RE: Porn Hindi Kahani दिल दोस्ती और दारू
और जैसा कि डर था वो तुरंत ऑफलाइन हो गयी, बीसी शरीफ बनने का नाटक रही है,...उसके बाद मैने फिर से एश की आइडी खोली और उसकी फोटोस देखने लगा, उसकी आइडी मे स्कूल के साथ साथ उसके आलीशान घर के भी कुछ इमेजस थे,उन सभी इमेजस को डाउनलोड करने के बाद मैने एश को फ्रेंड रिक्वेस्ट भेज दी और मोबाइल से नज़र हटाकर वापस आँखे बंद करके लेट गया.....
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"रुक...रुक"वरुण ने मुझे बीच मे रोका, और बाथरूम के अंदर घुस गया और फिर बहुत देर बाद आया, बाहर अभी भी बारिश हो रही थी....
"फिर से बताना तो दीपिका ने तेरा लवडा कैसे चूसा..."
" बड़ा जोश आ रहा है तुझे..."सिगरेट जलाते हुए मैने कहा, और उसी वक़्त दरवाज़े पर किसी ने दस्तक दी....
"कौन हो सकता है "वरुण ने मुझसे पुछा...
"मुझे क्या मालूम, आर पार देखने की मेरे पास पॉवेर है क्या,जा दरवाज़ा खोल...."
वरुण ने दरवाज़ा खोला ,सामने निशा बारिश मे भीगी हुई खड़ी थी...वो पूरी तरह ,सर से लेकर पैर तक भीगी हुई थी ,लेकिन उसकी आँखो को देखकर कोई भी बता सकता था कि वो कुछ देर पहले बहुत रोई है, निशा का यूँ इस तरह तेज बारिश मे भीगते हुए हमारे फ्लॅट मे आना अजीब तो था ही ,उपर से एक अजीब बात और थी, वो ये कि निशा ने लाल साड़ी पहन रक्खी थी, और यदि मेरा अंदाज़ा सही था तो ये वही साड़ी होगी ,जो उसके माँ बाप ने उसके शादी के लिए खरीदी होगी....
"मिस्टर. अरमान, मुझे तुमसे कुछ बात करनी........" बोलते हुए उसने अपना चेहरा दूसरी तरफ घुमा लिया, और सिसक पड़ी....
उस वक़्त सिचुयेशन बड़ी ही क्रिटिकल थी, वरुण और अरुण आँखे फाड़ फाड़ कर मुझे देख रहे थे और मैं खुद भी अपनी आँखे फाड़ फाड़ कर उन दोनो को देख रहा था....
"हुह..."वरुण ने गुर्रा कर मुझे अहसास दिलाया कि मुझे बाहर जाकर निशा से बात करनी है,तभी मेरा खास दोस्त अरुण मेरे पास आया और मेरे कान मे बोला"क्या बेटा, बच्चा तो नही है उसके पेट मे...."
एक तो मैं वैसे ही डरा हुआ था,उपर से अरुण ने और डरा दिया...जब मैं कुछ देर और बाहर नही गया तो निशा ने एक बार नफ़रत भरी निगाह से मुझे देखा और वहाँ से चली गयी...
"निशा..."मैं भी तुरंत उसके पीछे भागा, बाहर बारिश और तेज हो गयी थी..निशा तो पहले से ही भीगी हुई थी ,उसके पीच्चे आने के कारण मैं भी लगभग भीग ही गया था....
"निशा..."मैने एक बार और निशा को आवाज़ दी और वो जहाँ थी वही रुक गयी....
"निशा..."मैने एक बार और निशा को आवाज़ दी और वो जहाँ थी वही रुक गयी....
