RE: Porn Hindi Kahani दिल दोस्ती और दारू
दूसरे दिन मैं कॉलेज तो पहुचा लेकिन थर्ड पीरियड मे और तब तक विभा की क्लास जा चुकी थी और ये क्लास उसकी आख़िरी क्लास थी....जब कॉलेज पहुचा तो दोस्तो ने बताया कि आज विभा मॅम की क्लास मे कोई पढ़ाई नही हुई...वो लोग पूरे एक घंटे विभा मॅम से सिर्फ़ हँसी मज़ाक करते रहे और क्लास के एंड मे सभी लौन्डो-लौन्डियो ने विभा मॅम को उनकी आगे की लाइफ के लिए ऑल दा बेस्ट कहा ,जिसके बाद विभा ने भी पूरी क्लास को ऑल दा बेस्ट कहा.....साला मैं ही इस मौके पे चौका मारने से रह गया, यदि कल रात दारू नही पी होती तो....खैर अब पछ्ताये हॉट क्या ,जब चिड़िया चुग गयी खेत और वैसे भी आइ लव दारू मोर दॅन गर्ल्स....
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"क्या सोच रहा है बे अरमान...चल कॅंटीन से आते है..."लंच होने के बाद भी जब मैं अपनी जगह पर बैठा रहा तो अरुण बोला...
"कुच्छ नही,बस विभा जानेमन के बारे मे सोच रहा हूँ....मेरे पास फुल मौका था उसे पटाने का,लेकिन मैं तो लंड हिलाता रहा...कभी ट्राइ ही नही किया और आज जब वो जा रही है तो एक दम खराब लग रहा है...अब क्लास मे वही बदसूरत टीचर रहेंगे,जिनकी सूरत देखते ही पढ़ने का मन नही करता..."
"चल कॅंटीन मे फर्स्ट एअर की लौन्डियो को ताड़ते है...इस बार तो पूरी मिस इंडिया आ गयी है कॉलेज मे..."
"वो सब छोड़ और ये बता कि विभा इस वक़्त कहाँ होगी ,तेरे हिसाब से..."
"इस वक़्त...."अंदाज़ा लगाते हुए अरुण बोला"मेकॅनिकल डिपार्टमेंट मे होगी और कहाँ होगी..."
"एक काम कर तू जा, मैं आज कॅंटीन नही जा रहा....विभा से मिलकर आता हूँ..."विभा से मिलने का इरादा करके मैं अपनी जगह से उठा ,तो अरुण ने मेरा कंधा पकड़ कर मुझे वापस बैठा दिया...
"तुझे लगता है कि वो तुझसे मिलेगी...अबे लोडू ,वो इस वक़्त मेकॅनिकल डिपार्टमेंट मे होगी...और वहाँ अपने सारे खड़ूस टीचर होंगे..."
"तो क्या हुआ..."
"तो क्या हुआ.....बेटा तू मेकॅनिक्लल डिपार्टमेंट मे तो उससे बात कर नही पाएगा इसलिए तू उसे बाहर आने के लिए ही कहेगा...ऐसे मे वो साले ,म्सी टीचर्स पक्का कुच्छ ना कुच्छ ग़लत समझ लेंगे....जाते-जाते तो उसे बदनाम मत कर..."
"तू होशियारी मत छोड़ और जा अपना काम कर...मुझे मालूम है कि क्या करना है, बड़ा आया मुझे सलाह देने वाला..."
"मरवा फिर...मुझे क्या..."बोलकर अरुण तुरंत क्लास से बाहर निकल गया...और मैं मेकॅनिकल डिपार्टमेंट की तरफ बढ़ा....
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वैसे तो कुच्छ देर पहले मैने अरुण को गाली देकर भगा दिया था,लेकिन उसने सही ही कहा था कि डिपार्टमेंट मे जाकर विभा को सीधे बाहर बुलाना ,ख़तरनाक साबित हो सकता था...इसलिए मैं अपने डिपार्टमेंट के बाहर जाकर रुक गया और विभा के मोबाइल पर एक मेस्सेज टपका दिया कि मुझे उससे मिलना है....
