RE: Chodan Kahani घुड़दौड़ ( कायाकल्प )
रश्मि की अवस्था तनाव-मुक्ति से आगे की ओर जा रही थी – वह उत्तेजित हो रही थी। रश्मि के दोनों निप्पल कड़े हो गए थे और उनका उठान उसके कुरते के वस्त्र से साफ़ दिखाई दे रहा था। उसके होंठों पर एक बहुत ही हल्की मुस्कान भी दिख रही थी – मैं जो भी कुछ कर रहा था, बिलकुल सही कर रहा था। मैंने अब उसके दोनों टखनों को एक साथ अपनी उंगली और अंगूठे से पकड़ कर दबाना जारी रखा, और कुछ देर मसलने के बाद वापस उसके अंगूठों और तलवों की मालिश करी। अब तक मालिश के करीब पंद्रह मिनट हो गए थे। मैंने मालिश रोक दी, और बारी बारी से रश्मि के दोनों अंगूठों को चूमा। रश्मि की साँसे अब तक काफी उथली हो चली थीं। संभवतः यह मेरा भ्रम हो, लेकिन मुझे ऐसा लगा की मानो हवा में रश्मि की ‘महक’ घुल गई हो।
रश्मि की आँखें अभी भी बंद थी। इस परिस्थिति का लाभ उठाया मेरी उँगलियों ने, जिन्होंने उसकी शलवार के नाड़े को ढूंढ कर ढीला कर दिया। अगले पांच सेकंड में उसकी शलवार उसके घुटनों से नीचे उतर चुकी थी, और मेरी उंगलियाँ उसकी योनि रस से गीली हो चली चड्ढी के ऊपर से उसकी योनि का मर्दन कर रही थीं। मेरी इस हरकत से रश्मि की योनि से और ज्यादा रस निकलने लगा।
मैं और भी कुछ आगे करता की दरवाजे पर दस्तक हुई। रश्मि मानो मूर्छा से जागी हो। उसने झटपट अपनी शलवार सम्हाली और पुनः बाँध ली, और कुर्सी में और सिमट कर बैठ गयी। दरवाजे पर परिचारक था, जो हमारे लिए खाना लाया था। उसने टेबल पर खाना और प्लेटें व्यवस्थित कर के सजा दिया – मैंने देखा की उसने दो प्लेट रसगुल्ले, और पानी की बोतल भी लाई थी। इस बात से ख़ुश हो कर मैंने उसको अच्छी टिप दी और उससे विदा ली। जाते-जाते उसने मुझको खाने के बाद ट्रे को दरवाज़े के बाहर रख देने को कह दिया।
“आप मुझको कितनी आसानी से बहका देते हैं!” मेरे वापस आने पर रश्मि ने लजाते, सकुचाते कहा।
“बहका देता हूँ?” मैंने बनावटी आश्चर्य में कहा, “जानेमन, इसको बहकाना नहीं कहते – यह तो मेरा प्यार है। और आप अभी नई-नई जवान हुई हैं, इतनी सेक्सी और हॉट हैं, इसलिए आपकी सेक्स-ड्राइव, मेरा मतलब सेक्स में दिलचस्पी, थोड़ी अधिक है। अच्छा है न? सीखने की उम्र है – जो मन करे, जितना मन करे, सब सीख लो।“ मैंने आँख मारते हुए कहा।
“आप हैं न मुझे सिखाने के लिए!” रश्मि की लज्जा अभी भी कम नहीं हुई थी। “आप के जैसे ओपन माइंडेड तो नहीं हूँ, लेकिन जितना भी हो सकेगा, आपको ख़ुश रखूंगी।”
“जानू, सिर्फ मुझे ही नहीं, हम दोनों को ही ख़ुश रहना है। ओके? अरे भाई – हमारे शास्त्रों में भी यही बताया गया है!”
“शास्त्रों में यह सब बाते होती है?”
“बिलकुल! यह सुनो... यह मनु ने कहा है –
संतुष्टो भार्यया भर्ता भर्ता भार्या तथैव च:। यस्मिन्नैव कुले नित्यं कल्याण तत्रेव ध्रुवम्।।
जिस कुल - मतलब घर या परिवार - में, पुरुष स्त्री से प्रसन्न रहता है, और पुरुष से स्त्री, उस परिवार का अवश्य ही कल्याण होता है! कहने का मतलब बस यह, की एक दूसरे को पूरी तरह से ख़ुश करने की हम दोनों की ही बराबर की जिम्मेदारी है। न किसी एक की ज्यादा, न कम! समझ गयी?”
मेरी बात सुन कर रश्मि ने ‘हां’ में सर हिलाया और फिर हमने खाना आरम्भ किया। गरमागरम खाना और रसगुल्ले खा कर पेट अच्छे से भर गया। दिन भर की थकावट के कारण खाना ख़तम करते करते नींद आने लग गयी। मैंने ट्रे बाहर रखी और वापस आ आकर बिस्तर पर ढेर हो गया।
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