RE: Porn Hindi Kahani दिल दोस्ती और दारू
"अबे कहा ना कुच्छ खास नही,उसने बस इतना कहा कि अरुण, तुम्हारी राइटिंग सुपर्ब है...ध्यान से पढ़ाई करोगे तो अच्छे मार्क्स स्कोर कर सकते हो..."अपना बॅग टाँगकर अरुण बोला"चल ,हॉस्टिल चलते है...विभा से मैने पर्मिशन ले ली है..."
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हॉस्टिल की तरफ जाते वक़्त मुझे विभा के द्वारा कही गयी वो बात याद आ रही थी ,जो उसने अरुण से कहा था और तभी मुझे मेरा प्लान नंबर. #1 याद आया "रेस्पेक्ट युवर टीचर्स."
अब विभा पहले जैसी भी रही हो लेकिन टीचर बनने के बाद वो पूरी तरह से सुधर चुकी थी.मेरी वजह से वरुण के साथ जो उसका ब्रेक अप हुआ, वो तब से आज तक सिंगल ही है...क्यूंकी यदि उसका कोई नया मजनू होता तो कहीं ना कहीं से मुझे खबर मिल ही जाती और वैसे भी मुझे किसी के पर्सनल लाइफ से क्या लेना देना था.विभा चाहे बाहर जिससे भी चुदवाये, चाहे तो वो बिकनी पहनकर घूमे...वो उसकी लाइफ थी.इसलिए फिलहाल तो मैने मन ही मन मे ये तय किया कि मैं अब उसको बे-मतलब की गालियाँ नही बकुँगा.....
ये सोचते हुए मैं अरुण के साथ हॉस्टिल की तरफ बढ़ रहा था.सौरभ दूसरे ग्रूप मे था,इसलिए कॉलेज से एक साथ आना कभी-कभार ही हो पाता था.
"अरमान ,तुझे वरुण के बारे मे मालूम चला या नही..."कॉलेज से बाहर निकलते ही अरुण अचानक रुक गया
"क्यूँ मर गया क्या वो..."मैने पुछा..
"नही बे, वो उसको 7 साल हो गये थे ना तो उसे कॉलेज से निकल दिया गया है...अब वो कॉलेज नही आ सकता और इस साल उसका लास्ट चान्स है यदि वो इस साल भी पेपर क्लियर नही कर पाया तो उसपर एनएफटी लग जाएगा बोले तो नोट फॉर टेक्निकल..."
"ऐसा भी होता है क्या..."
"बिल्कुल होता है, अब कॉलेज वाले ज़िंदगी भर तो उसको यहाँ रखेंगे नही..ज़रा सोच उसकी क्या धाँसू बेज़्जती होने वाली है..."
"होने दे,अपने को क्या..."
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थोड़ी देर बाद हम दोनो हॉस्टिल के बाहर पहुच गये और मैं इस साल के लिए नये-नये प्लॅन्स और स्ट्रॅटजी बनाने मे बिज़ी था कि अरुण की आवाज़ मेरे कानो मे पड़ी...
"क्यूँ बे साले ,कल्लू...कंघी चोर बोसे ड्के...इधर आ"अरुण ने हॉस्टिल से बाहर निकलते हुए उस कंघी चोर कल्लू को अपने पास आने के लिए कहा और जब वो हमारे पास आ गया तो अरुण फिर से शुरू हो गया"एक तो साले झान्ट के जैसी शकल है तेरी और उसपर तू कंघी चोरी करता है लवडे..वो भी अपने इन मुड़े-मुड़े बालो के लिए,जो मेरे झान्ट से भी ज़्यादा मुड़े हुए है...."
"तेरे से तो हॅंडसम ही दिखता हूँ..."झुझलाते हुए कल्लू ने कहा...
"लवडा दिखता है मेरा तू. बेटा यदि मेरे लंड और तेरी शकल को एक साथ देखा जाए तो मेरा लंड ही खूबसूरत दिखेगा....चल निकल यहाँ से,कंघी चोर..."
