RE: Porn Hindi Kahani दिल दोस्ती और दारू
मुझे कुच्छ समझ नही आया कि अरुण ने इस वक़्त जो कहा उसपर मैं कैसे रिएक्ट करूँ....ये अब तक की एक ऐसी घटना थी जिसे मैं सबसे बुरी घटना कह सकता था, मेरे दिल की धड़कने एक बार फिर से रेकॉर्ड तोड़ स्पीड के साथ चलने लगी थी....सीडार के मौत के बारे मे सुनते ही मुझे एक पल मे वो पल याद आने लगे ,जो मैने उसके साथ बिताए थे....उस एक पल मे जब मुझे उसके इस दुनिया मे ना होने की खबर मालूम हुई तो मुझे सच मे बहुत दुख हुआ, दिल और दिमाग़ दोनो से दुख हुआ....
सीडार से मेरी पहली मुलाक़ात तब हुई थी,जब मुझे उसकी सबसे ज़्यादा ज़रूरत थी, उस घटना को एक साल से अधिक बीत चुका था लेकिन मुझे अब भी याद है कि मेरी रॅगिंग लेकर कैसे वरुण और उसके दोस्तो ने मेरा बुरा हाल कर दिया था और तब मेरे उस बुरे वक़्त मे मेरा साथ देने के लिए एक अंजान शक्स आगे आ गया, जिससे मैं पहली बार मिला था....उसके बाद जो हुआ वो सब जानते है कि सीडार के दम पर मैने कैसे मेरी रॅगिंग लेने वालो को कुत्ते की तरह घसीट-घसीट कर मारा था...लेकिन अभी-अभी मुझे जो खबर मिली वो ये थी कि सीडार अब ज़िंदा नही है.....
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मुझे अब भी याद है कि कैसे मैं फर्स्ट एअर मे शेर बना घूमा करता था, इस बुनियाद पर कि यदि कुच्छ लफडा हो जाएगा तो एमटीएल भाई मुझे बचाने के लिए अपनी पूरी ताक़त लगा देंगे, मुझे अब भी याद है कि कैसे मैं कॅंटीन मे भर पेट खाने के बाद बिल सीडार के अकाउंट मे डलवा देता था...लेकिन उन्होने मुझसे कभी एक लफ्ज़ भी इस बारे मे नही कहा और ना ही मुझसे पुछा....लेकिन अभी-अभी मुझे मेरे खास दोस्त ने बताया था कि सीडार अब मर चुका है....
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मुझे अब भी अच्छे से याद है कि जब पोलीस स्टेशन मे मुझपर एफ.आइ.आर. होने की वजह से मेरे पसीने छूट रहे थे तो उस वक़्त अचानक सीडार बीच मे आया और मुझे बचा ले गया...उसके बाद उसी की मदद से मैने, मुझपर एफ.आइ.आर. करने वाले फर्स्ट एअर के दोनो लड़को को बहुत मारा था और बिना किसी परेशानी के उस पूरे झमेले से निकल गया था...लेकिन अब सच ये था कि मेरे कॅंटीन का बिल पे करने वाला,मुझे सारे झमेलो से बेदाग निकलने वाला सीडार अब ज़िंदा नही है....
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मुझे दुख इस बात का नही था कि अब मुझसे एक स्ट्रॉंग सपोर्ट छूट गया है, बल्कि मुझे दुख इस बात का है कि मेरा एक सबसे अच्छा दोस्त...जो मुझे हर वक़्त कयि नसीहत दिया करता था,जिसे मैं अपने बड़े भाई के समान मानता था,उसे मैं अब कभी नही देख पाउन्गा....अब मेरी पूरी ज़िंदगी मे शायद ही सीडार जैसा कोई मिले ,जो बिना कुच्छ सोचे, बिना अपनी परवाह किए...मेरे हर अच्छे-बुरे काम मे कंधे से कंधा मिला कर चलेगा...अब शायद ही मुझे कभी कोई मिले,जिसकी नसीहत,जिसकी सीख को मैं मानूँगा, सच तो ये था कि मैने एक बड़े भाई के समान अपना एक दोस्त खो दिया था...
