RE: Porn Hindi Kahani दिल दोस्ती और दारू
शुरू मे तो मैने सबसे पहले अपना शर्ट उतारा और शर्ट को कमर पर बाँधा...फिर सोचा कि अब इस लौंडिया को इसकी करनी की सज़ा दी जाए....मैने आंजेलीना का थोबड़ा पकड़ा और उसके हाथ से चाकू छीन कर दूर फेक दिया....उस दौरान एक बार मेरे मन मे ये भी ख़याल आया कि साली को यही पटक कर जबर्जस्ति चोद दूं...लेकिन अब ना तो मुझे वो पसंद थी और ना ही उसकी खूबसूरती मुझे रास आ रही थी...
मैने उसका थोबड़ा अपने हाथ से दबाया और बोला....
"एक झापड़ मारकर तेरी सारी होशियारी वही घुसा दूँगा ,जहाँ से तू निकली है...सेक्स नही करना था तो सीधा सॉफ मना कर देती ,यहाँ लाकर चाकू घुसाने की क्या ज़रूरत थी...और तूने अपने आप को समझ क्या रखा है बे...जो ऐसा करने का सोचा...शुक्र मना कि मैं हूँ वरना कोई दूसरा होता तो तुझे पटक-पटक कर यही चोदता... यदि तेरा ये चाकू थोड़ा और अंदर घुसता तो मेरा तो उपर का टिकेट कट गया होता...,तुझे क्या,तू तो यहाँ से चुप चाप खिसक लेती... और तू मुझे लड़कियो की पॉवर दिखाना चाहती है तो सुन...यदि मेरा दिमाग़ सटक गया तो तेरे पेट मे घूमा के ऐसा घुसा मारूँगा कि सारी दवाई फिर तेरे पेट का इलाज नही करा पाएगी....और तूने क्या कहा कि मैं आज के बाद तुझसे बात ना करूँ...अरे लवडा आज के बाद यदि मेरी आँखो ने तुझे भूल से भी देख लिया तो मैं अपनी आँखे फोड़ लूँगा....पता नही कहाँ-कहाँ से चली आती है,सौरभ सही कहता है कि इन लड़कियों को हमेशा चोदते रहना चाहिए तभी साली औकात मे रहती है..."बोलकर मैने आंजेलीना को पूरी ताक़त से पीछे धकेला .जिसके बाद उसके नीचे गिरने की आवाज़ आई और साथ मे एक चीख भी सुनाई दी....आंजेलीना ज़ोर से चीखी थी लेकिन फिर भी मैं नही रुका और अपने मोबाइल की रोशनी मे आगे बढ़ने लगा......
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मेरा माथा बहुत गरम था और मैं बिना कुच्छ सोचे समझे आंजेलीना को गालियाँ बकते हुए आगे बढ़ता चला जा रहा था कि ,तभी मुझे आंजेलीना की आवाज़ सुनाई दी....
"क्या हुआ...साली कहीं मरने वाली तो नही...मरने दो ,एमसी इसी लायक है ,बकल..."बड़बड़ाते हुए मैं फिर आगे बढ़ा...
"हेल्प....हेल्प...अरमान..."
"इसकी तो...मरवाएगी ये लवडी इतनी ज़ोर से चीखकर...एक बार देखकर आता हूँ कि क्यूँ ये अपना गला फाड़ रही है..."
जब आंजेलीना की चीखे और तेज़ होने लगी तो मैने वापस जंगल की तरफ टर्न मारा...क्यूंकी मुझे डर था कि यदि उसे कुच्छ हुआ तो लवडा फसूँगा तो मैं ही
"क्या हुआ...क्यूँ इतना भौक रही है..."आंजेलीना के पास पहूचकर मैने रूखी आवाज़ मे उससे पुछा....
"तुम्हे शरम नही आती,एक लड़की को इतनी ज़ोर से धक्का देते हुए...मैं इतनी ज़ोर से गिरी हूँ कि अब खड़ी तक नही हो पा रही..."
"यही बात मुझे चाकू मारते समय सोचा होता तो ऐसा नही होता...अब समझ मे आया कि मुझे कितना दर्द हुआ होगा..."
"आइ'म सॉरी...लेकिन अब मुझे जल्दी से उठाओ...मुझे कॅंप पहुचना होगा...वरना बहुत बड़ी आफ़त हो जाएगी..."