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निशा से मोहब्बत तो नही थी लेकिन एक लगाव तो था ही और इस रिश्ते के धागे को हम दोनो ने बिस्तर पर बखूबी बुना भी था...हम दोनो के बीच कभी कोई दिखावा जैसा कुछ भी नही रहा, जो था,सामने था....हम दोनो की एक साथ ज़िंदगी रात को निशा के बिस्तर पर से शुरू होकर उसके जिस्म से होते हुए सुबह वापस उसके बिस्तर पर दफ़न हो जाती थी...लेकिन इस वक़्त ना तो रात थी ना तो मैं उसके बिस्तर पर था...इस वक़्त अच्छा ख़ासा दिन था, और इस अच्छे ख़ासे दिन मे मैं पूरा भीग चुका था, निशा कुछ देर वहाँ खड़े होकर इंतजार करने लगी कि मैं कुछ कहूँ, लेकिन मैने जब कुछ नही कहा तो फिर अपने घर की तरफ चल दी....
"एनी प्राब्लम..."पीछे से निशा का हाथ पकड़ कर मैं बोला और उसे अपनी तरफ घुमाया....
"कुछ नही..."वापस जाने के लिए वो जैसे ही मूडी तो मैने उसका हाथ मज़बूती से पकड़ लिया, क्यूंकी निशा को लाल जोड़े मे देखकर मेरे लेफ्ट साइड मे कुछ-कुछ होने लगा था...मैं वहाँ कॉलोनी के बीच तेज़ होती बारिश मे निशा का हाथ पकड़ कर खड़ा था, वहाँ उस कॉलोनी मे हम दोनो के सिवा और कोई भी रहता है ,ये हम दोनो शायद भूल गये थे....उसने अपना हाथ छुड़ाने की एक बार और कोशिश की लेकिन जब कामयाब नही हुई तो मेरी तरफ देखते हुए बोली.
"छोड़ो मुझे..."और इसी के साथ वो अपने दूसरे हाथ से अपने हाथ को छुड़ाने की कोशिश करने लगी...
"वर्क डन बढ़ गया, लेकिन अफ़सोस कि डिसप्लेसमेंट ज़ीरो ,इस हिसाब से यदि फिज़िक्स की भाषा मे कहे तो वर्क डन ज़ीरो और आप फिज़िक्स के खिलाफ नही जा सकते "मुस्कुराते हुए मैने कहा और निशा को अपने तरफ खींच लिया...वो सीधे आकर उस तेज़ बारिश मे मुझसे लिपट गयी और उसी वक़्त मैने ,उसी पल मैने वो किया जो मुझे........करना चाहिए था, मैने उसके होंठो को एक झटके मे अपने होंठो मे समेट लिया....शुरू -शुरू मे मैने उसे कसकर पकड़ा हुआ था, लेकिन बाद मे उसके भी हाथ मेरे कमर पर मुझे महसूस हुए, और वैसे भी ये अरमान का जादू था, इस जादू से तो एश नही बच पाई तो फिर ये निशा कैसे बच जाती
"अब बताएगी मेरी माँ, हुआ क्या..."
मैने उसके लबों को अलग करके उससे पुछा, जवाब मे उसकी आँखो से आँसू के कुछ बूँद निकल कर उधर तेज़ बारिश मे घुल गयी और इधर हम दोनो के होंठ मिल गये.....
"मेरे साथ चलो..."अपना सर मेरे सीने मे टिका कर वो बोली...
आज उसकी आवाज़ जाने क्यूँ इतनी अच्छि लग रही थी, मुझे नही पता...लेकिन आज उसकी आवाज़ मे वो जादू था जो किसी और के आवाज़ मे मैं महसूस किया करता था, आज वो मुझे उतनी ही प्यारी लग रही थी,जितनी की कभी कोई और लगा करती थी....मैने अपने एक हाथ की मदद से उसे खुद से सटाया ही था कि मेरे कदम खुद ब खुद उसके घर की तरफ बढ़ चले, जैसे एक आख़िरी मंज़िल का पता हो उसका वो बड़ा से बारिश मे भीगता हुआ आलीशान महल......निशा का सर इस वक़्त मे कंधे पर टिका हुआ था, वो इस वक़्त चुप होकर मेरे साथ चले जा रही थी, इस वक़्त उसकी हालत ऐसी थी कि यदि मैं उसे वहाँ छोड़कर चला जाउ तो उसे खुद के घर का पता किसी दूसरे से पुछना पड़े......
