Antarvasna kahani माया की कामुकता
12-13-2018, 02:41 AM,
RE: Antarvasna kahani माया की कामुकता
"सोना तो है नहीं... अभी 9 बजे हैं, शायद डॅड रात को 2 बजे लॅंड करें... सो तुम सो जाओ, यू नीड सम रेस्ट ओके.. मैं जाग ही रहा हूँ" भारत ने शालिनी को अपने हाथ से एक बाइट खिला के कहा



"उम्म्म.. ऐसे कैसे, आज वॉक पे चलते हैं... मरीन लाइन्स... फिर वहाँ से आके मैं सो जाउन्गी" शालिनी ने भारत से कहा..



"ओके चलो.. काफ़ी दिन से कुलफी भी नहीं खाई ना. लेट्स गो..." कहके भारत और शालिनी घर को लॉक करके गाड़ी में मरीन लाइन्स के पास गये और वहीं बने पत्थरो पे बैठे बैठे पानी में अपने पेर भिगोने लगे.. रात के 10 बजे की ठंडी हवा, काफ़ी कम भीड़ और समुंदर की लहरें पैरो के साथ खेलती हुई... शालिनी को यह सब एक सुकून सा लग रहा था.. शालिनी वहाँ अपना सर भारत के कंधे पे रख के बस हवा का मज़ा ले रही थी... 



"यू नो भारत... शराब, सिगर्रेट, पार्टीस.. इन सब से ज़्यादा सुकून है इस चीज़ में.. यहाँ से गुज़रते हर आदमी को देखो, हर आदमी के चेहरे पे एक सुकून दिखता है.. चाहे उसके पास पैसा बिल्कुल ना हो, पर उसके पास सुकून बहुत है.. जानते हो क्यूँ" शालिनी ने भारत से पूछा



"क्यूँ.." भारत ने रात में चमकती शालिनी की आँखों को देख के कहा



"क्यूँ कि वो लोग ज़िंदगी जीते हैं... वो लोग पैसों के पीछे नहीं भागते.. वो लोग जानते हैं कफ़न में जेब नहीं होती... कभी कभी ऐसा लगता है हम फ्यूचर के बारे में इतना सोचते हैं, कि प्रेज़ेंट को भूल ही जाते हैं... दुनिया का एक सच है, जो है वो आज में ही है... आज तुम जेपीएम इंडिया के सेल्स हेड, डॅड की प्रॉपर्टी इतना पैसा.. यह सब किसी काम का नहीं है, अगर तुम्हारे साथ जुड़े हुए लोग, और तुम खुद खुलके जी नहीं पा रहे.. कॉलेज से मैं तुम्हे देख रही हूँ. तुम रोज़ अपने दिमाग़ को किसी ना किसी चीज़ के लिए चला रहे हो.. उसका फ़ायदा क्या है, कभी अपने दिमाग़ को आराम दो, और दिल से सोचो... दिमाग़ काम करना बंद कर देता है तो भी इंसान जीता है, लेकिन अगर दिल काम करना बंद कर देगा.. तो यह पैसा, यह ताक़त.. किसी काम के नहीं रहेंगे.... " शालिनी ने नाम आँखों से भारत को देखते हुए कहा