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पहले मैने सोचा कि उसे उसके ही हाल पर छोड़ दूं लेकिन बाद मे ध्यान आया कि अगर इसे कुच्छ हुआ तो जान मेरी ही जाएगी...इसलिए मैने ना चाहते हुए भी अपने दिल पर हज़ार टन का पत्थर रखा और उसे उठाकर कर चुप चाप कॅंप की तरफ बढ़ा....
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"आगे बोल बे...रुक क्यूँ गया..."जब मैं रुका तो वरुण बोला...
"थक गया यार ,कहानी सुनते-सुनते...अब नींद आ रही है..."मैं वहाँ से उठा और सीधे बाल्कनी पर पहुच गया....
"मुझे ऐसा क्यूँ लग रहा है कि तू मुझे एडा बना रहा है..."मुझपर शक़ करते हुए वरुण भी मेरे पीछे-पीछे बाल्कनी पर आ गया...
"अरुण से पुछ ले...यदि तुझे यकीन ना हो तो..."
"अरुण से क्या पुच्छू...वो तो तेरी हां मे हां मिला देगा...साले गे-पार्ट्नर जो ठहरे तुम दोनो...."
"फिर तो एक ही तरीका है ,तुझे यकीन दिलाने का..."बोलते हुए मैने अपना शर्ट उतरा और कमर पर बना हुआ सिल्वा जी के चाकू का निशान वरुण को दिखाया.....
"कमाल है यार...मतलब सच मे उस एमबीबीएस वाली ने तेरे अंदर चाकू पेल दिया था...बहुत डेरिंग लड़की थी वो...यदि वो तेरे कॉलेज मे रहती तो पक्का तुझे सुधार देती. फिलहाल तो ये बता कि फिर आगे क्या हुआ..."
"आगे क्या हुआ ,वो कल...मेरा मुँह दुख रहा है बोलते-बोलते...जा एक पेग दारू ला "
"कॅंप वाला चॅप्टर ख़त्म तो कर दे...प्लीज़ "
"उसके बाद कुच्छ खास नही हुआ...मैं और आंजेलीना साथ-साथ कॅंप मे तो आए ,लेकिन हमने फिर एक-दूसरे से एक शब्द भी नही कहा...कभी-कभी वो मुझे देखती...लेकिन मैने उसे पलट कर देखा तक नही....जिस वक़्त वो अपने कॅंप जा रही थी उस वक़्त उसने मुझसे कहा था कि मैं अपने घर पहूचकर इंजेक्षन लगवा लूँ ताकि घाव सूख जाए...और फिर..."
"और फिर...क्या "
"और फिर वो अपने कॅंप मे लन्गडाते हुए चली गयी...वो आख़िरी बार था जब मैने उसे देखा था...उसके बाद वो मुझे कभी नही दिखी..."
"कभी नही दिखी का क्या मतलब...उसके अगले दिन क्या वो कॅंप से बाहर नही निकली थी क्या..."
"अगले दिन...."बाल्कनी से बाहर देखते हुए मैने कहा"अगले दिन जब मेरी आँख खुली तो उसका कॅंप हट चुका था...मतलब कि एमबीबीएस वाले मेरे आँख खुलने से पहले सुबह-सुबह ही वहाँ से चले गये थे...हमे भी उसी दिन वापस लौटना था...लेकिन हमारे प्लान के मुताबिक़ हम लोगो ने दोपहर को वो जगह छोड़ी और रात के 11 बजते तक वापस कॉलेज पहुच गये....इस दौरान मेरे दिमाग़ मे पूरी तरह से सिर्फ़ और सिर्फ़ आंजेलीना छाइ रही...जिसकी सबसे बड़ी वजह मेरे कमर का घाव तो जो जाते वक़्त आंजेलीना ने मुझे दे दिया था....उस वक़्त भले ही मुझे उसपर गुस्सा आया था लेकिन अब जब भी उस पल को ,उस 24 साल की लड़की को याद करता हूँ तो एक मुस्कान दिल पर छा जाती है और दिल से सिर्फ़ एक ही आवाज़ निकलती है कि 'काश...वो लड़की मेरे कॉलेज मे पढ़ती'..."
