Chodan Kahani घुड़दौड़ ( कायाकल्प )
12-17-2018, 02:06 AM,
#6
RE: Chodan Kahani घुड़दौड़ ( कायाकल्प )
भंवर सिंह ने सर हिलाया, फिर कुछ सोच कर बोले, "रश्मि और आप आपस में कुछ बात करना चाहते हैं, तो हम बाहर चले जाते हैं।" और ऐसा कह कर तीनो लोग बैठक से बाहर चले गए। 

अब वहां पर सिर्फ मैं और रश्मि रह गए थे। ऐसे ही किसी और पुरुष के साथ एक कमरे में अकेले रह जाने का रश्मि का यह पहला अनुभव था। घबराहट और संकोच से उसने अपना सर नीचे कर लिया। मैंने देखा की वो अपने पांव के अंगूठे से फर्श को कुरेद रही थी। उसके कुर्ते की आस्तीन से गोरी गोरी बाहें निकल कर आपस में उलझी जा रही थी। 

"रश्मि! मेरी तरफ देखिए।" उसने बड़े जतन से मेरी तरफ देखा।

"आपको मुझसे कुछ पूछना है?" मैंने पूछा।

उसने सिर्फ न में सर हिलाया।

"तो मैं आपसे कुछ पूछूं?" उसने सर हिला के हाँ कहा।

"आप मुझसे शादी करेंगी?"

मेरे इस प्रश्न पर मानो उसके शरीर का सारा खून उसके चेहरे में आ गया। घबराहट में उसका चेहरा एकदम गुलाबी हो चला। वो शर्म के मारे उठी और भाग कर कमरे से बाहर चली गयी। कुछ देर में भंवर सिंह अन्दर आये, उन्होंने मुझे अपना फ़ोन नंबर और पता लिख कर दिया और बोले की वो मुझे फ़ोन करेंगे। जाते जाते उन्होंने अपने कैमरे से मेरी एक तस्वीर भी खीच ली। मुझे समझ आ गया की आगे की तहकीकात के लिए यह प्रबंध है। अच्छा है - एक पिता को अपनी पूरी तसल्ली कर लेनी चाहिए। आखिर अपनी लड़की किसी और के सुपुर्द कर रहे हैं!

मैं अगले दो दिन तक वहीँ रहा लेकिन मुझे भंवर सिंह का फ़ोन नहीं आया। मैं कोई व्यग्रता और अतिआग्रह नहीं दर्शाना चाहता था, इसलिए मैंने उनको उन दो दिनों तक फोन नहीं किया, और न ही रश्मि का पीछा किया। मैं नहीं चाहता था की वो मेरे कारण लज्जित हो। मेरा मन अब तक काफी हल्का हो गया था की कम से कम मन की बात कह तो दी। अब मैं आगे की यात्रा आरम्भ करना चाह रहा था। इसलिए मैं आगे की यात्रा पर निकल पड़ा और कौसानी पहुच गया। निकलने से पहले मैंने भंवर सिंह जी को फोन करके बता दिया। उनके शब्दों से मुझे किसी प्रकार की तल्खी नहीं सुनाई दी – यह अच्छी बात थी।

कौसानी तक आते-आते उत्तराँचल के क्षेत्र अलग हो जाते हैं – रश्मि का घर गढ़वाल में था, और कौसानी कुमाऊँ में। वहां तक की यात्रा मेरे लिए ठिठुराने वाली थी – एक तो बेहद घुमावदार सड़कें, और ऊपर से ठंडी ठंडी वर्षा। लेकिन मेरे आनंद में कोई कमी नहीं थी। कौसानी को महात्मा गाँधी जी ने "भारत का स्विट्ज़रलैंड" की उपाधि दी थी। इतनी सुन्दर जगह हिमालय में शायद ही कहीं मिलेगी। यहाँ की प्राकृतिक भव्यता की कोई मिसाल नहीं दी जा सकती है - देवदार के घने वृक्षों से घिरे इस पहाड़ी स्थल से हिमालय के तीन सौ किलोमीटर चौड़े विहंगम दृश्य को देखा जा सकता है। मैं दिन में बाहर जा कर पैदल यात्रा करता और रात में अपने होटल के कमरे से बाहर के अँधेरे में आकाशगंगा देखने का प्रयास करता।

