RE: Chodan Kahani घुड़दौड़ ( कायाकल्प )
न जाने कैसे और क्यों मैंने इन चुम्बनों के बीच रश्मि के स्वेटर को उसके शरीर से उतार दिया। रश्मि पहाड़ो पर ही पली बढ़ी थी - यह ठंडक वस्तुतः उसके लिए सुखदायक थी। स्वेटर तो उसने बस किसी अप्रत्याशित ठंडक से बचने के लिए पहना हुआ था। ठंडी ताज़ी बयार के सुख से रश्मि के मुंह से सुख वाली आह निकल गयी। मैंने उसको पुनः चूमना शुरू कर दिया और साथ ही साथ उसके कुर्ते के ऊपरी बटन खोलने लगा। मुझे ऐसा करते देख कर रश्मि चुम्बन तोड़ कर पीछे हट गयी।
"रुकिए! प्लीज!" उसने अपनी आँखें सिकोड़ते हुए कहा, "… यहाँ नहीं। अगर कोई देख लेगा तो?"
"मुझे नहीं लगता यहाँ कोई इस समय आएगा।"
"लेकिन दिन में ….?"
"क्यों? दिन में क्या बुराई है? सब कुछ साफ़ साफ़ दिखता है!" मैंने शैतानी भरा जवाब दिया।
"आप भी न … आपकी बीवी को अगर कोई ऐसी हालत में देखेगा तो क्या आपको अच्छा लगेगा?" बात कहने का उसका अंदाज़ शिकायत वाला था, लेकिन स्वर में किसी भी प्रकार की शिकायत नहीं थी।
"ह्म्म्म … इस बारे में सोचा नहीं कभी। लेकिन अभी लग रहा है की मेरी इतनी सेक्सी बीवी है, तो कोई अगर देख भी ले, तो क्या ही बुराई है?" मैंने उल्टा जवाब देना जारी रखा।
"प्लीज …." रश्मि ने विनती की। लेकिन मेरे हाथ तब तक उसके कुर्ते के सारे बटन खोल चुके थे (सिर्फ तीन बटन ही तो थे)।
“यू आर स्मोकिंग हॉट! आपका साथ मुझे इतना उत्तेजित कर देता है की मैं अपने आपको रोक ही नहीं पाता!” मैं सुन नहीं रहा था, और उसके कुरते को हटाने की चेष्टा कर रहा था।
उसने हथियार डाल ही दिए, "अच्छा ठीक है … लेकिन प्लीज एक बार देख लीजिये की कोई आस पास नहीं है।" वो बेचारी मेरी किसी भी बात का विरोध नहीं कर रही थी।
"ओके स्वीट हार्ट!" मैंने अनिच्छा से उससे अलग होते हुए कहा। मैंने जल्दी से चारों तरफ का सर्वेक्षण किया। वैसे मेरे ऐसा करने का कोई फायदा नहीं था। मुझे पहाड़ी इलाको की कोई जानकारी नहीं थी। कोई भी व्यक्ति, जो इस इलाके का जानकार हो, अगर चाहे तो बड़ी आसानी से मेरी दृष्टि से बच सकता था। मुझे यह पूरा काम समय की बर्बादी ही लग रहा था। मैं जल्दी ही वापस आ गया।
कोई नहीं है …." मैंने ख़ुशी ख़ुशी उद्घोषणा की, और वापस उसको चूमने में व्यस्त हो गया। मैंने देखा की रश्मि ने अपने कुर्ते के बटन वापस नहीं लगाए थे, मतलब यह की वह भी तैयार थी। मैंने उसके कुर्ते के अन्दर हाथ डाल कर उसके स्तनों को हलके हलके से दबाया और फिर उसके कुर्ते को उसके शरीर से उतारने लग गया।
"वाकई कोई नहीं है न?" रश्मि ने घबराई आकुलता से पूछा - अब तक कुर्ते का दामन उसके स्तनों के स्तर तक उठ चुका था।
मैंने उसको फिर से चूम लिया।
"यहाँ बस दो ही लोग आने वाले थे … जो की आ चुके हैं" मैंने मुस्कुराते हुए जवाब दिया।
रश्मि भी उत्तर में मुस्कुराई और मुस्कुराते हुए उसने अपने दोनों हाथ उठा दिए, जिससे मैं उसके कुर्ते को उतार सकूं। कुरता उतरते ही उसके सुन्दर और दिलचस्प स्तन दिखने लग गए। उसके निप्पल पहले ही खड़े हुए थे - या तो यह ठंडी हवा का प्रभाव था, या फिर कामुक उत्तेजना का। मैंने उसके स्तनों को अपने हाथों में समेट लिया। रश्मि के दृदय के स्पंदन, उसके स्तनों की कोमलता और उसके निप्पलों के कड़ेपन को महसूस करके मुझे उसकी उत्तेजना का अनुमान हो गया। हम वापस अपने कामुक चुम्बनों के आदान प्रदान में व्यस्त हो गए।