चॅप्टर-43:प्लॅन्स आक्टिव अगेन
आंजेलीना के द्वारा दिए हुए ज़ख़्म ने मुझे कुच्छ दिनो तक अपनी चपेट मे पकड़े रखा ,लेकिन घाव ज़्यादा गहरा नही था इसलिए मैं एक हफ्ते के अंदर ही फिट-फट हो गया था...आंजेलीना ने मेरी कमर मे जो चाकू घुसेड़ा था उसकी वजह से मैं कुच्छ दिनो तक बुखार से परेशान रहा...जिसके कारण मैं नेक्स्ट वीक मे कयि दिन कॉलेज तक नही जा सका....मेरे खास दोस्तो ने उस ज़ख़्म के बारे मे पुछा कि मेरी कमर मे ये चोट कैसे लगी...उस वक़्त यदि मैं उनको सच बता देता तो मुझे पूरा यकीन है कि वो सब मुझे धिक्कार्ते इसलिए मैने झूठ बोल दिया कि ' आंजेलीना को अंधेरे जंगल मे पेड़ के सहारे चोद्ते वक़्त पीछे वाले पेड़ का नुकीला हिस्सा चुभ गया था...'
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मेरे इस जवाब के बाद तो मेरे और भी फॅन बन गये और अब तो जूनियर्स अक्सर मुझसे लड़की पटाने की टिप्स भी लेने के लिए आने लगे थे...लेकिन उन फलो को कौन बताए कि मेरा काम तो मेरे हाथ से ही चल रहा है.....
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आंजेलीना के द्वारा दिए गये घाव को पूरी तरह भरने मे कयि हफ्ते लग गये और खुद आंजेलीना मेरे दिल-ओ-दिमाग़ मे कयि महीनो तक छाइ रही...लेकिन फिर जैसे-जैसे दिन बीतता गया आंजेलीना पुरानी किताब की तरह हो गयी थी ,जो अक्सर एक किनारे पर पड़े-पड़े धूल खाती रहती है...ठीक उस धूल खाती किताब की तरह मैने भी आंजेलीना और आंजेलीना की यादों को अपने अंदर दफ़न कर दिया,क्यूंकी आंजेलीना की यादो को ज़िंदा रखने की कोई खास वजह मेरे पास नही थी....
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कॅंप मे जो कुच्छ भी हुआ...उसकी चर्चा पूरे कॉलेज मे तो कुच्छ दिनो तक हुई,लेकिन फिर बाद मे सभी ,सब कुच्छ भूलकर अपने वर्तमान मे जीने लगे...
कॉलेज वापस आकर मैं भी बहुत खुश हुआ था, वैसे तो हमलोग सिर्फ़ तीन दिन के लिए कॉलेज से दूर गये थे,लेकिन मैं खुश इतना था जैसे कि तीन जनम के बाद आज मैं वापस अपने कॉलेज मे आया हूँ...मैं खुश इसलिए भी था क्यूंकी कल से अपनी ज़िंदगी फिर उसी जानी पहचानी नापी-तुली ट्रॅक पर चलने वाली थी और तीन तीनो के बाद फाइनली मैं अपने कॉलेज ठीक-तक तरीके से पहुच ही गया था ,जहाँ 'अरमान' शब्द सिर्फ़ मेरा नाम नही, बल्कि एक ब्रांड था...वो भी नंबर.1 ब्रांड
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फोर्त सेमेस्टर मे मैं 12 सब्जेक्ट्स के एग्ज़ॅम देकर थर्ड एअर मे आया था. इसलिए मेरा विचार तो यही था कि जैसे मस्ती भरी ज़िंदगी मैने शुरू के दो साल मे बिताए थे ,वैसे ही बाकी के दो साल भी गुज़ारुँगा...लेकिन थर्ड एअर मे आते ही मुझे खुद लगने लगा कि 'लवडा इसके बाद सिर्फ़ एक साल और बचा है और यदि अब सीरीयस नही हुए तो फिर पूरी ज़िंदगी सीरीयस रहना पड़ेगा...इसलिए बाकी सब चुतियापे को साइड करके सिर्फ़ और सिर्फ़ पढ़ाई पर ध्यान देते है....'
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अपने इसी सोच को सच की शक्ल देने के लिए मैने थर्ड एअर की शुरुआत मे कुच्छ प्लॅन्स बनाए थे लेकिन तीन दिनो की कॅंप की मस्ती और एश के करीब आने की चाह मे मैने अपने ही प्लॅन्स की गान्ड मार ली थी...
कॅंप मे जाने का मेरा जो प्रमुख उद्देश्य था,वो तो पूरा नही हुआ...उल्टा लेने के देने पड़ गये,वो अलग....