मेरे मेस्सेज करने के 10 मिनिट बाद तक जब विभा मेकॅनिकल डिपार्टमेंट से बाहर नही निकली तो मैने ये मान लिया कि अब वो बाहर नही आएगी ,इसलिए मैं वापस जाने के लिए मुड़ा...लेकिन तभी पीछे से विभा जानेमन ने मुझे आवाज़ दी....
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"मुझे लगा नही कि आप आओगी...इसलिए वापस जा रहा था..."विभा को बाहर देख मैं उसकी तरफ बढ़ा...
"लंच मे बिज़ी थी...अब फ्री हूँ,बोलो क्या बात है..."
"आज बड़ी धाँसू लग रही हो....बोले तो यू आर लुकिंग ब्यूटिफुल..."
मेरी इस तारीफ भरे शब्दो का विभा ने कोई जवाब नही दिया जबकि आम तौर पर लड़किया अपने लिए ऐसे वर्ड सुनकर सामने वाले को स्माइल के साथ थॅंक्स कहती है...लेकिन विभा मॅम की अपनी ही एक खास आदत है ,जो ये कि मैं जब भी उसे खूबसूरत कहता था तो उसका मुँह ऐसे बन जाता था जैसे मैने उसकी तारीफ नही बल्कि बेज़्जती की है...खैर ये हमारा पर्सनल मॅटर है...तुम लोगो को इन्वॉल्व होने की ज़रूरत नही
"दिल से बोल रहा हूँ मॅम कि यू आर लुकिंग सो ब्यूटिफुल...अब तो जा रही हो ,कम से कम जाते-जाते तो थॅंक्स बोल जाओ...."
"थॅंक्स...लेकिन तुमने अभी तक ये नही बताया कि मुझसे ,तुम्हे ऐसी कौन सी बात करनी थी..."
विभा के ये कहते ही मैं सोच मे पड़ गया...क्यूंकी मैं ये सोच के ही नही आया था कि विभा से मुझे क्या बात करनी है...इसलिए मैं वहाँ खड़ा रहकर कुच्छ देर तक तो इधर-उधर झाँकता रहा और फिर बोला "यहाँ से कही दूर चले "
"चलो..."
"क्या..."मेरे साथ चलने के उसके जवाब से मैं थोड़ा नर्वस सा हो गया...क्यूंकी मुझे अभी तक समझ नही आया था कि विभा से आक्च्युयली मैं बात क्या करूँ ?
हम दोनो वहाँ से दूर आए और फिर एक जगह जाकर विभा रुक गयी और मेरी तरफ देखने लगी....जिससे मैं और भी नर्वस हो गया...मेरे अंदर इस वक़्त तूफान उठा हुआ था ,जो शब्दो के रूप मे मेरे अंदर से बाहर निकलकर विभा के कानो तक जाना चाहता था....इस वक़्त मेरे अंदर काई ख़यालात आ रहे थे, जैसे कि विभा को 'आइ लव यू' कहना या फिर 'आइ वॉंट टू फक यू' कहना....लेकिन इन सभी के बीच मैने वो टॉपिक छेड़ा जिसकी उम्मीद ना तो विभा को थी और ना ही मुझे....वो तो बस एक सेकेंड के अंदर ही मेरे दिल मे आया और मैने कह दिया....
"सीडार को तो जानती ही होंगी...बोले तो वही अपने एमटीएल भाई..."बोलने के साथ ही मेरे अंदर एक दुख का अनुभव हुआ...और ऐसा ही कुच्छ-कुच्छ रिक्षन विभा का भी था...
"उसे कौन नही जानता...लेकिन सीडार के बारे मे मुझसे क्या बात करनी है...हम दोनो तो कभी दोस्त तक नही थे...."
"एग्ज़ॅक्ट्ली...इसी के बारे मे तो बात करनी है...."विभा की आँखो मे आँखे गढ़ाते हुए मैं बोला"उन्होने मुझसे कहा था कि वो आपसे...मतलब...वो ,आपसे..."
