RE: Porn Hindi Kahani दिल दोस्ती और दारू
"ओके बेटा, अब आप सब बैठ जाओ...ताकि किसी को कोई प्राब्लम ना हो..."
"वन्स अगेन ,थॅंक यू मॅम..."(चूस ले,बन गयी ना चोदु)
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जब हमे उस बस मे बैठने की पर्मिशन मिल गयी तो हम सब ने अपनी पसींदिदा सीट पर अपना डेरा जमा लिया...मैं अपनी पसंद के अनुसार खिड़की की तरफ बैठा था और राजश्री पांडे मेरे बगल मे था...अरुण और सुलभ दूसरी सीट पर बैठे थे लेकिन सौरभ अकेले पीछे वाली रो मे अपनी टांगे पसार कर बैठा था. हमारी सीट थ्री सीटर थी ,जिसके कारण एक सीट अब भी खाली थी....
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"सर,मे आइ कम इन..."
ये आवाज़ जैसे ही मेरे कानो मे पड़ी तो सबसे पहले जो ख़याल मेरे मन मे आया ,वो ये था कि"ये कौन चूतिया है,जो बस के अंदर आने के लिए पर्मिशन माँग रहा है और जब मैने पीछे मुड़कर देखा तो पाया कि 5-6 लौन्डे बस के पीछे वाले दरवाजे के पास खड़े होकर बस के अंदर आने के लिए हमारे वॉरडन्स से पर्मिशन माँग रहे थे....जिसमे हमारे हॉस्टिल का वो कल्लू,कंघी चोर भी शामिल था....
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"क्या हुआ बेटा, आप लोग यहाँ क्यूँ आए हो..."ममता भरी आवाज़ मे गर्ल्स हॉस्टिल की वॉर्डन ने उन लड़को से पुछा"कोई प्राब्लम है क्या..."
"मॅम...वो वाली बस पूरी फुल है ,इसलिए हम लोग यहाँ आ गये..."
"कोई बात नही,आप लोग अंदर आकर बैठ जाइए...लेकिन इस बात का ख़याल रखना कि यहाँ लड़किया बैठी हुई है..."
इसके बाद उन सबने बारी-बारी से वॉर्डन को 'थॅंक यू' कहा और अंदर आ गये.इसे मेरा बॅड लक कहे या फिर कुच्छ और...कि कंघी चोर मेरे ही सीट पर आकर बैठ गया मतलब कि राजश्री पांडे की बगल मे....अब वो कंघी चोर ना तो मुझे पसंद था और ना ही राजश्री पांडे को, सो हम दोनो ही उसे वहाँ से हटाने की तरक़ीब ढूँढने लगे.....
"चल बे ,तू खिसक यहाँ से..."राजश्री का एक पाउच मुँह मे डालते हुए पांडे जी ने अजीब सी आवाज़ मे कहा...
"चुप कर,तेरा सीनियर हूँ मैं...ज़्यादा बोलेगा तो हॉस्टिल के लड़को को बोलकर तेरी पिटाई करवा दूँगा..."अपने छोटे से बॅग को अपनी गोदी मे रखकर वो बोला...
"सच "राजश्री पांडे को सीट से सटकर उस कल्लू की तरफ मैने अपना चेहरा किया...
"अरमान तू शायद मेरी पॉवर को नही जानता..."
"तू म्सी भाग यहाँ से,वरना तेरे गान्ड मे डंडा डालकर 1000 आर.पी.एम. की स्पीड से घुमाउन्गा..."
गुस्से से तमतमाते मेरे चेहरे को देखकर वो कल्लू डर गया और तुरंत अपना बॅग उठाकर पीछे की सीट पर जा पहुचा.
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जब दोनो बस के छूटने का टाइम हुआ तो हमारे हॉस्टिल का वॉर्डन ,दूसरे बस मे चला गया और बस चल पड़ी...मैने अपने कानो पर हेडफोन फँसाया और आँखे बंद कर ली. इस बीच बस मे किसके बीच क्या हुआ,मैं नही जानता और जब किसी ने मेरा नाम लिया था तो मैने अपनी आँखे खोली और देखते ही दंग रह गया कि सुलभ लड़कियो के बीच बैठा मुझे आवाज़ दे रहा था.