कॅंप से वापस आने के बाद मैने अपने बॅच के लौन्डे-लौंदियो मे एक जबरदस्त उत्साह देखा...और वो उत्साह 'गेट' के एग्ज़ॅम के लिए था...साला जिसे देखो वही गेट के लास्ट एअर के कटफ ,कॉलेजस के बारे मे बात करता था...कोई 'मेड ईज़ी' के गाते के नोट्स खरीद रहा था तो कोई इंटरनेट से सिर्फ़ और सिर्फ़ स्टडी मेटीरियल डाउनलोड कर रहा था....जिधर देखो ,उधर कॉंपिटेटिव एग्ज़ॅम्स का साया दिखता था...तब मुझे अहसास हुआ कि इन सबमे मैं कही पीछे छूट रहा हूँ...क्यूंकी ना तो मैने दूसरो की तरह किसी नामी-गिरामी कोचिंग क्लासस के नोट्स लिए और ना ही मैने गेट , कॅट की कोचैंग क्लासस जाय्न की....इन सबके आलवा मैं जब भी गूगल महाराज के दर्शन करता तो सिर्फ़ और सिर्फ़ पॉर्न वीडियोस और मूवी डाउनलोड करता....कॅंप के बाद की कॉलेज लाइफ ने मुझे बहुत डरा दिया था...मुझे अब सपने मे एश के साथ-साथ ,गेट एग्ज़ॅम के मनगढ़त एग्ज़ॅम सेंटर दिखने लगे थे...और जब ये डर मेरे अंदर बढ़ता गया तो मैने भी देल्ही से गेट के नोट्स मॅंगा लिया और नेक्स्ट सेमेस्टर से गेट की कोचैंग जाय्न करने का फ़ैसला किया.....
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मेरा डर मुझपर इस्कदर हावी नही होता यदि हमे मोटीवेट करने के लिए तरह-तरह के सेमिनार आयोजित नही किए जाते तो...सेमिनार मे लेक्चर देने वालो को कॉलेज मे इसलिए बुलाया जाता था ताकि स्टूडेंट्स मोटीवेट हो...लेकिन साला मुझपर तो उन सेमिनार्ज़ का उल्टा ही असर हो रहा था क्यूंकी पहले पूरे टाइम सिर्फ़ और सिर्फ़ टॉपर्स की बाते करते थे...एग्ज़ॅम मे धक्के-मुक्के लगाकर पास होने वाले मुझ जैसे स्टूडेंट्स के लिए सेमिनार मे लेक्चर देने वालो के पास कुच्छ नही था ,इस कारण जब भी कोई सेमिनार ख़त्म होता तो एक सवाल मैं हर बार खुद से पुछ्ता कि'एक साल बाद मेरा क्या होगा ?'
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मेरा दिमाग़ पूरे सेमिनार बस उन महापुरषो को गाली देने मे गुज़रता ,जो बीसी हम जैसे स्टूडेंट्स की बात ही नही कर रहे थे....हर सेमिनार की शुरुआत कुच्छ जाने-पहचाने या फिर कहे कि कुच्छ बेहद ही घिसे-पिटे सवाल से शुरू होती थी....जैसे कि 'आपने इंजिनियरिंग फील्ड क्यूँ चुना'
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और एक सेमिनार के दौरानी यही सवाल तलवार बनकर मेरा गला काटने को तैयार हुआ. आक्च्युयली हुआ कुच्छ यूँ था कि एक सेमिनार की स्टार्टिंग मे बढ़िया सूट-बूट पहने एक आदमी ने मेरी तरफ इशारा किया और मुझसे पुछा कि'तुमने अपने करियर के लिए इंजिनियरिंग फील्ड ही क्यूँ चुना '
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अब बीसी ,मेरी फट के हाथ मे आ गयी ,क्यूंकी क्लास मे खड़े होकर बक्चोदि भरे जवाब देना अलग बात थी और यहाँ इतने लोगो के बीच कुच्छ बोलना अलग बात थी...शुरू-शुरू मे मैने सोचा कि रनछोड़ दास छान्छड की तरह मैं भी ये कह दूं कि'सर,मुझे बचपन से मशीनो से प्यार था...........' .लेकिन फिर बाद मे सोचा कि इस साले ने भी तो '3 ईडियट्स' देखी होगी...कही लवडा इन्सल्ट ना कर दे....