"प्यार करता था...."मेरे आधूरे वाक्य को पूरा करते हुए विभा ने कहा"लेकिन मैने तो उससे कभी प्यार नही किया...."
"वही तो पुछने आया हूँ कि क्यूँ नही किया...कोई खास दुश्मनी थी क्या उनसे..."
"जिससे दुश्मनी ना हो ,इसका मतलब ये तो नही होता कि उससे प्यार किया जाए....और वैसे भी अब वो नही है तो इस बारे मे बात करने का कोई फ़ायदा नही....मैं चलती हूँ..."
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"ये क्या कर दिया मैने... ये तो नाराज़ हो गयी..."विभा को वहाँ से जाते देख मैं खुद पर चीखा और तेज कदमो के साथ आगे बढ़ते हुए विभा के ठीक सामने खड़ा हो गया....
"सॉरी...वैसे मैं ये पुछने आया था कि यहाँ से जा कब रही हो...मेरा मतलब ट्रेन कितने बजे की है..."
"तुम्हे कैसे पता कि मैं ट्रेन से जाउन्गी.... "
"अब प्लेन से तो जाओगी नही और राजस्थान तक यहाँ से कोई बस जाती नही...इसलिए जाओगी तो ट्रेन से ही...अब बताओ कितने बजे की ट्रेन है..."
"11:30 पीएम....लेकिन ये क्यूँ पुच्छ रहे हो..."
"बस ऐसिच जनरल नालेज के लिए...क्या पता इंडियन इंजिनियरिंग सर्विस(आइस) के एग्ज़ॅम मे ये क्वेस्चन आ जाए "
"तो मैं चलूं..."
"जा ऐश कर..."
"सुधरोगे नही तुम..."
"कोई सुधारने वाली मिली नही...वरना बंदे हम उतने बिगड़े हुए भी नही थे...आप ट्राइ मार सकती हो "
"अपना ये जादू उसपर चलाया करो,जिसपर चलता हो....और हां ,यदि रात को रेलवे स्टेशन आ रहे हो तो 11 बजे पहुच जाना....कुच्छ इंपॉर्टेंट काम है...मुझे आने मे थोड़ा बहुत लेट हो जाएगा तो वहाँ से भाग मत जाना,मेरा इंतज़ार करना....अब सामने से हटो..."
"जानेमन, इंतज़ार तो हम सिर्फ़ दो चीज़ का करते है...पहला 'पाइरेट्स ऑफ दा क्रिब्बीयन' के नेक्स्ट पार्ट का और दूसरा सचिन की बॅटिंग का...."गॉगल्स लगाते हुए मैने कहा"इसलिए टाइम पर पहुच जाना "
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विभा से मिलने के बाद मैने टाइम देखा तो मालूम हुआ कि रिसेस ख़तम होने मे अब भी 20 मिनिट बाकी थे और पेट मे भूख के मारे जो खलबली मची हुई थी उसके बाद तो सिर्फ़ कॅंटीन ही एकमात्र सहारा था...इसलिए मैं कॅंटीन की ओर चल पड़ा...पेट मे भूख के कारण मची खलबली के अलावा एक और कारण था,जिसकी वजह से मैं कॅंटीन जा रहा था...वो कारण ये था कि लास्ट सेमेस्टर से कॉलेज के कुच्छ लड़को ने अपना एक अलग ग्रूप बना लिया था...जो आए दिन किसी ना किसी को पेलते रहते थे...मुझे पांडे जी ने इसकी इन्फर्मेशन कुच्छ दिन पहले ही दी थी और ये भी कहा था कि वो रिसेस के वक़्त पूरा टाइम कॅंटीन मे रहते है....इसलिए कॅंटीन मे जाकर उस ग्रूप को ठीक करना था और वैसे भी जब से मैने अपने चारो प्लान को डीक्टिवेट किया है,तब से मैं जब चाहू,जिसे चाहू, जहाँ चाहू...ठोक सकता हूँ...
