RE: Porn Hindi Kahani दिल दोस्ती और दारू
मेरे अंदर इस समय दो अरमान मौज़ूद थे और दोनो अपने-अपने विचार दे रहे थे...एक सही था और एक ग़लत ,ये तो मैं जानता था लेकिन सही कौन है ? और ग़लत कौन है ? मैं ये डिसाइड नही कर पा रहा था.मेरा मन कर रहा था कि मैं सड़क के किनारे लगे पेड़ो पर अपना सर दे मारू या फिर अपने बाल नोच डालु...क्यूंकी दूसरो से तो बचा जा सकता है लेकिन खुद से बचने की कोई राह नही होती, इस वक़्त मेरे अंदर दो अरमान थे..एक वो अरमान था जो एश से बेहिसाब मोहब्बत करता था तो दूसरा अरमान ,अरुण को अपना ख़सम खास यार मानता था...उन दोनो अरमान की लड़ाई से मेरे अंदर इस समय एक तूफान उठा हुआ था कि एक स्कूटी मेरे सामने से होकर गुज़री और थोड़ी दूर जाकर रुक गयी....
"अब ये कौन है और मैने इसका क्या बिगाड़ा है...जो मुझे घूर रही है..."अपने चेहरे पर स्कार्फ बाँधे उस लड़की को अपनी तरफ देखता हुआ पाकर मैने सोचा....
मैने अपने अगल-बगल ,आगे-पीछे भी चेक किया की वहाँ मेरे सिवा और कोई तो नही,जिसे ये स्कार्फ वाली आइटम देख रही है...लेकिन वहाँ कोई नही था.. हॉस्टिल को हाइवे से जोड़ने वाली सड़क के अंतिम छोर पर मैं सिर्फ़ अकेला खड़ा था जिसका सॉफ मतलब था कि वो स्कूटी वाली लड़की वहाँ खड़ी होकर मुझे ही देख रही है....
"अरमान...तुम यहाँ"अपने चेहरे पर स्कार्फ लपेटे हुए ही उस लड़की ने मुझसे कहा...
स्कार्फ बँधे हुए होने के कारण उसकी आवाज़ सॉफ नही आ रही थी,लेकिन मैं इतना तो समझ गया था कि ये लड़की कौन है...आक्च्युयली मैं आज इतने दिनो बाद उसे देख कर थोड़ा शॉक्ड हो गया था और साथ ही उसे देखकर एक मुस्कान मेरे होंठो पर आ गयी....
.
"दीपिका मॅम, काफ़ी दिनो बाद देखा..."
"वेट..."उसने स्कूटी का डाइरेक्षन चेंज किया और मेरी तरफ आने लगी मेरे सामने स्कूटी रोकने के बाद दीपिका मॅम ने अपना स्कार्फ हटाया और मुझसे पुछि कि मैं कहाँ जा रहा हूँ....
"कुच्छ काम है घर मे,इसलिए घर जा रहा हूँ..."
"गौतम के बारे मे सुना मैने..."स्कूटी साइड करके वो मेरे पास आई
"हां,मैने भी सुना...पता नही उसे किसने मारा,उस वक़्त मैं घर पर था..."
दीपिका मॅम से मैने झूठ बोला ,क्यूंकी मैं नही चाहता था कि उसे ये मालूम हो कि मुझे बचाने के लिए मेरे वॉर्डन और प्रिन्सिपल सर ने पोलीस से झूठ बोला था...सबको यही मालूम था कि जब गौतम की लड़ाई हुई तब मैं हॉस्टिल मे नही बल्कि अपने घर मे था....
"तो,कितने बजे की ट्रेन है..."
"6'ओ क्लॉक.."
"एक काम करो तुम मेरे साथ चलो..मेरा रूम रेलवे स्टेशन के आगे ही है तो तुम्हे वहाँ छोड़ते हुए चलूंगी..."कुच्छ देर सोचने के बाद दीपिका मॅम बोली...
"ये सही रहेगा थॅंक्स...."बोलते हुए मैं दीपिका मॅम के साथ उनकी स्कूटी की तरफ बढ़ा....
.
आज बहुत दिनो के बाद मैं दीपिका मॅम से मिला था इसलिए स्कूटी पर जब मैं उनके पीछे बैठा तो उनके पिछवाड़े के एक टच से ही मेरा अग्वाडा खड़ा हो गया....साला इतनी बुरी कंडीशन मे फँसे होने के बावजूद ठरक पन मेरे अंदर से नही गयी थी
दीपिका मॅम की एक खास आदत जो मुझे हमेशा से उसकी तरफ आकर्षित करती थी और वो थी उनके पर्फ्यूम की महक...जो इस वक़्त सीधे मेरे रोम-रोम मे एक हॉट लड़की के पास होने का अहसास करा रही थी,...मैं थोड़ा और आगे खिसक कर दीपिका मॅम से चिपक गया और अपना एक हाथ उसकी जाँघ पर रख कर दबाने लगा...मेरी इस हरकत पर दीपिका मॅम कुच्छ नही बोली और चुप चॅप स्कूटी चलाती रही,...इस दौरान मैने पूरा मज़ा लिया और कयि बार पीछे से उसके गर्दन को किस भी किया....
