Chodan Kahani घुड़दौड़ ( कायाकल्प )
12-17-2018, 02:09 AM,
#19
RE: Chodan Kahani घुड़दौड़ ( कायाकल्प )
टॉयलेट? मुझे अब कुछ कुछ समझ आ रहा था। अवश्य ही रश्मि को सम्भोग के बाद मूत्र करने का संवेदन होता है। हो सकता है। ये सब सोचते हुए मुझे एक विचार आया। हम लोग इतने दुष्कर कार्य कर रहे थे, क्यों न एक कार्य और जोड़ लें? 

"टॉयलेट जाना है? और अगर मैं न जाने दूँ तो?" कहते हुए मैंने उसको अपनी बाँहों के घेरे में पकड़ कर और जोर से पकड़ लिया। रश्मि कसमसाने लगी। 

"प्लीज! जाने दीजिये न! नहीं तो यहीं पर हो जाएगा!" कहते हुए रश्मि शरमा गयी। 

"हा हा! ठीक है, कर लो …. लेकिन, मुझे देखना है।"

मेरी बात सुन कर रश्मि की आँखें आश्चर्य से फ़ैल गयीं! मेरी कामासक्ति के प्रयोग में रश्मि ने अभी तक पूरा साथ दिया था, लेकिन उसके लिए ये एक नया विषय था। 

"क्या?! छी! आप भी न!" 

"क्या छी? मैंने तो आपका सब कुछ देख लिया है, फिर इसमें क्या शर्म?" मेरी बात सुन कर रश्मि और भी शरमा गयी। मैं अब उठ कर बैठ गया और साथ ही साथ रश्मि को भी उसकी बाँहे पकड़ कर बैठा लिया, और इसके बाद मैंने रश्मि की टाँगे थोड़ी फैला दीं। मेरी इस हरकत से रश्मि खिलखिला कर हंस दी। 

"इस तरह से?" मैंने सर हिल कर हामी भरी …. "मुझे नहीं लगता की मैं ऐसे कर सकती हूँ!"

"जानेमन, अगर इस तरह से नहीं कर सकती, तो फिर बिलकुल भी नहीं कर सकती।" मैंने ढिठाई से कहा।

मैंने रश्मि का टखना जकड़ रखा था, और दृढ़ निश्चय कर रखा था की मैं उसको मूत्र करते हुए अवश्य देखूँगा - और अगर हो सका तो उसकी मूत्र-धार को स्पर्श भी करूंगा। उस समय नहीं मालूम था की यह अनुभव मुझे अच्छा भी लगेगा या नहीं - बस उस समय मुझे यह तजुर्बा लेना था। अंग्रेजी में जिसे 'किंकी' कहते हैं, वही! रश्मि ने थोड़ी कसमसाहट करके मेरी पकड़ छुड़ानी चाही, लेकिन नाकामयाब रही और अंततः उसने विरोध करना बंद कर दिया। उसने अपनी मुद्रा थोड़ी सी व्यवस्थित करी - पत्थर पर ही वह उकड़ू बैठ गयी - उसके ऐसा करने से मुझे उसकी योनि का मनचाहा दर्शन होने लगा।

"आप सचमुच मुझे ये सब करते देखना चाहते हैं?" मैंने हामी भरी, "…. ये सब कितना गन्दा है!"

"जानू! इसीलिए! मैं बस एक बार देखना चाहता हूँ। अगर हम दोनों को अच्छा नहीं लगा तो फिर नहीं करेंगे! ओके? जैसे आपने मेरी बात अभी तक मानी है, वैसे ही यह बात भी मान लीजिये।"

"जी, ठीक है … मैं कोशिश करती हूँ।"

यह कहते हुए रश्मि ने अपनी आँखें बंद कर लीं, और मूत्र पर ध्यान लगाया। उसकी योनि के पटल खुल गए - मैंने देखा की वहां की माँस पेशियाँ थोडा खुल और बंद हो रही थीं (मूत्राशय को मुक्त करने का प्रयास)। रश्मि के चमकते हुए रस-सिक्त गुप्तांग को ऐसी अवस्था में देखना अत्यंत सम्मोहक था।

