RE: Porn Hindi Kahani दिल दोस्ती और दारू
निशा को किस करने के बाद मैने फॉरमॅलिटी निभाते हुए उसका हाल चल पुछा और वो भी फॉरमॅलिटी निभाते हुए लड़कियो के घिसे पिटे अंदाज़ मे बोली "आइ आम फाइन..व्हाट अबाउट यू " जबकि मैं जानता था कि वो इन दिनो कुच्छ परेशान सी है...निशा ने ये फॉरमॅलिटी निभाई ये जानते हुए भी कि मैं सब कुच्छ जानता हूँ...उस थोड़े से वक़्त मे जब मैं उसके साथ था वो हर पल मुस्कुराने का झूठा नाटक करती रही...वो मुझे ये शो कर रही थी की वो बहुत खुश है...जबकि मैं उसकी आँखो को देख कर ही समझ गया था कि वो ऐसा बर्ताव सिर्फ़ मेरा दिल रखने के लिए कर रही है....जब मैं वहाँ से जा रहा था तब वो बहुत खुश नज़र आ रही थी, उसने मुझपर"बाइ...टेक केर युवरसेल्फ "जैसा घिसा पिटा डाइलॉग भी फेक के मारा...लेकिन मैं जानता था की उसने ज़ुबान से तो जाने के लिए कह दिया...लेकिन दिल से वो नही चाहती थी की मैं जाउ....वो इस वक़्त अंदर से कुच्छ और...और बाहर से कुच्छ और थी...वो ये सोच रही थी कि मैं उसकी झूठी हँसी और उसकी झूठी मुस्कान पर यकीन करके ये मान जाउन्गा कि वो सच मे बहुत खुश है...जबकि वो खुद मुझे हर दिन मेरी ईमेल आइडी पर अपने परेशानियो को टेक्स्ट फॉर्म मे कॉनवर्ट करके मुझे सेंड करती थी....जब बात एक दम नाज़ुक सिचुयेशन की हो तो घिसा पिटा डाइलॉग हर किसी के मुँह से निकल जाता है...मेरे भी मुँह से निकला...
" ठीक है तो फिर मैं चलता हूँ...अपना ख़याल रखना और अंकल का भी..."निशा को मैने एक मोबाइल देते हुए कहा..."ये मेरा मोबाइल है,इसे संभाल कर रख और ये बता तू मोबाइल रखती कहाँ है जो ससुर जी हर बार पकड़ लेते है...मुझसे सीख हॉस्टिल स्कूल टाइम मे मैं 3 साल हॉस्टिल मे रहा और तीनो साल मोबाइल अपने पास रखा लेकिन मुझे कभी कोई पकड़ नही पाया...मेरे स्कूल के जाने माने काई टीचर्स जो खुद को शरलॉक होम्ज़ की औलाद समझते थे वो कभी मेरे मोबाइल का दीदार नही कर पाए...."
निशा को समझा-बुझा कर जब मैं बाहर आ ही रहा था कि तभी मेरी सासू माँ दरवाजा खोल कर अंदर टपक पड़ी और मुझे देख कर वो निशा की तरफ सवालिया नज़रों से देखने लगी....सासू माँ की हरकतों को देख कर मैं समझ गया कि वो किस उलझन मे है...
"मैं यहाँ झाड़ू मारने आया था, लेकिन रूम पहले से चका चक है..अब मैं चलता हूँ..."ये बोलकर मैने तुरंत वहाँ से काल्टी मारी और वापस अपने फ्लॅट की तरफ जाने लगा....
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हॉस्पिटल से अपने रूम आते वक़्त मैं हर पल बस निशा के बारे मे सोचता रहा कि कितना नाटक कर रही थी खुश होने का...फिर मेरा ध्यान निशा के बाप पर गया जो बेड पर बेहोश लेटे हुए थे...उनकी हालत देख कर मुझे थोड़ा खराब लगा.
"ये मैने क्या किया...सिर्फ़ एक किस के लिए निशा के बाप की ये हालत कर दी...मुझे ऐसा नही करना चाहिए था...इट'स टू बॅड "
मैने खुद को गाली दी ,बहुत बुरा भला कहा ये सोचकर कि अब ये ख़यालात मेरे दिमाग़ से चले जाएँगे..लेकिन जैसे-जैसे वक़्त बीत रहा था मैं सिर्फ़ और सिर्फ़ निशा के डॅड के बारे मे ही सोच रहा था और ये होना ही था क्यूंकी मेरे 1400 ग्राम के वजन वाले दिमाग़ का ये एक साइड एफेक्ट था कि मैं हद से ज़्यादा किसी टॉपिक पर सोचता हूँ और हद से ज़्यादा किसी काम को करने के लिए उतावला रहता हूँ...मैं कभी ये सोचता ही नही कि फलाना काम मुझसे नही होगा या फलाना परेशानी मैं दूर नही कर पाउन्गा...इस समय अपने रूम की तरफ जाते हुए भी मैं निशा के बाप के बारे मे हद से ज़्यादा सोच रहा था...मैं सोच रहा था कि यदि निशा का बाप ठीक ना हुआ तो .....? यदि निशा के बाप की हालत और नाज़ुक हो गयी तो ......?यदि निशा का बाप एक्सपाइरी मिडिसिन के रिक्षन के कारण मर गया तो.....?