.
"सिगरेट पियोगे..."स्कूटी को धीमा करते हुए दीपिका मॅम ने मुझसे पुछा...
"हााइिईन्न्न्न्..."
"मैने पुछा सिगरेट पियोगे या नही..."अबकी बार उसने स्कूटी रोक कर पुछा...
"मैं सिगरेट सिर्फ़ दारू के साथ लेता हूँ..."
"और मैं चाय के साथ.."बोलते हुए वो नीचे उतर गयी और पास ही बने एक चाय वाले के पास जाकर दो चाय का ऑर्डर दिया...
"ये चाय-वाय रहने दो..."
"ओके..."उस चाय वाले की तरफ देखकर वो बोली"भैया एक लाइट देना और एक चाय..."
.
दीपिका मॅम लगभग 5 मिनिट तक सिगरेट की कश मारती रही और मैं सदमे मे था और दीपिका मॅम को अपनी आँखे फाड़-फाड़ कर देख रहा था....थोड़ी देर बाद जब उसकी सिगरेट और चाय ख़तम हो गयी तो उसने एक और चाय वित सिगरेट का ऑर्डर दिया....
"इसकी तो...एक और राउंड मार रही है"
"अरमान...एक काम करना..."सिगरेट के काश मारते हुए उसने मुझे अपने करीब आने के लिए कहा
"बोलो..."
"वो सामने...मेडिकल स्टोर दिख रहा है ना..."उसने सड़क के दूसरी तरफ इशारा करते हुए मुझसे पुछा...
"सब समझ गया...अबॉर्षन की गोलिया लानी होगी,राइट"
"जाके कॉंडम ले आओ ताकि मुझे अबॉर्षन ना करना पड़े "
दीपिका के द्वारा मुझे कॉंडम लाने के लिए कहने से मैं समझ गया कि वो आज रात मेरे साथ कूची-कूची खेलने के मूड मे है लेकिन 6 बजे मेरी ट्रेन थी इसलिए मैं चाहकर भी उसके साथ नही रह सकता था इसलिए मैने थोड़ा शरमाते हुए कहा...
"मॅम, शायद आप भूल रही है मेरी 6 बजे की ट्रेन है "
"ओये..किस भ्रम मे जी रहा है, मैं तेरे साथ नही बल्कि किसी और के साथ पलंग तोड़ने वाली हूँ...जा जाकर कॉंडम लेकर आ और सीधा एक पॅकेट लेकर आना ,बार-बार कॉंडम लेने दुकान जाना मुझे अच्छा नही लगता..."
"साली कुतिया "बड़बड़ाते हुए मैं कॉंडम का एक पूरा पॅकेट लेने मेडिकल स्टोर की तरफ बढ़ गया....
किसी मेडिकल स्टोर मे कॉंडम खरीदने के लिए जाने वाले सभी हमान बीयिंग्स मेरे ख़याल से दो तरह के होते है...एक वो जो एक दम बिंदास बेझिझक होकर कोनों ले आते है और एक वो जो कॉंडम खरीदते वक़्त थोड़ा शरमाते है...
मैं खुद को बिंदास बनाने की हर मुमकिन कोशिश कर रहा था और जो लाइन मुझे मेडिकल स्टोर वाले से कहनी थी उसकी मैने केयी बार प्रॅक्टीस भी कर ली थी...लेकिन ना जाने क्यूँ मेडिकल स्टोर के पास आकर मैं शरमाने लगा, मुझे उस मेडिकल स्टोर वाले से कॉंडम मॅगने मे झिझक महसूस हो रही थी...ऐसी झिझक पहली बार किसी मेडिकल स्टोर से कॉंडम खरीदने वाले लड़के के अंदर आना बड़ी नॉर्मल बात है लेकिन ये झिझक तब और बढ़ जाती है जब आप ,जहाँ पहली बार कॉंडम खरीदने जा रहे हो ,वहाँ अचानक से भीड़ बढ़ जाए....उन लोगो के बीच मुझे कॉंडम माँगने मे शरम आ रही थी लेकिन मैने खुद को मज़बूत किया और अपनी लाइन्स तीन-चार बार रिवाइज़ करके उस मेडिकल वेल की तरफ देख कर बोला...
"भैया कॉंडम देना तो... "
मेरा ऐसा बोलना था कि वहाँ खड़े सभी लोगो ने कुच्छ देर के लिए मुझे देखा और फिर हल्की सी स्माइल उनके होंठो पर आ गयी....
"क्या चाहिए आपको..."मेडिकल वाले ने मुझसे पुछा...
"कॉंडम देना..कॉंडम "
"कितना दूं ,एक ,दो..."
"पूरा एक पॅकेट देना "
ये सुनते ही वहाँ खड़े लोगो के होंठो पर फिर से एक स्माइल छा गयी...वहाँ खड़े लोगो का मुझे देखकर ऐसे मुस्कुराना मुझे पसंद नही आया और मैं चाहता था कि जल्द से जल्द कॉंडम लूँ और यहाँ से चलता बनूँ....