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"कमोन, सबको बताओ कि तुमने इंजिनियरिंग करने का फ़ैसला क्यूँ किया...घरवालो ने मैथ दिला दिया इसलिए इस लाइन पर आए या फिर बाइयालजी पल्ले नही पड़ती थी...इसलिए इधर टपक पड़े..."जब मैं चुप-चाप खड़ा था तो सेमिनार के प्रमुख वक्ता ने मेरी खीचाई की....
"मैने इंजिनियरिंग को एक अच्छी नौकरी के लिए चुना, एक अच्छी लाइफ के लिए चुना, अच्छे पैसे के लिए चुना और इन सबसे बड़ी वजह मैने इंजिनियरिंग, एक अच्छी लड़की के लिए चुना...."मुझे उस वक़्त जो सूझा वो मैने फटाफट बोल दिया...
"गुड...यही एम मेरा भी था ,सिट डाउन.."
और फिर मैं पूरे शान-ओ-शौकत के साथ बैठा....एक बात जो बतानी ज़रूरी है वो ये कि मेरा डर सिर्फ़ मेरे तक ही सीमित था ,बाकियो के लिए मैं पहले वाला ही घमंडी और मार धाड करने वाला अरमान था...यानी कि मेरा आटिट्यूड, मेरा रुतबा जो कॉलेज मे पहले था वो मेरे अंदर डर के इस घने भूचाल के बाद भी कायम था....क्यूंकी मेरे कॉलेज मे 'अरमान' शब्द सिर्फ़ एक नाम नही बल्कि एक ब्रांड था ,वो भी नंबर.1 ब्रांड
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इस बीच हमारे लास्ट सेमेस्टर के रिज़ल्ट आए और हर बार की तरह इस बार भी यूनिवर्सिटी मुझपर मेहरबान दिखी...लेकिन हद तो तब हो गयी,जब मैने देखा कि मैं पूरे के पूरे 12 सब्जेक्ट्स मे पास हो गया था...बोले तो आइ वाज़ वेरी हॅपी
मेरे इस रिज़ल्ट से सबको बहुत जोरदार झटका लगा, मेरे चाहने वाले जहाँ इस जोरदार झटके से अति-प्रसन्न थे वही मुझसे नफ़रत करने वालो को मेरे एग्ज़ॅम के रिज़ल्ट ने ऐसा झटका दिया था कि उनकी सिट्टी पिटी गुम हो गयी थी और कॉलेज मे मेरी टीआरपी मे जबर्जस्त बढ़ोतरी हुई थी....और मैं...मैं तो खुश ही होऊँगा ना,भला पास होकर कोई दुखी होता है क्या
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मेरे सीपीआइ अब चार सेमेस्टर के बाद 7.5 टच कर चुका था और मेरे रिज़ल्ट ने मुझे दोबारा से अपने प्लॅन्स को आक्टीवेट करने के लिए मजबूर किया...और मैने बिना किसी देरी के अपने प्लॅन्स ,जो कि कॅंप मे जाने के कारण टूट कर बिखर गये थे, उन्हे दोबारा जोड़ा और आक्टीवेट किया....उस सेमेस्टर मैने पेलाम पेल पढ़ाई तो नही की लेकिन फिफ्थ सेमेस्टर के एग्ज़ॅम मेरे अब तक के इंजिनियरिंग लाइफ मे सबसे अच्छे बीते थे और ये फर्स्ट टाइम था,जब मैं अपना सीना ठोक कर बोल सकता था कि 'किसी का बाप भी मुझे फैल नही कर सकता...चाहे कोई कितना भी हार्ड कॉपी चेक करे '
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"अरमान ,लंच के बाद क्लास बंक करके मूवी देखने चलेंगे..."चलती क्लास के बीच मे अरुण ने एक कागज पर ये लिखा और मेरी तरफ कागज का टुकड़ा सरकाया....
मन तो मेरा भी था कि मूवी देखने चला जाए ,क्यूंकी ये तो 6थ सेमेस्टर की शुरुआत है और थोड़ी बहुत मस्ती तो चलती रहती है...लेकिन तभी मेरे 1400 ग्राम के दिमाग़ ने प्लान नंबर.4 का
अरुण से पहली बार मेरी दोस्ती कॉलेज मे हुई थी और दूसरी बार यहाँ नागपुर मे...अरुण जिस दिन से नागपुर आया था,उसी दिन से मुझे मालूम था कि एक दिन वो हँसते-मुस्कुराते मुझे 'गुड बाइ' कहेगा और चला जाएगा.