सीडार मे वो सभी खूबिया थी जो हमेशा से मैं विपिन भैया के अंदर देखना चाहता था...सीडार मेरी ग़लत हरकतों पर मुझे डाइरेक्ट फटकार नही लगाता था ,बल्कि सबसे पहले वो मुझे मेरी उस ग़लत हरकत की वजह से खड़ी हुई मुसीबत से निकालता और फिर जब सब कुच्छ सही हो जाता तो मुझे समझाता कि मुझे ऐसा नही करना चाहिए...लेकिन अब सच तो ये था कि अब मुझे सही तरीके से समझाने वाला कोई नही था.....
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"कहीं सीडार की मौत मेरी वजह से तो नही हुई...यदि ऐसा हुआ तो मेरी ज़िंदगी हर दिन बाद से बदतर होता जाएगा...क्यूंकी ऐसा होने पर मैं भले ही उसकी मौत का ज़िम्मेदार ना ठहराया जाउ...लेकिन मेरा दिल और दिमाग़ मुझे जीने नही देगा कि सीडार की मौत का ज़िम्मेदार मैं हूँ...."
दिल की धड़कने इस वक़्त कम होने का नाम ही नही ले रही थी...बल्कि वो तो समय के साथ बढ़ते ही जा रही थी....
"ये सब कैसे हुआ..."घबराई हुई आवाज़ मे मैने अरुण से पुछा..
"एनटीपीसी मे कुच्छ हफ्ते पहले स्ट्राइक शुरू हुई थी पवर सप्लाइ को लेकर...जिससे एनटीपीसी को लगातार लॉस हो रहा था और जब ये बात सीडार को मालूम चली तो उसने स्ट्राइक शुरू कर दी ,जिसमे एनटीपीसी के कयि बड़े ऑफिसर्स उसके साथ थे...."
"फिर..."
"और फिर दो दिन पहले पूरे कॉलेज मे ये खबर फैल गयी कि स्ट्राइक करने वाले और पोलीस के बीच झड़प हो गयी है...उस झड़प मे कयि लोग मारे गये ,जिसमे से एक हमारा सीडार भी था...."
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बोलकर अरुण चुप हो गया और मैं भी गुम्सुम सा बेड पर लेटा रहा....बहुत देर तक हम दोनो मे कोई कुच्छ नही बोला और फिर अरुण ने ही चुप्पी तोड़ी...
"सीडार भाई की बॉडी अब भी इसी हॉस्पिटल मे है...."
"व्हाट "चौुक्ते हुए मैने अरुण की तरफ देखा....लेकिन कुच्छ बोला नही ,मेरे इस तरह से चौकने का कारण मेरा खास दोस्त अरुण मेरी शकल देख कर ही जान गया ,वो आगे बोला...
"सीडार की मौत के बाद वॉर्डन के मुँह से एक बहुत बड़ा सच हमे मालूम हुआ अरमान,जिसने हम सबको झकझोर के रख दिया था.."
"क्या..."अपने सीने पर हाथ फिराते हुए मैने पुछा...मैने अपने सीने को इसलिए सहलाया क्यूंकी आगे जो सच अरुण बताने वाला था ,वो सच,सच मे बहुत कड़वा होगा...ऐसा मैने अंदाज़ा लगा लिया था....
"सीडार एक अनाथ था, उसे अनाथ बच्चो को पालने वाली असोसियेशन ने पल-पोश कर बड़ा किया था और इस काबिल बनाया कि वो अपने पैरो पर खड़ा हो सके....कॉलेज मे ये सच सिर्फ़ हमारे प्रिन्सिपल और हॉस्टिल वॉर्डन को मालूम था और सीडार की मौत के बाद ये सच सबके सामने आया तो सबका कलेजा अपने मुँह को आ गया....किसी को यकीन नही हो रहा था की सीडार एक अनाथ था..."