"किस ब्रांड का चाहिए..."मेडिकल वाले ने एक बार फिर मुझसे पुछा...
"जो सबसे अच्छा हो..."
"मानफ़ोर्से दूं, चलेगा..."
"दौड़ेगा...."
"विच फ्लेवर..."
"कोई सा भी दे दे "खिसियाते हुए मैने कहा ,जिसके बाद मेडिकल वाले ने सॅट्ट से कॉंडम का एक पॅकेट निकाला और झट से मुझे दे दिया....
.
"कमाल है ,चोदे कोई और उसकी प्रोटेक्षन के लिए कॉंडम लेने मैं दुकान जाउ... "मेडिकल स्टोर से वापस उस चाय वाले की तरफ आते हुए मैं बोला, जहाँ दीपिका मॅम सिगरेट के छल्ले बनाकर धुआ ,हवा मे उड़ा रही थी....
वापस आते समय मैने दूर से देखा कि दीपिका मॅम किसी से मोबाइल पर बात कर रही थी लेकिन मुझे अपनी तरफ आता देख उसने हड़बड़ाते हुए कॉल तुरंत डिसकनेक्ट कर दी...दीपिका मॅम की इस हरकत से मैं थोड़ा चौका ज़रूर लेकिन फिर बात को हवा मे उड़ाकर उसकी तरफ बढ़ा....
.
"ये लो मॅम, पूरा एक पॅकेट है..."कॉंडम का पॅकेट देते वक़्त मुझे फिर से दीपिका मॅम द्वारा मुझे देखकर कॉल डिसकनेक्ट करना...याद आ गया
"थॅंक्स अरमान डियर..."दीपिका मॅम ने कॉंडम अपने बॅग मे डाला और मेरी तरफ देखकर एका एक मुस्कुराने लगी....
"ये बिन बादल बरसात कैसे हो रही है...बोले तो इस मुस्कान का क्या राज़ है..."
"बस यूँ ही..."बोलते हुए दीपिका मॅम ने छल्ले को एक और सिगरेट वित टी का ऑर्डर दिया...जिसके बाद मैं कभी उस चाय वाले की तरफ देखता तो कभी दीपिका मॅम की तरफ....
"ये तीसरा राउंड है "
"यह ! आइ नो, अभी तो दो राउंड और बाकी है..."
"सच "
दीपिका मॅम के ऑर्डर पर उस चाय वाले ने चाय और सिगरेट लाकर दीपिका मॅम को दिया और सिगरेट जलाकर दीपिका मॅम धुआ मेरे चेहरे पर फेकने लगी....दीपिका मॅम का यूँ बार-बार मेरे फेस पर सिगरेट का धुआ छोड़ने से मेरे अंदर भी सिगरेट पीने की इच्छा जाग गयी और जब मुझसे रहा नही गया तो मैने कहा...
"एक कश इधर भी देना..."अपना हाथ दीपिका मॅम की तरफ बढ़ा कर मैने सिगरेट माँगा...
"सॉरी ,मैं अपनी सिगरेट किसी और के साथ शेयर नही करती..यदि तुम्हे चाहिए तो दूसरी खरीद लो..."
"ये नियम किसी और के लिए बचा कर रखना..."दीपिका मॅम जब मेरे चेहरे पर सिगरेट का धुआ छोड़ रही थी तो मैने उनके हाथ से सिगरेट छीन ली और बोला"एक बात पुच्छू..."
"क्या..."मेरी इस हरकत पर मेरा खून कर देनी वाली नज़र से मुझे देखते हुए वो बोली...
"जब मैं वापस यहाँ आ रहा था तो आपने मुझे देखकर कॉल डिसकनेक्ट क्यूँ कर दिया....मैं आपका हज़्बेंड तो हूँ नही जो मुझसे अपने अफेर छुपाओ..."
"हां...."लंबी-लंबी साँसे भरते हुए दीपिका मॅम बोली"तुमने सच कहा ,तुम मेरे हज़्बेंड तो हो नही ,जो मैं तुमसे अपना अफेर छिपा कर रखूँगी, वो मेरे नये बाय्फ्रेंड का कॉल था और तुम्हे बुरा ना लगे इसलिए मैने तुरंत कॉल डिसकनेक्ट कर दिया...."
.
"साली मुझे चूतिया बनाती है..."उसको देखकर मैने मन मे कहा....
