RE: Chodan Kahani घुड़दौड़ ( कायाकल्प )
"जी वो मैं .... मैं आपकी बेटी रश्मि से शादी करना चाहता हूँ!" मेरे मुंह से यह बात ट्रेन की गति से निकल गई..
'मारे गए अब!'
"क्या? एक बार फिर से कहिए। मैंने ठीक से सुना नहीं।"
मैंने दो तीन गहरी साँसे भरीं और अपने आपको काफी संयत किया, "जी मैं आपकी बेटी रश्मि से शादी करना चाहता हूँ।"
“...........................................”
"मैं इसीलिए आपसे मिलना चाहता था।"
"आप रश्मि को जानते हैं?"
"जी जानता तो नहीं। मैंने उनको दो दिन पहले देखा।"
"और इतने में ही आपने उससे शादी करने की सोच ली?" भंवर सिंह का स्वर अभी भी संयत लग रहा था।
"जी।"
"मैं पूछ सकता हूँ की आप रश्मि से शादी क्यों करना चाहते है?"
"मैंने आपके बारे में पूछा है और मुझे मालूम है की आप लोग बहुत ही भले लोग हैं। आज आपसे मिल कर मैं आपको अपने बारे में बताना चाहता था। इसलिए मेरी यह विनती है की आप मेरी बात सुन लीजिये। उसके बाद आप जो भी कुछ कहेंगे, मुझे सब मंज़ूर रहेगा।"
"हम्म! देखिये, आप हमारे मेहमान भी है और ... शादी का प्रस्ताव भी लाये हैं। तो हमारी मर्यादा यह कहती है की आप पहले हमारे साथ खाना खाइए। फिर हम लोग बात करेंगे। .... आप बैठिये। मैं अभी आता हूँ।" यह कह कर भंवर सिंह अन्दर चले गए।
मैं अब काफी संयत और हल्का महसूस कर रहा था। पिटूँगा तो नहीं। निश्चित रूप से अन्दर जाकर मेरे बारे में और मेरे प्रस्ताव के बारे में बात होनी थी। मेरे भाग्य पर मुहर लगनी थी। इसलिए मुझे अपना सबसे मज़बूत केस प्रस्तुत करना था। यह सोचते ही मेरे जीवन में मैंने अपने चरित्र में जितना फौलाद इकट्ठा किया था, वह सब एकसाथ आ गए।
'अगर मुझे यह लड़की चाहिए तो सिर्फ अपने गुणों के कारण चाहिए।'
भंवर सिंह कम से कम दस मिनट बाद बाहर आये। उनके साथ उनकी छोटी बेटी भी थी।
"यह मेरी छोटी बेटी सुमन है।" सुमन करीब चौदह-पंद्रह साल की रही होगी।
"नमस्ते। आपका नाम क्या है? क्या आप सच में मेरी दीदी से शादी करना चाहते हैं? आप कहाँ रहते हैं? क्या करते हैं?" सुमन नें एक ही सांस में न जाने कितने ही प्रश्न दाग दिए।
मैं उसको कोई जवाब नहीं दे पाया... बोलता भी भला क्या? बस, मुस्कुरा कर रह गया।
"मुझे आपकी स्माइल पसंद है ..." सुमन ने बाल-सुलभ सहजता से कह दिया।
वाकई भंवर सिंह के घर में लोग बहुत सीधे और भले हैं - मैंने सोचा। कितना सच्चापन है सभी में। कोई मिलावट नहीं, कोई बनावट नहीं। सुमन एकदम चंचल बच्ची थी, लेकिन उसमे भी शालीनता कूट कूट कर भरी हुई थी। खैर, मुझे उससे कुछ तो बात करनी ही थी, इसलिए मैंने कहा, "नमस्ते सुमन। मेरा नाम रूद्र है। मैं अभी आपको और आपके माता पिता को अपने बारे में सब बताने वाला हूँ।"
लड़की के पिता वहीँ पर खड़े थे, और हमारी बातें सुन रहे थे। इतने में भंवर सिंह जी की धर्मपत्नी भी बाहर आ गईं। उन्होंने अपना सर साड़ी के पल्लू से ढका हुआ था।
"जी नमस्ते!" मैंने उठते हुए कहा।
"नमस्ते! बैठिये न।" उन्होंने बस इतना ही कहा। परिश्रमी और आत्मसम्मानी पुरुष की सच्ची साथी प्रतीत हो रही थीं।
मुझे इतना तो समझ में आ गया की यह परिवार वाकई भला है। माता पिता दोनों ही स्वाभिमानी हैं, और सरल हैं। इसलिए बिना किसी लाग लपेट के बात करना ही ठीक रहेगा। हम चारो लोग अभी बस बैठे ही थे की उधर से रश्मि नाश्ते की ट्रे लिए बैठक में आई। मैंने उसकी तरफ बस एक झलक भर देखा और फिर अपनी नज़रें बाकी लोगो की तरफ कर लीं – ऐसा न हो की मैं मूर्खों की तरह उसको पुनः एकटक देखने लगूं, और मेरी बिना वजह फजीहत हो जाय।
