RE: Porn Hindi Kahani दिल दोस्ती और दारू
एस.पी. का नामे सुनते ही उन लोगो के तेवर काफ़ी हद तक कम हो गया...वो सभी,जो गौतम के साथ आए थे,एक -दूसरे का मुँह तकने लगे...और मैं यही तो चाहता था कि एस.पी. का सपोर्ट अरुण पर है,ये सोचकर वो वहाँ से चले जाए और बात को भूल जाए.....
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"मुझे इस पर यकीन नही,तुम लोग एक-एक रूम चेक करो और जहाँ भी वो लवडा का बाल दिखे...मार दो साले को...बीसी मेरी बहन से इश्क़ लड़ाता है..."
गौतम के ऐसा कहने पर उसके चम्चे हॉस्टिल के हर एक रूम को चेक करने लगे...अरुण को मैने फ्लोर के सबसे लास्ट रूम मे छुपने के लिए कहा था...इसलिए शुरू के कुच्छ कमरो को जब गौतम के चम्चो ने चेक किया तो उन्हे अरुण नही मिला....लेकिन जब वो फ्लोर के आख़िरी छोर की तरफ बढ़े तो मेरी साँसे अटकने लगी...क्यूंकी यदि उन्होने अरुण को हॉस्टिल मे देख लिया तो वो जान जाएँगे कि एस.पी. से ना तो मेरा कोई रीलेशन है और ना ही अरुण का...यदि ऐसा होता तो फिर वो ये भी जान जाते कि एस.पी. का सपोर्ट लेकर मैं उन्हे आज तक सिर्फ़ चूतिया ही बनाते आया हूँ....
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"ओये, इसे रंडी खाना समझ रखा है क्या, जो हर रूम को खोल कर देख रहे हो...मैने बोला ना कि अरुण यहाँ नही है..."
"तू बीसी चुप रहा..."मेरा कॉलर पकड़ कर गौतम ने मुझे मेरे रूम के अंदर किया और बोला"तू क्या सोचता है कि मुझे मालूम नही तेरे कांड...फर्स्ट एअर के दो लौन्डो को तूने ही मारा था ये मुझे पता है और बहुत जल्द तेरा भी नंबर आने वाला है....बेटा ऐसा मारूँगा तुझे कि तेरी सारी हेकड़ी निकल जाएगा...एक हिजड़े की ज़िंदगी जीने पर मज़बूर कर दूँगा तुझे मैं...तेरा बाप भी तुझे देखकर हिजड़ा कहेगा और तालिया बजाएगा....मादरचोद तेरी मैं वो हालत करने वाला हूँ कि तुझ पर कोई पेशाब भी करने से पहले सौ बार सोचेगा...चल भाग मादरचोद..."मुझे ज़ोर से धक्का देते हुए गौतम ने कहा...जिसके बाद मैं सीधे अपने बेड के पास गिरा और मेरा सर ज़ोर से किसी चीज़ से टकराया...दर्द तो बहुत कर रहा था लेकिन मेरे अंदर उफन रहे ज्वालामुखी ने उस दर्द को लगभग शुन्य कर दिया...मैने बिस्तर के नीचे पड़ा लोहे का रोड निकाला और खड़ा होकर गौतम को आवाज़ दी...
"इधर देख बे रंडी की औलाद...पहले जाकर अपनी माँ से पुछ्ना कि कितनो का लंड लेकर तुझे पैदा किया है,फिर मुझसे बात करना"लोहे की रोड को मज़बूती से पकड़ते हुए मैने कहा और बिना कुच्छ सोचे-समझे अपनी पूरी ताक़त से वो रोड गौतम के सर मे दे मारा....
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गौतम के सर पर लोहे का रोड मैने इतनी तेज़ी से मारा था कि वो उसी वक़्त अपने होश खो बैठा ,उसके सरसे खून की धारा बहने लगी...मेरा प्रहार इतना तेज था कि गौतम के चेहरे का कोई भी अंग इस वक़्त नही दिख रहा था...दिख रहा था तो सिर्फ़ खून...सिर्फ़ और सिर्फ़ खून...तब तक हॉस्टिल के सारे लड़के भी मेरे रूम के सामने पहुच गये थे और गौतम के चम्चो को पकड़ कर धो रहे थे.... गौतम ज़मीन पर पट बेहोश पड़ा हुआ था,जिसे मैने रोड से ही सीधा किया और अपनी पूरी क्षमता से एक और रोड उसके पेट मे मारा...जिसके बाद खून सीधे उसके मुँह से निकल कर मेरे उपर पड़ा.......