और आज 7 दिन तक नागपुर मे रहने के बाद अरुण जा रहा था,लेकिन उसने अभी तक मुझे 'गुड बाइ' नही कहा था.जब मैं मैं और वरुण ,अरुण को रेलवे स्टेशन तक छोड़ने जा रहे थे तब वो पूरे रास्ते खुद को बहुत कूल,बिंदास दिखा रहा था.वो ऐसा बर्ताव कर रहा था,जैसे की उसे मुझसे दूर जाने मे कोई फ़र्क नही पड़ रहा है....लेकिन हक़ीक़त तो कुच्छ और थी..........
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"वरुण ,तू एक काम कर,जाकर टीसी को पकड़ और मथुरा तक की टिकेट जुगाड़ कर...."जिस प्लॅटफॉर्म पर ट्रेन खड़ी थी वहाँ पहुचते ही मैने वरुण से कहा...
"मैं भी यही सोच रहा था..."मुझे दाँत दिखाते हुए वरुण टिकेट का जुगाड़ करने चला गया....
वरुण के जाने के बाद मैने अरुण की तरफ देखा और बोला"दुआ कर लवडे कि टिकेट का जुगाड़ हो जाए,वरना जनरल डिब्बे मे तो तू चुदा...."
"ट्रेन मे भीड़ देखकर मुझे अब ऐसा लग रहा है कि मुझे यहाँ आना ही नही चाहिए था...साला मैं दो ही चीज़ो से डरता हूँ ,पहला एग्ज़ॅम के रिज़ल्ट से और दूसरा ट्रेन की भीड़ से...."
"रो मत,जुगाड़ हो जाएगा...वैसे तूने सही कहा कि तुझे यहाँ नही आना चाहिए था..पूरे 7 दिन तक तूने मुझे बोर किया...मेरा दिमाग़ खाया..अब जब तू जा रहा है तो आइ आम वेरी हॅपी...."
"ज़्यादा बोलेगा तो यही पर शाहिद कर दूँगा....."
"मज़ाक कर रहा था जानेमन...दिल पे मत ले, कही और ले..."
"घुमा के अपने पिछवाड़े मे ले ले...ये डाइलॉग बाज़ी अपुन से नही.... "ये बोलते वक़्त अरुण को अचानक कुच्छ याद आया और वो टपक से बोला"जानता है बे, मैं जहाँ काम करता हूँ...वहाँ अपने साथ वालो को कॉलेज के दिनो के डाइलॉग मार-मार कर छोड़ देता हूँ....अभी कुच्छ हफ़्तो पहले की बात है, मेरे साथ जाय्न हुए एक लौंडा मुझसे किसी टॉपिक पर बहस कर रहा था तो मैने उसे कहा कि 'म्सी, दिमाग़ खराब मत कर...वरना एक बार लंड फेक के मारूँगा तो तेरा पूरा खानदान चुद जाएगा तेरा'....जानता है उसके बाद क्या हुआ..."
मैने अपनी गर्दन दो बार ना मे हिला दी और जमहाई लेकर अरुण को इनडाइरेक्ट्ली बताने लगा कि मैं उसकी बकवास मे इंट्रेस्टेड नही हूँ.....
"उसके बाद से साला मुझसे बात ही नही करता...बीसी ,चूतिया "
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इसके बाद मैं चुप ही रहा लेकिन अरुण को हर दो मिनिट के बाद एक दौरा पड़ता और वो ऐसी ही घिसी-पिटी कहानी मुझे सुना रहा था....
मैं वैसे तो उसकी बकवास सुनना नही चाह रहा था लेकिन साथ मे मैं ये भी चाहता था कि वो ऐसी ही बाते करके चला जाए...मैं चाहता था कि वो , वो सब बाते ना करे जिसके बारे मे मैं उससे बात नही करना चाहता था....लेकिन साले ने जाते हुए आख़िरकार मेरी दुखती नस को दबा ही दिया....
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"अरमान,याद है तूने एक बार कहा था कि तू मूवी इसलिए देखता है ताकि यदि तेरी लाइफ मे कभी वैसी प्राब्लम आए तो तू वैसी ग़लती ना करे जो मूवी के कॅरेक्टर्स ने की थी...."
"कहा था...तो ? "
"फिर तूने वैसी ग़लती क्यूँ की..."
"मैं कुच्छ समझा नही..."दूसरी तरफ देखते हुए मैने कहा ....
"तुझसे अच्छा कौन समझ सकता है इस बारे मे....मैं एश के बारे मे बात कर रहा हूँ..."