रश्मि की उत्तेजना बढती ही जा रही थी - वह मेरे चुम्बनों का उत्तर और भी भूखे चुम्बनों से दे रही थी। उसके होंठ मेरे होंठो को बुरी तरह चूम रहे थे, और अब उसके हाथ मेरे पजामे के नाड़े को टटोल कर खोलने की कोशिश कर रहे थे। उसकी इस हरकत से मुझे आश्चर्य हुआ।
'प्रकृति और उसके अजीब प्रभाव' मैंने मन ही मन सोचा।
नाडा खुलते ही मेरा पजामा नीचे सरक गया, और सामने अंडरवियर को उभारता हुआ मेरा लिंग दिखने लगा। ठंडी हवा से मेरे जांघो और अन्य संवेदनशील स्थानों पर रोंगटे खड़े हो गए। रश्मि ने कल रात की दी हुई शिक्षा का पालन करते हुए मेरे अंडरवियर को नीचे सरका दिया। मेरा उत्तेजित लिंग अब मुक्त था। बिना कोई देर किये उसने लिंग को अपने गरम हाथो में पकड़ कर प्यार से सहलाने लगी। अब तक मैंने भी उसकी शलवार को नाड़े से मुक्त कर दिया था। मैं उससे अलग हुआ और उसकी चड्ढी और शलवार को एक साथ ही नीचे सरका कर उसके शरीर से अलग कर दिया। अब पूर्णतया अनावृत रश्मि इस निर्जन प्राकृतिक सौन्दर्य का एक हिस्सा बन चुकी थी। मैंने भी अपना कुरता और अन्य वस्त्र तुरंत अपने शरीर से अलग कर दिए। हम दोनों ही अब पूर्णरूपेण नग्न हो गए थे - प्रेम-योग में कोई बाधा नहीं आनी चाहिए।
रश्मि की कशिश ही कुछ ऐसी थी की मैं उसके साथ कितनी भी बार सम्भोग कर सकता था। हमारे इस संक्षिप्त सम्बन्ध में मुझे रश्मि के संग का आनंद आने लगा - उसके शरीर का भोग करना, उसके शरीर के हर अंग और उसकी हर भावनाओं का अन्वेषण करना - यह सब मुझे बहुत आनंद देने लग गया था। रश्मि का हाथ मेरे लिंग पर था, और उसको सहला रहा था। मुझे उसकी इस क्रिया से आनंद आने लग गया। उसने ऐसा बस दस बारह सेकंड ही किया होगा की उसने अपना हाथ मेरे लिंग से हटा लिया और पत्थर पर लेट गयी - सम्भोग की मुद्रा में - अपनी टाँगे थोड़ा खोल कर।
"ये क्या है? छोड़ क्यों दिया?" मैंने उसको छेड़ा।
"आइये न!" क्या बात है!
"नहीं! ऐसे नहीं। कुछ अलग करते हैं!"
"अलग? क्या?"
"अरे! यह कोई ज़रूरी नहीं है की पीनस हमेशा वेजाइना के अन्दर ही जाए!"
"जी …. पीनस क्या होता है? और वो दूसरा आपने क्या कहा?"
"पीनस होता है यह," मैंने अपने लिंग को पकड़ कर दिखाया, "… और वेजाइना होती है यह …." मैंने उसकी योनि की तरफ इशारा किया।"अब समझ में आया आपको?"
"जी! आया …. लेकिन 'ये' 'इसके' अन्दर नहीं आएगा, तो … फिर …. कहाँ …. जाएगा?" रश्मि थोड़ी अस्पष्ट लग रही थी।
"अगर बताऊँगा तो आप नाराज़ तो नहीं होंगी?"
"आप तो मेरे मालिक है … आपकी बात मानना मेरा फ़र्ज़ है!"
"हनी!" मैंने थोड़ा जोर देते हुए कहा, "मैं तुमको एक बात बोलना चाहता हूँ - और वह यह की किसी शादी में पति-पत्नी दोनों का दर्ज़ा बराबर का होता है। लिहाज़ा, कोई मालिक और कोई गुलाम नहीं हो सकता। और, सेक्स जितना मेरे मज़े के लिए है, उतना ही आपके मज़े के लिए है। इसलिए हम दोनों को ही अपने और एक-दूसरे के मज़े का ध्यान रखना होगा। समझी?"