"इस साले की लौन्डियो से दोस्ती कब हुई और ये मुझे क्यूँ बुला रहा है...पक्का कोई लड़की मुझपर फिदा हो गयी होगी और मुझे प्रपोज़ करने के लिए बुला रही है "अपने बाल को हाथो से ठीक करते हुए मैने सोचा
जब मैं अपनी जगह पर खड़ा हुआ तो आगे की तरफ बैठी हुई लड़कियो ने मेरी तरफ देखा और तभी ना जाने कहा से मेरे अंदर अहंकार की एक लहर दौड़ आई...
"सॉरी, मेरे पास बेकार की बातो के लिए टाइम नही है..."बोलकर मैं तुरंत बैठ गया...
सुलभ मेरा खास दोस्त था और उसे ऐसा जवाब देने के बाद मुझे खुद भी अच्छा नही लग रहा था लेकिन जब इसकी शुरुआत मैने कर ही दी थी तो फिर पीछे हटना मुझे मंज़ूर नही था...इसलिए सुलभ के द्वारा एक-दो बार और मेरे नाम पुकारे जाने पर भी मैं अपनी जगह से एक इंच भी नही हिला....
जिस तरह सुलभ मेरा खास दोस्त था उसी तरह मैं भी उसका खास दोस्त था और मुझे पूरा यकीन था कि मेरा ऐसा बिहेवियर उसे भी पसंद नही आया होगा....मेरे ख़याल से उसने इसकी कभी कल्पना तक नही की होगी कि मैं उसकी बात को ऐसे टालुन्गा क्यूंकी यदि उसे मेरे इस रवैये की ज़रा सी भी भनक होती तो वो मुझे कभी नही बुलाता....मेरा ये रवैया वहाँ बस मे मौजूद जहाँ सभी लड़कियो को पसंद नही आया था वही मेरे बाकी के दोस्तो की शकल भी काफ़ी खफा-खफा सी थी.
"अरमान ,आना यार...एक मिनिट का काम है..."सुलभ ने तीसरी बार मुझे बुलाया ,लेकिन नतीजा पहले के जैसा ही रहा. मैं इस बार भी अपनी जगह से एक इंच भी नही हिला.
"अरमान...आना "
"राजश्री ,तू जा और सुलभ से मालूम करके आ कि क्या मॅटर है..."सुलभ की बुझी हुई शकल को देखकर मैने अपने बगल मे बैठे राजश्री पांडे से कहा.
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हमारे पांडे जी तो जैसे कब से इसी मौके की तालश मे थे की कब उन्हे लड़कियो के बीच मे जाने का मौका मिले और जब ये मौका उसे मेरे ज़रिए मिल रहा था तो भला वो कैसे पीछे हटने वाला था. मेरी तरह उसने भी अपने बालो पर अपनी उंगलिया फिराई और फिर मुझे साइड करके चलती हुई बस की खिड़की के बाहर गर्दन निकालकर अपना राजश्री से भरा मुँह खाली किया...बस स्पीड मे चल रही थी ,इसलिए पांडे जी ढंग से अपना काम नही कर पाए जिसकी वजह से गुटखे का कुच्छ अंश उनके गालो और होंठो पर अपनी छाप छोड़ गये था, जिसे वो अपने हाथ से सॉफ करते हुए बोला...
"थॅंक यू, अरमान भाई...मैं अभी जाकर ,सुलभ भाई से सब कुच्छ मालूम करके आता हूँ..."
"तेरी तो..."बोलते हुए मैने उसका सर पकड़ा और खिड़की पर दे मारा"तुझे पहले ही बोला था ना कि ये गुटखा,खैनि का प्रदर्शन मेरे सामने मत किया कर...अब जा यहाँ से..."
अपना सर सहलाते हुए राजश्री पांडे , सुलभ की तरफ बढ़ा लेकिन उस बेचारे की किस्मत ही झंड थी. एक तो सुलभ मेरे वहाँ ना जाने पर पहले से ही गुस्साया हुआ था ,उपर से जब राजश्री पांडे ने ,उसकी प्राब्लम पुछि तो सुलभ उसपर फॅट पड़ा और अपने दाँत चबाते हुए तेज लॅफ्ज़ो मे पांडे जी को वहाँ से भगा दिया...अब हमारे पांडे जी क्या करते, वो चुप चाप मायूस होकर वापस लौटे और मेरे बगल मे बैठ गये....
