RE: Chodan Kahani घुड़दौड़ ( कायाकल्प )
रश्मि का परिप्रेक्ष्य:
रश्मि को पिछले के रति-संयोगों में वैसा नहीं महसूस हुआ था, जैसा की उसको अभी हो रहा था। उसके पति का बृहद लिंग उसकी नन्ही सी योनि का इस प्रकार उल्लंघन और उपभोग कर रहा था जिसकी व्याख्या करना अत्यंत कठिन था! वह लिंग जिस तरह से उसकी योनि द्वार को फैला रहा था और इस क्रिया से होने वाला कष्ट भी अब उसको प्रिय लगने लगा था। उस लिंग के प्रत्येक प्रवेशन से उन दोनों के जघन क्षेत्र एकदम ठीक जगह पर, एकदम ठीक बल के साथ टकरा रहे थे। और उसके पति के वृषण उसके नितम्बो पर नरम नरम चपत लगा रहे थे।
ऐसा सुख रश्मि को पहले नहीं महसूस हुआ। यह संवेदना थी आनंद की, कष्ट की, आनंदातिरेक की और एक तरह की हानि की। और कुछ भी हो, इस काम में मज़ा बहुत आ रहा था।
जब रश्मि के विवाह का दिन निकट आने लगा, तो पास पड़ोस की तीन चार 'भाभियों' ने उसको अंतहीन और अधकचरी यौन शिक्षा प्रदान की। उनके हिसाब से पुरुष का लिंग सामान्यतः संकरा, थोड़ा लटकता हुआ, पतली ककड़ी जैसे आकार का होता है। किन्तु उसके पति का लिंग तो उनके बताये जैसा तो बिलकुल ही नहीं था - बल्कि उसके विपरीत कहीं अधिक प्रबल, लम्बा और मोटा था। उन्होंने यह भी बताया था की यौन क्रिया तो बस दो से चार मिनट में ख़तम हो जाती है, और ऐसा कोई घबराने वाली बात नहीं होती, और यह भी की ये तो पुरुष अपने मज़े के लिए करते हैं। लेकिन उसका पति इस विभाग में भी निश्चित रूप में लाखों में एक है - एक तो उनके बीच का एक भी यौन प्रसंग कम से कम पंद्रह बीस मिनट से कम नहीं चला … और तो और 'उन्होंने' उसके आनंद को हर बार वरीयता दी। भाभियों के हिसाब से सेक्स का मतलब लिंग का योनि में अन्दर बाहर जाना और तीन चार मिनट में काम ख़तम। लेकिन अब तक उन दोनों ने जितनी भी बार भी सेक्स किया, उतनी ही बार सब कुछ नया नया था।
आखिर कितनी विषमता हो सकती है, इस चिरंतन काल से चली आ रही नैसर्गिक क्रिया में? रश्मि को अपनी योनि में एक तेज़ धक्का महसूस हुआ - उसने ध्यान किया की उसके पति का लिंग कुछ और फूल रहा था। और जिस तरह से वह लिंग उसके क्रोड़ को निःशेष कर रहा था, उससे वह अपने पति और उसके लिंग, दोनों की ही मुरीद बन चुकी थी। उसको मन ही मन ज्ञात हो चला था की रूद्र की वो पूरी तरह गुलाम बन गयी है। पहले तो अपने व्यक्तित्व, फिर अपने व्यवहार और अब अपने यौन-सामर्थ्य से उसके पति ने उसको पूरी तरह से जीत लिया था। इसके एवज़ में वह कुछ भी कहेंगे तो वह करेगी। अगर रूद्र चाहे तो दिन के चौबीसों घंटे उसके साथ सम्भोग कर सकता है और वो मना नहीं कर सकती थी।
मेरा परिप्रेक्ष्य:
आमतौर पर पुरुष एक स्खलन के आधे घंटे तक पुनः संसर्ग के लिए नहीं तैयार हो पाते। लेकिन रश्मि की कशिश ही कुछ ऐसी है की मैं तुरंत तैयार हो जाता हूँ। उसका अद्वितीय रूप, उसका भोलापन, उसकी सरलता और उसका कमसिन शरीर मेरी कामातुरता को कई गुना बढ़ा देता है। कभी कभी मन होता है की उसकी योनि में अपने लिंग का इतने बल से घर्षण करूँ की वहां लाल हो जाए। लेकिन, स्त्रियाँ हिंसा से नहीं, प्रेम से जीती जाती है। लिहाज़ा, मैं अपने मन के पशु पर लगाम लगा कर लयबद्ध तरीके से उसकी योनि का मर्दन कर रहा हूँ। उसकी कसी हुई और चिकनी योनि में मेरे लिंग का आवागमन बहुत ही सुखमय लग रहा है।