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उस दिन हॉस्टिल मे बहुत बड़ा लफडा हुआ था...हम हॉस्टिल वालो ने गौतम और उसके सभी दोस्तो को बहुत मारा...उस समय गुस्से मे शायद मैं ये भूल चुका था कि लोहे की रोड से जिसका मैं सर फोड़ रहा हूँ,वो कोई आम लड़का नही है....गौतम के पेट मे रोड मारकर उसके मुँह से खून निकालते वक़्त मैं ये भूल चुका था कि गौतम का बाप एक बहुत बड़ा गुंडा है और वो इसका बदला मुझसे ज़रूर लेगा....
मैने अब तक के अपने ज़िंदगी के 19 साल मे आज सबसे बड़ी ग़लती कर दी है ,इसका अंदाज़ा मुझे तब हुआ , जब गौतम को बेहोशी की हालत मे आंब्युलेन्स के ज़रिए हॉस्पिटल ले जाया जा रहा था...मैं उसी वक़्त समझ गया था कि इस आक्षन का रिक्षन तो होगा और वो भी बहुत बहुत बहुत बुरा...मेरा गुस्सा जब से शांत हुआ था तभी से मेरे अंदर एक डर घर कर चुका था...वो ये था की गौतम का बाप अब मेरा क्या हाल करेगा...यदि ये कॉलेज की छोटी-मोटी लड़ाई होती तो शायद उसका बाप इसे इग्नोर भी कर देता लेकिन यहाँ उसके एकलौते बेटे का मैने सर फोड़ डाला था...मैं ख़ौफ्फ खा रहा था उस पल के लिए,जब गौतम का बाप अपने बेटे का खून से सना शरीर देखेगा...इस समय मेरे दिमाग़ ने भी अपना साइड एफेक्ट दिखाना शुरू कर दिया..इस समय जब मुझे मेरे दिमाग़ की सबसे ज़्यादा ज़रूरत थी तो वो मुझे धोका देकर आने वाले समय मे मेरा हाल क्या होने वाला है ,ये बता रहा था...मैने देखा कि गौतम के बाप ने मेरे सर पर ठीक उसी तरह से रोड मारा जैसा कि मैने गौतम के सर पर मारा था...
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"अरमान..."किसी ने मुझे पुकारा
"अरमान..."
"अबे अरमाआअन्णन्न्...."कोई मेरे कान के पास ज़ोर से चिल्लाया...
"क्या है बे बोसे ड्के "हॉस्टिल मे रहने वाले उस स्टूडेंट को देख कर मैने पुछा
"सीडार सर,तुझे अमर सर के रूम मे बुला रहे है...चल जल्दी.."
"सीडार भाई,इतनी जल्दी हॉस्टिल कैसे पहुचे...उन्हे तो मैने कॉल तक नही किया था..."
"तू खिड़की के पास ही खड़ा है तो क्या तूने सूरज को ढलते हुए नही देखा...बेटा बाहर नज़र मार ,रात हो चुकी है...अब चल जल्दी से,वॉर्डन भी वहाँ अमर सर के रूम मे मौज़ूद है..."
उसके कहने पर मैने बाहर देखा और इस वक़्त सच मे रात थी...मैने बौखलाते हुए अपनी घड़ी मे टाइम भी देखा तो रात के 7 बज रहे थे...यानी कि मैं घंटो से यही खिड़की के पास खड़ा हूँ,लेकिन मुझे ये नही मालूम चला कि रात कब हो गयी....
"चल..चलते है.."उस लड़के के साथ रूम से बाहर निकलते हुए मैने कहा...
रूम से बाहर आते वक़्त मेरी नज़र अपने आप ही वहाँ पड़ गयी,जहाँ कुच्छ घंटे पहले गौतम खून मे सना हुआ लेटा था...वहाँ खून के निशान अब भी थे और मेरे दिमाग़ ने आने वाले पल की भविष्यवाणी करते हुए मुझे वो सीन दिखाया जिसे देख कर मेरी रूह कांप गयी,...मैने देखा कि मैं खून से लथपथ कहीं पड़ा हुआ हूँ और जानवर मेरे शरीर को नोच-नोच कर खा रहे है....