मैने ऐसा जानबूझकर कहा था कि" मैं उसका हज़्बेंड तो हूँ नही ,जो वो मुझसे अपने अफेर्स छिपायेगी..." ताकि मैं उसका दिमाग़ पढ़ सकूँ, जब शुरू-शुरू मे मैने दीपिका मॅम से कॉल डिसकनेक्ट करने के बारे मे पुछा तो वो घबरा गयी थी लेकिन मेरे द्वारा अफेर वाली बात छेड़ने पर उसने एका एक राहत की साँस ली थी और फिर मुझसे बोली कि उसके बाय्फ्रेंड का कॉल था,...ऐसा बोलते वक़्त कोई भी दीपिका मॅम को देखकर ये बता सकता था कि दीपिका मॅम झूठ बोल रही थी,...उसका गोरा चेहरा लाल हो गया था ,जब मैने उससे कॉल डिसकनेक्ट करने का रीज़न पुछा था...अब जब दीपिका मॅम घबरा रही थी तो ज़रूर कोई घबराने वाली बात उसने फोन पर किसी से की होगी,ऐसा मैने अंदाज़ा लगाया और मुझे देखकर उसका कॉल डिसकनेक्ट करना मतलब वो नही चाहती थी कि मैं उसकी बात सुनूँ या फिर ये भी हो सकता था कि वो मुझसे रिलेटेड ही किसी से बात कर रही थी, लेकिन सवाल अब ये था कि किससे ?
.
अभी तक उस चाय वाले के दुकान मे बैठकर मैने ये गौर किया था कि दीपिका मॅम अधिक से अधिक समय तक मुझे यहाँ पर रोकने की कोशिश कर रही थी...मैं जब भी उसे वहाँ से चलने के लिए कहता तो वो चाय वाले को एक और चाय का ऑर्डर देकर मुझसे कहती कि"इतनी जल्दी रेलवे स्टेशन जाकर क्या करोगे,अभी तो सिर्फ़ 5 बजे है और वैसे भी मैं तुम्हे ड्रॉप करने जा ही रही हूँ ना..."
एक बार तो मैं कुच्छ देर के लिए ये मान भी लेता कि दीपिका मैम ऐसे ही कह रही है और मैं बेवजह ही छोटी सी बात को तूल दे रहा हूँ...लेकिन जबसे मैने उसे, मुझे देखकर कॉल डिसकनेक्ट करने के बारे मे पुछा था तब से वो पहले की तरह नॉर्मल बिहेव नही कर रही थी...वो कुच्छ घबराई हुई सी लग रही थी....
"सच सच बताओ मॅम कि उस वक़्त तुम किससे बात कर रही थी..."उसकी तरफ झुक कर मैने गंभीर होते हुए पुछा...
"किसी से तो नही, क्यूँ..."
"अब हमे चलना चाहिए ,5:30 बज चुके है और चाय वाले की चाय भी ख़तम हो चुकी है शायद..."बोलते हुए मैं खड़ा हो गया
"बैठो ना, कुच्छ देर यहाँ रुक कर बात करते है..."मेरा हाथ पकड़ कर मुझे बैठाते हुए दीपिका मॅम बोली...
"हद हो गयी अब तो "उसका हाथ झटक कर मैं गुस्से से बोला"तुझे नही जाना तो मत जा..लेकिन मेरी 6 बजे की ट्रेन है...मैं निकलता हूँ..."
.
"ओये लड़के सुन..."किसी ने पीछे से मेरा कंधा पकड़ कर कहा..
"कौन..."
"तेरा बाप,पीछे मूड..."
ये सुनते ही मैं गुस्से से उबलने लगा और तुरंत पीछे मुड़ा...पीछे मुड़कर मैं कुच्छ देखता ,कुच्छ समझता या फिर कुच्छ कहता उससे पहले ही मेरे माथे पर सामने से किसी ने जोरदार प्रहार किया और मैं वही अपना सर पकड़ कर बैठ गया, जिसने भी मुझे मारा था उसने पूरी टाइमिंग और पॉवर के साथ मारा था,जिससे कि मेरे कान मे इस वक़्त सीटिया बज रही थी और पूरा सर दर्द के साथ झन्ना रहा था...कुच्छ देर तक तो मैं वही नीचे अपने सर को पकड़ कर बैठा रहा और जब सामने की तरफ नज़र डाली तो कुच्छ दिखा ही नही,अपनी आँखो को रगड़ कर मैने सामने देखने की एक और कोशिश की लेकिन नतीज़ा पहले की तरह था,मुझे अब भी कुच्छ नही दिख रहा था...
.
"कौन..."बड़ी मुश्किल से मैं इतना बोल पाया....
जिसके बाद किसी ने मुझे पकड़ कर उठाया ,मुझे उपर उस एमकेएल दीपिका ने उठाया था, क्यूंकी मैं उसके पर्फ्यूम की खुशबू को महसूस कर सकता था....
"कैसे हो अरमान..."मेरे कंधो को सहलाते हुए दीपिका रंडी ने अपना मुँह खोला"तुम पुच्छ रहे थे ना कि मैने किसको कॉल किया था और तुम्हे आता देख कॉल डिसकनेक्ट क्यूँ की थी...तो सुनो, मैने गौतम के फादर को कॉल करके ये बताया कि उसका शिकार मेरे साथ है...मैने उन्हे इस दुकान का अड्रेस भी बताया और जब तुम्हे आते हुए देखा तो हड़बड़ाहट मे कॉल डिसकनेक्ट कर दी ताकि तुम्हे मालूम ना हो कि मैं किससे बात कर रही...अब तुम ये भी समझ गये होगे कि मैं तुम्हे क्यूँ जबर्जस्ति यहाँ रोक रही थी..."