मैंने देखा की मूत्र अब निकलने लगा है - शुरू में सिर्फ कुछ बूँदें निकली, फिर उन बूँदों ने रिसाव का रूप ले लिया, और कुछ ही पलों में मूत्र की अनवरत धार छूट पड़ी। रश्मि का मुँह राहत की साँसे भर रहा था। उसकी आँखें अभी भी बंद थीं - मैंने अपना हाथ आगे बढ़ा कर उसके मूत्र के मार्ग में लाया और तत्क्षण उसकी गर्मी को महसूस करने लगा। 

कोई दस सेकंड के बाद रश्मि का मूत्र त्यागना बंद हुआ। वह अभी भी आँखें बंद किये हुई थी - उसकी योनि की पेशियाँ सिकुड़ और खुल रही थीं और उसमें से मूत्र निकलना अब बंद हो चला था। मेरे दिमाग में न जाने क्या समाया की मैंने आगे बढ़ कर उसकी योनि को अपने मुंह में भर लिया, और रश्मि के मूत्र का पहला स्वाद लिया - यह नमकीन और थोड़ा तीखा था। मुझे इसका स्वाद कोई अच्छा नहीं लगा लेकिन उसका स्वाद अद्वितीय था और इसलिए मुझे बहुत रोचक लगा। मैंने उसकी योनि से अपना मुँह कास कर चिपका लिया और उसको चूस कर सुखा दिया। 

मेरी इस हरकत से रश्मि मेरे ऊपर ही गिर गयी - उसकी टांगों में कम्पन सा हो रहा था। उसने जैसे तैसे अपने शरीर का भार व्यवस्थित किया, जिससे मुझे परेशानी न हो, और फिर मुझे भावुक हो कर जकड कर एक ज़ोरदार चुम्बन दिया, "हनी … आई लव यू! …. ये … बहुत …. अजीब था। मेरा मतलब … यह बहुत उत्तेजक है, लेकिन बहुत ही …. अजीब!"

रश्मि को इस प्रकार अपनी भावनाएँ बताते हुए देखने से मुझे बहुत अच्छा लगा। एक प्रेमी युगल को अपनी अपनी काम भावनाएं एक दूसरे को बतानी चाहिए। तभी एक दूसरे को पूर्ण रूपेण संतुष्ट किया जा सकता है।

"आई लाइक्ड इट! इसको थोड़ा और आगे ले जायेंगे!" मैंने कहा और रश्मि को पुनः चूमने लगा।

सुमन का परिप्रेक्ष्य: 

सुमन कोई पाँच मिनट से झाड़ी के पीछे खड़ी हुई अपने दीदी और जीजाजी के रति-सम्भोग के दृश्यों को देख रही थी। उसके माँ और पिताजी ने उसको उन दोनों के पीछे भेज दिया था की उनको वापस ले आये, क्योंकि मौसम कभी भी गड़बड़ हो सकता है। सुमन रास्ते में लोगो से पूछते हुए इस तरफ आ गयी थी - उसको रश्मि की इस फेवरिट स्थान का पता था। सुमन उस जगह पर पहुँचने ही वाली थी की उसको किसी लड़की के कराहने और सिसकने की आवाज़ आई। 

वह आवाज़ की दिशा में बढ़ ही रही थी की उसने झील के बगल वाले प्रस्तर खंड पर दीदी और जीजू को देखा - वह दोनों पूर्णतः नंग्युल (नग्न) थे - दीदी लेटी हुई थी - उसके पाँव फैले हुए थे और आँखें बंद थीं - जीजू का सर दीदी की रानों (जाँघों) की बीच की जगह सटा हुआ था और वो उसकी पेशाब करने वाली जगह को चूम, चाट और पलास (सहला) रहे थे। उनके इस हरकत से ही दीदी की कराहटें निकल रही थीं। 

'छिः! जीजू कितने गंदे हैं! दीदी दर्द से कराह रही है और वो हैं की ऐसी गन्दी जगह को पलास रहे हैं!' ऐसा सोचते हुए सुमन की निगाहें अपने जीजू के निचले हिस्से पर पड़ी - उनका छुन्नू और अंडे दिख रहे थे। वह पहले सोचती थी की दीदी बहुत दुबली है, लेकिन उसको ऐसे निरावृत देख कर उसको समझ आया की वो तो एकदम गुंट (सुन्दर और सुडौल) है। जीजू भी बिना कपड़ों के कितने सुन्दर लगते हैं! 

