RE: Chodan Kahani घुड़दौड़ ( कायाकल्प )
“कल तो बड़ी-बड़ी बाते कह रही थी, और आज इतना शर्मा रही हैं! अब क्या शरमाना? ये देखो, मेरी उंगली आपकी चूत के अन्दर घुस रही है! और कुछ ही देर में मेरा लंड भी घुस जाएगा! अब बोल दो प्लीज। मेंरे कान तरस रहे हैं!” रश्मि की चड्ढी मैंने थोड़ा नीचे सरका दी और उसकी योनि को अपनी तर्जनी से प्यार से स्पर्श कर रहा था।
“बोलो न!”
“हाँ, मैं रोज़ डालने दूंगी।“
“कभी मना नहीं करोगी?”
“कभी नहीं... जब आपका मन हो, तब डाल लीजिये!”
“क्या डाल लीजिये?”
“जो आप थोड़ी देर में डालने वाले हैं!”
“क्या डालने वाले हैं?”
इस बार थोड़ी कम हिचक से, “ल्ल्ल्लंड...”
“गुड! और कहाँ डालने वाले हैं?” कहते हुए मैंने रश्मि के भगोष्ट को सहलाते हुए उसकी योनि में अपनी तर्जनी प्रविष्ट करा दी।
“अआह्हह! मेरी चूत में!”
“वेरी वेरी गुड! अब पूरा बोलो!”
रश्मि फिर से सकुचा गई, “मैं रोज़ आपका लंड.... अपनी चूत में... डालने दूँगी! और.... कभी मना नहीं करूँगी।”
यह सुन कर मैंने रश्मि को अपनी ओर भींच लिया और उसके सपाट पेट पर एक जबरदस्त चुम्बन दिया। हमारी ‘डर्टी टॉक’ से वह बहुत उत्तेजित हो गयी थी। एक दो और चुम्बन जड़ने के बाद मैंने रश्मि को बिस्तर पर पेट के ही बल पटक दिया और उसकी चड्ढी उतार फेंकी।
रश्मि को बिस्तर पर लिटा कर मैंने उसकी दोनों जांघें कुछ इस प्रकार फैलाईं जिससे उसकी योनि और गुदा दोनों के ही द्वार खुल गए। इससे एक और बात हुई, रश्मि के नितम्ब ऊपर की तरफ थोडा उभर आये और थोड़ा और गोल हो गए। सुडौल नितम्ब..! स्वस्थ और युवा नितम्ब। जैसा की मैंने पहले भी बताया है, रश्मि के नितम्ब स्त्रियोचित फैलाव लिए हुए प्रतीत होते थे, जिसका प्रमुख कारण यह है की उसकी कमर पतली थी।
मैंने पहले अधिक ध्यान नहीं दिया, लेकिन रश्मि के नितम्ब भी उसके स्तनों के सामान ही लुभावने थे। मैंने उसके दोनों नितम्बों को अपनी दोनों हथेलियों में जितना हो सकता था, भर लिया और उनको प्रेम भरे तरीके से दबाने कुचलने लगा। कुछ देर ऐसे ही दबाने के बाद उसके नितम्बों के बीच की दरार की पूरी लम्बाई में अपनी तर्जनी फिराई। उसकी योनि पर जैसे ही मेरी उंगली पहुंची, मुझे वहां पर उसकी उत्तेजना का प्रमाण मिल गया – योनि रस के स्राव से योनि मुख चिकना हो गया था। मैंने उसकी योनि रस में अपनी तर्जनी भिगो कर उसकी गुदा पर कई बार फिराया। हर बार जैसे ही मैं उसकी गुदा को छूता, स्वप्रतिक्रिया में उसका द्वार बंद हो जाता।
“और इस काम को क्या कहते हैं?”
“आह! ... सेक्स!”
“नहीं, बोलो, चुदाई! क्या कहते हैं?”
“चुदाई! आह!”
“हाँ! अभी पक्का हो गया। मुझे रोज़ आपकी चूत में मेरा लंड डाल कर चुदाई करने का एग्रीमेंट मिल गया है... क्यों ठीक है न?”
“आह... जीईई..!”
हम आगे कुछ और करते, की दरवाज़े पर दस्तक हुई, “रूम सर्विस!”
मैंने हड़बड़ा कर बोला, “एक मिनट!”
रश्मि सिर्फ ब्लाउज पहने हुए ही भाग कर बाथरूम में छुप गई। वो तो कहो मैंने भी अपने कपड़े नहीं उतारे थे, नहीं तो बहुत ही लज्जाजनक स्थिति हो जाती। खैर, रश्मि के बाथरूम में जाते ही मैंने दरवाज़ा खोल दिया। वेटर खाने की ट्रे, पानी, टिश्यु इत्यादि लेकर आ गया था। उसने अन्दर आते हुए एक नज़र फर्श पर डाली, और वहां पर साड़ी, पेटीकोट, चड्ढी यूँ ही पड़ी हुई देख कर उसने एक हल्की सी मुस्कान फेंकी – उसको शायद ऐसे दृश्य देखने की आदत हो गयी होगी। उसने अब तक न जाने कितने ही नवदंपत्ति देख लिए होंगे!