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सीडार के अनाथ होने की खबर से जहाँ एक तरफ मेरे कलेजे का दुख दुगना हो गया वही दूसरी तरफ मुझे ,मेरे कयि छोटे सवालो का जवाब मिल गया था...मैं अक्सर एमटीएल भाई से पुछा करता था कि वो छुट्टियो मे घर क्यूँ नही जाते ?, क्या उन्हे हॉस्टिल मे अकेले वॉर्डन के साथ रहने मे ज़्यादा मज़ा आता है ? क्या आपके घर वाले आपको कुच्छ नही कहते ?
ऐसे ना जाने कितने सवाल मैं एमटीएल भाई से आए दिन पुछते रहता था और जवाब मे वो हर बार मेरे इन सवालो को मुस्कुरा कर टाल देते थे....और आज जब मुझे सच मालूम हुआ तो मुझे उनकी उस मुस्कुराहट के पीछे छिपे उस दर्द का अहसास हुआ,जिसे उन्होने कभी किसी के सामने ज़ाहिर नही किया था..... मैने ना जाने कितनी ही दफ़ा अंजाने मे ऐसे सवाल करके उनका दिल दुखाया था....मुझे अब भी याद है कि एक बार उन्होने मुझसे कहा था कि "अरमान यदि तू जनम से मेरा छोटा भाई होता तो मुझे बहुत खुशी होती....आइ लव यू यार..."
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"तो क्या तुम लोगो ने अनाथ बच्चो को सहारा देने वाली उस असोसियेशन को सीडार के बारे मे खबर नही दी..."
"दो दिन पहले ही उनको ये न्यूज़ हमने दे दी थी कि सीडार की मौत हो चुकी है लेकिन वो सीडार की बॉडी को लेने अब तक नही आए है..."
"आइ वान्ट सी हिम...नाउ"
"क्या..."झटका खाते हुए अरुण बोला
"हां, आइ वान्ट टू सी एमटीएल भाई...."
सीडार शायद ये भूल गया था कि कॉलेज के अंदर की लीडरशिप और बाहर की लीडरशिप मे बहुत डिफरेन्स होता है...कॉलेज के अंदर आप कुच्छ भी कर सकते है लेकिन कॉलेज के बाहर आपको कोई कुच्छ भी कर सकता है...सीडार से यही चूक हो गयी,वो एनटीपीसी की स्ट्राइक को कॉलेज के अंदर होने वाली स्ट्राइक समझ बैठा था,लेकिन वो स्ट्राइक करते वक़्त ये भूल चुका था मामला सरकार. से था जिनके हाथ मे पोलीस की बागडोर होती है...ना जाने क्यूँ मुझे ऐसा लग रहा था कि सीडार की मौत कोई कोयिन्सिडेन्स ना होकर फुल प्लॅनिंग मर्डर था...मैं सिर्फ़ ऐसा सोच सकता था कुच्छ कर नही सकता था और इस समय मैं सीडार की डेत बॉडी के सामने खड़ा उसको निहार रहा था....ये सच है कि मौत ,मरने वालो को इस दुनिया से आज़ाद कर देती है लेकिन एक सच ये भी है कि वही मौत उस मरने वाले से कयियो को जोड़ भी देती है....पता नही ,पर मुझे सीडार की बॉडी देखकर ना जाने ऐसा क्यूँ लग रहा था कि जैसे मेरी ज़िंदगी की बहुत बड़ी खुशी सीडार के साथ चली गयी है.....
