। स्वाहा को अग्नि से प्रेम हो गया और उनका प्रेम पाने के लिए स्वाहा एक एक कर उन सातो बहनों के रूप में अग्नि से मिलन करने लगी। उसने छः बहनों का रूप तो धर लिया, लेकिन अरुंधती का रूप नहीं ले पाई। और वह इसलिए क्योंकि अरुंधती इतनी पतिव्रता थीं, की उनका रूप लेना असंभव हो गया। इस संयोग से स्वाहा ने एक पुत्र को जन्म दिया जिसका नाम स्कंद पड़ा... बात फ़ैल गई की उन छः बहनों में से कोई उसकी माता है। सिर्फ अरुंधती और वशिष्ठ ही साथ रह गए।“
“क्या बात है! यह सच है की इस प्रकार के तारों में एक तारा स्थिर और दूसरा उसके चक्कर लगाता है... लेकिन ये दोनों साथ में चक्कर लगाते हैं..।“
“हाँ.. इसीलिए अरुंधती को देखना शुभ है.. पति और पत्नी – उन दोनों को हर काम साथ में करना चाहिए। यही तो विवाह की नींव है!” रश्मि कुछ देर तक रहस्यमयी ढंग से रुकी और फिर आगे बोली, “आपको एक बात पता है?”
“क्या?” जाहिर सी बात है की मुझे नहीं पता!
“शिव-पुराण में अरुंधती को... रश्मि कहा गया है... और, वे ब्रह्मा की पुत्री थीं। वशिष्ठ के कहने पर उन्होंने तप करके शिवजी को प्रसन्न कर लिया और स्वयं को काम से मुक्त करने का आग्रह किया। शिव जी ने उनको मेधातिथि ऋषि के हवन-कुण्ड में बैठने को कहा। ऐसा करने से रश्मि उनकी पुत्री के रूप में पैदा हुई और फिर उन्होंने वशिष्ठ से विवाह किया।“
“बाई गॉड! तो मेरी जानू स्वयं ब्रह्मा की पुत्री हैं?”
रश्मि मुस्कुराई, “नहीं.. मैं तो बस अपने पापा की पुत्री हूँ.. और अब आपकी पत्नी!” फिर कुछ रुक कर, “और मैं हमेशा आपकी निष्ठावान रहूंगी – ठीक अरुंधती की तरह!”
उसने यह बात इतनी ईमानदारी और भोलेपन से कही, की दिल में एक टीस सी उठा गई.. मन भावुक हो गया। सच में, रश्मि जैसी जीवनसाथी पाकर मैं धन्य हो गया था, और मुझे यकीन हो चला था की मेरे अच्छे दिनों का आरम्भ उसके आने के साथ ही हो गया।
“मैं भी...” कह कर मैंने उसके हाथ को अपने हाथ में ले लिया, और उसके साथ ही देर तक जगमगाते आकाश को यूँ ही देखते रहा।
रात का समय
रश्मि का परिप्रेक्ष्य
पिछले कुछ दिनों से मिल रहे अनवरत सुख के कारण मुझमें अपार स्फूर्ति और ताज़गी आ गई जान पड़ती है। नींद ही नहीं आ रही है। कमरे में बाहर से हल्का हल्का उजाला आ रहा है – ‘कितना बजा होगा?’ मैंने घड़ी में देखा : रात के साढ़े बारह ही बजे थे अभी तक। ‘ये’ तो सो गए जान पड़ते हैं! हमको सोए हुए कोई एक घंटा ही तो हुआ है अभी तक! और मुझे लग रहा है की जैसे न जाने कितनी देर तक सो गई! ‘एकदम फ्रेश लग रहा है.. क्या करूँ?’