"डेड टॉपिक्स पर मैं फालतू की डिस्कशन नही करता..."अरुण की तरफ देख कर मैने कहा"और तुझे ये बात जितनी जल्दी समझ मे आएगी उतना ही ठीक रहेगा...."
"किसी को नज़र अंदाज़ करने से वो ख़त्म नही हो जाती...और यदि एश तेरे लिए डेड टॉपिक ही है तो आज तक तेरे मोबाइल मे उसके द्वारा तीन-तीन डिफरेंट लॅंग्वेज मे बोले गये ,आइ लव यू...वाला वीडियो अभी तक क्यूँ है..."
अरुण ने मेरा मुँह बंद कर दिया था ,मुझे अब कुच्छ नही सूझ रहा था कि उससे क्या कहूँ और मैं अपने होंठो के भीतरी भागो को अपने दाँत से चबाने लगा....
"तू मुझसे गले मिलकर जाएगा या फिर मुझसे लात-घुसे खाकर...."मैने हँसते हुए कहा....
"तू वक़्त बेवक़्त सिचुयेशन के अकॉरडिंग आक्टिंग बहुत अच्छी कर लेता है...लेकिन मेरे सामने नही...इसलिए अब हसना छोड़ और जवाब दे"
"अरुण....."कुच्छ देर रुक कर मैने आगे कहा"लड़कियो को लेकर,मेरा फंडा हमेशा क्लियर था कि यदि लड़की दूर जा रही है तो फिर उसे पाने के लिए अपना जी-जान लगा दो या फिर उसे भूल जाओ....8थ सेमेस्टर के बाद ,जब एश मेरी ज़िंदगी से चली गयी तो मैने दूसरा रास्ता चुना...क्यूंकी वही रास्ता मुझे आसान लगा...लेकिन....बाद मे मुझे पता चला कि मैं 8थ सेमेस्टर के बाद चाहे कोई सा भी रास्ता चुनता ,वो ग़लत ही होता क्यूंकी मेरी मंज़िल ही ग़लत थी....और यही हुआ..."
"कोई रास्ता ग़लत नही होता,अरमान..हर रास्ता हमे किसी ना किसी मंज़िल से जोड़ता ही है...अब तू अपने दूसरे रास्ते को ही देख ले, एश की जगह तुझे निशा मिल गयी..."
"निशा....लेकिन..."
"लेकिन-वेकीन कुच्छ नही...बस तू अपने दिल मे निशा को एश की जगह रीप्लेस्मेंट कर दे...और हमारा प्रोफेशन भी तो वही है कि जब किसी मशीन मे कोई पार्ट खराब हो जाता है तो हम उस खराब पार्ट का शोक मनाने की बजाय ,दूसरे पार्ट से रीप्लेस्मेंट कर देते है...."
"पर मैं कोई मशीन नही..."
"अबे मान ले ना की तू मशीन है..ठीक उसी तरह जैसे ज़िंदगी भर हम हर सवाल मे 'X' को मानते आए है...."
"काफ़ी अच्छे-अच्छे डाइलॉग्स मारने लगा है तू...."अरुण के सामने अपने हथियार डालते हुए मैने कहा...
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"तू जानता है...आज मैं बहुत खुश हूँ, क्यूंकी मैने पहली बार तुझे मुँह-चोदि मे हरा दिया लेकिन मैं दुखी भी हूँ क्यूंकी वरुण अभी तक नही आया और ट्रेन की भीड़ देखकर मेरा खून सूख रहा है...."
"चिंता मत कर मैं यूनिवर्सल डोनर हूँ....ब्लड डोनेट कर दूँगा तुझे...."
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अरुण ने घड़ी मे टाइम देखा और उदास भरी निगाह मुझपर डाली. ट्रेन को छूटने मे अब सिर्फ़ 20 मिनिट्स ही बाकी थे कि तभी पसीने से नाहया हुआ मेरा रहीस दोस्त वरुण मुझे प्लॅटफॉर्म पर आते हुए दिखाई दिया...
मुझे नही पता कि वरुण ने इतनी भाग दौड़ कभी खुद के लिए भी की होगी या नही...लेकिन वो आज मेरे सबसे खास दोस्त के लिए इधर से उधर भाग रहा था...तब मुझे लगा कि ज़िंदगी की यही छोटी-छोटी घटनाए वास्तव मे हमारी संपत्ति होती है,जिसे हमे कभी नही खोना चाहिए.....