"अरमान..क्या हुआ,.."मुझे होश मे लाते हुए उस लड़के ने हैरानी से मेरी तरफ देखा....
"कुच्छ नही...चल"
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अमर सर के रूम के अंदर इस वक़्त लगभग सभी सोर्स वाले होस्टेलेर्स बैठे हुए थे...कुच्छ फोन पर किसी से बात कर रहे थे तो कुच्छ आपस मे आज हॉस्टिल मे हुए मार-पीट के बारे मे डिस्कशन कर रहे थे...हमारा हॉस्टिल वॉर्डन सब लड़को के सामने एक चेयर पर अपना सर पकड़ कर बैठा हुआ था....मेरे अंदर आते ही सब शांत हो गये,जो कुच्छ देर पहले किसी को कॉल पे कॉल किए जा रहे थे उन्होने मोबाइल नीचे कर लिया...जो लोग घंटो पहले हुई इस मार-पीट के बारे मे डिस्कशन कर रहे थे वो मुझे देख कर चुप हो गये और हॉस्टिल वॉर्डन ने बिना समय गवाए एक तमाचा मेरे गाल पर जड़ दिया...
"बहुत बड़ा गुंडा है तू...अब पता चलेगा तुझे की असलियत मे गुंडागिरी क्या होती है...तेरी वजह से मेरी नौकरी तो जाएगी ही,साथ मे तेरी जान भी जाएगी..."बोलकर वॉर्डन ने अपनी कुर्सी पकड़ ली और बैठ कर फिर से अपना सर पकड़ लिया....साला फट्टू
वैसे तो मैं वहाँ मौज़ूद सभी सीनियर्स,क्लासमेट और जूनियर्स को जानता था पर इस वक़्त मेरी आँखे सिर्फ़ और सिर्फ़ सीडार पर टिकी हुई थी...
"ये लोग जो कह रहे है क्या वो सच है...क्या तूने ही गौतम को मारा है..."सीडार ने पुछा
"हां..."
"तो अब क्या सोचा है...कैसे बचेगा इन सब से और मेरे ख़याल से तूने प्लान तो बनाया ही होगा कि गौतम को मारने के बाद तू उसके बाप से कैसे बचेगा..."
"मैं गौतम को नही मारना चाहता था,वो तो सडन्ली सब कुच्छ हो गया..."
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उस दिन शायद वो पहला मौका था जब मैं कुच्छ सोच नही पा रहा था,मैं जब भी इन सबसे बचने के लिए कुच्छ सोच-विचार करता तो मेरा दिमाग़ अलग ही डाइरेक्षन मे मुझे ले जाता था..जहाँ मैं जाना नही चाहता था...उस दिन हमारी मीटिंग घंटो तक चली और उस मीटिंग से हमारे सामने दो प्राब्लम आए और हॉस्टिल के हर एक लड़के ने सुझाव दिया ,सिर्फ़ मुझे छोड़ कर ,कि अब आगे क्या करना चाहिए....वॉर्डन हमारे साथ था और वॉर्डन ने कॉलेज के प्रिन्सिपल को भी रात मे पट्टी पढ़ा दी थी ,जिसके बाद हमे ये उम्मीद थी कि प्रिन्सिपल पोलीस के सामने हमारा साथ देगा..हमारे सामने इस वक़्त सिर्फ़ दो प्रॉब्लम्स थी और दोनो ही प्रॉब्लम्स कल सुबह की पहली किरण के साथ मेरी ज़िंदगी मे दस्तक देने वाली थी....पहली प्राब्लम ये थी कि मुझपर और मेरे दोस्तो पर हाफ-मर्डर ओर अटेंप्ट टू मर्डर का केस बनेगा...दूसरा ये कि गौतम का बाप हाथ धोकर मेरे पीछे पड़ जाएगा,जिसके बाद मेरा बचना नामुमकिन ही था..