‘क्यों न खिड़की खोल दी जाए!? समुद्र का शोर बहुत सुहाना होता है।‘ ऐसा सोच कर मैं उठी और समुद्र के सामने खुलने वाली खिड़की के पल्ले खोल दिए और पर्दे हटा दिए, और वापस आकर बिस्तर पर सिरहाने की टेक लेकर बैठ गई। समुद्र की लहरों की गर्जना, रात्रिकाल की चुप्पी और रिसोर्ट की लाइटों से उठने वाले मृदुल उजासे से माहौल और भी शांतिमय हो चला था। नींद तो बिलकुल ही गायब थी, इसलिए मैं बैठे बैठे बस पिछले कुछ दिनों की बातें सोचने लग गई...
वास्तव में, यह सबकुछ एक परिकथा जैसा ही तो था! परिकथा! सपनों का राजकुमार!!
एक सजीला, सुन्दर, और नौजवान राजकुमार घोड़े पर सवार होकर आया और एक गरीब लड़की को अपनी रानी बना कर अपने महल में ले गया! शायद ही कोई ऐसा हो जिसने अपने बचपन में ऐसी, या इससे मिलती-जुलती कहानी न सुनी हो! और इन कहानियों को सुनते सुनते बचपन में ही लड़कियों के मन के किसी कोने में एक लालसा जागृत हो ही जाती है की एक दिन उनके भी सपनो का राजकुमार आएगा और उन्हें अपने साथ अपने महल ले जाएगा।
पर यथार्थ में क्या ऐसा कहीं होता है? मुझे तो मालूम भी नहीं की मेरे सपनो का राजकुमार कैसा होता! इसके बारे में मैंने वाकई कुछ भी नहीं सोचा था। अभी तक मैंने देखा ही क्या था? पिछले साल की ही तो बात है जब मैंने माँ और पापा को खुसुर-पुसुर करते हुए चुपके से सुना था – चर्चा का विषय था ‘मेरी शादी’! पापा मेरे लिए आये किसी विवाह प्रस्ताव की बात माँ को बता रहे थे... उस दिन मुझे पहली बार महसूस हुआ की लड़कियां अपने माँ-पापा के लिए चिंता का विषय भी हो सकती हैं। उस दिन मैंने निर्णय किया की अपने बूते पर कुछ कर दिखाऊंगी और अपनी ही पसंद के लड़के से शादी करूंगी... माँ बाप की चिंता ही ख़तम! लेकिन अगर सोचो तो कैसी बचकानी बात है? एक पिछड़े इलाके के छोटे कस्बे रहने वाले औसत परिवार की लड़की भला क्या ढूंढेगी अपने लिए पति! हमको क्या अधिकार है? अपनी हैसियत के हिसाब से जैसे तैसे कोई मिल जाय, वही बहुत है। लेकिन सोचने में क्या कोई दाम लगता है? मैं भी अपने लड़कपन में कुछ भी सोचती, ओर सोच सोच कर खुश होती की यह कर दूँगी, वह कर दूँगी।
लेकिन रूद्र ने अचानक ही हमारे जीवन में आकर यह सारे समीकरण ही बदल डाले। सच कहूं तो रूद्र कोई मेरे सपनो के राजकुमार नहीं हैं... वे उससे कई गुणा ज्यादा बढ़-चढ़ कर हैं... मैं सपने में भी उनके जैसा सुन्दर वर सोच नहीं सकती थी। इसके साथ साथ ही वह एक योग्य और लायक हमसफर भी हैं। उन्होंने अपना सब कुछ अपने ही हाथों से बनाया है... उनमें इंसानियत हैं... उनमें सभी के लिए उचित सम्मान भाव है और आत्म-सम्मान भी। और सबसे बड़ी बात, जो उनके सभी प्रकार के योग्यता और धन- दौलत से अधिक है – और वह है उनका चरित्र! उन्होंने ही बताया था की उन्होंने मुझे विद्यालय जाते हुए देखा था... अगले दिन मैंने कई बार पीछे मुड़ कर देखा, की शायद वो कहीं से मुझे देख रहे हों, लेकिन वो दिखे ही नहीं। खैर, फिर उनके बारे में पता लगाने के लिए पापा ने कई लोग भेजे, और जैसे जैसे उनके बारे में और पता चला, मेरे मन में उनके लिए प्रेम और आदर दोनों बढ़ते चले गए।
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