RE: Porn Hindi Kahani दिल दोस्ती और दारू
भले छीन लो मुझसे मेरी जवानी.
मगर मुझको लौटा दो बचपन का सावन,
वो काग़ज़ की कश्ती, वो बारिश का पानी."
रूम के नशे मे जगजीत सिंग की ग़ज़ल ने मुझे कुच्छ ऐसा रमा दिया कि मैं फिर से उठा और एक पेग मारकर वापस बिस्तर पर लुढ़क कर ग़ज़ल गाने लगा...
"मुँहल्ले की सबसे निशानी पुरानी,
वो बुढ़िया जिसे बच्चे कहते थे नानी.
वो नानी की बातों में परियों का डेरा
,
वो चेहरे की झुरिर्यों में सदियों का फेरा."
"वैसे अरमान, कुच्छ लड़को के मुँह से सुना कि आंकरिंग मे तेरे साथ एश है...."ग़ज़ल के सुर और मेरे सुर मे बेसुरा राग घोलते हुए अरुण ने अपनी टाँग अड़ाई...लेकिन उसने एश का नाम लिया तो मैं रूम के नशे और जगजीत साब के ग़ज़ल मे और रम गया...
मैने अरुण के सवाल का जवाब दिए बिना ग़ज़ल की आगे की पंक्तियो को आगे बढ़ाया....
"भुलाए नही भूल सकता है कोई,
वो छोटी सी रातें वो लंबी कहानी.
कड़ी धूप मे अपने घर से निकलना,
वो चिड़िया, वो बुलबुल,वो तितली पकड़ना."
"अबे तूने जवाब नही दिया...चढ़ गयी क्या..."
"थोड़ी देर चुप नही रह सकता बक्चोद...कितना आनंद आ रहा था, साले एक तो तू खुद बेसुरा ,उपर से तेरी आवाज़ बेसुरी..."
"वो सब तो ठीक है...लेकिन पहले ये बता कि जो मैने सुना वो सही है क्या..."
"शत प्रतिशन सही है....एश अपुन के ग्रूप मे ही है..."
इसके बाद अरुण कुच्छ नही बोला और मैने मुँह ज़ुबानी याद जगजीत सिंग की वो ग़ज़ल पूरी की....रात को करीब 8 बजे, हम तीनो अपने प्लान के मुताबिक़ चुप-चाप हॉस्टिल से बार जाने के लिए निकले...लेकिन हॉस्टिल के बाहर लौन्डो ने मुझे पकड़ लिया और पार्टी देने के लिए कहने लगे....
"अबे तुम्ही लोगो के लिए दारू लेने जा रहा हूँ,तुम सब अंदर तैयार बैठना...मैं आधे घंटे मे दारू लेकर आता हूँ..."बहाना बनाते हुए मैं बोला...
"इतना सज-धज कर दारू लेने जा रहे हो बे तुम तीनो... "जिस लड़के ने हमे हॉस्टिल के बाहर पकड़ा था, उसने मेरी ओर देखकर पुछा...
"बेटा भाई..हमेशा कपड़े वपडे पहनकर टिप-टॉप रहता है,क्या पता कब कोई लड़की मिल जाए...तू हॉस्टिल के अंदर जाकर सबको बोल दे कि कोई खाना ना खाए...मैं आधे खांते मे सबके लिए दारू और खाना लेकर आता हूँ..."
"ईईसस्स...आज तो फिर मज़ा आ जाएगा..."वो लड़का खुशी के मारे वहाँ से कूदता हुआ हॉस्टिल के अंदर गया और मैं अरुण,सौरभ ,पांडे जी के साथ बार के लिए निकल पड़ा....
सिटी से मैने नवीन और सुलभ को भी पकड़ा और जोरदार पार्टी करने के इरादे से बार की तरफ बढ़े लेकिन हमे क्या पता था कि बार की तरफ जाने वाला रास्ता हमे बार नही बल्कि जैल पहुचाने वाला था......
बार जाते वक़्त मैने मन ही मन मे एक बजेट बना लिया था कि इतने रुपये से आगे खर्च नही करना है...लेकिन बार मे दारू और लड़कियो के बीच मेरा सारा बजेट गड़बड़ा गया....हमने पेल के दारू की बोटले खाली की और सिगरेट से अपना कलेजा जलाया. हम लोग नशे मे इतने टन हो गये थे कि एक दूसरे तक को नही पहचान रहे थे.....