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पोलीस केस को सुलझाने मे हमे ज़्यादा दिक्कतो का सामना नही करना पड़ा क्यूंकी गौतम और उसके दोस्त हॉस्टिल के अंदर घुसे थे मतलब लड़ाई करने के इरादे से वो वहाँ आए थे और फिर सब लड़को के बीच मार-पीट मे गौतम का सर किसी चीज़ से टकराया और वो वही बेहोश हो गया...हम मे से कोई एक भी सामने नही आया जिससे पोलीस किसे रिमॅंड पर ले और किसे ना ले ये उनके लिए मुश्किल हो गया.... हमने उस थ्री स्टार की वर्दी पहने हुए पोलीसवाले के सामने ये प्रूव कर दिया कि गौतम हमे मारने आया था और जिन लोगो का नाम एफ.आइ.आर. मे दर्ज हुआ है वो तो कल रिसेस के बाद वॉर्डन से दो दिन की छुट्टी माँग कर घर के लिए निकल चुके थे लेकिन उन्हे आज वापस इसलिए बुलाया गया ताकि पोलीस को शक़ ना हो कि कॉलेज किसी को बचाने की कोशिश कर रहा है...
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मुझे ,हॉस्टिल मे रहने वाले कुच्छ लड़को के साथ पोलीस स्टेशन भी ले जाया गया...जहाँ मुझे शुरू मे धमकाया गया और फिर कहा गया कि "यदि मैं उन्हे सब सच बता देता हूँ तो वो मुझे कुच्छ नही होने देंगे..."
वो मुझसे वो सब पुच्छ रहे थे जिसे ना बताने की प्रॅक्टीस मैने कल रात भर की थी,..पोलीस वालो ने मुझसे कल की घटना के बारे मे जितनी भी बार पुछा...जिस भी तरीके से पुछा, मैने हर बार अपना सर ना मे हिलाया और ज़ुबान ना मे चलाई...
"हां सर,हम उसे ला रहे है..."उस थ्री स्टार की वर्दी पहने हुए पोलीस वाले ने फोन पर किसी से कहा और मेरी तरफ देख कर बोला"चल ...तेरे प्रिन्सिपल का फोन आया है,.."
"मैने तो पहले ही कहा था कि मुझे कुच्छ नही मालूम...जो लड़के मेरा नाम बता रहे है वो मुझसे खुन्नस खाए हुए है...इसीलिए उन्होने मेरा नाम बताया..."
"मैने तुझसे पहले भी कहा है और अब भी कह रहा हूँ कि मेरे कंधे पर ये तीन स्टार ऐसे ही नही लगे है...चूतिया किसी और को बनाना...अब चल.."
उसके बाद सारे रास्ते भर मैने अपना मुँह नही खोला क्यूंकी धीरे-धीरे मुझे ऐसा लगने लगा था कि मेरे दिमाग़ पर इस समय शनि और मंगल कुंडली मार कर बैठे हुए है...इसीलिए मैं जो कुच्छ भी सोचता हूँ,जो कुच्छ भी करता हूँ...वो सब उल्टा मुझे ही आकर लगता है.....
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हमारी पहली प्राब्लम तो लगभग सॉल्व हो गयी थी यानी कि पोलीस केस का अब कोई झंझट नही था अब झंझट था तो वो था गौतम का बाप...
"पोलीस अंकिल...मेरा दोस्त गौतम कैसा है..उसे होश आया या अभी तक लेटा हुआ है..."जीप से उतरते हुए मैने पुछा...
"अपने प्रिन्सिपल के अतॉरिटी का यूज़ करके तू पोलिक के झमेले से तो बच जाएगा...लेकिन उस गुंडे से कैसे बचेगा जिसके लिए नियम,क़ानून कोई मायने नही रखता..."मुस्कुराते हुए उसने जवाब दिया "मुझे इस केस मे कोई खास दिलचस्पी नही है लेकिन तुझे आगाह कर देता हूँ कि तेरा बुरा वक़्त अब शुरू होने वाला है..."