चॅप्टर-45:ए कॉर्नर ऑफ दा पास्ट
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मेरे चारो प्लॅन्स मेरे साथ लगभग एक साल तक रहे ,जिसका नतीज़ा ये हुआ था कि मेरा सीपीआइ जो 4थ सेमेस्टर के बाद 7.6 था वो अब 7.9 तक आ पहुचा था और सेवेंत सेमेस्टर के रिज़ल्ट के बाद तो मुझे पूरी उम्मीद थी कि मेरा सीपीआइ 8.0 पायंटर टच कर जाएगा या फिर 8.ओ को क्रॉस कर जाएगा....5थ सेमेस्टर मे कॅंप के बाद मैने एक सिंपल ,शरीफ लाइफ गुज़ारी थी...जिसमे ना तो कोई मार-धाड़ थी और ना ही कोई लौंडियबाज़ी....मेरी उस सिंपल आंड शरीफ सी लाइफ मे सिर्फ़ एक बुराई थी जिसे मैं दूर नही कर पाया था और वो थी मेरी दारू पीने की आदत, जो अब भी बरकरार है.....
5थ सेमेस्टर से जहाँ मेरे सीपीआइ उपर चढ़ने शुरू हुए ,वही मेरे खास दोस्तो का हाल पहले जैसा ही रहा...अरुण ने थोड़ी ,बहुत प्रोग्रेस तो की लेकिन वो 7.5 तक ही अटका हुआ था..सौरभ 7.2 मे था और इस बीच एक साल मे सुलभ के पायंट्स पर जोरदार गिरावट हुई...पहले जहाँ उसका सीपीआइ 8.3 के करीब था वो अब नीचे लुढ़क कर 7.7 पर आ पहुचा था....हम लोग कभी आपस मे पढ़ाई की बात नही करते थे ,इसलिए मुझे सुलभ के इस घटिया परर्फमेन्स का एग्ज़ॅक्ट रीज़न तो नही मालूम...लेकिन जहाँ तक मेरी समझ जाती है,उसके अनुसार...मेघा से दिन ब दिन बढ़ता हुआ सुलभ का प्यार इसका रीज़न हो सकता था....जो भी हो अपने ग्रूप मे तो मैं ही टॉपर था
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मेरे प्लॅन्स मुझमे अच्छी-ख़ासी प्रोग्रेस कर रहे थे ,जिससे मेरी इमेज कॉलेज मे बहुत हद तक सुधर गयी थी...और तो और एक ही सेमेस्टर मे मेरे द्वारा 12 सब्जेक्ट्स क्लियर करने वाले कारनामे को कॉलेज के बिगड़े लड़के इन्स्पिरेशन के तौर पर लेते है . मेरे चारो प्लॅन्स के साथ मेरी बहुत अच्छी पट रही थी लेकिन कुच्छ दिनो पहले जब मैं सेवेंत सेमेस्टर की छुट्टी के बाद घर गया था तो मैने एक दिन ,रात के वक़्त सोचा कि मुझे 8थ सेमेस्टर के बाद क्या करना है....अपने फ्यूचर के इसी झमेले मे मैं उस रात लगभग कयि घंटे तक उलझता रहा....मेरे साथ गूगल महाराज भी थे ,लेकिन तब भी मुझे इस उलझन से निकलने मे कयि घंटे लग गये...जिसके बाद मैने अपना एक लक्ष्य डिसाइड किया ,जिसकी तैयारी मुझे 8थ सेमेस्टर के बाद करनी थी....इसलिए मैने तुरंत अपने सभी प्लॅन्स को अलविदा कहा और अपने पुराने जोश के साथ कॉलेज मे एंट्री मारी....