"और ये रश्मि है – हमारी बड़ी बेटी। खैर, इसको तो आप जानते ही हैं। सुमन बेटा! जाओ दीदी का हाथ बटाओ।"
दोनों लड़कियों ने कुछ ही देर में नाश्ता जमा दिया। लगता है की वो बेचारे मेरे आने से पहले खाने जा रहे थे, लेकिन मेरे आने से उनका खाने का गणित गड़बड़ हो गया। खैर, मैं क्या ही खाता! मेरी भूख तो नहीं के बराबर थी – नाश्ता तो किया ही हुआ था और अभी थोडा घबराया हुआ भी था। लेकिन साथ में खाने पर बैठना आवश्यक था – कहीं ऐसा न हो की वो यह समझें की मैं उनके साथ खाना नहीं चाहता। खाते हुए बस इतनी ही बात हुई की मैं उत्तराँचल में क्या करने आया, कहाँ से आया, क्या करता हूँ, कितने दिन यहाँ पर हूँ ..... इत्यादि इत्यादि। नाश्ता समाप्त होने पर सभी लोग बैठक में आकर बैठ गए।
भंवर सिंह थोड़ी देर चुप रहने के बाद बोले, "रूद्र, मेरा यह मानना है की अगर लड़की की शादी की बात चल रही हो तो उसको भी पूरा अधिकार है की अपना निर्णय ले सके। इसलिए रश्मि यहाँ पर रहेगी। उम्मीद है की आपको कोई आपत्ति नहीं।"
"जी, बिलकुल ठीक है। भला मुझे क्यों आपत्ति होगी?" मैंने रश्मि की ओर देखकर बोला। उसके होंठो पर एक बहुत हलकी सी मुस्कान आ गयी और उसके गाल थोड़े और गुलाबी से हो गए।
फिर मैंने उनको अपने बारे में बताना शुरू किया की मैं एक बहु-राष्ट्रीय कंपनी में प्रबंधक हूँ, मैंने देश के सर्वोच्च प्रबंधन संस्थान और अभियांत्रिकी संस्थान से पढाई की है। बैंगलोर में रहता हूँ। मेरा पैत्रिक घर कभी मेरठ में था, लेकिन अब नहीं है। परिवार के बारे में बात चल पड़ी तो बहुत सी कड़वी, और दुःखदाई बातें भी निकल पड़ी। मैंने देखा की मेरे माँ-बाप की मृत्यु, मेरे संबंधियों के अत्याचार और मेरे संघर्ष के बारे में सुन कर भंवर सिंह की पत्नी और रश्मि दोनों के ही आँखों से आंसू निकल आये। मैंने यह भी घोषित किया की मेरे परिवार में मेरे अलावा अब कोई और नहीं है।
उन्होंने ने भी अपने घर के बारे में बताया की वो कितने साधारण लोग हैं, छोटी सी खेती है, लेकिन गुजर बसर हो जाती है। उनके वृहत परिवार के फलाँ फलाँ व्यक्ति विभिन्न स्थानों पर हैं। इत्यादि इत्यादि।
"रूद्र, आपसे मुझे बस एक ही बात पूछनी है। आप रश्मि से शादी क्यों करना चाहते हैं? आपके लिए तो लड़कियों की कोई कमी नहीं।" भंवर सिंह ने पूछा।
मैंने कुछ सोच के बोला, "ऊपर से मैं चाहे कैसा भी लगता हूँ, लेकिन अन्दर से मैं बहुत ही सरल साधारण आदमी हूँ। मुझे वैसी ही सरलता रश्मि में दिखी। इसलिए।"
फिर मैंने बात आगे जोड़ी, "आप बेशक मेरे बारे में पूरी तरह पता लगा लें। आप मेरा कार्ड रखिये - इसमें मेरी कंपनी का पता लिखा है। अगर आप बैंगलोर जाना चाहते हैं तो मैं सारा प्रबंध कर दूंगा। और यह मेरे घर का पता है (मैंने अपने विसिटिंग कार्ड के पीछे घर का पता भी लिख दिया था) - वैसे तो मैं अकेला रहता हूँ, लेकिन आप मेरे बारे में वहां पूछताछ कर सकते हैं। मैं यहाँ, उत्तराँचल में, मैं वैसे भी अगले दो-तीन सप्ताह तक हूँ। इसलिए अगर आप आगे कोई बात करना चाहते हैं, तो आसानी से हो सकती है।"
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