मैं उस थ्री स्टार वाले की तरफ देखकर अपने दिमाग़ की डिक्षनरी मे कोई दमदार डाइलॉग ढूंढता रहा लेकिन जब मुझे कुच्छ नही सूझा तो मैने कहा
"वो क्या है कि इस वक़्त मुझे कोई दमदार डाइलॉग याद नही आ रहा है,इसलिए आप फिलहाल जाओ...आपके इस सवाल का जवाब किसी और दिन दूँगा"
कॉलेज के सामने पोलीस जीप से उतर कर मैं क्लास की तरफ बढ़ा...मन तो नही था क्लास जाने का लेकिन हॉस्टिल मे अकेले रहता तो मेरा दिमाग़ मुझे गौतम के बाप से पहले ही मार देता, इसलिए मैने क्लास अटेंड करना ही बेहतर समझा....क्लास की तरफ आते हुए सामने मुझे एश दिखी तो मेरे कदम खुद ब खुद रुक गये ,मैं जानता था कि वो इस समय मुझसे बेहद ही खफा होगी और मुझपर गुस्सा करेगी...लेकिन मैं फिर भी उसकी तरफ बढ़ा और ना चाहते हुए भी मुस्कुराया ताकि उसकी मुस्कान देख सकूँ...अपने सामने अचानक मुझे पाकर एश कुच्छ देर तक मुझे यूँ ही देखती रही और फिर आँखो मे मेरे लिए दुनियाभर की नफ़रत भरे हुए वहाँ से आगे बढ़ गयी...
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पिछले कुच्छ दिनो मे मुझे देखकर उसके होंठो मे जो एक प्यारी सी मुस्कान छा जाती थी ,उसकी जिस मुस्कान का मैं दीवाना था ,उसकी जिस मुस्कान पर मैं दिल से फिदा था...आज उसके होंठो से वही मुस्कान गायब थी...उसकी जिन भूरी सी आँखो से मुझे प्यार था,..सबसे ज़्यादा लगाव था ,इस वक़्त वो आँखे एक दम लाल थी...उसकी उन्ही आँखो मे मैने अपने लिए दुनियाभर की नफ़रत देखी ,जिनमे मैं हमेशा अपने लिए एक प्यार, एक अहसास देखना चाहता था....
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"एश...वेट आ मिनिट..." बिना कुच्छ सोचे-समझे,बिना किसी की परवाह किए मैं एश के पीछे भागा...
"अरमान ,रास्ता छोड़ो..."मुझे अपने सामने पाकर उसने अपना चेहरा दूसरी तरफ फेर लिया...
"गौतम की वजह से हम, अपन दोनो के बीच मे ख़टाश क्यूँ पैदा करे...चल हाथ मिला..."
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वो फिर चुप रही और अपना चेहरा दूसरी तरफ करके मेरे वहाँ से जाने का इंतज़ार करती रही...उसकी ये खामोशी तीर बनकर मेरे लेफ्ट साइड मे चुभ रही थी...आज अगर एश मुझे सॉरी बोलने के लिए कहती तो मैं एक बार नही हज़ार बार उसे सॉरी बोलता...लेकिन साली परेशानी तो यही थी कि वो आज कुच्छ बोल ही नही रही थी....
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"एश..."उसकी तरफ अपना एक हाथ बढ़ाते हुए मैने कहा...
"दूर जाओ मुझसे..."चीखते हुए उसने कहा और सबके सामने मुझे धक्का दिया लेकिन मैं फिर भी उसी की तरफ बढ़ा...सबके सामने अपनी बेज़्जती का अंदेशा होने के बावजूद मैं एश की तरफ बढ़ा...
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मैं ये नही कहता कि मेरे मन मे एश के सिवा किसी और लड़की का ख़याल नही आता ,मैं हर दिन एश के साथ-साथ कयि दूसरी लड़कियो के बारे मे भी सोचता लेकिन एश के लिए मेरे अंदर जो अहसास ,जो लगाव है वो अहसास,वो लगाव किसी दूसरी लड़की के लिए आज तक नही हुआ था...मैं ये बात ढोल-नगाड़े पीट पीट कर इसलिए कह सकता हूँ क्यूंकी...एश मेरे मान मे नही बल्कि मेरे दिल मे बसी थी....
मैं ये नही कह रहा कि मेरा प्यार किसी फिल्मी प्यार की तरह हंड्रेड पर्सेंट है लेकिन ये मैं दावे के साथ कह सकता हूँ कि जितना भी पर्सेंट मेरे दिल मे उसके लिए मोहब्बत है ,वो एक दम सच है और पवित्र भी...वरना मैं कॉलेज मे इस वक़्त सिर्फ़ एक लड़की के लिए...सिर्फ़ और सिर्फ़ और सिर्फ़ एक लड़की के लिए सबके सामने अपनी बेज़्जती सहन नही करता....
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"अरमान,तुम मुझे अपना दोस्त कहते थे,पर अब पता चला कि तुम तो बस आय्याश किस्म के वो इंसान हो,जिसे किसी की कोई परवाह नही है...अब सामने से हट जाओ,वरना कही ऐसा ना हो कि...मैं सबके सामने तुम पर हाथ उठा दूं..."