उसने टेबल पर खाने की प्लेट, डिशेस, पानी इत्यादि रखा और जाते-जाते कह गया की शाम को एक ऑटोरिक्शा हमको राधानगर बीच ले जाने के लिए बुक कर दिया गया है। मैंने उसको धन्यवाद कहा और उससे विदा ली। दरवाज़ा बंद करने के बाद मैंने रश्मि को बाहर आने को कहा – उसको ऐसे सिर्फ ब्लाउज पहने देखना बहुत ही हास्यकर प्रतीत हो रहा था।
“मैं इसीलिए कह रहा था की आपके कपड़ों की छुट्टी कर देते हैं.. लेकिन आप ही नहीं मानी!”
“और वो आप जो मुझे वो नए नए शब्द सिखाकर टाइम वेस्ट कर रहे थे, उसका क्या?”
“हा हा! अरे! आपने कुछ नया सीखा, उसका कुछ नहीं!”
“आप मुझे कुछ भी सिखा नहीं रहे हैं, ... बल्कि सिर्फ बिगाड़ रहे हैं! अब चलिए, मुझे कुछ पहनने दीजिये!”
“अरे, मैं तो यह ब्लाउज भी उतारने वाला था – आराम से, फ्री हो कर लंच करिए!”
“आपका बस चले तो मुझे हमेशा ऐसे नंगी ही करके रखें!”
“हाँ! आप हैं ही इतनी खूबसूरत!”
“हाय मेरी किस्मत! मेरे पापा ने सोचा की लड़की को अच्छे घर भेज रहे हैं। कमाऊ जवैं और एकलौता लड़का देख कर उन्होंने सोचा की उनकी लाडली राज करेगी! और यहाँ असलियत यह है की उस बेचारी को तो कपड़े पहनना भी नसीब नहीं हो रहा!” रश्मि ने ठिठोली की।
“उतना ही नहीं, उस बेचारी के ऊपर तो न जाने कैसे कैसे सितम हो रहे हैं! बेचारी की चूत में रोज़....”
मैंने जैसे ही उस पर हो रहे अत्याचारों की सूची कुछ जोड़ना चाहा तो रश्मि ने बीच में ही काट दिया, “छीह्ह! आपकी सुई तो वहीँ पर अटकी रहती है।”
“सुई नहीं... ल्ल्ल्लंड... सब भूल जाती हो!”
रश्मि ने कृत्रिम निराशा में माथा पीट लिया – वह अलग बात है की मेरी बात पर वह खुद भी बेरोक मुस्कुरा रही थी। खैर, मैंने जब तक खाना सर्व किया, रश्मि ब्लाउज उतार कर, और एक स्पोर्ट्स पजामा और टी-शर्ट पहन कर खाने आ गयी। खाते-खाते मैंने रश्मि को अपने हनीमून के प्लान के बारे में बताया – उसको यह जान कर राहत हुई की हमारे हनीमून में सिर्फ सेक्स ही नहीं, बल्कि काफी घूमना-फिरना और एडवेंचर स्पोर्ट्स भी शामिल रहेंगे।
भोजन समाप्त कर हम बीच की सैर पर निकले – इस समय समुद्र में भाटा आया हुआ था, जिसके कारण काफी दूर तक सिर्फ गीली, बलुई और पत्थरों से अटी भूमि ही दिख रही थी। हम लोग यूँ ही बाते करते, शंख, सीपियाँ और रंगीन पत्थर बीनते काफी दूर निकल गए। बातों में हमारे सर पर चमक रहे चटक सूर्य का भी ध्यान नहीं रहा – कहने का मतलब यह, की उन डेढ़-दो घंटों में ही धूप से हम लोगों का रंग भी साँवला हो गया। और आगे जाते, लेकिन अचानक ही हमको पानी वापस आता महसूस हुआ, तो हमने वापस रिसोर्ट जाने में ही भलाई समझी। हम दोनों के हाथ शंख और सीपियों से भर गए थे, इसलिए यह उचित था, की उनमें से सबसे अच्छे वाले चुन लिए जाएँ और बाकी सब वापस समुद्र के हवाले कर के हम वापस आ गए।
वापस आते हुए मैंने दो-तीन विदेशी जोड़ों से बात-चीत करी और उनके अंडमान के अनुभवों के बारे में पूछ-ताछ की। रश्मि के लिए भी यह एक नया अनुभव था – शायद ही उसने किसी विदेशी से पहले कभी बात करी हो, इसलिए उसको थोडा मुश्किल लग रहा था। लेकिन फिर भी, वह अपनी तरफ से पूरी कोशिश कर रही थी। कमरे में आ कर मैंने दो कप चाय मंगाई – चाय पीते-पीते ही ऑटो-रिक्शा वाला भी आ गया। मैंने हाफ-पैंट और टी-शर्ट पहना और रश्मि को भी स्कर्ट और टी-शर्ट पहनने को कहा। रश्मि की स्कर्ट, दरअसल, सूती के हलके कपड़े की बनी हुई थी और उसके हलके हरे रंग के कपड़े पर काले रंग के छोटे छोटे बिखरे हुए प्रिंट्स थे। यह स्कर्ट मैंने बीच पर पहनने की दृष्टि से ही लिया था। वैसे, रश्मि के लिए ऐसी स्कर्ट पहनना, जो उसके घुटने तक भी न आ सके, थोड़ा सा भिन्न, या यह कह लीजिये की अटपटा अनुभव था। लेकिन, मेरे साथ बिताये गए कुछ ही दिनों में उसको समझ आ गया था की इस प्रकार के अनुभवों का होना अभी बस शुरू ही हुआ है। इसलिए, उसने कोई हील-हुज्जत नहीं करी और कुछ ही देर में हम लोग राधानगर बीच की तरफ रवाना हो गए।
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