किसी महान हस्ती ने कहा है कि“डेत एंड्स आ लाइफ, नोट आ रिलेशन्षिप.” और ये सच भी है ,क्यूंकी ढाई अक्षरो का शब्द "मौत" मुझसे ,सीडार को लाख कोशिशो के बावजूद भी अलग नही कर सकता था...मैं सीडार के साथ उस समय भी नही था जब वो कॉलेज छोड़ रहा था और मैं उसके साथ तब भी नही था जब वो ये दुनिया छोड़ रहा था....सीडार की मौत के तीन दिन बाद अनाथ बच्चो को पालने वाली उस असोसियेशन से एक आदमी हॉस्पिटल मे आया और उसने सीडार के शरीर को उन्ही पाँच तत्वो मे विलीन कर दिया जिन पाँच तत्वो से मिलकर उसका शरीर बना हुआ था और ये मेरी बदक़िस्मती थी कि उस आख़िरी वक़्त मे मैं वहाँ मौजूद नही था...क्यूंकी हॉस्पिटल के डॉक्टर्स ने विपिन भैया से सॉफ कह दिया था मुझे वहाँ नही जाना चाहिए.....और उस घटना के एक महीने से अधिक बीत जाने पर मैं पूरी तरह से ठीक हुआ , मेरे दोनो हाथ,दोनो पैर अब बिल्कुल सही-सलामत थे और पहले की तरह मज़बूत भी...मेरी कमर और शोल्डर भी अब पहले की तरह स्ट्रॉंग हो चुके थे...लेकिन हॉस्पिटल के उन आख़िरी दिनो मे मैने डॉक्टर्स को ये जताया कि अभी पूरी तरह से ठीक होने मे मुझे कुच्छ दिन का समय और लगेगा...डॉक्टर्स ने मेरी एक्स-रे रिपोर्ट देखी और मुझे ,मेरी हथेलियो को ओपन-क्लोज़ करने के लिए कहा तो मैने जान बूझकर वैसा नही किया और कहा कि मुझे ऐसा करने पर दर्द होता है....मेरी एक्स-रे रिपोर्ट देखकर डॉक्टर्स को जब यकीन हो गया की मैं अब पूरी तरह से ठीक हूँ तो उन्होने मुझे बिना किसी सहारे के चलने के लिए कहा और मैं जानबूझकर थोड़ी दूर चलने के बाद ज़मीन पर गिरा...ताकि उन्हे वो यकीन हो जाए जो मैं उन्हे यकीन दिलाना चाहता था....
"एक्स-रे रिपोर्ट के मुताबिक़ तो सब कुच्छ सही है...फिर तुझे प्राब्लम कहाँ हो रही है..."विपिन भैया ,जो कि इस समय मेरे पास बैठे थे उन्होने एक्स-रे रिपोर्ट उठाकर कहा...
"शायद हड्डियो को पुरानी जगह पर फिट होने मे कुच्छ टाइम लगे..."
"मतलब कि मुझे कुच्छ दिन और यहाँ रुकना पड़ेगा...."रिपोर्ट को एक किनारे रखते हुए भैया ने कहा...
"अरे नही...आप क्यूँ रुकोगे, अब तो मैं नॉर्मल हूँ,अब आप घर जाओ...थोड़े दिन बाद मैं भी हॉस्टिल से चला जाउन्गा...."
"स्योर..."
"हां...आप जाओ"
"ठीक है तो मैं आज ही रात की ट्रेन से निकलता हूँ..."अपनी घड़ी पर टाइम देखते हुए उन्होने कहा"अरुण को मैं कॉल कर दूँगा ,वो कल आ जाएगा...."
"वो तो क्या ,उसका बाप भी आएगा..."
"क्या..."
"कुच्छ नही...आप जाने की तैयारी करो "
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विपिन भैया को घर वापस भेजने के लिए मैं इतना उतावला इसलिए था क्यूंकी उनके यहाँ रहते तक मैं वो नही कर पाता जो मैं अब करने जा रहा था...जो मैं अब करने वाला था उसके लिए बड़े भैया का इस शहर से जाना बहुत ज़रूरी था और इसीलिए मैने बहुत ज़ोर देकर उन्हे जाने के लिए कहा...