उस कल्लू को शायद ये डर था कि कही हम दोनो उसे पेल ना दे क्यूंकी लास्ट एअर हमने जो कारनामा किया...उसे देखते हुए ये तो हमारे बाए हाथ खेल था.इसलिए कल्लू चुप-चाप जिस काम के लिए निकला था उसी काम को करने के लिए वहाँ से आगे बढ़ गया....
"सुन बे..."अबकी बार मैने उसे आवाज़ दी"आते समय सिगरेट का एक डिब्बा लेते आना वरना चोद-चोद कर गोरा कर दूँगा..."
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हम दोनो का रौब देखते हुए कल्लू ने हां मे अपना सर हिलाया और वहाँ से हमारे पास से आगे बढ़ गया...लेकिन तभी मुझे मेरा प्लान नंबर. 2 याद आ गया. मैने कल्लू को वापस बुलाया और उसे सॉरी कहकर सिगरेट लाने के मना कर दिया.मेरी इस हरकत पर जहाँ उस कल्लू की खुशी का ठिकाना नही था वही दूसरी तरफ मेरा खास दोस्त मुझे बेधड़क सुनाए जा रहा था और बार-बार मुझसे यही पुच्छ रहा था कि "जब फ्री मे सिगरेट मिल रही थी तो मैने मना क्यूँ कर दिया...."
"समझा कर,कभी कभार नेक काम भी कर लेना चाहिए...."
"तू बेटा,अब मुझसे तब तक बात मत करना,जब तक तू मेरे लिए सिगरेट का पॅकेट नही ले आता..."अपने पैर पटकते हुए अरुण वहाँ से अकेले हॉस्टिल के अंदर घुस गया....
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मैने कल्लू को सिगरेट लाने के लिए मना इसलिए किया था क्यूंकी मुझे अचानक मेरा प्लान नंबर. #2 याद आ गया था ,जिसके अनुसार"क्विट स्मोकिंग आस अर्ली ऐज पासिबल..."
अब सिगरेट और दारू की लत तो एक दम से तो छूट नही सकती इसलिए मैने डिसाइड किया कि...धीरे-धीरे करके स्मोकिंग भी छोड़ दूँगा और दारू भी....
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वहाँ से मैं बिना हॉस्टिल गये ,दुकान की तरफ बढ़ा और सिगरेट की एक पॅकेट लेकर ही हॉस्टिल मे आया...रूम मे पहुचा तो देखा कि वहाँ तो पूरी मंडली जमा हुई है और सब भाई लोग किसी टॉपिक पे वाद-विवाद कर रहे थे...
"ले बे थाम..."अरुण के मुँह पर सिगरेट का पॅकेट फैंकते हुए मैने पुछा"और ये महाभारत क्यूँ छेड़ रखा है..."
"अरमान भाई ,आप पहले ये बताओ कि विभा आपको कैसी लगती है..."उस मंडली मे अपना राजश्री भी शामिल था और जब उसने मुझसे ये पुछा की विभा मुझे कैसी लगती है तो मैं फ़ौरन समझ गया कि इनके वाद-विवाद का टॉपिक विभा ही है...
"माल लगती है ,क्यूँ "
"अरे माल तो वो सबको लगती है अरमान भाई...मेरे पुछने का मतलब था कि उसका नेचर किस तरह का है..."
"ह्म...ठीक-ठाक तो है,बस स्टूडेंट्स पर वर्क लोड ज़्यादा दे देती है कभी-कभी..."
"अरे अरमान भाई ,आप अभी भी नही समझे..."
"अबे तो तू ही बता दे कि सही आन्सर क्या है और लवडे तुझे कोई काम धाम नही रहता क्या जो जब देखो मेरे ही रूम मे घुसे रहता है..."
"मुझे तो विभा मॅम रंडी लगती है...अरमान भाई..."राजश्री ने अपने दाँत दिखाए ,जो राजश्री खाने के कारण लाल हो गये थे.
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प्लान नंबर #1 -रेस्पेक्ट युवर टीचर्स....
मेरे कान मे जैसे ही ये आवाज़ गूँजी और मैने तुरंत ना मे सर हिलाकर उन सबको फ़ौरन वहाँ से जाने के लिए कहा....
"अपुन अभिच चला जाएगा...लेकिन पहले सौरभ भाई ये बताएँगे कि कौन जीता...."बोलते हुए राजश्री पांडे ने अपना रुख़ सौरभ की तरफ किया....
