RE: Chodan Kahani घुड़दौड़ ( कायाकल्प )
रश्मि ने मेरी तरफ एक शरारती मुस्कान फेंकी, "मुझे नहीं लगता की यह मेरे वहां पर फिट हो पायेगा।"
उसने मेरे लिंग के साथ छेड़-खानी करनी बंद नहीं करी। इस समय वह उसकी पूरी लम्बाई पर अपना हाथ फिरा रही थी, जिसके कारण मेरे शिश्न का शिश्नग्रच्छद पीछे सरक गया और उसका गुलाबी चमकदार हिस्सा दिखने लगा। उसने अचानक ही मेरे लिंग की नालिकपथ से रिसते हुए द्रव को देखा।
"ये यहाँ से क्या निकल रहा है?" उसने उत्सुकतावश पूछा।
"इसको 'प्री-कम' कहते हैं" मैंने बताया।
उसने कुछ देर मेरे लिंग को यूँ ही देखा, और फिर धीरे से आगे झुक कर, मानो एक प्रयोगात्मक तरीके से प्री-कम को चाट लिया, और फिर मेरी तरफ देखा। मैंने उस पर प्रश्नवाचक दृष्टि डाली।
उसने मुस्कुराते हुए कहा, "थोड़ा नमकीन है …. लेकिन, आपका टेस्ट अच्छा है।"
फिर, थोड़ा रुक कर, "मुझे बताइये की आपको कैसा पसंद है?"
मुझे लगा की जैसे वह मुझसे पूछ रही हो की वह मुख-मैथुन कैसे करे।
मैंने पूछा, "आपने लोलीपॉप खाया है?" उसने हाँ में सर हिलाया।
"बस इस गुलाबी हिस्से को लोलीपॉप के जैसे ही चूसो और चाटो। आप चाहे तो लिंग का और हिस्सा भी अन्दर ले सकती हैं.…. लेकिन, ध्यान से - यह बहुत ही नाज़ुक होता है - दांत न लगने देना।
"रश्मि ने समझते हुए अपनी जीभ पुनः बाहर निकाली और धीरे धीरे से मेरे लिंग के इस गुलाबी हिस्से को चारो तरफ से चाटा, और फिर इस प्रक्रिया में पुनः निकले हुए प्री-कम को चाट लिया। मेरे सात इंच लम्बे लिंग को बीच से पकड़ कर उसने अपने मुंह को धीरे धीरे खोलना शुरू किया। जब मेरा लिंग उसके मुंह के बिलकुल करीब आया, तब मुझे उसकी गरम साँसे अपने लिंग पर महसूस हुई। यह कुछ ऐसा संवेदन था, जिससे मुझे लगा की मैं अभी स्खलित हो जाऊँगा।
अब उसके होंठ मेरे लिंग के गुलाबी हिस्से के करीब आधे भाग पर जम गए। रश्मि बस एक पल को ठहरी, और फिर उसने लिंग को अपने मुँह में सरका लिया। मुझको एक जबरदस्त संवेदी अघात लगा। आप लोगो में जो लोग इतने भाग्यवान हैं, जिनको अपनी पत्नी या प्रेमिका से मुख-मैथुन का सुख मिला है, वो लोग यह बात समझ सकते हैं। और जिन लोगो को यह सुख नहीं मिला हैं, उनको अवश्य ही अपनी पत्नी या प्रेमिका से यह विनती करनी चाहिए। यह आघात था रश्मि के गरमागरम मुंह में निगले जाने का.. और यह आघात था इस संज्ञान का की एक अति-सुन्दर किशोरी यह कर रही थी.…
जैसा मैंने पहले भी बताया है, मेरा लिंग रश्मि की कलाई से भी ज्यादा मोटा है। लिहाज़ा, यह बहुत अन्दर नहीं जा सकता था। रश्मि ने भी यह अनुमान लगा लिया होगा की कितना अन्दर जा सकता था, क्योंकि उसने करीब करीब तीन इंच अपने मुंह में लिया होगा जब उसको घुटन सी महसूस हुई।
"बहुत ज्यादा अन्दर लेने की ज़रुरत नहीं है।" मैंने उसको कहा. उसने मेरे लिंग को मुंह में लिए लिए ही सर हिलाया, और धीरे धीरे अपनी जीभ को मेरे लिंग के सर और बाकी हिस्से पर फिरना शुरू कर दिया। मैंने महसूस किया की वह इसको थोड़ा चूस भी रही थी (उसके गाल वैसे ही हो रहे थे जैसा की चूसते समय होते हैं)…
