RE: Porn Hindi Kahani दिल दोस्ती और दारू
"यार अरमान ,वो साले म्बबस के स्टूडेंट्स है..मैने सोचा था कि जब भी उनसे मुलाक़ात होगी तो अपना कॉलर उँचा और सीना चौड़ा करके चलूँगा...लेकिन अब तो..."
"जानेमन, घोड़ो के झुंड मे गधो को शामिल करने से ,वो घोड़ा नही बन जाता और इससे क्या फ़र्क पड़ता है कि वो म्बबस के स्टूडेंट्स है या 12थ फैल ..."मैने कहा,जबकि मैं जानता था कि फ़र्क तो पड़ता है .
"तो आगे का क्या प्लान है, अरमान भाई...मैं तो बोलता हूँ कि कल फिर नदी के उपर बने पुल मे जाते है और लौन्डो को पेलते है..."
"तू यहाँ ,यही करने आया है क्या...बेटा किस्मत हर बार साथ नही देती.यदि कोई कपल ग्रूप मे आया हो तो फिर चुद जाएँगे..."
"तो फिलहाल अभी क्या करे...भारी बोर हो रहा हूँ "
"फिलहाल तो वर्ल्ड कप निकालो....समय गुजर जाएगा..."
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'प्लॅटिनम' के एक बूंफ़ेर को रात भर मे मैने,अरुण और राजश्री पांडे ने ख़त्म कर दिया था....सुलभ और नवीन दारू पीते नही थे और सौरभ ने कहा कि आज शनिवार है इसलिए वो आज नही पिएगा .
दूसरे दिन सबसे पहले मेरी आँख खुली और आँख खुलते ही मेरी नज़र सबसे पहले मेरे हाथ मे बँधी घड़ी पर गयी और बाद मे दारू के उस बूंफ़ेर पर,जिसे कल रात हम तीन लोगो ने खाली किया था.इस वक़्त 9 बज रहे थे और दारू की बोतल मे कुच्छ दारू अब भी बाकी थी....
"साला कल रात को लगता है ,इन दोनो ने अपना आख़िरी पेग नही लिया...वरना हिसाब से तो आज बोतल को खाली होना चाहिए थी...."प्लॅटिनम की बोतल की तरफ बढ़ते हुए मैं बड़बड़ाया और बोतल को उठाकर सोचने लगा कि इसका क्या किया जाए...बाहर फेक दूं या फिर पी लूँ....
"नही साला कहीं चढ़ गयी तो फिर मैं सबकी दाई चोद दूँगा..."सोचते हुए मैने प्लॅटिनम के ढक्कन को खोला और जैसे ही बचे हुए दारू को गिराने वाला था ,मेरे मन मे ख़याल आया कि"पी ही लेता हूँ,इतने से मेरा क्या होगा...ज़मीन पर गिराने से तो अच्छा है की अपने पेट मे गिरा लूँ..."
इसके बाद मैने बिना कुच्छ सोचे बोतल मे थोड़ा पानी डाला और कुच्छ देर बोतल को हिलाने के बाद बोतल के मुँह को अपने मुँह से लगाया और खेल ख़त्म
मेरे सारे दोस्त अभी तक खर्राटे ले रहे थे,इसलिए मैने वहाँ बिखरी हुई सारी अवैध चीज़ो जैसे कि सिगरेट के पॅकेट, डिस्पोज़ेबल ग्लास और वर्ल्ड कप को एक बड़ी सी पोलिथीन मे भरकर कॅंप से बाहर निकला .
"इधर तो कोई खराब जगह दिख ही नही रही...ये सब कचरा कहाँ फेकू..."मैने सोचा..और फिर ख़याल आया कि चुप चाप जाकर दूसरे कॉलेज के जो कॅंप है ,वहाँ रख देता हूँ ,इससे तो हम लोग दूर-डोर तक नही फसेंगे और मैने ऐसा ही किया...मैं चुप-चाप दूसरे कॉलेज के कॅंप के पास गया और पॉलिथीन वहाँ छोड़ कर वापस आ गया.
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सुबह के 10 बजे सभी स्टूडेंट्स बाहर जमा हुए. हम सब नीचे खड़े थे और हमारा वॉर्डन एक बड़े से पत्थर के उपर वाइट किट पहले खड़ा था.