"तू कौन है बे लवडे और मेरे पीछे-पीछे दुम हिलाते क्यूँ आ रहा है....भिखारी है क्या..."बार से निकलते वक़्त जब मैने पीछे अरुण को आते हुए देखा तो उससे बोला...
"मैं....मैं हूँ सम्राट आरूनोड...लेकिन मेरे राज्य के लोग प्रेम से मुझे अरुण कहते है..."
"तू मुझे जाना पहचाना क्यूँ लग रहा है बे...पक्का तूने मेरा लंड मुँह मे लिया होगा एक-दो बार...हट सामने से..."अरुण के पीछे से आते हुए सौरभ ने अरुण को धक्का देकर नीचे ज़मीन पर गिरा दिया और मेरे पास आकर आसमान की तरफ देखने लगा....फिर अपना सर खुजाते हुए बोला"साला ,मेरी हेलिकॉप्टर कहाँ गया, कुच्छ देर पहले तो यही पार्क किया था...पता नही कहा गया, कल ही तो खरीदा था..."
मेरे ,अरुण और सौरभ के बाद पांडे जी बार से बाहर निकले और हम तीनो को देखते ही चिल्लाए...
"दूध माँगॉगे तो खीर देंगे...
कश्मीर माँगॉगे तो चीर देंगे...
मा तुझे सलाम.....सैनिको क़ैद कर लो इन देशद्रोहियो को.... "
"अबे चुप बे पांडे,..."उसके सर पर एक मुक्का मारते हुए सुलभ ने कहा..."ये क्या चूतियापा लगा रखा है बे तुम चारो ने...एक खुद को सम्राट कहता है, दूसरे का हेलिकॉप्टर नही मिल रहा और तू पाकिस्तान से जंग लड़ रहा है...बीसी ,यदि मुझे मालूम होता कि तुम चारो इतना बड़ा लफडा करोगे तो मैं आता ही नही....नवीन , ये जो बाइक लेकर आए है उसे तू चला और अपनी बाइक की चाभी मुझे दे...इनके भरोसे रहा तो आज स्वर्ग के दर्शन हो जाएँगे..."
सुलभ और नवीन हमे बाइक पर बिठाकर रूम की तरफ चल पड़े...आधी रात होने के कारण पूरी सड़कें सुनसान थी,बस बीच-बीच मे कोई बिके या कार हमारे पास से गुजर रही थी...नवीन के रूम की तरफ जाते वक़्त मेरी बगल से एक कार गुज़री तो मैने नवीन को बाइक तेज़ करने के लिए कहा....
"क्या हुआ बे..."
"अबे स्पीड बढ़ा...उस कार वाले को मैं जानता हूँ..."
"ठीक है फिर...लेकिन ज़रा संभाल कर बात करना..."
"अपने बाप को मत सीखा कि कैसे बात करनी है...बस जब इशारा करू तो बाइक की स्पीड और तेज़ कर देना..."
नवीन ने बाइक की स्पीड बढ़ाई और हमे ओवर्टेक करके आगे बढ़ चुकी कार के ठीक बगल मे बाइक चलाने लगा....कार की सभी विंडो बंद थी इसलिए मैने हाथ से इशारा करके कार की विंडो खोलने के लिए कहा....
पहले तो कार वाले ने मेरी बात बहुत देर तक टाल दी लेकिन फिर उसने कार की विंडो खोल ही दी और मेरे तरफ सवालिया निगाह से देखने लगा.....
"क्या अंकल...एक दम मज़े मे या कोई परेशानी है..."
"आइ'म फाइन..हू आर यू..."
"वो सब हटाओ और ये बताओ कि कार आपकी है..."
"हां..."
इसके बाद मैं जो बोलने वाला था उसे सोचकर ही मैं हँसन लगा और फिर हँसते हुए बोला"कार देखकर मज़ा नही आया चाचा जान, बहुत सस्ती लग रही है....मुझे तो यही कार फ्री मे मिल रही थी,लेकिन मैने इतनी छोटी कार लेने से मना कर दिया, आप चोदु बन गये..... "
"अबे ये क्या बक रहा है...सठिया गया है क्या..."नवीन ने तुरंत बाइक की स्पीड बढ़ा दी और कार वाले को बहुत पीछे छोड़ दिया......