"थोडा और तेज़!" मैंने उसको प्रोत्साहित किया। उसकी गति बढ़ गयी.. रश्मि इसको हलके से चूसती और शिश्नाग्र को चुभलाती थी - जिससे मेरे लिंग का कड़ापन और बढ़ जा रहा था।
कभी कभी वो गलती से अपने दांतों से लिंग को हलके हलके काट भी रही थी और जोर जोर से चूस रही थी। इस चूषण का असर मेरे लिंग पर वैसा ही जैसे उसकी योनि की मांस-पेशियाँ मेरे लिंग पर कसती हैं। इस क्रिया में बीच बीच में रश्मि मेरे शिश्नाग्र के छेद के अन्दर अपनी जीभ भी घुसाने का प्रयास कर रही थी। इसके कारण मुखो रह रह के बिजली के झटके जैसे लग रहे थे। मेरे गले से उन्माद की तेज़ आवाज़ छूट पड़ी, और पूरा शरीर थरथराने लगा।
कुछ ही समय बीता होगा की मुझे अपने वृषण पर वैसा ही एहसास हुआ जैसा स्खलन के पूर्व होता है.… संभवतः, रश्मि ने भी यह महसूस किया होगा (हमारे प्रेम-मिलन के पूर्व अनुभव से उसको यह ज्ञान तो हो ही गया होगा)…. अब चूँकि वह मेरा 'बीज' नष्ट नहीं कर सकती थी, अतः उसको मेरा वीर्य पीना तय था!
इस संज्ञान से मेरा स्खलन बहुत ही तीव्र हुआ - मेरे गले से साथ ही साथ एक भारी कराह भी निकली। संभवतः उसको यह उम्मीद नहीं थी की मैं इस तीव्रता के साथ स्खलित होऊंगा। उसको थोड़ी सी उबकाई आ गयी, और इस कारण से मेरे दुसरे और तीसरे स्खलन का कुछ वीर्य उसके होंठो से बाहर ही छलक गया। लेकिन उसने अपने आपको संयत किया और आगे आने वाले स्खलनों को पी गयी। तत्पश्चात उसने मेरे लिंग को पम्प की तरह से चला कर बाकी बचा हुआ वीर्य भी निकाल कर गटक गयी।मेरे घुटने कमज़ोर होकर कांपने लगे - मुझे लगा की मैं अभी चक्कर खाकर गिर जाऊँगा।
ऐसा ख़याल आते ही, मैंने रश्मि के दोनों कंधे थाम लिए, लेकिन फिर भी मेरे पैरों का कम्पन गया नहीं। रश्मि ने मेरा लिंग अभी भी अपने मुंह से बाहर नहीं निकाला था, लेकिन अभी वह उसको बहुत ही नरमी से चूस रही थी। उसको संभवतः महसूस हुआ होगा की अब कुछ भी नहीं निकल रहा है - उसने मेरी तरफ देखा और अपने मुंह को मेरे लिंग से अलग कर के कहा,
"मैंने ठीक से किया?"
मैंने हामी भरी तो उसने आगे कहा, "आपने कितना ढेर सारा छोड़ा! … आप अभी खुश हैं?"
"बहुत!" मैं बस इतना ही बोल पाया।
वह खिलखिला कर हंस पड़ी.… मैं नीचे रश्मि के बराबर आकर बैठ गया और उसको चूमने लगा। मुझे अपने वीर्य का स्वाद आने लगा.. लेकिन रश्मि के स्वाद से मिलने के कारण मुझे ये अभी स्वादिष्ट लग रहा था। उसको चूमते हुए मैं उसकी पीठ सहलाने लगा - हवा की ठंडी के कारण उसकी त्वचा की सतह ठंडी हो गयी थी, लेकिन शरीर के अन्दर की गर्मी ख़तम नहीं हुई थी।
मुझे अचानक ही वातावरण की ठंडी का एहसास हुआ, तो मैंने उठ कर रश्मि को अपने साथ ही उठा लिया और चट्टान पर अपने कपड़े बिछा कर फिर उसको बैठने को बोला।
जब वो बैठ गयी, तो मैंने कहा, "अब मेरी बारी है …. आपको खुश करने की!"