दूसरे दिन अरुण मुझ से मिलने आया और आते ही उसने मेरे बेड के बगल मे रखी टेबल के उपर देखा कि कुच्छ खाने-पीने का समान रखा है या नही और जब उसे कुच्छ नही मिला तो मेरे सर के छोटे-छोटे बाल को खींच कर बोला...
"पूरा खा गया टकले,कुच्छ तो मेरे लिए छोड़ा होता...."
"अभी लंच आया नही ,आता होगा थोड़ी देर मे...."
"चल सही है...वैसे भी मुझे इस वक़्त सॉलिड भूख लग रही है..."
"बाइक पर आया है क्या..."
"और नही तो क्या हॉस्टिल से 20 किलोमेटेर पैदल आउन्गा...टकले तेरा दिमाग़ आजकल काम नही कर रहा है क्या..."
"गुड, मैं बहुत दिनो से इस मौके की तालश मे था..."एक पल मे कूदकर खड़ा होते हुए मैने कहा...
"बीसी...ये क्या था बे...कल तक तो तू ढंग से चल भी नही पा रहा था और आज एक दम से कूद कर खड़ा हो गया...."
"वो सब तू अभी नही समझेगा.."हॉस्पिटल द्वारा मुझे दी गयी मरीज़ो की ड्रेस उतारते हुए मैने वो कपड़े पहने जो मेरा भाई मुझे देकर गया था....
"साला कल तो एक चम्मच पकड़ते वक़्त तू दर्द से कराह रहा था और आज तो तुझे देखकर लगता है कि अभिच अपने हाथो से मूठ मार लेगा... "
"वो मैं नही कर सकता..."
"क्यूँ..."
"क्यूंकी कल रात ही मैने मूठ मारा है...ला बाइक की चाभी दे..."
"चूतिया है क्या...अगर कोई तुझे देखने आ गया तो..."
"अबे ये आइसीयू नही है जहाँ हर 15 मिनिट्स मे मुझे देखने कोई ना कोई आता रहेगा...इतने दिन बेड पर झूठी आक्टिंग करते हुए मैने जो नोटीस किया है उसके अनुसार अभी एक बार लंच सर्व करने के लिए हॉस्पिटल वाले आएँगे और फिर लंच देने के एक घंटे बाद ये देखने आएँगे कि मैं गोली,दवाई सही टाइम पर ले ली या नही....तो जब वो खाना देने आएँगे तो उनसे कहना कि मैं बाथरूम गया हूँ और जब वो एक घंटे बाद दोबारा आएँगे तो ये बोलना कि मैं फिर से बाथरूम गया हुआ हूँ....समझा"
"कुच्छ नही समझा, सीधे से लेट जा ...और वैसे तू कहाँ जाने की प्लॅनिंग कर रहा है..."मेरे हाथ से चाभी छीनते हुए अरुण ने पुछा....
"यदि मैने तुझे ये बता दिया तो तू मुझे जाने नही देगा और यदि तूने बिना सवाल-जवाब किए मुझे जाने दिया तो तुझे मैं वापस लौटने पर बहुत बड़ी खुशख़बरी दूँगा....सोच ले"बेड पर वापस बैठकर मैने कहा...
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अरुण कुच्छ देर तक किसी सोच मे डूबा रहा और फिर मुझे बाइक की चाभी पकड़ाते हुए बोला"जहाँ जाएगा,वहाँ से खाना खाकर आना...क्यूंकी तेरा लंच तो मैं सफ़ा चट करने वाला हूँ..."
"ओके...अपना मोबाइल, वॉलेट भी दे.."
"वो क्यूँ..."तीसरी बार चौक कर अरुण ने पुछा...
"तेरे लिए लड़की जुगाड़ करने जा रहा हूँ...अब जल्दी से वॉलेट और मोबाइल निकल...."
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हॉस्पिटल से बाहर आकर मैं जब पार्किंग की तरफ बढ़ा तब मुझे ध्यान आया कि मैने अरुण से बाइक का नंबर तो पुछा ही नही और मोबाइल अपने साथ ले आया हूँ तो अब उसे कॉल भी नही कर सकता....