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"मेमसाहिब आप ठीक तो है ना...."निशा के घर के बाहर दिन रात पहरा देने वाला गार्ड इस वक़्त होती हुई तेज़ बारिश मे भी वहाँ अपने छोटे से रूम मे बैठा हुआ था, निशा को मेरे साथ देखकर वो छाता तानकर बाहर आया...
"निशा मेमसाहिब..."अब उसने अपना छाता निशा के उपर कर दिया था,"क्या हुआ इनको..."अपनी आवाज़ कड़क करके वो बोला, और यदि निशा ने तुरंत कोई जवाब नही दिया होता तो वो मुझे पक्का धक्के मारकर वहाँ से निकाल देता...
"मैं ठीक हूँ ,और ये मेरे साथ ही है..."
"चलिए मैं आपको अंदर तक छोड़ देता हूँ,..."उस पहलवान ने मुझे निशा से जैसे ही दूर किया ,निशा चिल्ला उठी"तुम्हे समझ नही आ रहा है, मैने बोला ना कि ये मेरे साथ है..."
निशा के तेज़ आवाज़ से वो गार्ड सकपका गया, मैं खुद हक्का बक्का रह गया था निशा के इस अंदाज़ से,
"माफ़ करना साहिब..."
"कोई बात नही, तुम जाओ..."
"ये लीजिए..."छाता मेरे हाथ मे देते हुए उसने कहा और गेट के पास बने अपने छोटे से रूम मे चला गया...
"अरमान..."
"बोलो मेमसाहिब..."उस गार्ड के लहज़े मे मैं बोला"क्या हुकुम है मेमसाहिब..."
उसने अपनी गर्दन हिलाकर मुझे मना किया कि मैं उससे ऐसे बात ना करूँ, लेकिन मैं कहाँ मानने वाला था, मैने छाता वापस गार्ड के रूम की तरफ फेका और निशा की तरफ देखकर उसे एक बार और मेमसाहिब बोला...
"बोला ना, तुम मत बोलो..."मेरे सीने मे एक हल्का सा प्यार भरा मुक्का मारते हुए वो बोली....
"अंदर चले मेमसाहिब..."बोलते हुए मैं हंस पड़ा....
हम दोनो अंदर आए , मैने दरवाज़ा अंदर से बंद किया और निशा का सर जो इतनी देर से मेरे कंधे मे रक्खा हुआ था,उसे दूर किया...उस एक पल मे जाने क्या हुआ, निशा पर मेरी इस हरकत का ऐसा बुरा असर हुआ कि वो चीख पड़ी और वापस मुझसे लिपट गयी....
"मत जाओ, प्लीज़..."
"मैं कहीं नही जा रहा..."उसकी पीठ सहलाते हुए मैं बोला"और आज तुम्हे हो क्या गया है..........मेमसाहिब..."
उसकी सूरत रोने जैसी हो गयी, उसकी आँखो मे आँसू उतर आए , और मेरे सर पर जैसे किसी ने ट्रक उठाकर दे मारा हो, मेरी ऐसी हालत थी....ऐसा तो मैं तब भी नही चकराया था जब अरुण ने मुझे कहा था कि"अब मैं गे नही रहा, मुझे एक लड़की से प्यार हो गया है ,और वो है.....आअ"
"खुद से दूर मत करो मुझे,,.."निशा बीच मे ही बोल पड़ी,
"शर्ट उतारने दोगि ,या चाहती हो कि मुझे ठंड लग जाए और बीमार होकर यही पड़ा रहूं..."
"मेरे रूम पे चलो..."
"ऐसे ही, घर गीला नही हो जाएगा..."
"कोई फरक नही पड़ता..."
"चलो फिर..."
निशा का रूम कहाँ है ये मुझे मालूम था, या फिर यूँ कहे कि इस पूरे घर मे मुझे सिर्फ़ निशा का ही रूम मालूम था, सीढ़िया चढ़ते वक़्त भी वो मुझसे लिपटी रही और सीढ़िया चढ़कर जब हम दोनो उसके रूम के अंदर दाखिल हुए तो तब भी उसने मुझे नही छोड़ा.....
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