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ये मेरे साथ पहली बार नही हो रहा था जब मैं इतना आगे की सोच रहा था, ऐसा कयि बार मेरे साथ पहले भी हो चुका था...मेरे एक दोस्त ने जब स्यूयिसाइड (ए डेड ड्रीम ) किया था तब मैं काई रात तक बस इसीलिए नही सो पाया था क्यूंकी मेरा दिमाग़ हर वक़्त बस उसी इन्सिडेंट की रट लगाए रहता था...मेरे दिमाग़ मे मेरा वो मरा हुआ दोस्त बहुत दिनो तक ज़िंदा रहा और अक्सर रात को वो मुझे मेरे रूम के दरवाजे के पास हाथ मे फरसा लिए खड़ा दिखता था...
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मेरा ब्रेन भी कितना घन चक्कर था जिसने बात कहाँ से कहाँ पहुचा दी थी...मैं इस टॉपिक पर और भी ज़्यादा खोया रहता यदि सामने से गुज़र रहे एक शक्स ने मुझे देखकर चलने की नसीहत ना दी होती तो..
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"कहाँ था बे और तेरा मोबाइल कहाँ है...कितनी देर से कॉल कर रहा हूँ लेकिन तू कोई रेस्पोन्स ही नही देता..."रूम के अंदर घुसते ही वरुण ने पुछा...
"निशा को देकर आ रहा हूँ अपना मोबाइल..."बिना उसकी तरफ देखे मैं सामने वाली टेबल के पास गया और ड्रॉ खोलकर सिगरेट की पॅकेट निकाली...
"साला आज बहुत भयंकर आक्सिडेंट हो जाता,.."तीन-चार कश लगातार मार कर मैने कहा और वरुण की तरफ देखा....वरुण की तरफ देखते ही सिगरेट का जो धुआ मेरे सीने मे था वो अंदर ही रह गया और मैं ज़ोर से खांसने लगा....क्यूंकी इस वक़्त वहाँ वरुण के साथ-साथ सोनम भी मौजूद थी...मैने जिस हाथ मे सिगरेट पकड़ रखी थी उसे पीछे करके दीवार से घिसकर बुझा दिया और सिगरेट वही फेक दी...
"अरुण कहाँ है..."वरुण की तरफ देख कर मैने पुछा...
"बाल्कनी की तरफ देखो...तुम्हारा दोस्त पिछले एक घंटे से बाल्कनी मे खड़ा होकर मुझे लाइन दे रहा है..."
"तुम दोनो अपना कार्यक्रम जारी रखो...मैं आता हूँ..."बोलकर मैं बाल्कनी की तरफ बढ़ा ,जहाँ से अरुण टकटकी लगाए सोनम को देख रहा था...
"पलकें भी झपका लो अंकिल...वरना आँख निकल कर बाहर आ जाएँगी.."
"अरे अरमान तू..."
"नही...मैं अरमान नही बल्कि कोई भूत हूँ.."
"कॉमेडी मत मार और वरुण की आइटम को देख...साली क्या लपपप खाना खाए जा रही है"
"तू एक बात बता कि तू खाने के लिए लार टपका रहा है या सोनम के लिए लार टपका रहा है..."
"दोनो के लिए "
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"निशा के डॅड की हालत कैसी है अब अरमान..."अंदर से सोनम ने आवाज़ लगाई...
"एक दम बढ़िया...कुच्छ ही देर मे पहले की तरह खेलने-कूदने लगेंगे..."
"निशा ने मुझे कॉल करके बताया था कि उसके डॅड की तबीयत खराब हो गयी है..."सोनम एक बार फिर अंदर से चिल्लाई...
"मुझे भी निशा ने ही कॉल करके बताया था..."
"तुम हॉस्पिटल से ही आ रहे हो ना..."सोनम मेरा कान फाड़ते हुए एक बार फिर चीखी...
"हााआआन्न्न्नननननणणन्......"झुंझलाते हुए मैने अपना पूरा दम लगाया और ज़ोर से चीखा...जिसके बाद सोनम ने और कुच्छ नही पुछा
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सोनम कुच्छ देर तक और वहाँ रही और फिर वहाँ से जाते वक़्त वरुण को बाइ...टेक केर कहा उसके बाद उन दोनो के बीच पप्पी-झप्पी का आदान-प्रदान भी हुआ...