"मुझे कोई फरक नही पड़ता कि यहाँ कौन-कौन है और ना ही मुझे इसकी परवाह है..."
"लेकिन मुझे परवाह है...खुद की और गौतम की....गौतम सच ही कहता था कि दोस्ती अपने स्टेटस के बराबर वाले लोगो के साथ ही करना चाहिए..."
उसके बाद मैने सिर्फ़ उसे वहाँ से जाते हुए देखा,क्यूंकी मेरे पास अब कोई शब्द नही थे जिसका इस्तेमाल करके मैं उसे एक बार फिर से आवाज़ दूं या रोकने की कोशिश करू...उसने अभी-अभी कहा था कि इस जहांन मे उसे सिर्फ़ दो लोगो की परवाह है..एक खुद की और एक अपने प्यार की लेकिन मुझे तो परवाह सिर्फ़ एक की थी और वो एश थी..जिसने मुझसे अभी-अभी नफ़रत करना शुरू किया था...मैं अब भी उससे बात करना चाहता था ये जानते हुए भी कि वो अब मुझसे बात नही करना चाहती है लेकिन मेरे दिल ने ,उसके लिए मेरे जुनून ने मुझे फिर से उसके पीछे भागने लिए मुझे मज़बूर कर दिया....
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"एश,यार एक मिनिट सुन तो ले कि मैं क्या कहना चाहता हूँ..."उसकी कार के पास पहूचकर मैने खिड़की से अंदर देखा और एक बार फिर से एश को आवाज़ दी"बस एक मिनिट..."
"दिव्या तू कार आगे बढ़ा..."मुझसे एक बार फिर मुँह फेर कर वो बोली...
माँ कसम खाकर कहता हूँ कि उस वक़्त मुझे ऐसा लगने लगा जैसे कि उस एक पल मे मेरे सारे सपने जो मैने एश को रेफरेन्स मानकर सोचे थे...मेरी सारी ख्वाहिशें ,जो कि एश को लेकर थी...इस दिल के सारे अरमान ,जिसके रग-रग मे वो बसी हुई थी...मेरे उन सारे सपनो ने, मेरे उन सारी ख्वाहिशों ने,मेरे उन सारे अरमानो ने अपना दम तोड़ दिया था...दिल किया कि यही रोना शुरू कर दूनन और तब तक रोता रहूं जब तक एश खुद आकर मुझे चुप ना कराए...दिल किया कि पागलो की तरह अपना सीना तब तक पीटता रहूं ,जब तक कि मेरी रूह मेरे जिस्म से ना निकल जाए...मेरी उस हालत पर जब एश ने मुझे पलट कर भी नही देखा तो मेरे अंदर उस नरम दिल वाले अरमान को मारकर एक खुद्दार, घमंडी शक्सियत रखने वाले अरमान ने अपनी जगह ले ली...
"ये तुम क्या कर रहे हो..."जब मैने एश के हेडफोन को निकाल कर बाहर फेक दिया तो वो मुझपर चिल्लाते हुए तुरंत कार से बाहर निकली और मुझे थप्पड़ मारने के लिए अपना हाथ आगे बढ़ाया....
"शूकर मना कि तेरे इस हाथ को मैने रोक लिया...वरना तेरा ये हाथ यदि ग़लती से भी मेरे गाल को छु जाता तो जो हाल तेरे आशिक़ का किया है उससे भी बुरा हाल तेरा करता...तेरा आशिक़ तो हॉस्पिटल मे ज़िंदा पड़ा है लेकिन तुझे तो मैं सीधे उपर भेजता...साली तू खुद को समझ के क्या बैठी है..."मैने कार का गेट खोला और एश को अंदर फेकते हुए कहा"जिसपर तुझे गुस्सा आता है तो तू उससे बात करना बंद कर देती है लेकिन जब मुझे किसी पर गुस्सा आता है तो मैं उसे बात करने के लायक नही छोड़ता...अब चल जल्दी से निकल इस चुहिया के साथ वरना तेरे बाप को तेरे आशिक़ के बगल मे एक और बेड बुक करना पड़ेगा...."