लेकिन मेरे दिलो-दिमाग पर बस रश्मि ही छायी हुई थी। 'क्या उन लोगो को याद भी है मेरे बारे में?' मैं यह अक्सर सोचता। कौसानी में अत्यंत शान्ति थी, अतः कुछ दिन वहीँ रहने का निश्चय किया। वैसे भी उत्तराँचल घूमने की मेरी कोई निश्चित योजना नहीं थी। जहाँ मन रम जाय, वहीँ रहने लगो! वहां रहते हुए, करीब पांच दिन बाद मुझे भंवर सिंह के नंबर से रात में फ़ोन आया।

"हेल्लो!" मैंने कहा।

"जी..... मैं रश्मि बोल रही हूँ।”

“रश्मि? आप ठीक हैं? घर में सभी ठीक हैं?” मैंने जल्दी जल्दी प्रश्न दाग दिए। लेकिन वो जैसे कुछ नहीं सुन रही हो।

“जी.... हमें आपसे कुछ कहना था।"

"हाँ कहिये न?" मेरा दिल न जाने क्यों जोर जोर से धड़कने लगा।

"जी..... हम आपसे प्रेम करते हैं।" कहकर उसने फोन काट दिया।

मुझे अपने कानो पर विश्वास ही नहीं हो रहा था – ये क्या हुआ? ज़रूर भंवर सिंह ने मेरे बारे में तहकीकात करी होगी, और यह सोचा होगा की रश्मि और मेरा अच्छा मेल है। हाँ, ज़रूर यही बात रही होगी। पारंपरिक भारतीय समाज में आज भी, यदि माता-पिता अपनी लड़की का विवाह तय कर देते हैं, तो वह लड़की अपने होने वाले पति को विवाह से पूर्व ही पति मान लेती है। 

‘वो भी मुझसे प्रेम करती है!’ 

रश्मि के फोन ने मेरे दिल के तार कुछ इस प्रकार झनझना दिए की रात भर नींद नहीं आई। मैंने पलट कर फोन नहीं किया। हो सकता है की ऐसा करने पर वो लोग मुझे असंस्कृत समझें। बहुत ही बेचैनी में करवटें बदलते हुए मेरी रात किसी प्रकार बीत ही गयी। 'रश्मि का कैसा हाल होगा?' यह विचार मेरे मन में बार बार आता।

अगले दिन मेरे ऑफिस से मेरे बॉस, और मेरे हाउसिंग सोसाइटी के सेक्रेटरी का फ़ोन आया। उन लोगो ने बताया की कोई मेरे बारे में पूछताछ कर रहे थे। मैंने उन लोगो को सारी बात का विवरण दे दिया। दोनों ही लोग बहुत खुश हो गए - दरअसल सभी को मेरी चिंता खाए जाती थी। खासतौर पर मेरा बॉस - उसको लगता था की कहीं मैं वैरागी न बन जाऊं। काम मैं अच्छा कर लेता हूँ, इसलिए उसको मुझे खोने का डर लगा रहता था। इसी तरह हाउसिंग सोसाइटी का सेक्रेटरी सोचता की रहता तो इतने बड़े घर में है, लेकिन अकेले रहते रहते कहीं उसको खराब न कर दूं। लेकिन, अगर मैं शादी कर लेता, तो उन लोगो की अपनी अपनी चिंता समाप्त हो जाती। इसलिए उन लोगो ने मौका मिलते ही मेरे बारे में जांच करने वाले व्यक्ति को अच्छी-अच्छी बातें बताई और मेरी इतनी बढाई कर दी जैसे मुझसे बेहतर कोई और आदमी न बना हो। शायद यही बाते भंवर सिंह को भी पता चली हों और उन्होंने अपने घर में मेरे बारे में विचार विमर्श किया हो।

सारे संकेत सकारात्मक थे। अवश्य ही भंवर सिंह के घर में मुझको पसंद किया गया हो। रश्मि के फोन के बाद मुझे अब भंवर सिंह के फोन का इंतज़ार था। पूरे दिन इंतज़ार किया, लेकिन कोई फोंन नहीं आया। आखिरकार, शाम को करीब तीन बजे भंवर सिंह का फोन आया।

"हेल्लो... रूद्र जी, मैं भंवर सिंह बोल रहा हूँ .."

