RE: Chodan Kahani घुड़दौड़ ( कायाकल्प )
मेरे अनुरोध करने पर रश्मि ने गाना आरम्भ किया ---
'तेरा मेरा प्यार अमर, फिर क्यो मुझ को लगता हैं डर ,
मेरे जीवन साथी बता, क्यो दिल धड़के रह रह कर'
उसकी आवाज़ का भोलापन और सच्चाई मेरे दिल को सीधा छू गया। उसकी आवाज़ लता जी जैसी तो नहीं थी, लेकिन उसकी मिठास उनकी आवाज़ से सौ गुना अधिक थी। मेरा मन उस आवाज़ के सागर में गोते लगाने लगा।
'कह रहा हैं मेरा दिल अब ये रात ना ढले,
खुशियों का ये सिलसिला, ऐसे ही चला चले''
मेरे मन में हमारे साथ बिताये हुए इन दो दिनों की घटनाएं और दृश्य चलचित्र की भाँति चलने लगे। मन में एक हूक सी हो गयी। रश्मि के बगैर एक भी पल नहीं चाहिए मुझे मेरे जीवन में!
'चलती हू मैं तारों पर, फिर क्यो मुझ को लगता हैं डर'
वही डर जो मुझे भी लगता है। प्यार में होना, जहाँ अत्यधिक संतोषप्रद और परिपूरक होता है, वहीँ अपने प्रेम को खोने का डर भी लगता है। गाना ख़तम हो गया था, और मैं रश्मि की आँखों में देख रहा था - और वो मुझे! उसकी आँखों में यकीन दिलाने वाली चमक थी - इस बात का यकीन की मैं तुम्हारे साथ हूँ, हमेशा! मेरे ह्रदय में एक धमक सी हो गयी। ऐसा कभी नहीं हुआ। हमारा प्रेम बढ़ता ही जा रहा था, और हमारे साथ के प्रत्येक पल के साथ और प्रगाढ़ होता जा रहा था।
जब थाली परोसी गयी तो मैं घबरा गया - ये रोज़मर्रा की थाली है?! मुझको जो परोसा गया वह था - पुलाव, राजमा दाल, स्वांटे के पकौड़े, स्वाले (एक तरह के परांठे), और खीर - जो रश्मि ने बनायी। सबसे अच्छी बात मुझको यह लगी की सभी लोग टाट-पट्टी पर साथ में बैठ कर साथ में खाना खा रहे थे। यहाँ लगता है की स्त्रियाँ अपने पतियों के साथ बैठ कर खाना नहीं खाती, लेकिन मेरे दबाव में रश्मि मेरे साथ ही खाने बैठ गयी। वह सलज्ज, लेकिन संयत लग रही थी। पहले तो शादी होने के बाद भी शलवार-कुर्ता पहनना, फिर खुलेआम एक रोमांटिक गाना, और अब साथ में बैठ कर खाना - इस छोटी सी जगह के लिए बहुत बड़ा अपवाद था।
पहाड़ पर चढ़ने, और ठंडक में इतनी देर तक अनावृत रहने से मेरी भूख काफी बढ़ गयी थी, इसलिए मैंने छक कर खाया, और रश्मि को भी आग्रह कर के खिलाया। खाने के बाद कस्बे के बड़े-बूढ़े लोग भी साथ आ गए - हम लोग अलाव जला कर उसके इर्द-गिर्द बैठे और कुछ देर यूँ ही इधर उधर की बात की। यहाँ पर कल और रहना था और परसों वापस अपने शहर - कंक्रीट जंगल - को! मेरे पास वैसे तो छुट्टियाँ काफी थीं, लेकिन अभी तक हनीमून का कोई प्लान नहीं बनाया था।
मैंने रश्मि से शादी के पहले पूछा था की वो कहाँ जाना पसंद करेगी, लेकिन यह प्रतीत होता था की उसको हनीमून जैसी चीज़ के बारे में कुछ भी नहीं मालूम था। और उस समय हम दोनों इतनी कम बाते करते थे की यह संभव नहीं था की इसके बारे में रश्मि को तफसील से बता पाऊँ! मुझे यह अचानक ही याद आया की हनीमून का तो कोई प्लान ही नहीं बनाया है।
'ठीक है …. अभी रश्मि से इस विषय में चर्चा करूँगा।' मैंने सोचा।
वैसे भी विदेश में जा कर हनीमून करना संभव नहीं था, क्योंकि एक तो रश्मि के पास पासपोर्ट नहीं था, और दूसरा उसके लिए काफी योजना करनी होती है। खैर उसी से यह बात करने पर कोई हल निकलेगा। मैंने अपने शादी-शुदा दोस्तों को एस एम एस भेजे की मुझे हनीमून आईडिया भेजें - जो भारत में हों - वो भी तुरंत। मैंने वैसे भी कहीं मनोरंजन के इरादे से यात्रा नहीं करी थी - बस एक बार की, तो उसी में मुझको अपनी जीवन संगिनी भी मिल गयी।
अगले पन्द्रह मिनट में शादी की बधाई के साथ मुझे कम से कम बीस अलग अलग जगहों के बारे में मालूम हो गया - पहाड़ो से लेकर रेगिस्तान तक, धर्म स्थानों (आखिर हनीमून के लिए कौन गधा धर्म-स्थान जाता है?) से लेकर नग्न-बीचों तक। पहाड़, धर्म-स्थान, रेगिस्तान, और जंगल वाले आईडिया मैंने नकार दिए (हाँलाकि जंगल वाला आईडिया मुझे बहुत अच्छा लगा - लेकिन मैंने सोचा की उसको बाद में देखा जाएगा।