"सब लोग यहाँ से नीचे जाएँगे और पुल की तरफ ना जाकर राइट साइड मे जाएँगे...राइट साइड मे हम लोगो के लिए बहुत सारी आक्टिविटीस है, जैसे कि राप्पेल्लिंग ,फिशिंग....जिसको जो करना है वो...वो करेगा और शाम के 4 बजे तक वापस यहाँ आना है."पत्थर से नीचे कूदकर वॉर्डन ने आगे कहा"और खबरदार जो कोई यहाँ से नीचे जाने के बाद पुल की तरफ या कॉफी हाउस की तरफ गया तो....यदि मैने किसी को ऐसा करते हुए पकड़ लिया तो आज रात का खाना उसी से बनवाउंगा...अंडरस्टॅंड..."
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"ये साला हमारा वॉर्डन ,खुद को समझता क्या है...बीसी हमलोग कोई बच्चे है क्या जो हर वक़्त ये बताता रहता है कि ये मत करो,वो मत करो....अरमान तू देखना यदि मेरा दिमाग़ खराब हुआ ना तो साले को इसी नदी मे डुबो-डुबो कर मार दूँगा..."पहाड़ी से नीचे उतरते वक़्त अरुण ने कहा....
मैने अरुण को कोई जवाब नही दिया,क्यूंकी इस समय मेरा पूरा ध्यान पहाड़ी से नीचे उतरने मे था...मेरे ऐसा करने की वजह ये थी कि सुबह जो मैने दो पेग मारे थे,उसका हल्का-हल्का असर होने लगा था और मुझे ये डर था कि यदि मैने यहाँ बक्चोदि की तो पहले सीधे नीचे और फिर सीधे उपर पहुचूँगा.....
"तू इतना शांत क्यूँ है बे..."नीचे उतरते वक़्त अरुण ने मुझे पीछे से धक्का दिया.
"बक्चोद है क्या...जो धक्का दे रहा है, यदि गिर जाता तो..."
"तू लोंड़िया है क्या ,जो इतनी से मामूली झटके को नही सह पाएगा..."
"देख ,तू अभी शांति से मुझे नीचे उतरने दे...एक तो वैसे भी सर गोल-गोल घूम रहा है और उपर से तू और तेरी बकवास..."
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"तो बताओ ,क्या प्लान है राइट चले या लेफ्ट...." जब हम लोग नीचे आ गये तो सौरभ बोला"मेरा ख़याल है कि लेफ्ट चलते है...राइट मे बाबाजी का घंटा बस मिलेगा लेकिन लेफ्ट मे इस शहर की कुडिया देखेगी..."
"पर वॉर्डन का क्या..."
"वॉर्डन ,चोदु है साला...कुच्छ भी बोलते रहता है..."
"मेरी तबीयत कुच्छ ठीक नही है ,राइट चलते है..."मैने कहा.
"क्या हुआ.."
"कुच्छ नही, "
"तो फिर लेफ्ट चलते है ना..."
"राइट मे जुगाड़ है...लेफ्ट मे कुच्छ नही है"
"तुझे कैसे पता..."
"अब लवडा ,तुम लोग को हर एक चीज़ बताऊ क्या...चलना है तो चलो वरना..."झल्लाते हुए मैं बोला.
"कंट्रोल यार, तू इतना भड़क क्यूँ रहा है...चल लेफ्ट साइड ही चलते है."अरुण ने मुझे बीच मे टोक कर कहा और हम लोग लेफ्ट साइड बढ़े....
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"साला दारू फिर रियेक्शन कर गयी, ज़मीन पर गिरा देता तो अच्छा रहता..."चलते हुए मैं बड़बड़ाया"आधा एक घंटा ,जल्दी से बीत जाए तो मैं होश मे आउ..."
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राइट साइड चलते रहने के बाद हमने देखा कि नदी के किनारे-किनारे बहुत ही बढ़िया जगह वहाँ थी, जहाँ फिशिंग ,राप्पेल्लिंग करने का इंतज़ाम किया गया था.
"ये साले मछलि मार, अब ये हम लोगो से मछलि की हत्या करवाएँगे..."
"चूतियापा बंद कर...मछलि पकड़ने के बाद उसे वापस पानी मे छोड़ भी देना है..."बोलते हुए मैं रुका और किनारे मे रखे एक पत्थर के उपर थोड़ी देर के लिए बैठ गया....
"थोड़ी देर रूको यही...फिर आगे चलते है..."
"तू पक्का किसी का मुँह मे लेकर आया है...कल रात तक तो ठीक था,अब आज तुझे ये अचानक क्या हो गया..."
"कुच्छ नही ,प्यास लग रही है..."
"सॉरी, मुझे इस वक़्त पेशाब नही लगी है...वरना तुझे नमक वाला गरम पानी पिलाता..."
"क्यूँ दिमाग़ चाट रहा है बे..."दाँत चबाते हुए मैने अरुण से कहा.