यह कहते हुए मैंने रश्मि को हल्का सा धक्का देकर उस जुगाड़ी बिस्तर पर लिटा दिया, और उसके मुख को पूरी कामुकता के साथ चूमने लगा। मेरे मुख को जगह देने के लिए रश्मि का मुख भी पूरी तरह से खुला हुआ था। उसकी जीभ मेरी जीभ के साथ टैंगो नृत्य कर रही थी। कुछ देर उसके मुख को चूमने के बाद मैंने उसके दाहिने कंधे को चूमना शुरू किया और उसके ऊपरी सीने को चूमते हुए उसके बाएँ स्तन पर आकर टिक गया। रश्मि ने अपने हाथो की गोद बना कर मेरे सर को सहारा दिया, और मैंने उसके स्तन को शाही अंदाज़ में भोगना आरम्भ कर दिया - पहले मैंने उसके बाएं स्तन को चूसा, चूमा और दबाया, और फिर यही क्रिया उसके दायें स्तन पर की।
काफी समय स्तनों को भोगने के बाद मैं उसके धड़ को चूमते हुए उसके पेट तक आ गया। वहां मैंने उसकी नाभि के चारों तरफ अपनी जीभ से वृत्ताकार तरीके से चाटा, और फिर नाभि के अन्दर जीभ डाल कर कुछ देर चाटने का प्रोग्राम किया। मेरी इस हरकत से रश्मि की खिलखिलाहट छूट गयी। इसके बाद मैंने उसको सरल रेखा में चूमना शुरू किया और उसकी योनि के दरार के एकदम शुरूआती को चूम लिया। रश्मि के गले से आनंद की चीख निकल गयी और साथ ही साथ उसने अपने नितम्ब कुछ इस तरह उठा दिए जिससे उसकी योनि और मेरे मुख का संपर्क न छूटे! इस निर्जन स्थान में निर्बाध प्रेम संयोग करने के कारण वह बहुत ही आश्वस्त लग रही थी। लेकिन मैंने वह हिस्सा फिलहाल छोड़ दिया और उसके जांघ के भीतरी हिस्से को चूमने लगा। रश्मि ने अपनी जांघे खोल दी - इस उम्मीद में की मैं उसकी योनि पर हमला करूंगा। मैंने देखा की रश्मि की योनि के दोनों होंठ उसके काम-रस से भीग गए थे। मैंने उसके दाहिने पैर को उठाया और उसको चूमना शुरू किया - मैं उसकी पिंडली चूमते हुए टखने तक पहुंचा और उसके मेहंदी से सजे पैर को चूमा।
चूमते हुए मैंने उसके पैर के अंगूठे को कुछ देर चूसा भी। मेरे ऐसा करने से रश्मि ने खिलखिलाते हुए अपना पैर वापस खीच लिया, और बोली, "गुदगुदी होती है!" मैंने फिर यही क्रिया उसके बाएं पैर पर करनी शुरू की। कुछ देर ऐसे ही खिलवाड़ करने के बाद मैं वापस जांघो के रास्ते होते हुए उसकी योनि की तरफ बढ़ने लगा। हाँलाकि, हम लोग पहले भी सम्भोग कर चुके थे, लेकिन रश्मि की योनि का ऐसा प्रदर्शन नहीं हुआ था। दिन के उजाले में मुझे उसका आकार प्रकार ठीक से दिखा - उसकी योनि के मांसल होंठ उसके टांगों के बीच के हिस्से की तरफ झुके हुए थे और चिकने और स्थूल थे (जैसा मैं पहले भी कह चुका हूँ, इनका रंग सामन मछली के मांस के रंग का था)। इनके ऊपरी हिस्से में गुलाबी मूंगे के रंग का हुड था, जिसमे से उसका भगनासा दिख रहा था। रश्मि की साँसे अब तक बहुत भारी हो चली थीं।
मैंने रश्मि की टाँगे पूरी तरह से खोल दीं - उसके शरीर का लचीलापन मेरे लिए बहुत ही आश्चर्यजनक था! उसकी जांघे लगभग एक-सौ-साठ अंश तक खुल गयी थीं! मैंने अपनी जीभ से उसकी योनि के निचले हिस्से को ढंका और नीचे से ऊपर की तरफ चाटा - बहुत ही धीरे धीरे! जैसे ही मेरी जीभ का संपर्क उसके भगनासे से हुआ, उसकी सिसकी छूट गयी, और साथ ही साथ उसके शरीर में एक थरथराहट भी।
"हे भगवान!" वो बस इतना ही बोल पायी। लेकिन मेरे लिए यह काफी था।मैंने अपने मुख को वहां से हटाया और बैठे हुए ही अपने दोनों अंगूठों की सहायता से उसके योनि पुष्प की पंखुड़ियों को खोल कर उसके भगनासे को अनावृत कर दिया। उसकी योनि के अंदरूनी होंठ पतले थे और काफी छोटे थे। योनि-छिद्र गुलाबी लाल रंग का था, और उसका व्यास करीब करीब चौथाई इंच रहा होगा। उसकी योनि में से जिसमे दूधिया, लेकिन पारभासी द्रव रिस रहा था और योनि से होते हुए उसकी गुदा की तरफ जा रहा था।
मैंने अपनी जीभ से उसके योनि रस का आस्वादन करते हुए, भगनासे को चाटना आरम्भ कर दिया।
"आऊऊ!" रश्मि कराही, "थोडा थोड़ा दर्द होता है!"