"तमाम सबूतों और गवाहॉ को मद्देनज़र रखते हुए ये अदालत इस नतीजे पर पहुचि है कि राजश्री के साथ ज़्यादा लड़को का समर्थन होने कारण विभा को रंडी और राजश्री और अरुण को ये अदालत विजेता घोसित करती है...जो लौन्डे इस डिबेट मे हार गये है उन्हे ये अदालत अभी तुरंत यहाँ से खिसकने का हुक़ुम देती है."
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"विभा रंडी नही है बे,तुम लोग ना किसी के बारे मे भी कुच्छ भी बोलते रहते हो..."सबके जाने के बाद मैने अरुण से कहा..
"तू जब से घर होकर आया है,तब से मैं अब्ज़र्व कर रहा हूँ की तेरा रंग बदलता जा रहा है.."
"अबे अरुण ,अब यदि तू अपनी गर्लफ्रेंड को पटा कर ठोकेगा तो क्या तुझे सब रन्डवा कहेंगे...तो फिर तुम लोग विभा को रंडी क्यूँ बोल रहे हो,उसने तो सिर्फ़ वरुण का ही लिया है...इसमे वो रंडी कहाँ से हो गयी..."
मेरे मुँह से ये सब सुनकर सौरभ और अरुण बुरी तरह चौक गये ,उन्हे यकीन ही नही हो रहा था कि मेरे जैसा लौंडा विभा को रेस्पेक्ट दे रहा है....
"वो सब तो ठीक है...लेकिन क्या तू मुझे ये बताएगा कि तू आज उसकी साइड क्यूँ ले रहा है..."
अरुण के इस सवाल ने मुझे सोचने के लिए मज़बूर कर दिया ,मैं विभा की साइड क्यूँ ले रहा हूँ...क्यूंकी मेरे प्लान नंबर. #1 के मुताबिक़ मुझे सिर्फ़ क्लास मे टीचर्स को रेस्पेक्ट देना था...फिर विभा का मामला आते ही मैं इतना उत्तेजित कैसे हो गया ?
"तुम दोनो चुप रहोगे बे, मैं अभी पढ़ाई कर रहा हूँ..."
रात को 7 बजे जब पढ़ने लिखने का मूड हुआ तो मैं बुक खोलकर बैठ गया और अभी 7 से 8 बज चुके थे...लेकिन अभी तक एक घंटे मे मैं सिर्फ़ एक पॅरग्रॅफ पढ़ पाया था,जिसका कारण ये था कि अरुण और सौरभ कॉलेज की अपनी बहूदी बाते कर रहे थे...शुरू मे अरुण उसे बताने लगा कि आज लॅब मे क्या हुआ और जब वो चुप हुआ तो सौरभ शुरू हो गया....उन दोनो की जब लॅब की बाते ख़त्म हुई तो आज खाने मे क्या मिलेगा इसपर दोनो बहस करने लगे.....
"लवडो, भागो यहाँ से.."गुस्से से किताब बंद करते हुए मैं उठ खड़ा हुआ...
"अबे अरमान, तू भी क्या अभी से किताब खोलकर पढ़ने बैठ गया ,असली इंजिनीयर्स तो रात को 12 बजे के बाद पढ़ाई करते है और वैसे भी पढ़ने लिखने से किसका भला हुआ है...." ठंडे लहजे मे सौरभ ने कहा ,जिसका अरुण ने भी समर्थन देते हुए कहा"तू बेटा, किसी तांत्रिक के पास जाकर झाड़-फूक करा...तुझे पक्का किसी किताबी कीड़े की नज़र लग गयी है...इसीलिए तू आजकल सरिफो वाली हरकते करने लगा है..."
"सोच ले अरुण...क्यूंकी यदि आज मैने नही पढ़ा तो कल की लॅब मे तुझे कौन आन्सर बताएगा और कुच्छ लड़के तो ये भी बोल रहे थे कि कल शायद होड़ सर भी मौज़ूद होंगे वहाँ लॅब मे..."
"सच... "
"तुझे तो पता ही है की मैं कभी झूठ नही बोलता "
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