इसके बाद कुच्छ देर तक वो सब वही खड़े रहे और मैं पत्थर पर बैठकर ना जाने क्या-क्या सोचने लगा....तभी मुझे ख़याल आया कि मेरे साथ इस कॅंप मे एश भी आई है, मुझे कुच्छ प्लान बनाने चाहिए जिससे कि हम दोनो एक-दूसरे के करीब आ सके.
ऐसी सिचुयेशन मे यदि मुझे एश दिख जाती तो कसम से सारा मूड सही हो जाता लेकिन मुझे एश नही बल्कि आंजेलीना दिखी,वो भी सामने से आती हुई....कल रात जिस तरह से उसने मुझे उल्लू बनाया था उसके बाद तो मैं उसके बारे मे सोचकर ही नर्वस होने लगा था और मैं चाहता था कि वो चुप चाप मेरे बगल से निकल जाए. क्यूंकी इस वक़्त मैं अपने फुल फॉर्म मे नही था .लेकिन हुआ इसका ठीक उल्टा.
"ओ..मिस्टर. मॅनेजर...क्या हाल है..."
आंजेलीना का मुझे इस तरह से बोलने पर जहाँ एक तरफ मैं चौका वही दूसरी तरफ मेरे दोस्त मुझसे ज़्यादा चौके, और साले मुझे देखकर ऐसे मुस्कुराने लगे जैसे कि आंजेलीना मेरी माल हो.....
"क्या हुआ, आज कुच्छ नही बोलना क्या..."आंजेलीना ने आगे कहा और उसकी कल वाली दोनो सहेलिया हँसने लगी.
मन तो मेरा नही कर रहा था कि मैं आंजेलीना के पास जाकर उससे बात करूँ, लेकिन एक घमंड की लहर आई और दोस्तो के बीच अपनी बादशाहत कायम रखने के लिए मैं उठा....
"तुम्हे पहचाना नही...अपना इंट्रोडक्षन दोगि क्या...वो क्या है कि मैं राह चलते सबको याद नही रखता"आंजेलीना की तरफ बढ़ते हुए मैने कहा...
"पहले अपने पॅंट की ज़िप तो बंद कर लो ,मॅनेजर...फिर मेरा इंट्रो लेना..."हँसते हुए वो बोली.
मेरे पॅंट की ज़िप खुली है ,ये सुनकर मेरा एक हाथ तुरंत नीचे गया लेकिन बाद मे पता चला कि आंजेलीना ने इस बार भी मुझे उल्लू बना दिया है क्यूंकी मेरा ज़िप पहले से ही बंद था.
"होश मे रहा करो इंजिनियर बाबू ,वरना जहाँ काम करोगे,वहाँ का कबाड़ा कर दोगे..."एक फिर उसकी हँसी गूँजी और वो अपने दोनो सहेलियो चींकी ,पिंकी के साथ मेरा मज़ाक उड़ाते हुए आगे बढ़ गयी...
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आंजेलीना के ऐसे बर्ताव पर मेरे सभी दोस्तो का मुँह 3 इंच फट गया था.उन्हे यकीन नही हो रहा था कि कोई मुझे चुना लगा गया....
"क्या बे, ये लोंड़िया तो तुझे चोद के चली गयी...साले लौन्डो का नाम बदनाम कर दिया तूने,आज के बाद बात मत करना मुझसे..."
"वो तो मेरी तबीयत खराब थी...वरना तू तो जानता ही है मुझे...टेन्षन मत ले, अगली बार जब मिलेगी तो मैं सूद-समेत उसकी लूँगा..."अपनी खराब तबीयत का एक्सक्यूस देते हुए मैने मन मे सोचा"सिल्वा, तू अबकी बार मिल मुझे...तब मैं तुझे दिखाता हूँ कि अरमान क्या आफ़त है"
"तू कुच्छ भी बोल अरमान लेकिन तूने आज दिल दुखा गया....बोले तो मैं फैल होने के बाद इतना उदास नही होता हूँ,जितना कि आज हुआ हूँ...."
"जा मूठ मार के आ,सब कुच्छ नॉर्मल हो जाएगा..."
अरुण को जैसे ही मैने मूठ मारने के लिए कहा तो उसकी नज़र दूर जाती आंजेलीना के बॅक साइड पर पड़ी और बस उसकी नज़र आंजेलीना पर जम गयी.....
"यार अरमान, लड़की कैसी भी हो लेकिन माल दुधारू है....कुच्छ दिन इसी को सोच कर 61-62 करूँगा... "
"साला,शुरू हो गया..."अरुण की गर्दन दूर जाती आंजेलीना से हटा कर मैं दूसरे साइड किया और बोला"चल मछलि पकड़ते है..."