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इसके बाद कुच्छ देर तक और कुच्छ नही हुआ लेकिन मेरे अंदर एक उफान था कि आख़िर सुलभ मुझे बुला क्यूँ रहा था,कही एश ने तो उसे ,मुझे बुलाने के लिए नही कहा....
"धत्त तेरी की,मैने कितनी बड़ी ग़लती कर दी , सुलभ यार ! एक और बार मुझे बुला ,अबकी बार मैं उड़ कर आउन्गा..."
"अब पछताए होत क्या, जब चिड़िया चुग गयी खेत..."पांडे जी की बगल मे जो सीट खाली थी ,उसपर बैठते हुए अरुण बोला.
"तुझे कैसे पता चला बे "अरुण को देखकर मैने आश्चर्या से कहा.
"क्या...कैसे पता चला ? "
"यही कि,सुलभ के बुलाने पर मैं उसके पास उस वक़्त नही गया ,लेकिन मुझे अब उसका अफ़सोस हो रहा है..."
"बेटा सिक्स्त सेन्स मेरा भी कभी-कभी काम कर जाता है...वैसे मैं यहाँ तेरा दुख-दर्द बाटने नही आया हूँ,बल्कि तुझे ये बताने आया हूँ कि मेरे 100 वापस कर दे,वरना वॉर्डन को मैं ये बता दूँगा कि तू उससे झूठ बोलकर इस बस मे बैठा है..."
"चल जा बे और यदि तू उसे ये बताएगा भी तो मेरे साथ-साथ तुझे भी यहाँ से दूसरी बस मे जाना पड़ेगा..."
"मुझे कोई फ़र्क नही पड़ता ,क्यूंकी दिव्या मेरे लिए कभी कोई खास लड़की नही थी...मैं तो बस उसके बड़े-बड़े दूध दबाना चाहता था,पर लगता है मेरे ये अरमान अब कभी पूरा नही होने वाला..."
"मुझे मालूम है कि तू ऐसा कुच्छ भी नही करेगा,जिससे मेरी बेज़्जती हो..."
"मेरे 100 देगा या नही..."
"नही..."
"ठीक है फिर..."बोलते हुए अरुण खड़ा हुआ और वॉर्डन की तरफ देखकर बोला"मॅम, आपको कुच्छ बताना है..."
"ये ले पकड़ अपने 100 ,लेकिन याद रखना कि ये 100 तो मैं तुझसे लेकर ही रहूँगा..."धीरे से कहते हुए मैने 100 तुरंत अरुण के हाथ मे पकड़ा दिए.....
"हां बेटा बोलो,कोई दिक्कत है क्या..."गर्ल्स हॉस्टिल की वॉर्डन ने हमेशा की तरह एक मीठी आवाज़ मे कहा...
"कुच्छ नही मॅम, मैं तो बस ये कहना चाहता था कि आप बहुत अच्छी है..."
जवाब मे वॉर्डन मुस्कुरा दी और अरुण ने 100 का नोट अपने जेब मे डाल लिया.
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अरुण को 100 का नोट देने के बाद भी मैं उस 100 के नोट के बारे मे ना सोचकर ,एश के बीच जाने का जो सुनहरा मौका मैने गवाँ दिया था,उसपर दिल ही दिल मे अफ़सोस जाहिर कर रहा था....
"और उड़ हवा मे, बेटा तेरा ये घमंड किसी दिन तुझे चोद कर ही दम लेगा,अब भी वक़्त है सुधर जा...."मैने खुद से कहा"कितना शानदार अवसर मिला था लड़कियों के बीच इंप्रेशन जमाने का ,लेकिन...."
"अरमान...."सुलभ ने एक और बार मेरा नाम पुकारा और खुद को गाली देना बंद करके मैं तुरंत अपनी जगह से खड़ा हो गया...
"एक मिनिट,इधर आना तो..."
"ओके, आइ अम कमिंग..."बोलते हुए मैं राजश्री के उपर से कुदा और लड़कियो की तरफ जाने लगा...
"अरमान भाई,मैं भी चलूं क्या..."पांडे जी ने अपने दिल के अरमानो को ज़ाहिर करते हुए मुझसे पुछा...
