RE: Porn Hindi Kahani दिल दोस्ती और दारू
एस.पी. के मुँह से ऐसे अल्फ़ाज़ सुनकर मेरा दिल किया कि अभिच खुशी से नाचू लेकिन मेरा नाच देखकर कही एस.पी. का मूड सटक गया तो प्राब्लम हो सकती है...इसलिए मैं चुप-चाप खड़ा और बस चुप-चाप खड़ा ही रहा,लेकिन मैने डिसाइड कर लिया कि बिना किसी मुसीबत के छूटने के कारण आज रात जोरदार दारू पिएँगे....
एस.पी. सर ने इसके बाद मुझसे कुच्छ नही कहा और वहाँ से जाने लगे...उन्हे जाता देख मुझे ख़याल आया कि थॅंक्स तो कहना ही चाहिए,क्यूंकी यदि कोई दूसरा पोलीस वाला होता तो 20-25 हज़ार घुसते और घर मे खबर भी पहुच जाती...लेकिन ऐसा कुच्छ भी नही हुआ था,इसलिए मैं डांगी जी का शुक्रिया अदा करने के लिए उनके पीछे दौड़ा.....
"थॅंक यू ,सर...वरना मुझे लगा था कि आज तो गये काम से..."
जवाब मे एस.पी. ने सिर्फ़ एक फीकी सी मुस्कान दी और आगे बढ़ गये...
"इस मेहरबानी की कोई खास वजह ,सर..."
"वजह..."उसी फीकी मुस्कान के साथ एस.पी. पीछे पलटे और होंठो को चबाते हुए बोले"तुम्हे पता नही होगा, पर तुम्हारे जितना बड़ा मेरा भी एक लड़का था.पिछले साल उसके बर्तडे पर वो मेरे पास आया और मुझे बोला कि 'डॅड, मुझे आज रात बर्तडे सेलेब्रेट करने के लिए कुच्छ पैसे चाहिए'...उसे जितने रुपये चाहिए थे,मैने उसे दिए जबकि मुझे मालूम था कि वो मेरे दिए हुए रुपयो को सिर्फ़ शराब मे उड़ा देगा....वो अपने बर्तडे की रात मुझे 'आइ लव यू,डॅड' बोलकर गया और फिर कभी वापस नही आया...."बोलते हुए डांगी जी अचानक रुक गये....उनके रुकने का कारण मैं समझ गया कि आगे क्या हुआ होगा...लेकिन मैं उनसे क्या बोलू ,ये मेरी समझ के बाहर था...क्यूंकी ऐसी सिचुयेशन की मैने कभी कल्पना तक नही की थी और ना ही मेरे पास ऐसी सिचुयेशन के लिए कोई रेडीमेड डाइलॉग थे...इसलिए मेरे पास सिवाय चुप रहने के कोई दूसरा रास्ता नही था....
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"मेरा बेटा ,वापस नही आया क्यूंकी उसने बहुत शराब पी रखी थी और वापस आते वक़्त उसकी बाइक किसी भारी वाहन से टकराई थी...वो टक्कर इतनी भयानक थी कि जब तक मैं वहाँ पहुचा,मेरा बेटा मर चुका था..."एस.पी. बोलते-बोलते फिर चुप हो गये और रुमाल निकालकर अपने आँखो मे रख लिया...
और मैं पहले की तरह अब भी बेजुबान सा वही ,उनके पास खड़ा था...उन्होने आगे कहा...
"मेरे बेटे के साथ-साथ बाइक पर दो और लड़के थे और वो दोनो भी नही बचे... रिपोर्ट के बाद पता चला कि शराब सिर्फ़ मेरे बेटे ने पी रखी थी,बाकी दोनो व्यर्थ मे ही अपनी जान गँवा बैठे...अब शायद तुम समझ गये होगे कि मेरी इस मेहरबानी की क्या वजह थी...मैं चाहता तो कल रात ही तुम सबको छोड़ सकता था लेकिन मैने तुम्हे अंदर किया जिसका कारण ये था कि तुम लोग बिल्कुल भी होश मे नही थे और मैं नही चाहता था कि कोई और दुर्घटना तुम्हारे साथ हो....बेटा, ज़िंदगी मिली है मौज़-मस्ती करने के लिए ना की नरक बनाने के लिए....चलता हूँ..."