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वरुण और गौतम ,ये दो ऐसे लौन्डे थे...जो मेरे अतीत मे अपनी एक घटिया सी छाप छोड़ कर जा चुके थे...जब मैं फिफ्थ सेमेस्टर मे था तब वरुण कॉलेज से गया और मेरे सेवेंत सेमेस्टर मे आते-आते तक गौतम ने भी अपनी डिग्री पूरी कर ली और कॉलेज से चलता बना....वरुण और गौतम दोनो लोकल लौन्डे थे इसलिए महीने-दो महीने मे अपनी गान्ड मरवाने और रोला झाड़ने कॉलेज टपक ही पड़ते थे....इन दोनो के कॉलेज से जाने के बाद मुझे बहुत ही बेनेफिट हुआ..क्यूंकी कॉलेज मे अब मेरे सामने सर उठाने वाला कोई नही बचा था,सिवाय कुच्छ हफ्ते पहले बने एक नये ग्रूप को छोड़ कर....कुल-मिलाकर कहा जाए तो अब पूरे कॉलेज पर मेरी बादशाहत थी और फोर्त एअर मे आते ही मैने सबसे पहले रॅगिंग को रोका...शुरू मे प्लान तो था कि पूरे कॉलेज मे सीनियर लड़को को डरा-धमका कर रॅगिंग बंद करवा दूं...लेकिन बाद मे ये बड़ी आफ़त साबित हुई...इसलिए फिर मैने सिर्फ़ अपने मेकॅनिकल ब्रांच मे रॅगिंग रुकवाई....मैने सेकेंड एअर से लेकर फोर्त एअर तक के क्लास मे जाकर सबको सख़्त वॉर्निंग दी थी कि कोई भी लड़का या लड़की फर्स्ट एअर के स्टूडेंट्स को नही पकड़ेगा....और ऐसा हुआ भी....
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वरुण और गौतम के जाने के बाद सिर्फ़ एक काँटा ऐसा था जो मुझे चुभता था और वो काँटा थी आर.दिव्या...मुझे हमेशा से ही दिव्या को देखकर जाने क्यूँ ऐसा लगता था कि वो साली भूत्नि मेरे खिलाफ ज़रूर कोई ना कोई षड्यंत्र रच रही है....लेकिन 8थ सेमेस्टर के आते-आते तक अब मैं र.दिव्या को ज़्यादा सीरीयस नही लेता था...क्यूंकी यदि सच मे दिव्या मेरे खिलाफ कुच्छ सोच रही होती तो अब तक कोई ना कोई कांड हो ही जाता ,जो कि नही हुआ था....
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यूँ तो दिव्या कभी मेरे सामने कुच्छ नही बोलती थी लेकिन मुझे हमेशा से यही लगता कि वो एश को मेरे खिलाफ भड़का रही है...क्यूंकी पिछले एक साल मे मैं और एश फेरवेल और वेलकम पार्टी के दौरान कितनी ही बार आमने-सामने आए...लेकिन हर बार वो चंडालीं दिव्या उसके साथ रहती और उसके कान मे कुच्छ कहती...जिसके बाद एसा मुझे ऐसे इग्नोर मारती जैसे के रेलवे स्टेशन मे दो अंजान आदमी एक-दूसरे को इग्नोर मारते है....एसा और मेरे बीच मेरे द्वारा गौतम की ठुकाई से जो चुप्पी थी ,वो अब तक बनी हुई थी...रीज़न वही था कि...ना तो वो शुरुआत करती और मैं शुरुआत करूँ ,ये हो नही सकता.......
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एक और बड़ा चेंजस हमारे इस फाइनल सेमेस्टर के पहले हुआ ,वो ये कि हमारे हॉस्टिल का वॉर्डन बदल गया...और जो नया वॉर्डन हमारे हॉस्टिल मे आया वो अपनी तरह की फ़ितरत का था...मतलब कि वो पुराने वाले वॉर्डन की तरह हर वक़्त रूल्स आंड रेग्युलेशन्स की बात ना करके रूम और विस्की की बात करता था....कुल मिलाकर हमारी लाइफ मे पिछले एक साल से कुच्छ खास नही हुआ था...हमारे फ्रेंड्स सर्कल मे सिर्फ़ सुलभ ही ऐसा था जिसने माल पटा ली थी बाकी बचे हम चारो (मैं,अरुण,सौरभ और पांडे जी )
की रियल लाइफ और फ़ेसबुक प्रोफाइल पर अब भी सिंगल रिलेशन्षिप छपा हुआ था.....