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सोनम के जाने के बाद हम तीनो फिर बैठे हाथ मे एक-एक ग्लास लिए...वरुण जहाँ 8थ सेमेस्टर की दास्तान सुनने के लिए बैठा था वही मैं 8थ सेमेस्टर की दास्तान सुनाने के लिए बैठा था और अरुण...अरुण हम दोनो का पेग बना रहा था...
"मेरे मे इस बार कम पानी डालना बे ,लोडू...झान्ट टाइप से पेग बनता है ,साला असर ही नही करता..."
"तू आगे बोल...फिर क्या हुआ..."
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फिर....फिर बहुत बड़ा कांड हुआ...एक दिन कॉलेज से आते वक़्त अरुण ने कहा कि उसे होड़ सर के पास कुच्छ काम है ,इसलिए मैं सौरभ के साथ हॉस्टिल चला जाउ,वो कुच्छ देर मे आएगा....मैं और सौरभ हॉस्टिल आ गये...हमारे हॉस्टिल आने के लगभग आधे घंटे बाद ही अरुण हांफता हुआ आया और रूम के अंदर घुसकर दरवाजा अंदर से बंद कर दिया....
"क्या हुआ बे...किसी ने ठोक दिया क्या..."
"बहुत बड़ा लफडा हो गया भाई..."अरुण सीधे आकर मेरे पास बैठा और बोला"दिव्या से किस करते वक़्त गौतम ने देख लिया...गौतम और उसके दोस्त मुझे मारने के लिए दौड़ा रहे थे ,बड़ी मुश्किल से जान बचा कर आया हूँ...मेरा बॅग भी पीछे कही गिर गया है..."
ये सुनकर कुच्छ देर के लिए मैं घबरा उठा क्यूंकी गौतम इसका बदला अरुण से ज़रूर लेगा और यदि उसने इस बात की हल्की सी भी खबर अपने बाप को दी तो फिर एक बहुत पड़ा बखेड़ा खड़ा होने वाला था...जिसमे गौतम और उसकी बहन दिव्या को तो कुच्छ नही होता...लेकिन मेरा खास दोस्त अरुण पिस जाता....
"होड़ के पास जाने का बोलकर तू इश्क़ लड़ाने गया था बक्चोद,झाटु..."
"बाद मे चाहे जितना मार लेना लेकिन अभी कुच्छ कर...क्यूंकी गौतम अपने सभी लौन्डो के साथ हॉस्टिल आ रहा है,मुझे मारने के लिए...."
"अरुण..."ये एक ऐसा शक्स था जो मेरे दिल के बेहद ही करीब था या फिर कहे कि सबसे करीब था...ये एक ऐसा शक्स था जो जानता था कि मैं आक्चुयल मे क्या हूँ, मैं आक्च्युयली क्या पसंद और ना-पसंद करता हूँ...
किसी के बारे मे मेरी सोच क्या हो सकती है...ये पता करने के सिर्फ़ तीन तरीके है, पहला ये कि मैं खुद आपको बताऊ, जो की कभी हो नही सकता दूसरा ये कि आप मेरे 1400 ग्राम के ब्रेन की स्कॅनिंग करके सब मालूम कर ले और ये भी 99.99999999 % इंपॉसिबल ही है लेकिन तीसरा तरीका बहुत आसान है और वो तीसरा तरीका मेरा खास दोस्त अरुण है...
इस समय अरुण मुझे इस उम्मीद मे ताक रहा था कि मैं उसे इस प्राब्लम से निकलने का कोई आइडिया या फिर कोई सुझाव दूँगा...वो जब से रूम के अंदर घुसा था तब से लेकर अब तक हर 10 सेकेंड्स मे मुझसे पुछ्ता कि मुझे कोई आइडिया आया या नही.....और हर बार की तरह इस बार भी जब उसने 10 सेकेंड्स के पहले ही टोक कर मुझसे पुछा तो मैं भड़क उठा....
"अबे ये एल मे भरा जमाल घोटा है क्या,जो कहीं भी ,किसी भी वक़्त लंड निकाल कर माल बाहर कर दिया...बेटा प्लान सोचना पड़ता है और सोचने के लिए थोड़ा टाइम चाहिए होता है..."
"जल्दी सोच...तब तक मैं मूत कर आता हूँ..."
"हां तू जा मूत कर आ...यही सही रहेगा और सुन..."
"बोल.."