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एस.पी. तो वहाँ से चले गये लेकिन उनके शब्द मेरे कान मे बहुत देर तक गूंजते रहे और मैं बिना किसी होश-हवास के वहाँ तब तक खड़ा रहा ,जब तक की अरुण और सौरभ ने मुझे आवाज़ नही दी....
"ये तो कमाल हो गया बे..एस.पी. ने तीनो को ऐसे ही छोड़ दिया...या तो मैं किसी दूसरे देश मे आ गया हूँ ,जहाँ दारू पीकर गाड़ी चलाना और पोलीस वाले को गाली देना अपराध नही माना जाता या फिर इस देश का क़ानून बदल गया है,जिसकी भनक मुझे नही लगी है...."
"देश भी वही और क़ानून भी वही है..." आगे चलते हुए मैने कहा...
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पोलीस स्टेशन से बाहर निकलने के बाद हमे पता चला कि हम तीनो के कपड़े जगह-जगह से फट चुके है और बॉडी मे इधर-उधर थोड़ी बहुत छोटे भी है....अरुण नवीन की ख़टरा हो चुकी बाइक को सड़क पर रेंगते हुए मेरे साथ चल रहा था और सौरभ हमारी कल की फूटी किस्मत पर सोच विचार करते हुए थोड़ा पीछे चल रहा था....
हमारी किस्मत कल रात तो फूटी ही लेकिन साथ मे हमारा एक और चीज़ भी टूट-फुट कर बिखर चुका था और वो चीज़ था हमारा जेब....कहने का मतलब कि कल रात जितना उड़ाया उसका तो कोई हिसाब नही था लेकिन नवीन की बाइक का पांडे जी ने जो हशरा किया था उसे देख कर तो गला सूख रहा था और पॅंट गीली हो रही थी....
"ले अरमान ,अब तू नवीन की बाइक लुढ़का...मैं थक गया "
"हाओ लवडा...जैसे मैं ग्लूकोस की दस-बारह बोतल चढ़ा कर आया हूँ...चुप चाप बाइक ले चल..."बोलकर मैं अपनी कॅल्क्युलेशन करने लगा कि नवीन की बाइक कितने मे बन जाएगी...
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हाइवे पर मैं ,अरुण आगे चल रहे थे और सौरभ हमसे पीछे चलते हुए कुच्छ सोच रहा था...कि तभी उसके मुँह से कुच्छ शब्द सुनाई दिए.
"गुलाबी आँखे जो तेरी देखी, दीवाना ये दिल हो गया...
सम्भालो मुझको ओ मेरे यारो...."
"ओये अरमान, ये लवडा कही सटक तो नही गया...थाने से ही इसके चल चलन मुझे कुच्छ ठीक नही लग रहे..."अरुण ने अपनी स्पीड थोड़ी बढ़ाई और मेरे पास आकर बोला...
"कुच्छ नही हुआ, गुलाबी ड्रेस पहन कर एक लौंडी स्कूटी से गुज़री है ,उसे ही देख कर गला फाड़ रहा है..."
"चल ठीक है लेकिन आज के बाद तूने यदि दारू का नाम भी लिया तो तुझे चखना बना गप्प कर जाउन्गा , साला एस.पी. बढ़िया लौंडा था,इसलिए ऐसिच ही छोड़ दिया वरना कोई दूसरा होता तो लॉलिपोप थमा देता..."
"अबे ,एस.पी. फॅन है मेरा...इसलिए छोड़ दिया,वरना तेरे जैसे झाटु के तो सीधे मुँह मे लंड देता....चल पापा बोल..."