अरुण के लिए टिकेट का जुगाड़ हो गया था और उसके जाने के बाद जब मैं और वरुण वापस अपने रूम की तरफ आ रहे थे...तो वरुण ने कार ड्राइव करते हुए मुझसे पुछा....
"यार, सेवेंत सेमेस्टर तक की कहानी तो तूने सुना दी...लेकिन विभा मॅम को तो तूने अभी तक नही चोदा ....साले कितना आलसी था तू "
"पर यही सच है...किसी के पसंद करने या ना करने से मैं अपनी कहानी नही बदलने वाला..."
"ओके बेबी...8त सेमेस्टर का थोड़ा इंट्रोडक्षन दे दे...बोले तो ट्रेलर दिखा दे थोड़ा..."
"अभी नही...पहले मैं निशा से मिलिंगा और फिर बाद मे 8थ सेमेस्टर पर पहुचूँगा....साला दिल बहुत उदास है,अरुण के जाने से..."
"वरुण एक काम कर..."जब कार कॉलोनी के अंदर घुसी तो मैने वरुण से कहा....
"बोलो मालिक..."
"तू अपना मोबाइल मुझे दे...कुच्छ इंपॉर्टेंट काम है..."
"घंटा इंपॉर्टेंट काम है...तू ज़रूर उसे कॉल करने के लिए मुझसे मोबाइल माँग रहा है..."
मैने सोचा कि वरुण मज़ाक मे घंटा-वंता कर रहा है ,इसलिए मोबाइल लेने के लिए मैने अपना हाथ उसकी तरफ बढ़ाया ,लेकिन वरुण ने मुझे अपना मोबाइल देने की बजाय...मेरे हाथ को दूर झड़क दिया....
"चोदु है क्या..."
"मुझे एक आर्तिकल लिख कर कुच्छ दिनो मे सब्मिट करना है, और मुझे मेरे मोबाइल की ज़रूरत पड़ सकती है..."
"मैं लिख दूँगा...लेकिन अभी मुझे अपना मोबाइल दे..."
"शकल देखी है, बड़ा आया आर्टिकल लिखने वाला....बेटा वहाँ म्सी, बीसी ,बकल,मकल नही लिखना होता,जिसमे तू माहिर है..."
"आइ कॅन डू एवेरितिंग इन एवेरी फील्ड "
"समझा कर...नही तो मुझे मोबाइल देने मे क्या प्राब्लम होती...."
"प्राब्लम ये है कि मेरा दिल उदास है...जो तू नही समझ रहा...मोबाइल दे दे वरना यही पर शाहिद कर दूँगा...."
"सॉरी...."
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"यदि तू मुझे अपना मोबाइल देगा तो तुझे मैं ये बताउन्गा कि दीपिका मॅम अभी कहाँ है...और वैसे भी तू अपना काम आधे घंटे बाद शुरू करेगा तो तुझपर कोई आसमान नही गिरेगा....."
रंडी.दीपिका का सहारा लेते हुए मैने वरुण से कहा,क्यूंकी जब दीपिका का टॉपिक चल रहा था तो वरुण दीपिका मॅम पर कुच्छ ज़्यादा लार टपका रहा था....इसलिए मैने सोचा कि शायद दीपिका के बारे मे आगे जानने की उत्सुकता उससे मेरा काम करा दे...साला मैं इतना होशियार कैसे हूँ
"मुझे कोई फ़र्क नही पड़ता कि र.दीपिका इस वक़्त कहाँ मरवा रही है...और वैसे भी आइ लव माइ प्रोफेशन मोर दॅन गर्ल्स... "
"ठीक है प्रोफेशन लवर, फिर कार यही रोक मैं कुच्छ चहल कदमी करके आता हूँ....लेकिन एक बात याद रखना कि दीपिका के बारे मे तुझे कभी कुच्छ नही मालूम चलेगा.मैने सोचा था कि तू ये जानने के लिए बेकरार होगा कि कॉलेज से बट्किक करके निकली गयी दीपिका के साथ क्या-क्या हुआ...वो किस-किस से मिली, उसने कैसे-कैसे काम किए...ईवन मैं तुझे उसकी बिकनी मे फोटो तक दिखा सकता हूँ...खैर जब तू इंट्रेस्टेड ही नही है तो कोई बात नही,अपना क्या...कही ना कही से जुगाड़ कर ही लूँगा.तू नही तो कोई और सही..."कार से निकलते वक़्त बेरूख़ी से मैने कहा....
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