"शायद उसने पार्किंग की स्लिप अपने पर्स मे डाली हो... "क्या करूँ ,क्या ना करूँ की उस अजीब सी उलझन मे फँसे मेरे 1400 ग्राम के दिमाग़ की बत्ती जैसे एका एक जली और तुरंत अरुण का वॉलेट निकाल कर चेक किया ...जिसमे मुझे अरुण की बाइक की स्लिप मिल गयी और मैं बाइक लेकर सीधे हॉस्पिटल से बाहर निकला
मेरा पहला टारगेट था नौशाद,क्यूंकी नौशाद को सबक सिखाने के लिए आज से अच्छा मौका मुझे कभी नही मिलता और इस वक़्त सारी सिचुयेशन ,सारी कंडीशन सेम वैसी ही थी जैसा कि मैने सोचा था...यहाँ तक कि अट्मॉस्फियरिक टेम्परेचर भी
हॉस्टिल की तरफ जाते वक़्त मैं उसी मेडिकल स्टोर के पास रुका,जहाँ से मैने दीपिका के लिए कॉंडम खरीदा था
"एक पॅड देना...."मेडिकल स्टोर वाले लड़के से मैने कहा
"कौन सा दूं, विस्पर या फिर स्टायफ्री...."
विस्पर और स्टायफ्री का नाम जब उस मेडिकल स्टोर वाले लड़के ने लिया तो मुझे अपनी ग़लती का अहसास हुआ लेकिन मैं अपनी ग़लती सुधारता उससे पहले ही वो मेडिकल स्टोर वाला लड़का बोल पड़ा...
"आइ नो..गर्लफ्रेंड के लिए चाहिए ना...भाई एक सजेशन है ,फोन करके पुच्छ ले उससे कि उसकी पसंद क्या है मतलब कि किस ब्रांड का पॅड वो यूज़ करती है...."
उसके ऐसा बोलने पर मैने अपनी आँखे छोटी की और उसे कुच्छ सेकेंड्स तक घूरता रहा.दिल किया कि साले का सर पकड़ कर सारे बाल नोच डालु और अपनी तरह टकला बना दूं...दिल किया कि सीधे उसका सर पकडू और बाहर खींचकर उसपर लातों की बारिश कर दूं....लेकिन मैने ऐसा नही किया क्यूंकी मुझे अपनी एनर्जी नौशाद के लिए बचा कर रखनी थी...
"गॉज़ पॅड देना बोले तो पट्टी और रूई भी देना...."
जब मैने उससे लड़कियो वाले पॅड की जगह दूसरा पॅड माँगा तो अबकी बार उसने अपनी आखे छोटी कर ली और कुच्छ सेकेंड्स तक मुझे घूरता रहा....
"तू समान देगा या मैं दूसरे दुकान से जाकर ले लूँ..."
"देता हूँ...देता हूँ..."
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उस मेडिकल स्टोर से निकल कर मैं फिर से हॉस्टिल की तरफ बढ़ने लगा और जैसे ही हॉस्टिल के करीब पहुचा तो मैने बाइक एक साइड रोक दी और अरुण का मोबाइल निकाल कर ,अमर सर को कॉल किया...
"मैं आ गया हूँ..."मैने कहा
"कहाँ है..."
"यही एस.पी. के बंगलों से थोड़ी दूर खड़ा हूँ..."
"ठीक है ,वही रुक मैं आता हूँ..."बोलकर अमर सर ने फोन काट दिया...