नग्न बीच तो भारत में तो होते नहीं - लेकिन बीच का आईडिया मस्त है, मैंने सोचा। रश्मि के लिए एकदम नया होगा। उसने अभी तक सिर्फ पहाड़ ही देखे हैं - इस जगह से आगे कभी गयी ही नहीं। उसने बस किताबों में ही पढ़ा होगा। मैंने अपने दोस्तों को पुनः एस एम एस भेजे की मुझे बीच के विभिन्न आईडिया बताएं।
अगले आधे घंटे में मुझको गोवा, केरल, अंडमान और लक्षद्वीप के बारे में मालूम हो गया। लगभग सभी ने गोवा के बारे में बोला अवश्य। इसी से मुझे स्पष्ट हो गया की वहां नहीं जाना है - निश्चित रूप से बहुत ही भीड़-भाड़ वाली जगह होगी। कोई ऐसी जगह चाहिए जो साफ़ सुथरी हो, सुरक्षित हो, और जहाँ पर्याप्त एकांत भी मिले।
फिर मैंने अपने बॉस को फ़ोन किया और अपना प्लान बताया। आप लोगो सोचेंगे की ऐसा बॉस सभी को मिले - लेकिन उसने पहले तो मुझे विवाह की बधाइयाँ दीं और फिर बहुत ही ख़ुशी से मुझको वापस आने के लिए 'अपना समय लेने' को कहा (इतने दिनों के काम में मैंने शायद ही कभी छुट्टी ली हो - उसको कभी कभी यह डर लगता था की कहीं मुझे काम के कारण बर्न-आउट न हो जाए। वो मेरे जैसे लाभकर कर्मचारी का क्षय नहीं करना चाहता था। उसने मुझे अंडमान जाने को कहा, और यह भी बताया की उसका एक मित्र है जो वहां एक उम्दा होटल का मालिक है। और यह की वह होटल एकदम फर्स्ट क्लास है (वह खुद भी वहां रह चुका है), और वह अपने दोस्त को मुझे डिस्काउंट देने के लिए भी बोलेगा। मुझे तो उसका सुझाव बहुत अच्छा लगा, लेकिन रश्मि की रजामंदी भी उतनी ही अवश्यक थी। अतः मैंने उसको कहा की मैं सवेरे फोन कर के बताऊँगा।
"यहाँ तो बहुत ठंडक हो जाती है! बाप रे! आप लोग रहते कैसे हैं?" मैंने कमरे के अन्दर आते हुए रश्मि से पूछा। मैं अपने हाथों को रगड़ कर गरम करने का प्रयास कर रहा था। रश्मि इस समय कुछ कपडे तह करके एक तरफ रख रही थी।
"आपको आदत नहीं है न! इसीलिए आपको इतनी ठंडक लग रही है। और आप सिर्फ एक स्वेटर क्यों लाये? पहाडों पर आए और वो भी इस मौसम में! कुछ और गर्म कपडे रखने चाहिए थे न?" रश्मि ने हँसते हुए जवाब दिया।
"आपको कैसे मालूम की मेरे पास सिर्फ एक स्वेटर है? मेरे पीछे पीछे मेरा सामान चेक कर रही थीं क्या?" मैंने मजाक करते हुए कहा।
"हाँ! आपके कुछ कपड़े आपके बैग में रखने थे, इसलिए।" रश्मि ने पत्नी-सुलभ अधिकार और मान वाली आवाज़ में कहा। मैं मुस्कुराया - अब 'मेरा सामान' जैसा कुछ नहीं है!
"आपने कभी बताया ही नहीं, की आप इतना बढ़िया गाती हैं? मैं अब तो रोज़ सुनूँगा गाने!" रश्मि ने कुछ नहीं कहा, बस लज्जा से मुस्कुराई। मेरे चेहरे पर उसके लिए प्रेम, प्रशंसा, और गर्व के कितने ही सारे मिले जुले भाव आये। मेरी आवाज़ आर्द्र हो चली, लेकिन फिर भी मैंने उसको कहा,
"सच कहूं? यू चेंज्ड माय लाइफ! थैंक यू!" मेरी यह बात सुनते सुनते रश्मि की आँखें भर आईं, और वो तेज़ी से मेरे पास आकर मुझसे लिपट गयी। अब 'आई लव यू' कहने की ज़रुरत नहीं थी। हम दोनों इन मामूली औपचारिकताओं से ऊपर उठ गए थे। मैंने उसको अपने से चिपटाए हुए ही कहा, "आपको मालूम है न, की परसों एकदम सवेरे ही हम लोगो को यहाँ से वापस जाना है?"
यह सुन कर रश्मि जाहिर तौर पर उदास हो गयी और उसने बहुत धीरे से सर हिलाया।
"जानू, प्लीज! उदास मत होइए! हम लोग यहाँ हमेशा तो नहीं रह सकते हैं न? जाना तो होगा?" उसने फिर से सर हिलाया।
"माँ बाबा को छोड़ कर जाने से दुःख तो होगा, लेकिन मैं आपका पूरा ख़याल रखूंगा। आपको मुझ पर भरोसा है न?" रश्मि ने मेरी आँखों में एक गहन दृष्टि डाली और कहा,
"आप पर जितना भरोसा है, मुझे वो खुद पर नहीं है! आपके साथ मैं कहीं भी जाऊंगी। और मुझे मालूम है की आप मुझे हमेशा खुश रखेंगे। इसका उल्टा तो मैं सोच भी नहीं सकती।"
मैंने संतोषप्रद सांस भरी, "चलिए, बिस्तर पर चलते हैं …"
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