रश्मि का परिप्रेक्ष्य:
रश्मि की कामाग्नि कुछ इस प्रकार से धधक रही है की उसको न तो अपने नीचे के शिलाखंड की शीतलता महसूस हो रही है और न ही अपने पर्यावरण की। इस समय उसके पूरे अस्तित्व का केंद्र उसकी योनि थी, जहाँ पर उसके पति का लिंग अपन कर्त्तव्य कर रहा था। उसके हर धक्के में आनंद और पीड़ा की ऐसी मधुर झंकार छूट रही थी की उसको लग रहा था की वह स्वयं ही कोई वाद्य-यन्त्र हो। ऐसे ही आनंद के सागर में हिचकोले खाते हुए उसकी दृष्टि झाड़ियों के पीछे चली गयी।
'कोई तो वहां है!' हाँलाकि उसके नेत्रों में खींचे वासना के डोरे उसकी अवलोकन को धुंधला बना रहे थे, लेकिन थोडा जतन करने से उसको कुछ स्पष्ट दिखने लगा। जो व्यक्ति था, उसके कपडे बहुत ही जाने पहचाने थे। पर समझ नहीं आ रहा था की ये है कौन!
किन्तु, अपने आपको ऐसे नितांत नग्न और यौन की ऐसी प्रच्छन्न अवस्था में किसी और के द्वारा देखे जाने के एहसास से रश्मि की कामुकता और बढ़ गयी।
'कोई देखता है तो देखे! आखिर वह अपने पति के साथ समागम कर रही है, किसी गैर के साथ थोड़े ही! और देखना ही क्या? जा कर सबको बताये की रश्मि और उसका पति किस तरह से सेक्स करते हैं। और यह भी की उसके पति का लिंग कितना प्रबल है!'
यह सोचते हुए कुछ ही पलों में वह रति-निष्पत्ति के आनंदातिरेक पर पहुँच गयी। उसकी योनि से काम रस बरस पड़ा और रूद्र के लिंग को भिगोने लगा। आनंद की एक प्रबल सिसकारी उसके होंठों से निकल गयी। लेकिन रूद्र का प्रहार अभी भी जारी था - उसके हर धक्के के साथ ही साथ रश्मि उछल जाती। उसको इस समय न तो अपने आस पास का अभिज्ञान था और न ही भौतिकता के किसी भी नियम का। पूर्ण आनंद से ओत प्रोत होकर रश्मि इस समय अन्तरिक्ष की सैर कर रही थी।
सुमन का परिप्रेक्ष्य:
सुमन का दिल एकदम से बैठ गया - 'दीदी उसी की तरफ देख रही है! क्या उसने मुझको देख लिया होगा? चोरी पकड़ी गयी? ऐसा लगता तो नहीं! अगर देखा होता तो शायद वो अपने आपको ढकने की कोशिश करती?' उसकी दृष्टि इस समय इस अत्यंत रोचक मैथुन के केंद्र बिंदु पर मानो चिपक ही गयी थी। जीजू का विकराल लिंग दीदी की छोटी सी योनि के अन्दर बाहर जल्दी जल्दी फिसल रहा था, और दीदी उसके हर धक्के से उछल रही थी, और आहें भर रही थी।
मेरा परिप्रेक्ष्य:
