RE: Chodan Kahani घुड़दौड़ ( कायाकल्प )
खैर, नहा-धोकर, कपडे पहन कर मैंने खाना खाया और अपनी कार की ओर जाने को हुआ ही था की मैंने स्कूल यूनिफार्म पहने लड़कियों का समूह जाते हुए देखा। मुझे लगा की शायद किसी स्कूल में छुट्टी हुई होगी, क्योंकि उस समूह में हर कक्षा की लड़कियां थी। मैं यूँ ही अपनी कार के पास खड़े-खड़े उन सबको जाते हुए देख रहा था की मेरी नज़र अचानक ही उनमे से एक लड़की पर पड़ी। उसको देखते ही मुझे ऐसे लगा की जैसे धूप से तपी हुई ज़मीन को बरसात की पहली बूंदो के छूने से लगता होगा।
वह लड़की आसमानी रंग का कुरता, सफ़ेद रंग की शलवार, और सफ़ेद रंग का ही पट्टे वाला दुपट्टा (यही स्कूल यूनिफार्म थी) पहने हुए थी। उसने अपने लम्बे बालो को एक चोटी में बाँधा हुआ था। अब मैंने उसको गौर से देखा - उसका रंग साफ़ और गोरा था, चेहरे की बनावट में पहाड़ी विशेषता थी, आँखें एकदम शुद्ध, मूँगिया रंग के भरे हुए होंठ और अन्दर सफ़ेद दांत, एक बेहद प्यारी सी छोटी सी नाक और यौवन की लालिमा लिए हुए गाल! उसकी उम्र बमुश्किल अट्ठारह की रही होगी, इससे मैंने अंदाजा लगाया की वह बारहवीं में पढ़ती होगी।
'कितनी सुन्दर! कैसा भोलापन! कैसी सरल चितवन! कितनी प्यारी!'
"रश्मि... रुक जा दो मिनट के लिए..." उसकी किसी सहेली ने पीछे से उसको आवाज़ लगाई। वह लड़की मुस्कुराते हुए पीछे मुड़ी और थोड़ी देर तक रुक कर अपनी सहेली का इंतज़ार करने लगी।
'रश्मि..! हम्म.. यह नाम एकदम परफेक्ट है! सचमुच, एकदम सांझ जैसी सुन्दरता! मन को आराम देती हुई, पल-पल नए-नए रंग भरती हुई .. क्या बात है!' मैंने मन ही मन सोचा।
मैंने जल्दी से अपना कैमरा निकाला और दूरदर्शी लेन्स लगा कर उसकी तस्वीरे तब तक निकालता रहा जब तक की वह आँखों से ओझल नहीं हो गयी। उसके जाते ही मुझे होश आया! होश आया, या फिर गया?
'क्या लव एट फर्स्ट साईट ऐसे ही होता है?' ‘लव एट फर्स्ट साईट’ – यह वाक्य अगर किसी को कहो, तो वह यही कहेगा की दरअसल ऐसा कुछ नहीं होता। ऐसी भावना लालसा के वेश में लिपटी वासना के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं। वे इसको प्रेम की एक झूठी भावना कहकर उपहास करने लगेंगे।
लेकिन कैसा हो यदि ऐसा कुछ वाकई होता हो? मुझे एक नशा मिला हुआ बुखार सा चढ़ गया। दिमाग में इसी लड़की का चेहरा घूमता जाता। उसकी सुन्दरता और उसके भोलेपन ने मुझे मोह लिया था - या यह कहिये की मुझे प्रेम में पागल कर दिया था। मेरे मन में आया की अपने होटल वाले को उसकी तस्वीर दिखा कर उसके बारे में पूछूँ, लेकिन यह सोच के रुक गया की कहीं लोग बुरा न मान जाएँ की यह बाहर का आदमी उनकी लड़कियों/बेटियों के बारे में क्यों पूछ रहा है। वैसे भी दूर दराज के लोग अपनी मान्यताओ और रीतियों को लेकर बहुत ही जिद्दी होते है, और मैं इस समय कोई मुसीबत मोल नहीं लेना चाहता था।
'हो सकता है की जिसको मैं प्रेम समझ रहा हूँ वह सिर्फ विमोह हो!' मेरे मन की उधेड़बुन जारी थी।
उसी के बारे में सोचते-सोचते देर शाम हो गयी, तो मैंने निश्चय किया की आज रात यहीं रह जाता हूँ। लेकिन उस लड़की का ध्यान मेरे मन और मस्तिष्क में कम हुआ ही नहीं! रात में अपने बिस्तर पर लेटे हुए मेरा सारा ध्यान सिर्फ रश्मि पर ही था। मुझे उसके बारे में कुछ भी नहीं मालूम था - लेकिन फिर भी ऐसा लग रहा था की, यह मेरे लिए परफेक्ट लड़की है। मुझको ऐसा लगा की अगर मुझे जीवन में कोई चाहिए तो बस वही लड़की - रश्मि।
नींद नहीं आ रही थी – बस रश्मि का ही ख़याल आता जा रहा था। तभी ध्यान आया की वो तो मेरे कैमरे में है! जल्दी से मैं अपने कैमरे में उतारी गयी उसकी तस्वीरों को ध्यान से देखने लगा - लम्बे बाल, और उसके सुन्दर चेहरे पर उन बालों की एक दो लटें, उसकी सुन्दरता को और बढ़ा रहे थे। पतली, लेकिन स्वस्थ बाहें। उत्सुकतावश उसके स्तनों का ध्यान हो आया – छोटे-छोटे, जैसे मानो मध्यम आकार के सेब हों। ठीक उसी प्रकार ही स्वस्थ, युवा नितम्ब। साफ़ और सुन्दर आँखें, भरे हुए होंठ - बाल-सुलभ अठखेलियाँ भरते हुए और उनके अन्दर सफ़ेद दांत! यह लड़की मेरी कल्पना की प्रतिमूर्ति थी... और अब मेरे सामने थी।
यह सब देखते और सोचते हुए स्वाभाविक तौर पर मेरे शरीर का रक्त मेरे लिंग में तेजी से भरने लगा, और कुछ ही क्षणों में वह स्तंभित हो गया। मेरा हाथ मेरे लिंग को मुक्त करने में व्यस्त हो गया .... मेरे मष्तिष्क में उसकी सुन्दर मुद्रा की बार-बार पुनरावृत्ति होने लगी - उसकी सरल मुस्कान, उसकी चंचल चितवन, उसके युवा स्तन... जैसे-जैसे मेरा मष्तिष्क रश्मि के चित्र को निर्वस्त्र करता जा रहा था, वैसे-वैसे मेरे हाथ की गति तीव्र होती जा रही थी.... साथ ही साथ मेरे लिंग में अंदरूनी दबाव बढ़ता जा रहा था - एक नए प्रकार की हरारत पूरे शरीर में फैलती जा रही थी। मेरी कल्पना मुझे आनंद के सागर में डुबोती जा रही थी। अंततः, मैं कामोन्माद के चरम पर पहुच गया - मेरे लिंग से वीर्य एक विस्फोटक लावा के समान बह निकला। हस्त-मैथुन के इन आखिरी क्षणों में मेरी ईश्वर से बस यही प्रार्थना थी, की यह कल्पना मात्र कोरी-कल्पना बन कर न रह जाए। रात नींद कब आई, याद नहीं है।
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