"अरमान, अब मैं तेरे साथ कभी भी ,कही भी नही जाउन्गा...फ्री-फोकट मे लफडे करने का तुझे बड़ा शौक है...काश की मैं तेरे साथ फर्स्ट एअर मे ना बैठा होता, लेकिन मेरी ही मति मारी गयी थी...."
"बेटा तेरा लेवेल ही नही है मेरे साथ रहने का...मैं खुद आज के बाद तेरे साथ नही आउन्गा...आज के बाद क्या, अभी, इसी वक़्त मैं तुझसे दोस्ती तोड़ता हूँ, बाइक रोक...."
"चल बे,..."
"रोक बाइक,वरना मैं कूद जाउन्गा..."
"चुप चाप बैठा रह, वरना मेरे हाथो पिटेगा तू अरमान..."
"तू बाइक रोकता है या मैं कूद जाउ...."
"अबे कूदना मत...."नवीन चिल्लाकर बोला"मैं बाइक रोकता हूँ, लेकिन तू प्लीज़ यार, कूदना मत..."
"अब आया ना लाइन पर..."
नवीन ने सड़क के किनारे बाइक रोकी और मुझसे एक के बाद एक सवाल करने लगा, जैसे की 'मैने बाइक क्यूँ रुकवाई'...'मेरा आगे क्या करने का प्लान है' वगेरह-वगेरह....लेकिन मैने उसे कुच्छ नही कहा और उसके हर सवाल के बाद उसे शांत रहने का इशारा करता था....
ये सिलसिला तब तक चलता रहा,जब तक कि सुलभ भी हमारे पास नही आ गया....
"क्या हुआ नवीन, तूने बाइक क्यूँ रोक दी..."सुलभ ने नवीन से पुछा...लेकिन नवीन कुच्छ कहता ,उसके पहले ही मैने सौरभ, अरुण को पकड़कर बाइक से उतरने के लिए कहा....
"क्या हुआ...कुच्छ बताता क्यूँ नही..."अबकी बार सुलभ ने गला फाड़कर नवीन से पुछा...
"पता नही, अरमान ने कहा कि बाइक रोक...इसलिए मैने रोक दिया..."
.
"आ जाओ बे..."नवीन की बाइक पर बैठकर मैने अरुण,सौरभ और पांडे जी को पीछे बैठने के लिए कहा...
"ये...ये क्या कर रहा है..."
बाइक के सामने नवीन तुरंत खड़ा हो गया और मुझे रोकने की कोशिश करने लगा.....
"जनरल, आप आग्या दे, मैं अभी इसको मौत के घाट उतार दूँगा..."पांडे जी ने कहा....पांडे जी के दिमाग़ मे जंग का जुनून अभी तक सवार था...
मैने कुच्छ कहने की अपेक्षा कुच्छ करने का प्लान किया और बाइक स्टार्ट करके जबरदस्त स्पीड के साथ नवीन के साइड से निकल लिया.....
जब बाइक चलाते वक़्त मुझे नींद आने लगी तो मैने हॉस्टिल की तरफ जाने वाले हाइवे के किनारे बिके खड़ी की और पांडे जी को बाइक चलाने के लिए कहा.....पांडे जी के सर पर तो अभी जंग का जुनून सवार था, वो भला ना क्यूँ करते...पांडे जी बाइक की कमान अपने हाथ मे ली और तेज़-तर्रार स्पीड से हॉस्टिल की तरफ बाइक को उड़ाने लगे.....
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"आप देखना अरमान भाई, मैं कैसे हॉस्टिल के अंदर एंट्री मारता हूँ...बोले तो एक दम हीरो के माफ़िक़..."कहते हुए पांडे ने बाइक लेजा कर सीधे गेट पर ठोक दी...
हम पीछे बैठे तीनो तो इधर-इधर गिरे,लेकिन पांडे जी हवा मे उड़ कर सीधे गेट के दूसरी तरफ जा पहुँचे.....
"ये साला पांडे हमे कहाँ ले आया है...इसकी माँ का..."सौरभ ज़मीन पर नीचे पड़े-पड़े कराहने लगा"ये तो हॉस्टिल नही लगता, बीसी पांडे...कहाँ ठोक दिया बे..."