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विभा से मिलकर मैं कॅंटीन की तरफ बढ़ा और वहाँ पहुचते ही मैने अरुण,सौरभ को ढूँढा लेकिन दोनो वहाँ से लापता थे...इसलिए मैं कॅंटीन मे जाकर एक टेबल पर चुप-चाप बैठ गया और भूख से तिलमिलाते अपने पेट को शांत करने के लिए कॅंटीन वाले को ऑर्डर दे दिया....
कॉलेज मे जिस नये गॅंग की बात राजश्री पांडे कर रहा था , यदि वो इस वक़्त कॅंटीन मे मौजूद होते तो उनसे मुलाक़ात करने का ये मेरा पहला मौका होता....मैं उन लौन्डो से इसलिए भी मिलना चाहता था क्यूंकी उन्होने पिछले हफ्ते ही सिटी मे रहने वाले फर्स्ट एअर के एक लड़के को मारा था,जिसकी इन्फर्मेशन मुझे पांडे जी ने ही दी थी....
मैं जब तक अपना पेट भरता रहा तब तक कॅंटीन मे सब कुच्छ नॉर्मल ही रहा लेकिन जब मैं अपना बिल पे करने काउंटर पर गया तो तभी पूरी कॅंटीन मे कुच्छ लड़के तालिया बजा-बजा कर ज़ोर से हँसने लगे....अब ये तो फॅक्ट है कि जब कोई ऐसी बक्चोदो वाली हरकत करेगा तो सबकी नज़र उसी पर जाएगी...इसलिए उस वक़्त मेरे साथ-साथ कॅंटीन मे मौज़ूद सभी स्टूडेंट्स की आँखे उन्ही लड़को पर टिक गयी...जो एक लड़की पर हंस रहे थे....बाद मे मुझे पता चला कि उन लौन्डो ने अपना झूठा पानी उस लड़की के ग्लास मे डाल दिया था और फिर उसका मज़ाक उड़ा रहे थे....
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"आप लोग कुच्छ बोलते क्यूँ नही इन्हे..."काउंटर पर बैठे हुए शाकस की तरफ अपने बिल के पैसे सरकाते हुए मैने कहा...
"अब एक दो बार की बात हो तो ,हम कुच्छ करे भी...लेकिन ये तो हर दिन का नाटक है...दो दिन पहले यही लड़के कॅंटीन मे काम करने वाले एक लड़के से लड़ पड़े थे और उसे दो-तीन हाथ भी जमा दिए..."
"प्रिन्सिपल के पास शिकायत क्यूँ नही की आपने..."
"अरे भाई...अपने को खाना-कमाना भी है...कौन पंगा ले इन लड़को से...गरम खून है ना जाने हमारा क्या नुकसान कर बैठे..."
"बिल भरते है वो लड़के या फिर ऐसे ही फ्री फोकट मे खाते है..."
"उनके बाप का राज़ है क्या...जो मुफ़्त मे खाएँगे..."काउंटर के पास कॅंटीन मे ही काम करने वाला एक आदमी खड़ा होते हुए झल्लाया...."तुमको तो चार साल से देख रहे है...कुच्छ बोलते क्यूँ नही इन्हे..."
"दुनिया बड़ी ज़ालिम है मेरे भाई...फ्री मे कोई कुच्छ नही करता...मेरे बिल के पैसे वापस करो तो मैं अभी एक मिनिट मे इन्हे ठीक कर दूं...."
"अब क्या पेट पे लात मारोगे भाई...चलो एक काम करना,कल पैसे मत देना...."
"ओके बेबी...."मैने गॉगल्स अपने आँखो मे लगाया और वही काउंटर के पास खड़ा होकर सोचने लगा कि मुझे क्या करना चाहिए....
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इस दौरान वहाँ उनके पास एक और लड़का आया , जिसने पास के एक लड़के को ज़मीन मे गिराकर उसकी चेयर खींच ली और शान से बैठ गया....जो लड़का ज़मीन पर गिरा था ,उसपर सब हंस रहे थे,सिवाय उस लड़की के ,जिसके ग्लास मे उन लौन्डो ने झूठा पानी डाला था....