सुमन को कुछ ही पलों में समझ आ गया की उसका यह आंकलन की दीदी दर्द से कराह रही है, दरअसल गलत था - वह वस्तुतः मज़े में आहें भर रही है। कोई चाहे कितना भी मासूम क्यों न हो, सयाना होते होते रति क्रिया का नैसर्गिक ज्ञान उसमें स्वयं आ जाता है। सुमन को स्त्री पुरुष के शारीरिक बनावट का अंतर मालूम था और उसको यह भी मालूम था की लिंग और योनि का आपस में क्या सम्बन्ध है। 

लेकिन उसको यह नहीं ज्ञात था की इस संयोजन में आनंद भी आता है। इस कारण से उसको अपनी भोली-भाली दीदी को इस प्रकार आनंद प्राप्त करने को उद्धत देख कर आश्चर्य हुआ। 

'कितनी निर्लज्जता से दीदी खुद भी अपनी योनि को जीजू के मुँह में ठेले जा रही थी! कैसी छंछा (चरित्रहीन औरत) जैसी हरकत कर रही है दीदी!'

एक बात देख कर सुमन को काफी रोमांच आया - जीजू के हाथ दीदी के दोनों दुदल (स्तन) और दुदल-घुंडी (निप्पल) को रह रह कर मींज भी रहे थे। इस समय दीदी जीजू के सर को पकड़ कर अपनी योनि में खीच रही थी और हाँफ रही थी। सुमन ने देखा की अचानक ही दीदी का शरीर कमानी जैसा हो गया, और उसके शरीर में झटके आने लगे। फिर वह निढाल होकर लेट गयी।

कुछ देर दीदी लेटी रही और फिर उठ कर जीजू से कुछ बाते करने लगी। फिर वह ऐसी मुद्रा में बैठ गयी जैसे पेशाब करते समय बैठते हैं - लेकिन पत्थर पर और वह भी जीजू के सामने? दीदी को ऐसा करते हुए तो वह सोच भी नहीं सकती थी - लेकिन जो प्रत्यक्ष में हो रहा है उसका क्या?

'इसको बिलकुल भी शर्म नहीं है क्या?'

सुमन को अपनी दीदी को ऐसे खुलेआम पेशाब करते देख कर झटका लगा और एक और झटका तब लगा जब जीजू ने अपना हाथ आगे बढ़ा कर उसके पेशाब की धार को छुआ। और उसका मन जुगुप्सा से भर गया जब उसने देखा की जीजू ने दीदी के पेशाब वाली जगह को अपने मुंह में भर लिया। 

'ये दीदी जीजू क्या कर रहे हैं? कितना गन्दा गन्दा काम!'

सुमन वहां से वापस जाने ही वाली थी की उसने देखा की दीदी और जीजू आपस में कुछ बात कर रहे हैं और जीजू का छुन्नू तेजी से उन्नत होता जा रहा है - उसका आकार प्रकार देख कर सुमन का दिल धक् से रह गया। 

'यह क्या है?' सुमन ने सिर्फ बच्चों के शिश्न देखे थे, जो की मूंगफली के आकार जैसे होते हैं। वो भी कभी कभी उन्नत होते हैं, लेकिन जीजू का तो सबसे अलग ही है। अलग … और बहुत सुंदर … और और बहुत … बड़ा भी! ये तो उसकी स्कूल की स्केल से भी ज्यादा लम्बा लग रहा था और मोटा भी था - बहुत मोटा।

दीदी ने बहुत ही प्यार से जीजू के छुन्नू को धीरे धीरे पलासना शुरू कर दिया था, और साथ ही साथ वो चट्टान पर कुछ इस तरह से लेट गयी की उसकी उसकी रानें पूरी तरह से खुल गयी। लेकिन फिर भी दीदी अपने उस हाथ से, जो जीजू के छुन्नू पर नहीं था, अपनी पेशाब करने वाली जगह को और फैला रही थी। दीदी की फैली हुई योनि को देख कर सुमन के दिल में एक आशंका या डर सा बैठ गया।

'क्या करने वाली है ये?' 