"मुझसे तो उठा तक नही जा रहा...पता नही कहा गिरा हूँ..."
बाइक की गेट से टक्कर के बाद राजश्री पांडे कहाँ गया ,पता नही...लेकिन हम तीनो जहाँ गिरे थे,वही से एक-दूसरे का बस नाम ले रहे थे.....ना तो किसी मे उठने का ताक़त था और ना ही किसी मे इतनी समझ कि कोई जेब से मोबाइल निकालकर किसी को मदद के लिए बुलाए....
"अबे कहीं,हम लोग मर तो नही गये..."
"नही बे...एक ज्योतिषी ने मुझसे कहा था कि मैं 50 साल के पहले नही मरूँगा..."मैने कहा...
लेकिन उसके बाद जो हरक़त हुई ,उसने मेरा कान फाड़ दिया...हुआ ये था कि अचानक ही जिसके गेट पे पांडे जी ने बाइक ठोका था,उस घर के अंदर से एका-एक विसिल की आवाज़ आने लगी...पहले किसी एक ने विसिल बजाई,फिर दो फिर तीन....वो सब विसिल बजाकर बीच-बीच मे चिल्ला भी रहे थे....
"ये म्सी इतना भौक क्यूँ रहे है बे अरमान..."
"एक मिनिट..."मैने अपनी गर्दन उस घर के तरफ की ,जिसके अंदर से विसिल की तेज़ आवाज़े आ रही थी...और फिर उस घर के बाहर का बोर्ड पढ़ा...."सूपरिंटेंडेंट ऑफ पोलीस...एस.एल.डांगी...."
वो बोर्ड पढ़ते ही मेरा गला ऐसे सूखा, जैसे मुझे किसी ने हफ़्तो पहले बिना पानी के रेगिस्तान मे भेजा हूँ...मेरी चारो तरफ से फटने लगी और मैं खड़ा ना होने की हालत मे ना होने के बावज़ूद ,अपना पूरा दम लगाया और जैसे-तैसे खड़ा हुआ....
"भागो बीसी, उस म्सी पांडे ने बाइक हॉस्टिल के गेट मे नही बल्कि डांगी के घर मे ठोकी है...गान्ड मे जितना ज़ोर है, भागो...वरना ये साले गान्ड मे गोली डाल देंगे...."
मुझमे खड़े होने की बिल्कुल भी ताक़त नही थी ,वो तो एस.प. का डर था, जिसकी वजह से मैं लड़खड़ाते हुए जैसे-तैसे करके खड़ा हुआ...लेकिन तभी गेट से तीन गार्ड जो कुच्छ देर पहले विसिल बजा रहे थे, वो तीनो लंबी नली वाली बंदूक लेकर बाहर आए....
पहले तो वो तीनो गेट के बाहर आकर इधर इधर टॉर्च मारने लगे और जब मैं उन्हे खड़ा दिखाई दिया तो वो तीनो मुझपर लपके....एक ने मेरे दोनो हाथो को कसकर पकड़ा तो दूसरे ने अपने हाथ मे रखी लंबी नली वाली बंदूक से सीधे मेरे घुटनो मे मारा....
"मदर्चोद...."लड़खड़ा कर गिरते हुए मैने अपनी मुश्किले और बढ़ा ली...
क्यूंकी इसके बाद वो तीनो मुझपर बरस पड़े और गालियाँ बकने लगे....इसके बाद उन तीनो मे से दो ने मुझे छोड़ा और मेरे साथ और कौन-कौन है ,ये जानने के लिए इधर-उधर फिर से टॉर्च मारने लगे....
"तेरे साथ और कौन-कौन है....जल्दी बता,वरना गोली मार दूँगा..."
"अरे मैं कोई आतंकवादी थोड़े ही हूँ,जो ऑन दा स्पॉट पेल दोगे....हॅंड्ज़ अप...मेरा मतलब तुम लोग मुझसे हॅंड्ज़ अप करने को कहो और मैं सरेंडर करता हूँ...."
"तू ऐसे नही मानेगा..."बोलते हुए वो पोलीस वाला मेरी कमर के उपर चढ़ गया और मेरे दोनो हाथ को पीछे की तरफ करके मरोड़ने लगा.....
"बीसी ,दर्द हो रहा है छोड़..."
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