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इसके बाद हम जब तक हॉस्टिल नही पहुच गये तब तक अरुण चुप ही रहा...लेकिन हॉस्टिल के बाहर नवीन की ठुकी हुई बाइक को खड़ा करने के बाद उसने जोरदार अंगड़ाई ली और बोला..."चल मूत कर आते है..."
"मैं भी यहिच बोलने वाला था ,चल...."मैने कहा..
"रूको बे, मेरा भी मूड है..."
इसके बाद हम तीनो हॉस्टिल से थोड़ी दूर झाड़ियो की तरफ गये और पॅंट खोलकर खड़े हो गये और वहाँ इधर-उधर पड़े पत्थरो पर फव्वारा मारकर हॉस्टिल के अंदर आए....
जिस वक़्त हम तीनो हॉस्टिल पहुँचे उस वक़्त तक़रीबन 12 बज चुके थे ,इसलिए डिसाइड किया कि अब सीधे लंच के बाद की क्लास अटेंड करेंगे.आज की आंकरिंग की प्रॅक्टीस तो छूट चुकी थी और मैं मन ही मन यही विनती कर रहा था कि छत्रपाल नाराज़ ना हो...इसके साथ मेरे मन मे और भी काई बाते चल रही थी, जैसे की पांडे जी को हॉस्पिटल से उठा कर लाना है, नवीन की बाइक चुद चुकी है..उसे इसकी इन्फर्मेशन भी देनी है, नवीन गुस्सा ना करे, इसका भी प्लान सोचना है...और तो और तुरंत 10-12 हज़ार का इंतज़ाम करना,जिससे की नवीन कि बाइक को ठीक करवाया जा सके....
"अबे तुम दोनो ऐसे क्यूँ पड़े हो, कॉलेज नही जाना क्या..."बाथरूम से नहा-धोकर मैं अपने रूम मे आया और अपने दोनो प्रिय मित्रो को बिस्तर पर औधा लेटा देख मैं भूंभुनाया....
"हिम्मत नही है ,तू जा कॉलेज..."
"इतने मे ही गान्ड फट गयी, फलो तुम देश की सेवा क्या करोगे..."
"नही करनी देश की सेवा और अब तू कट ले इधर से..."
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अरुण और सौरभ तो हॉस्टिल मे जाते ही सो गये और मैं सीधे कॅंटीन जा पहुचा...कॅंटीन मे हर दिन की तरह आज भी मस्त भीड़ थी...मस्त भीड़ मतलब ,हर दिन के तरह आज भी वहाँ एक दम करारी माल थी ,जो मज़े ले-ले कर...ले-ले कर अपना पेट भर रही थी....मेरे जेब मे पैसे तो थे नही ,इसलिए फ्री मे खाने की सेट्टिंग करने मैं सीधे काउंटर वाले के पास गया और उसे मनाया ,बड़ी मुश्किल से जब कॅंटीन वाला मान गया तो मैने सीधे ही 4 समोसे का ऑर्डर दिया और एक खाली टेबल पर आकर चुप-चाप बैठ गया....
कल के हुए कांड से मेरा दिमाग़ हिल चुका था और दिमाग़ के हिलने के कारण एक चीज़ जो मैने गौर की वो ये कि आज मैने कॅंटीन मे बैठी किसी भी लड़की को देखकर मन ही मन मे...'रंडी..चुड़ैल..लवडी...चुदा ले...' जैसे शब्दो का प्रयोग नही किया...जबकि बाकी दिन मैं कॉलेज की किसी लड़की को बस देख लूँ मेरे मन का स्पीकर बस शुरू ही हो जाता था,लेकिन आज वो स्पीकर साइलेंट था....ये साला मुझे हो क्या गया है...मेरे मुँह से गाली क्यूँ नही निकल रही..
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"अरमाआं....आज तुम ऑडिटोरियम मे क्यूँ नही आए..."मुझ पर चीखते-चिल्लाते हुए एक लड़की ,जिस जगह मैं बैठा था, वहाँ पर खड़ी होकर बोली....