"50 दे बीसी..."मैने कहा...
"क्या "
"कॉंडम तेरे बाप की दुकान से लाया हूँ क्या,चल निकाल 50 "दीपिका मॅम की तरफ हाथ बढ़ाते हुए मैने कहा, अब मुझे हल्का-हल्का कुच्छ दिखने लगा था...
"इस सिचुयेशन मे तुम 50 माँग रहे हो..."
"हां , तू जल्दी से 50 दे..."
"ये ले भीखारी अपने 50 "अपने पर्स से एक नोट निकाल कर दीपिका मॅम ने मेरे हाथ मे थमा दिया...
"अब एक पप्पी भी दे दे..."
मैं नही जानता कि उस समय मेरी इन हरकतों से दीपिका और मुझे मारने आए गौतम के बाप के आदमी क्या सोच रहे थे,वहाँ आस-पास खड़े लोग क्या सोच रहे थे...उनका रिक्षन क्या था....क्यूंकी मेरी आँखो के सामने इस वक़्त धुँधला-धुँधला नज़ारा था और उस धुंधले-धुंधले नज़ारे मे किसी के फेस के रिक्षन को देख पाना मुमकिन नही था...
"लगता है दिमाग़ पर पड़ने से असर कुच्छ ज़्यादा हो गया है..."
"लवडा चुसेगी तो सही हो जाएगा, ले चूस ना उस दिन की तरह..."
मैं ऐसी हरकत तीन वजह से कर रहा था पहला ये कि दीपिका का सबके सामने मज़ाक बना सकूँ,दूसरा मुझे कुच्छ सोचने के लिए थोड़ा टाइम मिल रहा था,तीसरा मैं इस जुगाड़ मे था कि कब मैं ठीक से देख पाऊ और देखते ही यहाँ से खिसक लूँ...उसके बाद दीपिका की कोई आवाज़ नही आई और जल्द ही मुझे सही से दिखना भी शुरू हो गया था...मैने देखा कि मुझे मारने के लिए एक नही..दो नही बल्कि एक अच्छी-ख़ासी फौज आई थी...साला मैं कोही सूपर हीरो हूँ क्या,जो गौतम के बाप ने इतने आदमियो को भेज दिया
"यदि ज़िंदा बच गया तो तेरा जीना हराम कर दूँगा दीपिका रंडी, अपनी चूत और गान्ड मे मेरी ये वॉर्निंग बच्चेदानी तक ठूंस ले..."स्कूटी के पास दीपिका को खड़ा देख कर मैने कहा...
"पहले ज़िंदा बच तो सही, चूतिए..."
"घर जाकर उपर वाले से यही दुआ करना कि मैं आज ज़िंदा ना बचु..."दीपिका से मैं बोला"क्यूंकी यदि मैं भूले से भी ज़िंदा बच गया,यदि भूले से भी मेरी आँख दोबारा खुल गयी...यदि भूले से भी मैं दोबारा कभी भी कॉलेज आया तो तू किसी को मुँह दिखाने के लायक नही रहेगी और तू ज़िंदगी भर यही सोचेगी कि उस दिन मैं अरमान के खिलाफ क्यूँ गयी..."
"अच्छा, पैर कब्र मे है लेकिन फिर भू दुनिया देखने की बात कर रहा है..."मुस्कुराते हुए दीपिका मॅम ने मुझे देखा और एक फ्लाइयिंग किस देकर वहाँ से चली गयी....
मुझे लाकर यहाँ फसाने वाली तो चली गयी थी ,अब मैं वहाँ अकेला बचा था...मैने आस-पास खड़े लोगो को देखा ,वो सब वहाँ खड़े मुझे देख तो रहे थे,लेकिन मेरी हेल्प करने के लिए उनमे से कोई भी आगे नही आया....खैर ये कोई बुरी बात नही क्यूंकी अगर उनकी जगह मैं होता तो मैं भी वही करता,जो इस वक़्त वहाँ खड़े लोग कर रहे थे....
मैने एक नज़र मुझे मारने आए गुन्डो पर डाली और देखते ही दहशत मे आ गया...मुझे कैसे भी करके वहाँ से भागना था, लेकिन जिसने मेरे सर मे कुच्छ देर पहले कसकर हमला किया था उसे मैं ऐसे ही नही छोड़ने वाला था...तभी मेरे गालो पर कुच्छ महसूस हुआ और मैने अपने हाथ से अपने गाल को सहलाया तो मालूम चला कि मेरे सर पर कुच्छ देर पहले जो रोड पड़ा था उसकी वजह से ब्लीडिंग शुरू हो गया है....मैने अपने दूसरे हाथ से चेहरे और सर को सहलाया और जब मेरे दोनो हाथ मेरी आँखो के सामने आए तो उनपर एक ताज़ा खून की परत जमी हुई थी, सहसा मेरा खून मेरे माथे से होते हुए मेरी आँखो तक पहुचा.....जिसके तुरंत बाद मैने डिसाइड किया कि मुझे अब करना क्या है....गौतम के बाप के गुंडे कोई फिल्मी गुंडे नही थे जो एक-एक करके मुझसे लड़ने आते ,वो सब एक साथ मेरी तरफ बढ़े....कुच्छ देर पहले जिसने मेरे सर पर रोड मारा था उसके हाथ मे वो रोड अब भी मौज़ूद था ,जिसे मज़बूती से पकड़े हुए वो मेरी तरफ बढ़ रहा था....