"शालिनी..." भारत ने बस इतना ही कहा के शालिनी ने फिर उसे टोक दिया



"चलो कुलफी खाते हैं.. एमोशनल बनोगे तो तुम मुझे अच्छे नहीं लगोगे फिर..." कहके शालिनी ने भारत को अपने हाथ से उठाया और दोनो कुलफी लेके समंदर के पास वॉक करने लगे.... रात के करीब 11 बजे शालिनी और भारत घर लौटे. भारत को एरपोर्ट जाना था, इसलिए शालिनी अकेली ही जाके सो गयी रूम में.. भारत लिविंग रूम में बैठ के ही सब कुछ सोचने लगा... पहली बार भारत लिविंग रूम में अंधेरे में बैठा हुआ था. इतना प्रॅक्टिकल आदमी, जो सब कुछ प्लान करके करता था, जिसे किसी का डर नहीं था... उसे अंधेरे से बहुत डर लगता था, पर वो आज अकेला लिविंग रूम में एक दम अंधेरे में बैठा हुआ था.. बैठे बैठे भारत शालिनी की बातों के बारे में सोचने लगा.. आख़िर शालिनी सही बोल रही थी, शायद भारत इतनी भाग दौड़ करके भी ज़िंदगी में आगे तो निकल गया था, लेकिन था वो अकेला. शालिनी उसके साथ थी क्यूँ की वो उसकी बीवी थी.. उसका कोई दोस्त, कोई रिश्तेदार उससे बात तक नहीं करता था.. सब के बारे में भारत सोचने लगा और कैसे उसने सब के साथ प्रॅक्टिकल बिहेव करके उनको खुद से दूर कर दिया था.. सोचते सोचते भारत एक बार फिर रूबी के मैल के बारे में सोचने लगा... कॉर्नर लाइट ऑन करके उसने फिर वो लिस्ट निकाली जिसमे उसने 5 नाम लिखे थे.. पहले दो नाम उसके दिल को बहुत खटक रहे थे... उसने काफ़ी ज़ोर लगाया, लेकिन उनके बीच क्या रिश्ता हो सकता है. यह सोच सोच के भारत पागल हुए जा रहा था... देखते देखते करीब डेढ़ बज गया था रात का.. घड़ी देख के भारत ने एक बार शालिनी को चेक किया और फिर घर को लॉक कर के खुद एरपोर्ट की तरफ निकल गया.. करीब 15 मिनट में एरपोर्ट पहुँचा, और वहाँ आधा घंटा और वेट करके उसे दूर से राकेश और सीमी आते हुए दिखे.. 



"हेलो ओल्डीस..." भारत ने राकेश और सीमी के पास जाके कहा



" फाइन सन... तुम ठीक नहीं लग रहे.. शालिनी ने बताया, तुम कॅफीन पे ही गुज़ारा कर रहे हो..." सीमी ने भारत से गले लग के कहा



"ऑफ कोर्स नोट मोम.. आंड डॅड, हाउ आर यू.." भारत ने राकेश से कहा



" भारत.... सीमी को गाड़ी दो... वी नीड टू टॉक.. लेट्स गो सम्वेर.." राकेश ने भारत से कहा और खुद आगे बढ़ गया



"मोम.. व्हाट ईज़ इट.. एनितिंग सीरीयस.." भारत ने चाबी देते हुए कहा



"यस सन... आज नो मज़ाक... आज काफ़ी चीज़ों से परदा उठने वाला है... आंड लेट मी टेल यू.. तुम जितना दिखाते हो, उतने स्ट्रॉंग नहीं हो दिल से... डॅड की बातें सुन के प्लीज़ कंट्रोल युवर एमोशन्स.. प्रॉमिस मी.." सीमी ने हाथ आगे करके भारत से वादा माँगा

भारत एरपोर्ट से राकेश के साथ आगे बढ़ गया, और दोनो बाप बेटे पैदल चल पड़े... जितनी देर दोनो पैदल चले, उतनी देर दोनो की ज़ुबान तो खामोश थी, लेकिन मन काफ़ी तेज़ दौड़ रहा था.. भारत यह सोच रहा था कि ऐसी क्या बात है जिसकी वजह से राकेश अपनी टूर आधी छोड़ के आया है, क्या बात हो सकती है जो राकेश ने उससे आज तक नहीं की हो...क्या वो बात इतनी ज़रूरी है के सीमी या शालिनी के आगे नहीं हो सकती.... राकेश अंदर ही अंदर यह सोच सोच के परेशान हो रहा था के वो बात शुरू कहाँ से करे... आज राकेश ने ठान लिया था कि जो भी बात है उसके मन में है वो भारत से कर के ही रहेगा.... रात के करीब 3 बजे, सांताक्रूज़ - बांद्रा रोड की खामोशी में दोनो बाप बेटे बिना कुछ सोचे, बस आगे चलते ही जा रहे थे....



"दाद... इट्स ऑलमोस्ट 3 एएम.... " भारत ने एक शॉपिंग माल के पास पहुँच के कहा



"यस सन... आइ नो....." कहके राकेश वहीं माल की एंट्रेन्स पे बने बेंच पे बैठ गया और अपने स्पेक्स निकाल के अपने सर के पसीने को पोछने लगा... राकेश के चेहरे की शिकन देख के भारत समझ गया कि बात सिर्फ़ ज़रूरी नहीं, बल्कि गंभीर भी है... इसलिए वो भी वहीं राकेश के पास बैठ गया... बेंच पे बैठे बैठे राकेश और भारत बस अपने सामने की दिशा में देखने लगे.... दोनो अपने दिल को मज़बूत करने की कोशिश कर रहे थे, राकेश बात को बोलने के लिए और भारत उस बात को सुनने के लिए... हिम्मत जुटा के राकेश ने बोलना शुरू किया



