RE: Chodan Kahani घुड़दौड़ ( कायाकल्प )
कुछ देर ऐसे ही चूमने के बाद मैंने पुनः उसके स्तनो का भोग लगाना आरम्भ कर दिया। उसके शरीर पर वह दोनों स्वादिष्ट स्तन जिस तरह से परोसे हुए थे, मैं ही क्या, कोई भी होता तो अपने आपको रोक न पाता। मुझे लगा कि रश्मि कुछ कुछ कह रही थी, लेकिन उसकी आवाज़ मेरे एक तो स्तनपान कि क्रिया के कारण धीरे-धीरे आ रही थी और ऊपर से मेरे स्वयं के उन्माद के कारण मुझे लग रहा था कि बहुत दूर से आ रही है।
"हँ?" मैंने बड़े प्रयास के बाद उसके स्तन से मुंह हटा कर पूछा।
"काश .......... इनमें ..... दूध होता …" रश्मि ने दबी हुई आवाज़ में कहा।
'वाकई! काश इनमे दूध होता!' मैंने सोचा, तो मुंह में और स्वाद आ गया। मैंने और जोश में आकर उनको चूमना, चूसना और दबाना जारी रखा। मैंने कब तक ऐसा किया मुझे ध्यान नहीं, लेकिन एक समय ऐसा भी आया की रश्मि दर्द भरी सिसकी भरने लगी। मुझे समझ आ गया की अब दूसरे स्तन की बारी है, और यही क्रिया उस पर भी आरम्भ कर दी। निश्चित तौर पर अब तक रश्मि का संकोच समाप्त हो चला था, और वह कामुक आनंद से पूर्णतया अभिभूत हो गयी थी।
अब आगे बढ़ने का समय हो चला था। मैं उसके पेट को लगातार चूमते हुए उसके गुप्तांग तक पहुँचने लगा। मेरे हर चुम्बन के जवाब में रश्मि कसमसाने लगती। इस समय उसके दोनों हाथ मेरे बालों में घुस कर मेरे सर को कभी पकड़ते तो कभी सहलाते। मैं चूमते हुए जल्दी ही उसकी योनि तक पहुँच गया। मैंने उसके जघन क्षेत्र को चूमा तो रश्मि ने अपने कूल्हों को मेरे मुंह में ठेल दिया। मैंने अपनी जीभ से कुछ देर चाटा। उसकी योनि के इतने करीब होने के कारण मैं उसकी मंद स्त्रैण-गंध सूंघ सकता था। मेरा लिंग अविश्वसनीय ढंग से कड़ा हो गया था, और मैं चाहता था कि रश्मि उसको महसूस कर सके।
ऐसे ही समय के लिए महान ऋषि वात्स्यायन जी ने "कोकिला योग" कि खोज की थी। कोकिला - जिसको आज कल कि भाषा में 69 कहा जाता है। "69" सम्भोग क्रीड़ा के पूर्व का वह कामुक विन्यास है जो आप और आपके साथी को, एक दूसरे को, एक साथ मौखिक सेक्स देने के लिए अनुमति देता है। इस योग में आप और आपका साथी अपने मुंह से एक दूसरे के जननांगों को एक अभूतपूर्व निजता के साथ काम-सुख प्रदान कर सकते हैं। अतः, मैं उठ कर पूरी तरह से रश्मि के ऊपर औंधा हो गया - जिससे मेरे दोनों पाँव उसके दोनों तरफ रहे और मेरा मुंह उसकी योनि पर और मेरा लिंग रश्मि के मुंह के सामने रहे।
"अ … अ … आप क … क … क्या कर रहे ह … हैं?" रश्मि के मुख से अस्फुट से स्वर निकले। पता नहीं उसको कैसा लगेगा, जब वह अपने चेहरे के सामने मेरा चूतड़ देखेगी! मेरी एकमात्र उम्मीद यह थी कि रश्मि मेरे लिंग पर अपना ध्यान केंद्रित करे, न कि किसी अन्य हिस्से पर।