"तू तो गया आज कोमा मे..."चाय वाले की दुकान से मैने चाय की केटली उठाकर सीधा उसके सर पर ज़ोर से दे मारा जिसके हाथ मे मेरे खून से साना लोहे का रोड था....
"आआययईीी...मरो म्सी को.."कराहते हुए उसने अपने साथियो से कहा....
.
उस हरामखोर के सर को चाय की केटली से फोड़ने के बाद मैं पीछे मुड़ा और अपनी रूह की पूरी ताक़त लगाकर वहाँ से भागने लगा ,भाग तो वो भी मेरे पीछे रहे थे लेकिन मेरी रफ़्तार और उनकी रफ़्तार मे इस समय खरगोश और कछुये के दौड़ के बराबर फासला था...साले मोटे भैंसे
"आ जाओ लेडवो , तुम लोगो को शायद पता नही कि मैने पैदा होने के बाद चलना नही डाइरेक्ट दौड़ना शुरू किया था,इस खेल मे तो तुम्हारा बाप भी मुझे नही हरा सकता..."उनकी तरफ पलटकर मैने उन सबका मज़ाक उड़ाया और फिर से तेज़ रफ़्तार मे दौड़ने लगा.....
गौतम के बाप के गुन्डो की लगभग आधी फौज पीछे रह गयी थी और जो बचे हुए आधी फौज मेरा पीछा कर रही थी ,उनकी हालत भी मरे हुओ की तरह थी....अब मुझे इस भाग-दौड़ मे मज़ा आ रहा था क्यूंकी भागते वक़्त बीच-बीच मे मैं रुक जाता और पीछे मुड़कर उन गुन्डो को माँ-बहन की गालियाँ देता,जिससे वो फिर से मेरे पीछे भागने लगते....इसी भागम-भाग के बीच उन गुन्डो मे से कुच्छ ज़मीन पर धराशायी हो गये तो कुच्छ जहाँ थे वही किसी चीज़ का सहारा लेकर खड़े हो गये...अब मेरे पीछे सिर्फ़ 4-5 गुंडे ही थे....भागते हुए मैं एक पतली गली मे घुसा और बड़े से घर की दीवार पर खुद को टिका कर आराम करने लगा....लेकिन जो 4-5 लोग मेरे पीछे पड़े थे वो भी हान्फते हुए वहाँ पहुच गये जिसके बाद मैने उस घर का गोल-गोल राउंड लगाना शुरू कर दिया और बाकी बचे उन 4-5 लोगो को भी लगभग अधमरा सा कर दिया.....
"उसैन बोल्ट को जानता है..."उनमे से एक के पास जाकर मैने पुछा, क्यूंकी मुझे मालूम था कि वो जब खुद को नही संभाल पा रहे है तो मुझपर क्या खाक हमला करेंगे...
"नही ,कौन उसेन बलत...हह..."एक ने हान्फते हुए कहा
"बीसी, यदि तू हां मे जवाब देता तो सॉलिड डाइलॉग मारता...अनपढ़ साले.."
"ईईए...."वो मरी हुई आवाज़ मे चीखा
"चल बे ,साइड चल..."उसको ज़मीन पर गिराते हुए मैं वहाँ से खिसक लिया.....
.
"ये सही जगह है...यहाँ तोड़ा आराम कर लेता हूँ..."अपने सर पर हाथ फिराते हुए मैने खुद से कहा , ब्लीडिंग रुक चुकी थी और मैं अब तक होश मे था...जिससे मुझे राहत मिली ,लेकिन सर अब भी रोड के जोरदार प्रहार से दुख रहा था....मैं इस वक़्त एक छोटे से ग्राउंड मे था,जहाँ कुच्छ लड़के क्रिकेट खेल रहे थे....
"पानी है क्या...पानी"उनके पास पहुच कर मैने उनसे पानी माँगा...
पहले तो वो लड़के मुझे देखकर घबरा गये और एक दूसरे का मुँह तकने लगे...लेकिन बाद मे उनमे से एक ने थोड़े दूर पर रखा अपना बॅग उठाया और पानी का एक बोतल मुझे थमा दिया...
"थॅंक्स भाई..."लंबी-लंबी साँसे भरते हुए मैने उसके हाथ से बोतल ले ली और बोतल का थक्कन खोल कर शुरू मे पानी के कुच्छ घूट अपने गले से नीचे उतारा और फिर बाद मे बाकी बचे पानी से अपना फेस सॉफ करने लगा....मेरे सर पर कयि जगह खून बालो से चिपक गया था और मैने जब अपने सर पर पानी डाला तो मेरा पूरा चेहरा खून से सन गया...मेरे सर मे जिस जगह रोड पड़ी थी वहाँ जब मेरा हाथ गया तो जोरो का दर्द हुआ ,जिसके बाद मैने तुरंत अपना हाथ वहाँ से हटा लिया और खून से सनी शर्ट उतार कर वही ग्राउंड मे फेक दी....