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पार्किंग मे मैने आज एश से अपने लगभग सारे लगाव को तोड़कर आया था और इस समय मेरा गुस्सा मुझपर पहले से भी ज़्यादा हावी था...हॉस्टिल पहुचने के बाद मुझे वॉर्डन ने कहा कि पोलीस केस को तो वो लोग कैसे भी करके संभाल लेंगे...लेकिन गौतम के बाप को रोकना उनके बस मे नही है,इसलिए बेहतर यही होगा कि मैं कुच्छ हफ़्तो के लिए अपने घर चला जाउ.
हाइवे के किनारे खड़ा मैं इस वक़्त बहुत सारी उलझनों से घिरा हुआ था...मेरे अंदर क्या चल रहा था ये मैं खुद भी ठीक तरीके से नही समझ पा रहा था...कभी मुझे गौतम के पप्पा जी दिखते तो कभी मेरे दोस्त मुझे दिखते..,तो कभी हॉस्टिल मे लड़ाई वाला सीन आँखो के सामने छा जाता तो कभी एश के साथ आज हुई झड़प सीने मे एक टीस पैदा कर रही थी...कभी मैं खुद को गालियाँ देता कि मैने एश के साथ ऐसा बर्ताव क्यूँ किया तो कभी मेरा घमंडी रूप सामने आ जाता और मुझसे कहता कि...मैने जो किया सही किया,भाड़ मे जाए एश और उसका प्यार...सच तो ये था कि इस वक़्त मैं ठीक से किसी भी मॅटर के बारे मे नही सोच पा रहा था और सारी दुनिया से अलग होकर हॉस्टिल से हाइवे को जोड़ने वाली सड़क के सबसे अंतिम छोर पर खोया-खोया सा खड़ा था...मुझे इसका बिल्कुल भी होश नही था कि मेरे सामने से तीन-तीन ऑटो निकल चुके है...मुझे इस बात की बिल्कुल भी परवाह नही हो रही थी कि मेरे इस तरह से यहाँ खड़े रहने पर मेरी ट्रेन छूट सकती है...
"ओये...रुक...अबे रुक मुझे भी जाना है..."सिटी बस जब सामने से गुज़र गयी तो मुझे जैसे एका एक होश आया ,लेकिन सिटी बस तब तक बहुत दूर जा चुकी थी.....
जब सिटी बस निकल गयी तो मैं वापस अपने कंधे मे बॅग टांगे हुए हॉस्टिल से हाइवे को जोड़ने वाली सड़क के अंतिम छोर पर खड़ा हो गया और फिर से सारी दुनिया को भूल कर अपने अंदर चल रहे तूफान मे खो गया....
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क्या मैने एश के साथ पार्किंग मे जो किया वो सही था...कहीं मैने अपने हाथो ही अपने अरमानो का गला तो नही घोंट डाला...क्यूंकी यदि एश की जगह कोई और भी होता,यहाँ तक मैं भी होता...तो अपने प्यार को चोट पहुचने वाले से नफ़रत करता...और एसा ने भी आज वही किया,...ग़लत तो मैं ही था जो बार-बार उसके सामने खड़ा हो जा रहा था. उससे बात करने की मेरी ज़िद ने शायद उसे,मुझपर और भी ज़्यादा गुस्सा दिला दिया और फिर पार्किंग मे उसे धमकी देकर आना,.तट वाज़ माइ फॉल्ट,मुझे ऐसा नही करना चाहिए था..किसी भी हाल मे नही करना चाहिए था...
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लेकिन उसी वक़्त मेरे अंदर से एक और आवाज़ आई कि" दट वाज़ नोट माइ फॉल्ट, यदि एश की जगह पर और कोई होता तो वो बेशक वही करता..जो एश ने किया,आइ अग्री....लेकिन यदि मेरी जगह पर भी कोई और होता तो वो भी वही करता जो मैने किया था...अरुण मेरे भाई जैसा है और उसे कोई मारने आए तो क्या मैं छिप कर सिर्फ़ इसलिए बैठा रहूं क्यूंकी मेरे दोस्त को मारने आ रहा वो लड़का मेरे प्यार का प्यार है...बिल्कुल नही, मैने जो किया बिल्कुल सही किया..जिसको जो समझना है समझे,जिसे नफ़रत करनी है वो करे, अपुन को ज़िंदगी गुज़ारने के लिए सिर्फ़ दोस्त और दारू की बोतल ही काफ़ी है...."
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