"जो मैं कर रहा हूँ, आप भी वही करो।" मैंने भी हाँफते हुए कहा, और अपने नितम्ब को नीचे कि तरफ दबाया जिससे मेरा लिंग उसके मुख के पास पहुँच जाए। रश्मि पहले भी मेरा लिंग अपने मुंह में ले चुकी थी, अतः उसको दोबारा यह करने में कोई समस्या नहीं हुई। अगले ही छण मुझे अपने लिंग पर एक गर्म, नम और मखमली एहसास हुआ।
रश्मि की योनि पहले से ही रसीली हो गयी थी। मैंने अपने अंगूठों से उसकी योनि द्वार को सरकाया और अपनी जीभ को उसकी स्वादिष्ट योनि द्वार में सरका दिया। स्त्रियों के गुप्तांग (मूलाधार, भगशेफ और योनि) बहुत संवेदनशील होते हैं और मामूली उत्तेजन से भी कामुक प्रतिक्रिया दिखाने लगते हैं। अतः मैंने अपनी जीभ को सौम्य और धीमी गति से चलना शुरू किया - ठीक इस प्रकार जैसे कि आइसक्रीम को चाटा जाता है। मैंने धीरे धीरे शुरुआत करके, चाटने की गति बढ़ा दी - और साथ ही साथ चाटने का तरीका और चाटने का दबाव भी बदलता रहा। मैंने धीरे-धीरे, अपनी उँगलियों से उसके भगोष्ठ को फैला कर उसकी स्वादिष्ट योनि के अंदर अपनी जीभ से अन्वेषण किया और ऐसा करने से मैंने उसके समस्त कामुक क्रोड़ के तार झनझना दिए।
हांलाकि रश्मि के मुख में मेरा लिंग था लेकिन फिर भी मुझे उसके गले से निकलती संतुष्टि की सिसकारी सुनायी दी। उसने कुछ देर तक तो शिश्नाग्र को चाटा और चूसा, लेकिन जैसे जैसे वह चरम सुख तक पहुँचने लगी, उसकी क्रिया धीमी पड़ गयी। कुछ देर में उसका सर पीछे की तरफ लुढ़क गया। रश्मि अपनी कामेन्द्रियों पर होने वाले इस इस भारी भरकम हमले से अभिभूत हो गयी। वह इस समय मुंह से साँसे भर रही थी। उसके लिए यह निश्चित रूप से स्वर्ग की सैर करने जैसा था।
मुझे वैसे भी अपना वीर्य रश्मि की योनि के अंदर डालना था - याद है न, उसकी माँ का आदेश था! अपने स्खलन के तुरंत बाद ही रश्मि ने मेरा लिंग अपनी कोमल उँगलियों से पकड़ लिया था। मेरे उन्माद की भी यह सीमा ही थी। अगर वह आठ-दस बार मेरे लिंग को दबा ही देती तो मैं स्खलित हो जाता। अतः मैं जल्दी से अपनी अवस्था से हट गया और वापस पहले जैसे ही उसके सामने बैठ गया। मैंने कुछ एक क्षण गहरी साँसे भरी, जिससे की अपने लिंग पर मुझे और व्यापक नियंत्रण मिल सके।
इसी विराम वेला में मैंने रश्मि को देखा - एक तरुण, विवाहित, और सम्भोग-तृप्त हिन्दू नारी का सौंदर्य अतुलनीय होता है। रश्मि का दोषरहित, सुन्दर और नितांत नग्न शरीर - उसकी छाती पर सजे हुए प्यारे स्तनों का जोड़ा, एकहरा शरीर, सुडौल नितम्ब, और स्वस्थ, नरम जांघें (जो इस समय मेरे दोनों तरफ फैली हुई थीं); हाथों में रची मेहंदी और चूड़ियाँ, गले में मंगलसूत्र, कानो में कर्णफूल, नाक में एक छोटी सी चमकती हुई कील, मांग में नारंगी सिन्दूर और फैले हुए बाल - वह इस समय स्वयं रति देवी का ही रूप लग रही थी।