अरे! अगर मज़ा लेना है तो कुछ तो सहना पड़ेगा न! लेकिन मेरे पास रश्मि को यह समझाने का समय और संयम नहीं था। मैंने उस छोटे से बिंदु को चाटना जारी रखा। रश्मि ने एक गहरी सांस छोड़ी, और अपने नितम्बो को मेरे चाटने की ताल में ऊपर की तरफ हिलाना शुरू कर दिया - मानो वह स्वयं ही अपनी योनि का भोग चढ़ा रही हो। कुछ देर तक यूँ ही चाटने के बाद मैंने अचानक से उसके समस्त गुप्तांग को अपने मुंह में भर कर कास के चूस लिया और अपनी जीभ को बड़े ही हिंसात्मक तरीके से उसके भगनासे पर फिराने लगा।
रश्मि की गले से एक अत्यंत कामुक सिसकारी छूट गयी और उसका शरीर कामोत्तेजना में दोहरा हो गया। उसके हाथ मेरे सर को बलपूर्वक पकड़ कर अपनी योनि में खीचने लगे। उसके हाँफते हुए गले से आहें निकलने लगीं।
उसका शरीर एक कमानी जैसा हो गया, और मेरे सर पर उसकी पकड़ और भी मजबूत हो गयी और अचानक ही उसका शरीर एकदम से कड़ा हो गया। रश्मि के शरीर में तीन बार झटके आये, और तीनो बार उसके मुंह से "ऊउह्ह्ह्ह!" निकला। अंततः, वह निढाल होकर लेट गयी।
रश्मि मुख मैथुन के ऐसे प्रहार के आघात के बाद अपनी आँखे बंद किये लेटी हुई थी - उसके स्तन उसकी तेज़ चलती साँसों के साथ ही उठ बैठ रहे थे और उसकी साँसे अभी भी उसके मुंह से आ-जा रही थीं। उसकी जांघे वापस खुल गयी थीं और उसकी छोटी सी योनि मेरे मौखिक परिचर्या के कारण पूरी तरह से गीली हो गयी थी - उसकी योनि से काम-रस अभी भी निकल रहा था।
हलकी ठण्ड होने के बावजूद रश्मि का शरीर पसीने की एक पतली परत से ढक गया था। मैंने उसके हाँफते हुए मुख को अपने मुख में लेकर भरपूर चुम्बन दिया - हमारे तीन संसर्गों में ही हमारे बीच के गुणधर्म और ऊर्जा कई गुना बढ़ चुके थे। इस विस्तीर्ण निर्जन प्राकृतिक स्थान में अपनी भावनाएँ अवरुद्ध करने का कोई अर्थ नहीं था। लिहाज़ा, हमारा जोश पाशविक जुनून तक पहुँच गया। हमारा चुम्बन कामोन्माद की पराकाष्ठ पर था - चुम्बनों के बीच में हम एक दूसरे के होंठों को हल्के हलके चबा भी रहे थे। मुझे लगा की हमारी जिह्वाएँ एक कठिन मल्लयुद्ध में भिड़ने वाली थी की रश्मि कसमसाते हुए बोली, "जी …. मुझे टॉयलेट करना है।"
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