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वैसे तो मैं जो भी प्लान सोचता हूँ ,किसी को लेकर मैं जो भी स्ट्रॅटजी बनाता हूँ,उसकी खबर शुरुआत मे सिर्फ़ मुझे और मेरे दिमाग़ को होती है...लेकिन इस बार मेरे स्ट्रॅटजी ,मेरे प्लान की खबर अमर सर को भी थी...क्यूंकी वो इस प्लान मे बहुत इंपॉर्टेंट रोल प्ले कर रहे थे....बड़े भैया के मोबाइल से अक्सर रात को 12 बजे के बाद मैं अमर सर को कॉल करके उनसे नौशाद की खबर लेता रहता था और दो दिन पहले ही उन्होने मुझे बताया था कि इन दिनो मिड टर्म चल रहे है और नौशाद मिड टर्म देने ना जाकर पूरे दिन हॉस्टिल मे रहता है...यही सबसे सही मौका था क्यूंकी अकॉरडिंग टू माइ प्लान, मैने नौशाद को हॉस्टिल मे ठोका...ये बात जितने कम लोगो को मालूम चले ये उतना ही मेरे लिए सही था.जब मुझे सड़क के किनारे बाइक खड़े किए हुए कुच्छ देर बीत गई तो मैने सामने की तरफ नज़र डाली और अमर सर मुझे दूर, आते हुए दिख गये...
"क्या हाल है ,अरमान सर...बहुत दिन लगा दिए हॉस्टिल आने मे..."
"हॉस्पिटल की नर्सस को मुझसे प्यार हो गया है,साली डिसचार्ज ही नही करती...."मुस्कुराते हुए मैने कहा...
"ये ले खून की डिब्बी..."एक छ्होटी से डिब्बी मेरे हाथ मे पकड़ाते हुए अमर सर ने कहा"अब जा और छोड़ना मत साले को...*** चोद देना उस बीसी ,एमकेएल की....बेस्ट ऑफ लक..."
"लक तो मेरे ही हाथ मे है इसलिए यदि बोलना है तो ऑल दा बेस्ट बोलो..."
"ठीक है भाई,जैसी तेरी मर्ज़ी...ऑल दा बेस्ट...और सुन"
"टेलो..."
"सिर्फ़ आधा घंटा है तेरे पास क्यूंकी उसके बाद लड़के कॉलेज से हॉस्टिल आना शुरू कर देंगे..."
"डॉन'ट वरी..."बाइक स्टार्ट करके मैने स्कार्फ से अपना फेस बाँधा और बोला"मेरे पास जुगाड़ है..."
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कॉलेज मे सीनियर्स के मिड टर्म चल रहे थे ,इसलिए हॉस्टिल लगभग खाली ही था...लेकिन कुच्छ लौन्डे ऐसे होते है जिन्हे कॉलेज के मिड टर्म से कोई फ़र्क नही पड़ता और वो पूरे दिन हॉस्टिल मे रहकर खटिया तोड़ते रहते है.नौशाद उनमे से एक था. और भी कयि लड़के थे जो कॉलेज ना जाकर हॉस्टिल मे मौज़ूद थे...जिसमे से मेरा दोस्त सौरभ भी एक था और उसे इसकी भी जानकारी थी कि मैं आज यहाँ आने वाला हूँ....
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आज महीनो बाद हॉस्टिल को देखकर सीडार की याद खुद ब खुद आ गयी लेकिन मैने सीडार की यादों को अपने जहाँ से निकाल कर बाहर फेका क्यूंकी ये वक़्त किसी की याद मे दुखी होने का नही था और जब मैं इसमे कामयाब हुआ यानी कि खुद से सीडार की यादों को दूर करने के बाद मैने अपने फेस को स्कार्फ से बाँधे हुए अपने रूम की तरफ बढ़ा,जहाँ मेरा खास दोस्त सौरभ, मेरे दूसरे खास दोस्त सुलभ के साथ बैठा तब से मेरा इंतज़ार कर रहा था,जब से मैने उन्हे कॉल करके बताया था कि मैं हॉस्टिल आ रहा हूँ.....जब मैं अपने रूम की तरफ जा रहा था तो मुझे हॉस्टिल मे रहने वाले कुच्छ लड़को ने देखा लेकिन वो इतने जल्दी मे थे कि मुझे पहचान तक नही पाए..मुझे ना पहचान पाने की एक वजह शायद ये भी हो सकती है कि मैने उस वक़्त अपने चेहरे और सर को स्कार्फ से बँधा हुआ था....