मैंने उसका चेहरा अपने दोनों हथेलियों में लेकर उसके होंठों पर एक भरपूर चुम्बन दिया और कहा, "वाह! तुम एक बहुत खूबसूरत लड़की हो!" अब तक मेरी साँसे मेरे नियंत्रण में आ गयी थीं और मेरा लिंग भी। उसकी उत्तेजना बरकरार थी लेकिन बेकाबू नहीं। फिर मैंने रश्मि कि टाँगे सावधानी से अलग करीं और जगह बनायी और अपने लिंग को हाथ में लेकर उसकी योनि में धीरे धीरे सरका दिया। लिंग का सर अपने गंतव्य में प्रवेश कर चुका था।
"आर यू रेडी?" मैंने रश्मि से पूछा। उसने तेजी से सर हिला कर हामी भरी।
योनि बुरी तरह से चिकनी थी, अतः लिंग को कोई भी प्रतिरोध नहीं मिलना था। वैसे भी रश्मि अभी अभी संपन्न हुए सम्भोग कि पृष्ठभूमि में लस्त पड़ी हुई थी। उसको जागृत करने के लिए इससे अच्छा तरीका और नहीं हो सकता था। मैंने अपने लिंग को एक तेज़ धक्का दिया - दो बातें एक साथ हुईं - एक तो रश्मि के मुख से एक लम्बी सीत्कार निकल गयी और दूसरा, चूंकि मेरा लिंग अभूतपूर्व तरीके से स्तंभित था, इसलिए रश्मि के योनि मार्ग ने अत्यंत शानदार तरीके से मेरे लिंग कि पूरी लम्बाई को जकड लिया। मैंने बिना रुके धक्के लगाना आरम्भ कर दिया और नीचे से रश्मि ने अपने धक्को से उनका मिलान करना। मैंने रश्मि के चेहरे को देखा। उसकी आँखें बंद थीं और उसके होठ कामुकता से पृथक थे। हम दोनों ही इस रति-क्रिया का बराबर आनंद ले रहे थे।
रश्मि अपने नितम्बो को इस समय न केवल ऊपर नीचे, वरन, एक गोल गति में भी घुमा रही थी - इससे मेरे लिंग का दो-आयामी दोहन होने लगा था। इससे उसके भगनासे का भी बराबर उत्तेजन हो रहा था। उसकी गति भी बढ़ने लगी थी - सम्भवतः वह दूसरी बार स्खलित होने वाली थी। यह तो एकदम अद्भुत घटना थी। लेकिन मैंने सपने हाथों से उसके नितम्बो को पकड़ कर उसकी गति को थोडा नियंत्रण में लाया। मैं चाहता था कि हमारा यह सम्भोग थोडा और देर तक चले। उसकी गति पर तो मैं बस कुछ ही पल ठहर पाता। कुछ देर तक हम नियंत्रित रहे लेकिन पुनः रश्मि कि गति तेज हो गयी - इस बार मैंने उसको रोका नहीं, बल्कि मैंने खुद भी अपनी गति बढ़ा दी।
"कम ऑन स्वीटी! कम विद मी!" मुझे मालूम पड़ गया था कि अब हम दोनों ही स्खलन के बेहद करीब हैं। अतः मेरी इच्छा यह थी कि हम दोनों साथ साथ आयें।
"कम ऑन गर्ल! कम फॉर मी!"
मैंने यह बहुत ऊंची आवाज़ में बोला था। भगवान् ही जाने कि बगल के कमरे में बैठे मेरे ससुराल वाले क्या सोच रहे होंगे। मेरी हर 'कम ऑन' पर रश्मि के धक्के और तीव्र हो जा रहे थे - वह मेरा मंतव्य समझ रही थी। उसके उसके नाखून मेरी पीठ में गड़ने लगे थे - लेकिन मुझे यह पीड़ा भी इस समय मनोहर लग रही थी।
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