मैंने अचानक ही रश्मि की योनि में चिकनाई बढती हुई देखी, जो की मेरे अगले धक्कों में ही मेरे लिंग के साथ बाहर आने लगी। रश्मि के शरीर की थरथराहट, गहरी गहरी साँसे, पसीने की परत, यह सब एक ही और संकेत कर रहे थे, और वह यह की रश्मि को चरम सुख प्राप्त हो गया है। लेकिन मेरी मंजिल अभी भी दो तीन मिनट दूर थी, इसलिए मैंने धक्के लगाना जारी रखा। कोई एक मिनट बाद रश्मि के शरीर की थरथराहट काफी कम हो गयी और वह अपनी आँखें खोल कर मेरी तरफ देखने लगी। कुछ देर और धक्के लगाने के बाद मुझे अपने अन्दर एक परिचित दबाव बनता महसूस हुआ। मैंने तत्क्षण कुछ नया करने का सोचा। ठीक तभी जब मेरा स्खलन होने वाला था, मैंने अपना लिंग बाहर निकाल लिया और हाथ से अपने लिंग को पकड़ कर मैथुन जैसे गति देने लगा। रश्मि ताज्जुब से मेरी इस हरकत को देखने लगी। उसके चेहरे के हाव भाव बड़ी तेजी से बदल रहे थे। मुझे उसको देख कर ऐसा लगा की उसको समझ आ गया है की मेरा प्लान अपने वीर्य को बाहर फेंकने का है। और यह एक निरादर भरा कार्य था।
वह कुछ कर या कह पाती उससे पहले ही मैंने अपने आप को छोड़ दिया - मेरे गर्म, सफ़ेद वीर्य के लम्बे मोटे डोरे उसके पेट और जाँघों पर छलक गए। वीर्य की कुछ छोटी-छोटी बूँदें उसके योनि के बालों पर उलझ गईं। ऐसा करते हुए मेरी भरी हुई साँसों के साथ कराहें भी निकल गयीं - मेरे पाँव इस तरह कांपे की मुझे लगा की मैं अभी गिर जाऊँगा। मैंने पकड़ कर अपने आप को सम्हाला।
रश्मि ने मेरे वीर्य से सने और रक्त वर्ण लिंग को देखा, फिर अपने पेट पर पड़े वीर्य को देखा और फिर बड़े अविश्वास से मेरी तरफ देखा। कुछ देर ऐसे ही घूरने के बाद उसने हाँफते हुए बोला,
"आपने ऐसे क्यों किया? मैंने आपको बोला था की आपका बीज मुझे मेरे अन्दर चाहिए!"
मैं अभी भी अपने आनंद के चरम पर था।
"जानेमन! सॉरी! आगे से सारा सीमन आपके अन्दर ही डालूँगा!"
मेरी बात सुन कर पहले तो उसको संतोष हुआ और फिर यह सोच कर की मेरा वीर्य लेने के लिए उसको सम्भोग करना पड़ेगा, उसका चेहरा शर्म से लाल हो गया।
"इन द मीनटाइम, क्लीन दिस …" मैंने लिंग की तरफ इशारा करते हुए कहा।
रश्मि मेरे यह कहने पर उठी और मेरे अर्ध उत्तेजित लिंग को अपने मुंह में लेकर चूसने लगी।
सुमन का परिप्रेक्ष्य:
सुमन ने जो कुछ देखा, उससे उसका मन जुगुप्सा से पुनः भर गया। दीदी जीजू के छुन्नू को मुँह में भर कर चूस रही थी।
'पहले जीजू, और अब दीदी! ये शादी करते ही क्या हो गया इसको? कितना गन्दा गन्दा काम! और वो भी ऐसे खुले में? और वो जीजू ने दीदी के ऊपर ही पेशाब कर दिया! (सुमन की रूद्र का वीर्यपात पेशाब करने जैसा लगा)? अरे इतनी जोर से लगी थी तो वहां बगल में कर लेते!'
सुमन ने देखा की कुछ देर चूसने के बाद दीदी जीजू से अलग हो गयी और दोनों ही उठ कर झील की तरफ चलने लगे। वहां पहुँच कर जीजू और दीदी अपने अपने शरीर को धोने लगे, और कुछ देर में वापस आकर उसी टीले पर बैठ गए। और आपस में एक दूसरे को गले लगा कर चूमने और पलासने लगे। लेकिन दोनों ने कपडे अभी तक नहीं पहने।
'अरे! ऐसे तो दोनों को ठंडक लग जाएगी और इनकी तबियत ख़राब हो जाएगी। कुछ तो करना पड़ेगा! ये दोनों तो न जाने कब तक कपडे नहीं पहनेंगे - मैं ही उनके पास चली जाती हूँ। जब इन्ही लोगो को कोई शर्म नहीं है तो मैं क्यों शरमाऊँ?'
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