"कौन है बे तू...मेरा मतलब कौन है आप..."
"दिमाग़ हिल गया है क्या..."वो लड़की जो खड़ी थी वो मेरे सामने वाली चेयर पर विराजमान होते हुए बोली
"एक मिनिट..."बोलते हुए मैने अपने सर पर एक मुक्का मारा और उस लड़की की तरफ देख कर बोला"एश ,हाई..."
"याद आ गया कि मैं कौन हूँ..."
"भूला ही कब था जो याद करने की ज़रूरत हो...वो तो इस समय मेरे दिमाग़ मे ढेर सारे एमोशन्स और फीलिंग्स चल रहे है, इसलिए ज़ुबान थोड़ी फिसल गयी...."
"तुम इतने लापरवाह कैसे हो...आज तुम्हारी वजह से छत्रपाल सर ने मुझे बहुत डाँट सुनाई..."
"एश...दिल पे मत लेना लेकिन अभी फिलहाल तुम यहाँ से पतली गली पकड़ लो..मतलब कि यहाँ से चली जाओ...क्यूंकी मेरा 1400 ग्राम के दिमाग़ मे ऑलरेडी 1400 किलो का लोड है..."
"मैं कहीं नही जा रही और ना तुम कहीं जा रहे हो...मुझे तुमसे बहुत ज़रूरी बात करनी है... "
एश के ऐसा बोलते ही मैं थोड़ा एग्ज़ाइटेड हो गया और सोचने लगा कि कही एसा मुझे आइ लव यू तो नही बोलने वाली .
"मेरी ,दिव्या से लड़ाई हो गयी आज..."
"ओह ग्रेट...."इतना सुनते ही मैं बीच मे बोला..
"क्या "
"मेरा मतलब था टू बॅड, वो तो ऐसे ही ज़ुबान फिसल गयी...तुम आगे बोलो "
"फिर उसने कहा कि वो मुझसे कभी बात नही करेगी..."
"मिंडबलविंग न्यूज़ है ये तो..."
"आआययईए "
"मेरा मतलब कि माइंड-डिस्टर्ब करने वाली न्यूज़ है ये...वो तो मेरी ज़ुबान फिसल गयी...वैसे मुझे बहुत दुख हुआ ये सुनकर...क्या बताऊ एक दम से रोना आ रहा है, वो तो मैं ही जानता हूँ कि मैने कैसे अपने मोती जैसे आँसुओ को रोक कर रखा है...तुम आगे बोलो"(अबे आइ लव यू ,अरमान बोल...बिल्ली )
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इसके बाद एश ने जो पकाना शुरू किया ,उससे मुझे जोरदार नींद आने लगी , मैने कयि बार जमहाई भी मारी और एक-दो बार तो खुली आँख से झपकी भी मार ली....
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"लेकिन तुम ये सब मुझे क्यूँ बता रही हो... "
"मेरे क्लास की बाकी लड़किया मुझे आरोगेंट समझती है और वो सब दिव्या की तरफ है..."एमोशनल होते हुए दिव्या ने मेरी तरफ देखा और मुझसे पुछा"क्या मैं आरोगेंट हूँ... "
"हां..."
"क्या "
"मेरा मतलब ना था,वो तो ज़ुबान फिसल गयी..."एश से पीछा छुड़ाने के लिए मैं खड़ा हुआ और वहाँ से चलने का सोचा...लेकिन फिर सोचा की ऐसे ही खाली-पीली जाने मे मज़ा नही आएगा ,इसलिए कोई डाइलॉग मार कर जाना चाहिए....गॉगल मेरे आँख मे पहले से ही लगा हुआ था ,इसलिए मैने सिर्फ़ डाइलॉग के अकॉरडिंग अपने फेस के एक्शप्रेशन को चेंज किया और बोला...