"तू क्या करेगा बे वहाँ जाकर,सिर्फ़ मेरी बेज़्जती ही कराएगा...तू एक काम कर, राजश्री का एक पाउच निकाल और खा के मस्त हो जा...मैं अभी आया"
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सुलभ के बुलाने पर मैं गया तो बड़ी खुशी के साथ था, लेकिन मेरे वहाँ पहुचते ही सभी लड़कियो के चेहरे का रंग ऐसे फीका पड़ गया,जैसे मैने उन सबकी सहेलियो को चोदा लेकिन उन्हे छुआ तक नही . और जब मैं सुलभ के पास पहुचा तो जो लड़किया अभी तक सुलभ की तरफ देखकर बड़े ध्यान से उसकी बाते सुन रही थी,वो अब मुझे ,उसके बगल मे खड़ा पाकर...दूसरी तरफ देखने लगी थी जिससे मेरे शरीर का आधा खून जल उठा और मैने तुरंत अपने वॉलेट से हज़ार का नोट निकाल कर सुलभ को थमाते हुए बोला...
"ले बे ,ये हज़ार रुपये रख और जब बस आगे कहीं रुकेगी तो इन सबको खाना खिला देना.."
"मतलब ? मैं कुच्छ समझा नही..."
"इन सबकी शकल देख, ऐसा लग रहा है कि ना जाने कितने जनम से भूखी है..."
मेरा ऐसा कहना था कि सभी लड़किया जहाँ कुच्छ देर पहले अपना मुँह दूसरी तरफ किए हुए बैठी थी ,अब वही लड़किया 440 वॉल्ट के बिजली के झटके खाकर मेरी तरफ गुस्से से देख रही थी...सिर्फ़ देख रही थी,बोल कुच्छ नही रही थी.
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"तूने मुझे यहाँ क्या इसीलिए बुलाया ताकि मैं इन सबके खाने के लिए कुच्छ पैसे डोनेट कर सकूँ या फिर कोई और बात है..."उन लड़कियो को एक और बार 440 वॉल्ट का झटका देते हुए मैने कहा और जवाब मे इस बार भी वो सब आइटम लोग मुझे सिर्फ़ देखती ही रही...
"तू भी ना यार ,हर टाइम मज़ाक करता रहता है..."एक लड़की की तरफ इशारा करते हुए सुलभ ने कहा"इसे तो जानता ही होगा,ये है मेघा...अपनी ही क्लासमेट है..."
"तीन साल ये हमारे साथ ,हमारी ही क्लास मे पढ़ रही है और तू मुझे यहाँ इसका नाम बता रहा है..."
"अबे नही , आक्च्युयली जब मैं इन सबसे बात कर रहा था तो ,ये बात उठी कि इस साल बेस्ट प्लेयर का अवॉर्ड किसे मिलेगा...और उसी वक़्त बॅस्केटबॉल के बारे मे चर्चा होने लगी..."
"तो..."
"तो फिर मेघा ने अचानक ही मुझसे ये पुछा की बॅस्केटबॉल का नंबर.1 प्लेयर कौन है...."
"अब समझा..."मैं बीच मे ही बोल उठा"तो तूने यहाँ मुझे सिर्फ़ ये पुछने के लिए बुलाया है कि ,बॅस्केटबॉल का नंबर.1 प्लेयर कौन है..."
"यस...यस.."अबकी बार मेघा ने कहा..
"डू गूगल, यू विल फाइंड युवर आन्सर..."सुलभ की तरफ देखते हुए मैने कहा"माना कि लड़कियो के पास दिमाग़ नही होता,लेकिन तुझे तो मैं एक होशियार लड़का समझता था..."
"क्य्ाआअ...हमारे पास दिमाग़ नही है..."5-6 लड़किया एक साथ मुझपर झल्लाई और उन सबको इग्नोर मारते हुए मैं अपनी सीट की तरफ बढ़ गया. अभी मैं अपनी सीट की तरफ जा ही रहा था कि दिव्या की आवाज़ मेरे कानो मे पड़ी...
"माइ ब्रदर, गौतम ईज़ दा नंबर. 1 प्लेयर ऑफ दा बॅस्केटबॉल गेम ! "
ये सुनते ही मेरा बाकी बचा-कूचा खून भी गुस्से से जल उठा और दिल किया कि अभी जाकर दिव्या को एक तमाचा जड़ डू...लेकिन मैने ऐसा नही किया.
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