"जी …. समझ गयी …. आप कुछ बताने वाले थे?"
"हाँ … मैं यह कह रहा था की क्यों न आज आप मेरे 'इसको', अपने मुंह में लें?"
"जीईई!!? मुंह में?"
"हाँ! अगर आप ऐसा करेंगी तो मुझे बहुत अच्छा लगेगा …. लेकिन तभी करियेगा, जब आपका मन करे। मैं कोई दबाव नहीं डालूँगा।"
"नहीं … दबाव वाली बात नहीं है। लेकिन …." बोलते बोलते रश्मि रुक गयी।
"हाँ हाँ …. बताइए न?"
"जी … लेकिन माँ ने बोला था की.…" कहते कहते रश्मि के गाल सुर्ख होने लगे।
मैंने उसको आगे बोलने का हौसला देते हुए सर हिलाया।
"यही की …. आपका … 'बीज' …… बेकार … खर्च न होने दूँ!" रश्मि ने जैसे तैसे अपनी बात ख़तम की।
"ह्म्म्म! माँ ने ऐसा कहा?" रश्मि ने सर हिलाया, "अच्छा, मुझे एक बात बताइए …." रश्मि ने बड़े भोलेपन से मुझे देखा, "…. आपको इससे क्या समझ आया?"
उसने कुछ देर सोचा और कहा, "यही की आपका … वीर्य …. मेरे अन्दर …" वह शर्म से इतनी गड़ गयी की आगे कुछ नहीं बोल पायी।
"हाँ! लेकिन, वीर्य को 'अन्दर' लेने का सिर्फ यही तो एक रास्ता नहीं है …", रश्मि मेरी बात को ध्यान से सुन रही थी, "…. जहाँ तक मुझे मालूम है, तीन रास्ते हैं - पहला तो यह की आप इसको अपनी योनि में जाने दें, जैसे की हमने पहले किया है," रश्मि इस बात से शर्म से और भी लाल हो गयी, लेकिन मैंने अपनी बात कहनी जारी रखी, "दूसरा यह की 'इसको' आप अपने मुँह में लें, और जब मैं वीर्य छोड़ूँ तो आप उसको पी जाएँ …." रश्मि का चेहरा अनिश्चितता और जुगुप्सा से थोडा विकृत हो गया, "… और तीसरा 'गुदा मैथुन'…"
"गुदा?" उसके पूछने पर मैंने उसके नितम्बों पर अपना हाथ फिराया।"
मतलब आपका लिंग मेरे पीछे! बाप रे!" वह थोडा सा रुकी, फिर बोली "न बाबा! मुझे नहीं लगता की यह 'वहां' पर फिट होगा।"
मैंने कुछ नहीं कहा। उसने कहना जारी रखा, "क्या आप वहाँ डालना चाहते हैं?"
"देखो, कुछ लोग ऐसा करते हैं, और कुछ स्त्रियाँ इसको पसंद भी करती हैं - अगर ठीक ढंग से किया जाए तो!"
"आप.…?"
"अगर आप ट्राई करना चाहती हैं तो.…."
"जी …. मुझे नहीं मालूम। लेकिन अगर ठीक लगा तो कर भी सकती हूँ। आप मुझे वह सब बताइए जिससे मैं आपको खुश रख सकूं।"
"हनी! मैंने पहले ही कहा है, की यह सिर्फ मेरे लिए नहीं है - आपके लिए भी उतना ही है। आप मुझे खुश करना चाहती हैं, यह एक अच्छी बात है.. लेकिन, मैंने भी आपको खुश करना चाहता हूँ।"
इतना कह कर मैं चुप हो गया.. इस सारे वार्तालाप में मेरे लिंग का उत्थान जाता रहा.. रश्मि ने मन ही मन में कुछ तय किया, और फिर हलकी कंपकंपी के साथ मेरे लिंग को अपने हाथ में ले लिया। उसकी छोटी छोटी उंगलिया मेरे लिंग के चारों तरफ लिपटी हुई थीं, जिनसे वो इसको कभी दबाती, तो कभी हलके से खींचती। वह कुछ देर तक यूँ ही खेलती रही - उसने मेरे वृषण को भी अपने हाथ में लिया - उनकी हलकी हलकी मालिश की और उनको कुछ इस प्रकार अपनी हथेली में उठाया जैसे की वह उनका भार जानना चाहती हो। फिर उसने लिंग की जड़ को पकड़ कर धीरे धीरे ऊपर-नीचे वाला झटका देने लगी - मेरे लिंग के आकार में अब तक खासा बढ़ोत्तरी हो चली थी।
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