.
मैने एक बार फिर क्रिकेट खेल रहे उन लड़को का शुक्रिया अदा किया और वहाँ से दूर जहाँ बैठने का इंतज़ाम था उधर चल पड़ा....रोड मुझे लगभग 15-20 मिनिट पहले पड़ा था लेकिन उसका असर अब हो रहा था. ग्राउंड पर चलते समय अचानक ही मेरी आँखो के सामने धूंधलापन छाने लगा और थोड़ी दूर पैदल चलने के बाद मेरे हाथ-पैर भी जवाब देने लगे...मैं लड़खड़ाने लगा था , कयि बार तो ज़मीन पर भी गिरा...लेकिन जैसे-तैसे मैं उस जगह पहुच ही गया जहाँ बैठने का इंतज़ाम किया गया था.....
"हेलो ,अमर भाई...मैं अरमान...अरमान बोल रहा हूँ,बहुत बड़ा पंगा हो गया है मेरे साथ...गौतम के बाप के आदमियो ने रेलवे स्टेशन जाते वक़्त मुझपर अचानक अटॅक किया और मैं बड़ी मुश्किल से उन्हे चकमा देकर इधर एक ग्राउंड पर पहुचा हूँ...आप तुरंत इधर आ जाओ, और हां साथ मे जितने हो सके उतने लड़को को भी ले आना...."ग्राउंड का अड्रेस बताते हुए मैने अमर से फोन पर कहा...
"आज आया है बेटा लाइन पर, अब तो तू गया....मैं अमर नही नौशाद बोल रहा हूँ,वो क्या है ना बेटा कि अमर का मोबाइल इस वक़्त मेरे पास है....तूने सबसे बड़ी ग़लती की अमर को फोन लगा कर और उससे भी बड़ी ग़लती की मुझे उस जगह का अड्रेस बताकर जहाँ तू अभी गीदड़ की तरह छिपा हुआ है...तू तो गया बेटा काम से, तुझे मुझसे पंगा नही लेना चाहिए था..."
"सॉरी फॉर दट डे, आइ नीड हेल्प..."अपनी बची कूची एनर्जी वेस्ट करते हुए मैं बोला...
"*** चुदा बीसी..."
"हेलो....हेलो...हेल...."
मेरा दस हज़ार का मोबाइल मेरे हाथ से छूट कर नीचे गिर गया, अब मेरी ज़ुबान थकने लगी थी,हाथ-पैर ने काम करना बंद कर दिया था...मैं खुद के पैरो पर खड़ा होना तो दूर अपने शरीर के किसी हिस्से को ठीक से हिला तक नही पा रहा था...जैसे-जैसे सूरज ढल रहा था वैसे-वैसे एक घाना अंधेरा मेरी आँखो के सामने फैलता जा रहा था....मैं किसी को आवाज़ देना चाहता था, मैं किसी को मदद के लिए पुकारना चाहता था...लेकिन ना तो वहाँ इस वक़्त कोई था और ना ही मुझमे किसी को आवाज़ देने की ताक़त बची थी...ग्राउंड पर क्रिकेट खेलने वाले लड़के कब के अपने-अपने घर जा चुके थे...साले मादरचोद, क्यूंकी यदि कभी मेरे सामने ऐसे खून से सना कोई व्यक्ति पड़ा होता तो मैं उसकी मदद ज़रूर करता, इतनी इंसानियत तो अब भी बाकी थी मुझमे की मैं उसे हॉस्पिटल तक पहुचा देता या फिर मोबाइल से 108 डायल करके ये खबर तो दे ही देता कि यहाँ एक इंसान मरने की कगार पर है...मैं अरमान ,उम्र 19 साल...मैं भले ही किसी के अरमानो की फिक्र नही करता लेकिन किसी के जान की कद्र करना मुझे आता है नही तो अब तक वरुण ,मुझपर एफआइआर करने वाले फर्स्ट एअर के वो दो लड़के और गौतम ,आज इस दुनिया मे नही होते.........
मुझे उस वक़्त नही पता था कि आज जो मेरी आँखे बंद होंगी तो फिर कब खुलेगी...खुलेंगी भी या नही ,मुझे इसपर भी संदेह था...जैसे-जैसे रात का पहर बढ़ रहा था मुझे ठंड लगनी शुरू हो गयी थी लेकिन ना तो मैं अपनी दोनो हथेलियो को रगड़ कर गर्मी का अहसास कर सकता था और ना ही किसी को मदद के लिए आवाज़ दे सकता था...थक-हार कर जोरदार ठंड से तिठुरते हुए मैने अपनी आँखे मूंद ली ,तब मुझे मेरे अतीत की किताब के कयि पन्ने याद आने लगे...