अपने रूम की तरफ जाते हुए मैने ये सोचा था कि जाकर उन दोनो कामीनो से मैं गले मिलूँगा जिसके बाद दोनो शुरू मे मेरा हाल पुछेन्गे और फिर मेरे सर पर हाथ फिरकर मुझे टकलू-टकलू कहेंगे....लेकिन अंदर जाकर ना तो मैं उनसे गले मिला और ना ही उनका हाल पुछा....
"साले ,तू मेरे बिस्तर पर लेटकर मूठ मार मार रहा है उठ भोसडी के वहाँ से..."
मेरे अचानक रूम के अंदर आने से और मेरी तेज़ आवाज़ के कारण सौरभ बौखला गया और जल्दी से अपने पैंट को,जो कि घुटनो तक खिसक गया था,उसे कमर के उपर लाते हुए मेरी तरफ बढ़ा...
"कैसा है अरमान..."अपना एक हाथ मेरी तरफ बढ़ाते हुए सौरभ ने मेरा हाल पुछा....
"पीछे हट और लवडे मुझे छुना मत...साला जिस हाथ से मूठ मारता है उसी हाथ से हाथ मिलाता है..."अपने बिस्तर की बेडशीट को किनारे से पकड़ कर मैने खींचा और उसकी गठरी बनाकर सौरभ के मुँह पर दे मारा"बेटा इसे धो देना और सुलभ कहा है..."
"वो बाथरूम मे कर रहा है "
"वेरी गुड, लवडा मैं यहाँ इतने बड़े मिशन मे निकला हूँ और तुम दोनो यहाँ ये सब कर रहे हो...."
सौरभ को मैने बहुत सुनाया और जब सुलभ बाथरूम को स्पर्म डोनेट करके रूम मे आया तो मैने उसे भी बहुत गाली बाकी और फिर काम की बात करने लगे...
"नौशाद कहाँ है इस वक़्त..."उसका नाम लेते ही मेरा खून खौलने लगा ,क्यूंकी अब मुझे वो सब कुछ याद आने लगा था...जिसकी वजह से मैं 3 महीने से अधिक हॉस्पिटल मे पड़ा रहा था...उस दिन मुझे जितने भी ज़ख़्म मिले थे वो अब एक-एक करके हरे होते जा रहे थे....जब मेरे सारे ज़ख़्म एक-एक करके हरे हो रहे थे तो उसी वक़्त सौरभ ने मुझे सर्क्युलर शेप का लोहे का एक टुकड़ा दिया
"ये कहाँ से लाया ,मैने तो ड्यूस बॉल माँगा था..."
"कॉलेज के वर्कशॉप से चोरी कर लिया और वैसे भी ये ड्यूस बॉल से ज़्यादा हार्ड और भारी है...जिसको भी पड़ेगा उसका सर फॅट जाएगा..."
"ठीक है"सौरभ के हाथ से मैने बॉल ली...बॉल सच मे हद से ज़्यादा भारी थी...बॉल को अपने हाथो मे लेकर मैने सौरभ से रोड के बारे मे पुछा...
"रोड का जुगाड़ नही हो पाया ,लेकिन हॉकी स्टिक दरवाजे के पीछे छुपा दी है...."
"चल कोई बात नही..."रूम के बाहर आते हुए मैं बोला"और अपनी आँखे खुली रखना और जैसे ही नौशाद बाथरूम मे घुसे ,काम मे लग जाना..."
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सौरभ और सुलभ को हिदायत देने के बाद मैं उस फ्लोर के बाथरूम की तरफ बढ़ा...नौशाद का रूम बाथरूम के बगल मे था इसलिए वहाँ से गुज़रते वक़्त मैने नौशाद के रूम मे नज़र डाली तो देखा कि वो लोग दिन दहाड़े दारू पी रहे थे....यानी कि मेरा काम अब और भी आसान होने वाला था...
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