"जी.. नमस्ते! हाँ... बोलिए... आप कैसे हैं?"

"आपसे एक बहुत ज़रूरी बात करनी है। आप हमारे यहाँ एक बार फिर से आ सकते हैं?"

"जी.. बिलकुल आ सकता हूँ। लेकिन मुझे दो दिन का समय तो लगेगा। अभी कौसानी में ही हूँ!"

"कोई बात नहीं। आप आराम से आइये। लेकिन मिलना ज़रूरी है, क्योंकि यह बात फोन पर नहीं हो सकती।"

"जी.. ठीक है" कह कर मैंने फोन काट दिया, और मन ही मन भंवर सिंह को धिक्कारा। 'अरे यार! यह बात सवेरे बता देते तो कम से कम मैं एक तिहाई रास्ता पार चुका होता अब तक!'

खैर, इतने शाम को ड्राइव करना मुश्किल काम था, इसलिए मैंने सुबह तड़के ही निकलने की योजना बनायीं। अपना सामान पैक किया, और रात का खाना खा कर लेटा ही था, की मुझे फिर से भंवर सिंह के नंबर से कॉल आया। मैंने तुरंत उठाया - दूसरी तरफ रश्मि थी। 

"रश्मि जी, आप कैसी हैं?" मैंने कहा।

"जी..... मैं ठीक हूँ। .... आप कैसे हैं?"

"मैं बिलकुल ठीक हूँ ... आपको फिर से देखने के लिए बेकरार हूँ..."

उधर से कोई जवाब तो नहीं आया, लेकिन मुझे लगा की रश्मि शर्म के मारे लाल हो गयी होगी।

"रश्मि?" मैंने पुकारा।

"जी... मैं हूँ यहाँ।“

“तो आप कुछ बोलती क्यों नहीं?”

“..... आपको मालूम है की आपको पिताजी ने क्यों बुलाया है?"

"कुछ कुछ आईडिया तो है। लेकिन पूरा आप ही बता दीजिये।"

"जी... पिताजी आपसे हमारे बारे में बात करना चाहते हैं....." जब मैंने जवाब में कुछ नहीं कहा, तो रश्मि ने कहना जारी रखा, ".... आप सच में मुझसे शादी करेंगे?"

"आपको लगता है की मैंने मजाक कर रहा हूँ? आपसे मैं ऐसा मजाक क्यों करूंगा?"

"नहीं नहीं... मेरा वो मतलब नहीं था। हम लोग बहुत ही साधारण लोग हैं... आपके मुकाबले बहुत गरीब! और... मैं तो आपके लायक बिल्कुल भी नहीं हूँ... न आपके जितना पढ़ी लिखी, और न ही आपके तौर तरीके जानती हूँ.."

"रश्मि... शादी का मतलब अंत नहीं है ... यह तो हमारी शुरुआत है। मैं तो चाहता हूँ की आप अपनी पढाई जारी रखिये। खूब पढ़िए – मुझसे ज्यादा पढ़िए। भला मैं क्यों रोकूंगा आपको। रही बात मेरे तौर तरीके सीखने की, तो भई, मेरा तो कोई तरीका नहीं है... बस मस्त रहता हूँ! ठीक है?"

"जी..."

"तो फिर जल्दी ही मिलते हैं.. ओके?"

"ओ.. के.."

"और हाँ, एक बात... आई लव यू टू"

जवाब में उधर से खिलखिला कर हंसने की आवाज़ आई।
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