"मेरे बदले भी मूत कर आना "
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अरुण की मदद तो मुझे करनी ही थी चाहे कुच्छ भी हो जाए बिकॉज़ ही ईज़ लाइक माइ चड्डी आंड बनियान ,जिसके बगैर मैं जी तो सकता था लेकिन उसके बिना हर वक़्त एक बेचैनी सी रहती....हे इस लीके राइफल ऑफ मी पेन,जिसके बिना कॉलेज मे मैं एक दिन भी नही गुजर सकता था...हे इस लीके इयरफोन ऑफ मी मोबाइल,जिसके बिना मैं अपने डूस हज़ार के मोबाइल मे गाना तक नही सुन सकता था और सबसे बड़ी बात ये की वो मेरा रूम पार्ट्नर था और उससे बड़ी बात ये कि वो मेरे दिल के बहुत करीब था ,इतना करीब की कभी-कभी मुझे ऐसा लगने लगता जैसे कि हम दोनो एक-दूसरे के गे-पार्ट्नर है....जब कुच्छ टूटा-फोटा सा आइडिया मेरे दिमाग़ मे आया तो मैं खिड़की के पास गया और बाहर देखने लगा कि गौतम और उसके दोस्त हॉस्टिल की तरफ आ रहे है या नही....और जैसा मैने सोचा था वैसा ही हुआ ,गौतम ,बहुत सारे लौन्डो के साथ हॉस्टिल की तरफ आते हुए मुझे दिखाई दिया...
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"सौरभ तू जाकर हॉस्टिल के सब लौन्डो को जमा कर और मेरे रूम मे आने के लिए बोल..."
सौरभ के जाने के बाद अपने पैंट की चैन बंद करते हुए अरुण रूम मे घुसा...
"कुच्छ सोचा बे लवडे या अभी तक मरवा रहा है..."अंदर घुसते हुए अरुण ने पुछा....
"तू अभिच यहाँ से काल्टी मार, गौतम बहुत सारे लड़को को लेकर हॉस्टिल की तरफ आ रहा है..."
"शेर ,कुत्तो के झुंड से डरकर भागता नही,बल्कि उनका मुक़ाबला करता है ,उनकी माँ चोद देता है और फिर लवडा चुसाता है..."
"पर अभी सच ये है कि तू ना ही कोई शेर है और गौतम के दोस्त ना ही कुत्ते के झुंड...इसलिए जितना बोला उतना कर और बाहर यदि शोर-शराबा हो तो रूम से बाहर मत निकल जाना....समझा.."
"तू बोल रहा है तो छिप जाता हूँ ,वरना आज ही उन सालो को पेलता..."
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मैने अरुण को किसी दूसरे रूम मे छुपाया, क्यूंकी जैसा मैने सोचा था उसके अनुसार गौतम...सबसे पहले हॉस्टिल के अंदर एंट्री मारेगा और उसके सामने हॉस्टिल का जो भी लौंडा दिखेगा उसे पकड़ कर सीधे अरुण का रूम नंबर पुछेगा....मैं नही चाहता था कि गौतम ,अरुण को देखे इसीलिए मैने अरुण को दूसरे रूम मे छिपने के लिए कहा और एक कॉपी खोलकर पढ़ने का नाटक ऐसे करने लगा...जैसे की मुझे कुच्छ पता ही ना हो....
हॉस्टिल के अंदर घुसकर गौतम ने एक लड़के का कॉलर पकड़ कर उससे अरुण का रूम नंबर पुछा और फिर दरवाजे पर लात मारकर वो रूम के अंदर आया.....
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"तो तू भी उसी म्सी के साथ रहता है..."अंदर आते ही गौतम ने गालियाँ बाकी"वो म्सी कहाँ छिपा बैठा है,उसे बोल की बाहर आए, अभी साले के अंदर से इश्क़ का जुनून निकालता हूँ...."
"ओ...हेलो...किसकी बात कर रहा है और गालियाँ किसे बक रहा है..ज़रा औकात से बात कर..."किताब बंद करते हुए मैने कहा...
"तू बीसी ,आज शांत रहना...वरना आज तुझे भी तेरे उस दोस्त के साथ मारूँगा...म्सी शांत हूँ इसका मतलब ये नही कि मैं तुम लोगो से डरता हूँ..."
"म्सी होगा तू ,तेरा बाप,तेरा दादा,तेरा परदादा और तेरे परदादा का परदादा.....और ये बता कि यहाँ गान्ड मरवाने क्यूँ आया है..."मैने भी अपने तेवर दिखाते हुए कहा...
"अरुण..कहाँ है वो बीसी....."
"देख ऐसा है बेटा कि तुम लोग अब निकल लो..."
"पहले बता कि वो है कहाँ...वरना आज तुझे भी ठोकेंगे..."गौतम के एक जिगरी दोस्त ने आगे आते हुए कहा...
"अरुण तो एस.पी. अंकल के यहाँ है...अभी कुच्छ देर पहले उसका फोन आया था..."
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