मुझे अब भी याद है एक बार जब मुझे जोरो का बुखार हुआ था तो कैसे पूरा घर मेरी देख भाल मे भिड़ा हुआ था...तब मुझे जो भी पसंद होता मैं वो माँगता और मेरी फरमाइश पूरी कर दी जाती थी...मैने कयि बार ठीक होते हुए भी ऐसा नाटक किया,जैसे मैं अब बस मरने ही वाला हूँ और घरवालो से ये कहता कि मुझे ये चाहिए .
मुझे अब भी याद है कि जब मेरी तबीयत खराब थी तो मेरा बड़ा भाई घंटो मेरे सामने बैठकर मुझे लेटेस्ट न्यूज़ सुनाता रहता ,जिसमे मुझे रत्ती भर भी इंटेरेस्ट नही था और जब मैं अपने बड़े भाई की न्यूज़ सुनकर जमहाई मारने लगता तो वो गुदगुदा कर मेरी सारी नींद भगा देता था.....
.
"ढुंढ़ो साले को,उसने फोन करके इसी ग्राउंड का अड्रेस दिया था..."
इस आवाज़ ने मुझे मेरे अतीत की किताब से वापस लाकर वर्तमान मे ला पटका,जहाँ मेरा पूरा शरीर लहू-लुहान होकर पड़ा हुआ था...मैने आवाज़ की तरफ नज़र दौड़ाई तो पाया कि कुच्छ लोग हाथो मे टार्च लिए ग्राउंड के अंदर दाखिल हुए है...वैसे तो मेरा सर बहुत जोरो से दर्द कर रहा था ,लेकिन मैने इतना अंदाज़ा तो लगा लिया था कि ये लोग वही गुंडे है और ये यहाँ मुझे तालश रहे है....
.
"नौशाद ने सच मे इन्हे बता दिया, यदि आज ज़िंदा बच गया तो सबसे पहले नौशाद को रगडूंगा बाद मे दीपिका को...."उन्हे अपनी तरफ आता देख मैने सोचा.
जैसे -जैसे वो गुंडे मेरे करीब आ रहे थे मुझमे थोड़ी बहुत ताक़त आने लगी थी..मैने अपनी आँखे इधर उधर हिलाई तो मालूम चला कि मुझसे थोड़ी दूर पर एक बड़ा सा पत्थर रखा हुआ ,जिसके पीछे यदि मैं छिप जाउ तो ज़िंदा बच सकता हूँ....ज़मीन पर घिसट-घिसट कर जब मैं उस पत्थर की तरफ जा रहा था तो मेरे अंदर सिर्फ़ एक ही ख़याल था कि सबसे पहले मैं नौशाद की खटिया खड़ी करूँगा और फिर दीपिका रंडी को कॉलेज से बाहर निकाल फेकुंगा....मुझे इन दोनो पर ही बहुत ज़्यादा गुस्सा आ रहा था क्यूंकी दीपिका मॅम ने मुझे इस लफडे मे फँसाया और जब मैं इससे बच गया तो नौशाद ने आकर मुझे वापस फँसा दिया.....
.
आख़िर कर मैं उस बड़े से पत्थर तक पहुच ही गया ,वो गुंडे टॉर्च लेकर उस पत्थर से थोड़ी दूर तक आए और फिर चले गये, उन्हे वहाँ से जाता देख मैने राहत की साँस ली लेकिन मुझे ये नही पता था कि हालत अभी और बदतर होने वाले है....मैने उन गुन्डो को जाता देख सुकून की साँस तो ली लेकिन मैं उन गुन्डो मे शामिल उस एक को नही देख पाया जो अंधेरे मे अपनी टॉर्च बंद किए ठीक उसी पत्थर के उपर खड़ा था ,जिसकी ऊलत मे मैं लेटा हुआ था....मुझे इसका अहसास तक नही हुआ कि एक शाकस ठीक मेरे उपर है. उसके उपर होने का अहसास मुझे तब हुआ जब वो कूदकर मेरे सामने आया....उसने हाथ मे मुझे मारने के लिए हॉकी स्टिक टाइप का कुच्छ पकड़ रखा था ,जिसे उसने पहले पहल मेरे गाल मे हल्के से टच किया और फिर मेरे सर मे दे मारा.....इस बार भी दिमाग़ पूरी तरह झन्ना गया और एक तेज दर्द मेरे सर मे उठा..उसके बाद वो नही रुका और नोन-स्टॉप मेरे हाथ-पैर...सर, पेट ,सीने मे हमला करता रहा....कुच्छ देर बाद उसके साथी भी वहाँ पहुच गये और वो सब भी मुझ पर एक साथ बरस पड़े....
मुझे बहुत ज़्यादा दर्द हो रहा था, मैं दर्द से चीखना चाहता था...लेकिन आवाज़ थी कि गले से उपर नही आ रही थी...मेरे शरीर के हर एक अंग को बुरी तरह से पीटा जा रहा था बिना इसकी परवाह किए कि मैं मर भी सकता हूँ...वो मुझे तब भी मारते रहे जब मुझे होश था और शायद मुझे उन्होने तब भी बहुत मारा होगा जब मैं बेहोश हो चुका था....
|