.वो लड़का जो ज़मीन पर गिरा था वो दूसरे पल ही शर्मिंदगी के कारण अपना सर झुकाए हुए खड़ा हुआ और आँखो मे आँसू लिए कॅंटीन से बाहर गया...
गॉगल लगाए हुए मैं धीरे-धीरे उनकी तरफ बढ़ा और जिस लड़के ने अभी एक लड़के को नीचे गिराया था उसके सर पर पीछे से एक जोरदार चाँटा मारा और जब गुस्से से वो पीछे मुड़ा तो कॉलर पकड़ कर उसे मैने ज़मीन पर गिरा दिया....
"सॉरी दोस्तो....मुझे एक चेयर चाहिए थी,इसलिए ऐसा करना पड़ा...एनीवे माइसेल्फ अरमान........नाम तो सुना ही होगा
मैं उनके ही टेबल पर उन्ही मे से एक को नीचे ज़मीन पर गिरा कर बैठा...उस गिरे हुए लौन्डे को मिलाकर वो पाँच थे और अब कॅंटीन मे मौज़ूद सभी लोग उनकी बात पर हँसने की बजाय उनपर हंस रहे थे....जिस लड़के को मैने नीचे गिराया था वो गुस्से से उबलते हुए मेरे बगल मे ही खड़ा हो गया....बाकी बचे चार लौन्डे अपने क्रोध को दबाए हुए चुप-चाप बैठे थे....
मैने उनलोगो को मुझे अंदर ही अंदर गालियाँ देते हुए सोचा कि सालो को पेलकर सीधे वहाँ से भगा दूं लेकिन फिर ख़याल आया कि अपने ही कॉलेज के लौन्डे है इसलिए इस बार जाने देता हूँ...
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"तुम लोगो के ग्रूप मे सिर्फ़ पाँच ही है या कोई और भी पहलवान है..."पाँचो की तरफ देखते हुए मैने कहा"एक फाइनल एअर का है,एक थर्ड एअर का है...दो लौन्डे सेकेंड एअर के लग रहे है...और इस लुल्लू को पहली बार देख रहा हूँ...तू फर्स्ट एअर से है क्या बे..."
"ह...हां..."
"ये तेरे सामने प्लेट मे जो समोसा और चटनी रखा है वो झूठा है क्या..."
"नही..."पहले की तरह इस बार भी उस फर्स्ट एअर वाले ने एक वर्ड मे ही जवाब दिया....
"तो एक काम कर बेटा, चुप चाप निकल और फिर कभी कॅंटीन मे दिखा तो तुझे समोसा और चटनी बनाकर पूरे कॅंटीन मे बाटुंगा...अब चल भाग यहाँ से.."
मेरे कहने के बावजूद भी वो फर्स्ट एअर वाला लौंडा वही बैठा रहा और अपने गॅंग के बाकी मेंबर्ज़ की तरफ इस आस से देखने लगा कि उसके सीनियर्स मुझे कुच्छ जवाब देंगे.....
"कोई बात नही...आराम से बैठकर आपस मे सलाह मशवरा कर लो कि आगे क्या करना है...तब तक मैं समोसा ख़ाता हूँ...और एक दम रिलॅक्स होकर सोचना ,क्यूंकी समोसा डकारने के बाद मैं रिलॅक्स नही होने दूँगा...."बोलते हुए मैने सामने टेबल पर रखी प्लेट उठाकर अपने सामने रख ली.....
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कॅंटीन मे एका एक जबर्जस्त शांति छा गयी और सबकी नज़र हमारी तरफ आ टिकी...जिसके कारण यदि वो लड़के चुप चाप उठकर वहाँ से जाते तो उनकी घोर बेज़्जती होती...इसलिए उन्होने भी अपना थोड़ा दम दिखाना शुरू कर दिया....उनमे से फाइनल एअर मे जो था उसने मुझसे कहा कि मैं बात को आगे ना बढ़ाऊ और चुप चाप वहाँ से चला जाउ.....
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