"इतना उदास होने की ज़रूरत नही है क्यूंकी तूफ़ानो से हमेशा पेड़ नही गिरते, कभी-कभी तूफान पेड़ की जड़े मज़बूत भी कर देते है...अब चलता हूँ "
कॅंटीन से निकल कर मैं सीधे अपनी क्लास की तरफ बढ़ा और मेरी मुलाक़ात आराधना से हुई...उसके साथ उसकी कुच्छ फ्रेंड्स भी थी . कयडे के मुताबिक़ मुझे आराधना को इग्नोर मारकर सीधे क्लास की तरफ बढ़ना चाहिए था और आराधना को चुप-चाप निकल लेना चाहिए था. मैं तो क़ायदे मे ही रहा लेकिन आराधना को पता नही क्या खुजली थी, जो ठीक मेरे सामने हिलती-डुलती मुस्कुराती हुई खड़ी हो गयी....
"गुड आफ्टरनून सीईईईइइर्ररर....हिी"
(ये ऐसी सेक्सी-सेक्सी आवाज़ निकाल कर साबित क्या करना चाहती है )
मुझे देखकर आराधना मुस्कुरा तो रही ही थी,साथ मे उसकी सहेलिया भी अपना बिना ब्रश किया हुआ दाँत मुझे दिखा रही थी...
''अबे इनको हुआ क्या है, कहीं मेरी ज़िप तो नही खुली है '' मन ही मन मे ऐसा सोचकर मैने नीचे देखा ,ज़िप बंद थी...
"हाई सर..."मेरे चुप रहने के कारण आराधना एक बार फिर बोली....
"बाइ मॅम...."बोलते हुए मैं तुरंत वहाँ से आगे बढ़ गया ,क्यूंकी मुझे आराधना की शक्ल देखकर ही मालूम चल गया था कि वो बहुत पकाने वाली थी....
इस समय मेरे अंदर कयि सारे सोच विचार चल रहे थे और जैसे ही मैं गेट के पास पहुँचा, मेरा मोबाइल भी बज उठा...मैने मोबाइल निकाला, कॉल बड़े भैया की थी,लेकिन मैने कॉल डिसकनेक्ट करके मोबाइल को साइलेंट मे किया और क्लास के अंदर एंट्री मारी.....
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"कैसे उतर गया नशा..."मेरे बैठते ही सुलभ ने मुझसे पुछा...
"मत पुछ भाई, सारी रात पोलीस स्टेशन मे गुज़ार कर आ रहे है, नवीन की बाइक का रेप हो चुका है और मैं इस वक़्त बहुत सारी उलझन मे फँसा हुआ हूँ...और तो और मुझे आल्बर्ट आइनस्टाइन को लेकर आराधना को चोदने की जो कसम खाई थी उसे भी पूरा करना है ,साथ मे छत्रपाल की लाइन्स भी याद करनी है....लेकिन सबसे बड़ी दिक्कत अभी ये है कि साला 10-12 हज़ार का जुगाड़ कहाँ से करू....तेरे पास हो तो उधारी दे ना..."
"बिल गेट्स की औलाद समझ कर रखा है क्या...जो तूने इधर माँगा और मैने तुझे उधार दे दिया...."
"चल कोई बात नही,शाम तक कुच्छ ना कुच्छ तो सोच ही लूँगा, अभी तो ये बता की सीएस ब्रांच मे कोई तेरे जान-पहचान वाला लड़का है क्या, जो भरोसेमंद हो..."
"नही है..."बिना एक पल गँवाए सुलभ ने जवाब दिया...
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सुलभ अपना एक हाथ डेस्क पर रखकर अपना थोबड़ा उस हाथ पर टिकाए हुए था और जब उसने एक सेकेंड सोचे बिना ही ना मे जवाब दे दिया तो मेरा पूरा खून जल गया और मैने उसका वो हाथ,जो डेस्क पर रख था उसे पकड़ कर हिला दिया जिसके बाद सुलभ के सर और डेस्क का एक प्यारी आवाज़ के साथ अद्भुत मिलन हुआ.