और फिर वही हुआ जिसकी उसको आशंका थी - जीजू अपना छुन्नू दीदी की योनि में धीरे धीरे डालने लगे। दीदी की छाती तेज़ साँसों के कारण धौंकनी जैसे ऊपर नीचे हो रही थी। 

'दीदी को कितना दर्द होगा! बेचारी देखो कैसे उसकी साँसे डर के मारे बढ़ गयी हैं!'

दीदी नीचे की तरफ, जीजू के छुन्नू को देख रही थी - जीजू अब साथ ही साथ दीदी के दुदल मींज रहे थे और चुटकी से दबा रहे थे। अंततः जीजू का पूरा का पूरा छुन्नू दीदी के अन्दर चला गया - दीदी के गले से एक गहरी आह निकल गयी। सुमन को वह आह सुनाई पड़ी - उसके दिमाग को लगा की दीदी दर्द के मारे कराह रही है, लेकिन उसके दिल को सुख भरी आह सुनाई दी। 

जीजू ने दीदी से कुछ कहा। जवाब में दीदी ने सर हिला कर हामी भरी। 

'दीदी ठीक तो है? बाप रे! इतनी मोटी और लम्बी चीज़ कोई अगर मेरे में डाल दे तो मैं तो मर ही जाऊंगी!' सुमन ने सोचा।

"करिए न … रुकिए मत।" सुमन को दीदी की हलकी सी आवाज़ सुनाई दी। 

'दीदी क्या करने को कह रही है? और वो ऐसी हालत में बोल भी कैसे पा रही है। मेरी तो जान ही निकल जाती और मैं रोने लगती।'

दीदी की बात सुन कर जीजू की कमर धीरे धीरे आगे पीछे होने लगी - लेकिन ऐसे की उनका छुन्नू पूरे समय दीदी के अन्दर ही रहे और बाहर न निकले। 

'हे भगवान्!' सुमन अब मंत्रमुग्ध होकर अपने दीदी और जीजा के यौन संसर्ग का दृश्य देख रही थी।
Reply


Messages In This Thread
RE: Chodan Kahani घुड़दौड़ ( कायाकल्प ) - by sexstories - 12-17-2018, 02:09 AM

Possibly Related Threads…
Thread Author Replies Views Last Post
  Raj sharma stories चूतो का मेला sexstories 201 3,549,341 02-09-2024, 12:46 PM
Last Post: lovelylover
  Mera Nikah Meri Kajin Ke Saath desiaks 61 549,812 12-09-2023, 01:46 PM
Last Post: aamirhydkhan
Thumbs Up Desi Porn Stories नेहा और उसका शैतान दिमाग desiaks 94 1,252,879 11-29-2023, 07:42 AM
Last Post: Ranu
Star Antarvasna xi - झूठी शादी और सच्ची हवस desiaks 54 947,306 11-13-2023, 03:20 PM
Last Post: Harish68
Thumbs Up Hindi Antarvasna - एक कायर भाई desiaks 134 1,682,195 11-12-2023, 02:58 PM
Last Post: Harish68
Star Maa Sex Kahani मॉम की परीक्षा में पास desiaks 133 2,104,349 10-16-2023, 02:05 AM
Last Post: Gandkadeewana
Thumbs Up Maa Sex Story आग्याकारी माँ desiaks 156 2,991,405 10-15-2023, 05:39 PM
Last Post: Gandkadeewana
Star Hindi Porn Stories हाय रे ज़ालिम sexstories 932 14,188,619 10-14-2023, 04:20 PM
Last Post: Gandkadeewana
Lightbulb Vasna Sex Kahani घरेलू चुते और मोटे लंड desiaks 112 4,081,146 10-14-2023, 04:03 PM
Last Post: Gandkadeewana
  पड़ोस वाले अंकल ने मेरे सामने मेरी कुवारी desiaks 7 289,556 10-14-2023, 03:59 PM
Last Post: Gandkadeewana



Users browsing this thread: 2 Guest(s)