"कर्मा...... माइ सन, कर्मा ईज़ दा बिग्गेस्ट बिच.... कहते हैं व्हाट गोज़ अराउंड, कम्ज़ अराउंड... ज़िंदगी में जैसे बीज बोएंगे, पेड़ फल भी वैसे ही देगा... जब मैं 15 साल का था, तो नासिक से यहाँ भाग के आया था... नासिक में मेरा जीवन एक कुएँ के मॅंडेक जैसा लगने लगा था.. एक दिन जब मौका मिला, तो नासिक से यहाँ एक ट्रांसपोर्ट के ट्रक में बैठ के आ गया.. मुंबई में मेरे कदम सबसे पहले वीटी स्टेशन पे पड़े.. वीटी स्टेशन देख के मैने खुद से वादा किया, अगर मैं यहाँ कामयाबी हासिल नहीं कर पाया तो और कहीं नहीं कर पाउन्गा.... मेरी पहली नौकरी डॉक्स पे थी.. डॉक्स पे मैं सुबह से शाम हमली करता, और शाम को डॉक्स के पास बने चाइ की कीटली पे सो जाता....... 3 साल मैने डॉक्स पे नौकरी की, रोज़ वही काम, रोज़ उतने पैसे... जब 18 साल का हुआ तो मुझे लगने लगा कि शायद मैं अभी भी वो नहीं कर रहा हूँ जिसके लिए मैं यहाँ आया हूँ... 20 डिसेंबर 1978... उस दिन की शाम मैं कभी नहीं भूल सकता.... रोज़ की तरह, उस दिन भी शाम को डॉक्स का सारा काम निपटा के मैं चाइ पीने बैठा ही था के तभी मेरे सामने राजू आया....



"क्या गुरु.. क्या कर रहे हो तुम..." राजू ने मुझसे पूछा



राजू का सवाल सुन पहले तो मैं डर गया, वो भी 18 का ही था, लेकिन मेरे सामने काफ़ी लंबा था , कान में बाली, घुंघराले बाल और मूह में बीड़ी.... मैने सोचा के मैं उसे अनदेखा कर दूं, लेकिन फिर हिम्मत करके मैने उसे जवाब दिया



"तुम से मतलब.. तुम अपना काम करो...."



"अबे सुरसुरी बॉम्ब.... तेवर किसको दिखा रहा है बे.. अपुन तो तेरे वास्ते एक काम लेला था समझा क्या.. ज़्यादा अकड़ के चलेगा तो ज़िंदगी भर हमाल का हमाल बनके ही रहेगा समझा.." कहके राजू वहाँ से जाने लगा.. जैसे ही मैने उसकी बात टटोल के समझी, मैं तुरंत उसके पीछे दौड़ के गया..



"आए आए. सुन... बता, क्या काम है..." मैने राजू से हान्फते हुए कहा



"अब आया ना लाइन पे श्याने... सुन, कल रात को 2 बजे इधर एक बोट आने वाली है, वो बोट में से 10 बॉक्सस निकाल के संभाल के रखने हैं.. फिर 3 बजे एक दूसरी बोट आएगी, वो बॉक्स उसमे रखने हैं.. कर पाएगा तू यह काम..." राजू ने मुझे उंगली दिखा के कहा



"इसमे क्या बड़ी बात है.. यह तो मैं रोज़ करता हूँ.." मैने बिना कुछ समझे जवाब दिया



"अबे पानी कम चाई.. कल जो बॉक्सस आने वाले हैं उसका समान रोज़ के जैसा नहीं है... गांजा और अफ़ीम के साथ गैर क़ानूनी रेडियो और ट्रॅनसिस्टर्स और दूसरा सामान भी रहेगा... अगर अपुन दोनो ने उस काम को निपटा दिया तो अपुन दोनो को दो दो हज़ार रुपये मिलेंगे समझा..." राजू ने पैसों की बात की.. दो हज़ार सुन के मेरे कानो में जैसे एक मधुर आवाज़ सी आने लगी... मेरे सामने था वो मौका जिसके लिए मैं नासिक से यहाँ आया था, लेकिन गैर क़ानूनी काम की वजह से मुझे डर लगने लगा.. कुछ देर मैं खामोश रहा, और फिर मन को मज़बूत करके मैने राजू से कहा



"दो हज़ार नहीं बादशाह... अपुन को तो तीन हज़ार चाहिए.... काम में जोखम भी इतना है.. " मैने राजू का सुर पकड़ के कहा
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