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जिस जगह फिशिंग करने का इंतज़ाम किया गया था,वहाँ हमारे कॉलेज के भी बहुत से स्टूडेंट्स थे और साथ ही साथ म्बबस कॉलेज के भी बहुत स्टूडेंट्स थे....कुच्छ वहाँ नदी के किनारे रेत पर बैठे हुए थे तो कुच्छ मछलि पकड़ रहे थे....
"सबसे पहले मैं मछलि पाकडूँगा...."राजश्री पांडे ने अपना हाथ खड़ा किया और जहाँ फिशिंग करने का समान रखा था,उधर भागा.....
पांडे जी ने फिशिंग रोड उठाया और हुक मे बैट डालकर रोड को नदी मे डुबो दिया....
"साला कोई मछलि ही नही फँस रही है"कुच्छ देर बाद फिशिंग रूड को उपर करके पांडे जी ने नया बैट हुक मे फसाया और वापस रोड को नदी मे डुबोया...लेकिन पांडे जी की किस्मत इस बार भी झंड निकली और 10 मिनिट तक, गरम रेत मे अपना गान्ड सेकने के बावजूद जब उनकी पकड़ मे एक छोटी सी भी मछलि नही आई तो,वो रोड को एक तरफ फेकते हुए जहाँ हम खड़े थे,उधर आया....
"साले चोदु बनाते है, एक तो इनका मछलि पकड़ने का एक्विपमेंट खराब है और उपर से इस नदी मे एक भी मछलि नही है...बीसी कही के..."
इतने मे ही जहाँ कुच्छ देर पहले राजश्री पांडे बैठ कर फिशिंग कर रहा था, उससे थोड़ी दूर पर बैठे दूसरे कॉलेज के एक लौन्डे ने एक बड़ी मछलि फसाई और उसे अपने दोस्तो को बड़े शान से दिखाने लगा....
"हे,ड्यूड...मैने बहुत बड़ी फिश पकड़ी है...इधर देखो..."दूसरे कॉलेज के उस लड़के ने हवा मे ही मछलि को लटका कर बोला....
"अबे चोदु,पहले हुक को रिमूव कर वरना ,उसका राम राम सत्य हो जाएगा और फिर बाद मे ड्यूड,चूत करते रहना..."बिना कुच्छ सोचे समझे मैने कहा....
दूसरे कॉलेज के उस लड़के को नसीहत देते वक़्त मुझे एक बार सोच लेना चाहिए था कि वो लड़का मेरे कॉलेज का नही है और जैसे मेरे दोस्त वहाँ पास थे,वैसे ही उसके भी कुच्छ दोस्त वहाँ पास थे...यदि मैने दारू नही पी होती तो यक़ीनन मैं उस लड़को को एक शब्द नही बोलता, लेकिन दारू का नशा चढ़ा होने के कारण मेरी ज़ुबान जैसे स्लिप हो गयी थी,..खैर जो बोल दिया सो बोल दिया....
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"तूने मुझसे कुच्छ कहा क्या..."तुरंत फिशिंग रोड को एक किनारे करते हुए उसने मुझसे पुछा....
"नही,मैं तुझे क्यूँ कुच्छ बोलूँगा....मैं तो इसे समझा रहा था..."राजश्री के सर के बाल पकड़ कर मैने धीरे से खींचा और बोला"चोदु, मछलि को पकड़ने के बाद पानी मे वापस छोड़ना होता है...यदि तूने ऐसा नही किया तो तुझे एक निर्दोष और मासूम फिश की हत्या करने के जुर्म मे धारा 302 के तहत फाँसी की सज़ा मिलेगी...."
मैने राजश्री पांडे को भले ही बीच मे ला दिया था ,लेकिन वो लड़का इतना तो समझ ही चुका था कि मैने राजश्री पांडे को नही बल्कि उसे ही गाली बाकी थी और अब बात पलट रहा हूँ.....उसको यूँ मुझसे बात करता देख उसके जो भी दोस्त थे ,वो उधर उसके पास आने लगे....
"इसने मुझे बेमतलब का गाली दिया , जबकि मैने इसे कुच्छ बोला तक नही..."उस लड़के ने अपने दोस्तो से कहा....
"देखो यार, इसे ग़लतफहमी हुई है...मैं तो इसे जानता तक नही फिर भला मैं इसे गाली क्यूँ दूँगा...मुझे क्या पागल कुत्ते ने काटा है..."मैने एक दम प्यार से कहा...
"मैं बोल रहा हूँ ना ,इसने मुझे गाली दी,"
"नही दी भाई ,तू फालतू मे ऐसा सोच रहा है..."
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