"अब बोल ,है कोई पहचान का..."
"एक मिनिट रुक..सोचने दे.."अपने सर को सहलाते हुए सुलभ ने कहा..."एक लौंडा है , नाम है अवधेश गिलहारे...सीएस का बंदा है और एक दम भरोसेमंद है...वैसे काम क्या है..."
"टॉप सीक्रेट, तू आज शाम को मेरी मीटिंग फिक्स कर दे,..."
"मीटिंग फिक्स करने पर मुझे क्या मिलेगा "
"लंड मिलेगा ,चाहिए... बोल तो अभी दे दूं..."
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जैसा शक़ मुझे कॅंटीन मे हो रहा था ,उस शक़ का कीड़ा क्लास मे भी मेरे अंदर पैदा हुआ....मैने क्लास की लड़कियो को देखा और सोचा कि अभिच मैं इन्हे महा भयंकर गालियाँ दूँगा...एक-दो को गाली दी भी..लेकिन फिर मुझे खुद बुरा लगा कि मैं क्यूँ इन्हे फालतू मे गालियाँ दे रहा हूँ...बेचारी कितनी अच्छी है.दूसरे ब्रांच की लड़कियो की तरह ये कम से कम भाव तो नही खाती वो बात अलग है कि इन्हे कोई भाव नही देता......कॉलेज के दूसरी लड़कियो की तरह ये किसी लड़के का जेब भी नही मारती...कितनी सुशील, संस्कारी, मेहनती, बलवान ,पहलवान लड़किया है.हम मेकॅनिकल वालो को तो गर्व होना चाहिए कि हमारे क्लास मे इतनी शक्तिशाली नारियाँ है.
अपने क्लास की नारी शक्ति का दिल ही दिल मे प्रशंसा करते हुए मैं उन्ही नारियों की तरफ होंठो मे मुस्कान लिए देख भी रहा था कि एक नारी की नज़र मुझ पर पड़ी और मुझे मुस्कुराता हुआ देख, उसने बहुत धीरे से कुच्छ कहा और यदि मैने उस नारी की लिप रीडिंग सही की थी तो उसके अनुसार वो नारी मुझे "कुत्ता,कमीना, बेशरम..." कह रही थी
"अबे तेरे को गाली दे रही है क्या..."
"हां..."
"क्यूँ ?"
"क्यूंकी ,दा क्वालिटी आंड क्वांटिटी ऑफ दा 'ग्र'(गिविंग रेस्पेक्ट) ईज़ नोट प्रपोर्षनल टू दा 'ट्र'.दा वॅल्यू ऑफ ट्र ईज़ डाइरेक्ट्ली डिपेंड्स अपॉन दा हमान फॅक्टर.विच ईज़ डिनोटेड बाइ 'ह'. "
"बस भाई रहने दे...सब समझ गया..."
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कॉलेज के बाद मैने नवीन को कल की घटना के बारे मे सब कुच्छ बता दिया.पहले-पहल तो नवीन की गान्ड ही फट गयी और पेलम पेल गुस्से के साथ मुझसे भिड़ने को तैयार हो रहा था लेकिन जब मैने उसे आश्वासन दिया की मैं उसकी बाइक एक हफ्ते के अंदर पहले की माफ़िक़ चका चक करवा दूँगा तो वो कुच्छ ठंडा हुआ और मुझे ढेर सारी वॉर्निंग देकर चलता बना....
कल की बर्तडे पार्टी मे मैने क्या पाया ये तो मालूम नही लेकिन नवीन अब मेरे साथ कभी भी किसी पार्टी मे नही जाएगा, ये उस वक़्त मुझे यकीन हो चुका था,फिर चाहे वो वेलकम या फेरवेल पार्टी ही क्यूँ ना हो...क्यूंकी वो महा-फेमस कहावत है ना कि 'दूध का जला छाछ भी फूक फूक कर पीता है '
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