Porn Hindi Kahani रश्मि एक सेक्स मशीन
12-10-2018, 02:37 PM,
RE: Porn Hindi Kahani रश्मि एक सेक्स मशीन
रश्मि एक सेक्स मशीन पार्ट -71 

गतान्क से आगे... 
वो मुझे पर से हट कर मेरी बगल मे बैठ गये. मैं उनके अगले हमले का इंतेजार करने लगी. उन्हों ने अपनी जेब से सिगरेट निकाली और उसे जला कर पफ लेने लगे. मैं असमंजस सी बिस्तर पर पड़ी रही तभी उन्हों ने सारी हदें पार कर दी. 



उन्हों ने जलती ही सिगरेट मेरी जांघों से छुआ दी. मैं दर्द से गला फाड़ कर चीख उठी मगर मेरी आवाज़ें उस कमरे के अंदर ही दम तोड़ गयीं. इस तरह का वीभत्स सेक्स मैने जीवन मे कभी नही सोचा था. 



वो एक जगह से दूसरी जगह मेरे बदन को सिगरेट की आग से झुल्साते रहे. बदन पर कई जगह लाल लाल निशान उभर आए. कई जगह तो फफोले पड़ गये. मैं जल बिन मच्चली की तरह तड़प रही थी. मेरी दोनो कलाई छिल गयी थी. उनसे खून के कतरे निकल आए थे. मेरी टाँगे भी बिस्तर पर रगड़ खा रही थी. 



मैं ये दरिंदगी बर्दास्त नही कर पाई और बेहोश हो गयी. पता नही वो मेरे जिस्म से किस दरिंदगी से पेश आया. जब होश आया तब दो घंटे गुजर चुके थे. वो मेरे जिस्म के साथ चिपका हुआ था. उसका लंड मेरी योनि मे था और मेरे सीने के उपर लेटा हुया धक्के लगा रहा था. मैं नफ़रत से उसे देखती रही मगर कर कुच्छ भी नही सकती थी. काफ़ी देर तक चोदने के बाद उसने मेरी योनि के अंदर अपना वीर्य डाल दिया और फिर किसी मेरे गेंदे की तरह मेरी बगल मे पसर कर खर्राटे लेने लगा. मेरा पूरा बदन बुरी तरह जल रहा था. हर अंग से दर्द की लहरे थी बेबसी से अपने बंधनो को लूस करने की कोशिश करती रही. मगर जब मैं अपने मकसद मे कामयाब नही हुई तो उसी हालत मे नींद मे डूब गयी. 



सुबह जब मेरी नींद खुली तो अपने आपको आश्रम की शिष्याओं से घिरा पाया. कोई कुच्छ कर रहा था तो कोई कुच्छ. मेरे बदन पर जड़ी बूटियों का लेप लगाया जा रहा था. कुच्छ महिलाएँ तो उस नेता को कोस रही थी. मैने पाया कि मेरा दर्द काफ़ी हद तक कम हो चुका है. जिस्म पर कई जगह लाल काले निशान पड़ गये थे तो कई जगह फफोले मेरे साथ घटी उस हवनियत भरी चुदाई की कहानी कह रहे थे. 



पूरे दिन मैं सिर्फ़ आराम करती रही. स्वामी जी ने सब को सख़्त हिदायत दे रखी थी कोई मुझे किसी तरह से भी परेशान नही करेगा. 



स्वामी जी खुद भी मेरी सेवा करते रहे. मुझे उन्हों ने इतना प्यार दिया कि मैं निहाल हो गयी. अगले दिन मैने वापस उत्तेजक जड़ी बूटियों के शरबत को पिया और स्वामी जी के साथ खूब संभोग किया. 



स्वामी जी भी मुझे वापस अपने पूरे जोश मे आते देख खिल उठे. उन्हों ने भी तरह तरह की आसान मुझे सिखाए. मैने भी उनके जिस्म से जितना हो सकता था उतना वीर्य अपनी कोख मे इकट्ठा कर लिया. 



दो दिन बाद जब रत्ना मेरे कपड़े ले कर आइ तो मैं फफक कर रो पड़ी. मैं स्वामी जी के जिस्म से लिपट कर रोने लगी. सात दिनो मे ही मैं उनकी दासी हो चुकी थी. मुझे ऐसा लग रहा था मानो मैं अपने प्रियतम से बिछड़ के जा रही हू. 



स्वामी जी के सामने मैं घुटनो के बल बैठ कर उनके चरण पर अपना सिर रख कर प्रण याचना की. उन्हों ने मुझे बाँहों से थाम कर उठाया और मेरे आँसुओं से भीगे गाल्लों को पोन्छ्ते हुए मेरे होंठों को चूम लिया. 



“ अब तुम इस आश्रम की अमानत हो. तुम जब जी चाहे बेधड़क मुझसे मिलने आ सकती हो.”स्वामी जी ने मेरे होंठो को सहलाते हुए कहा. 



“ मगर….आअपसे दोबारा मुलाकात कब होगी स्वामी? मुझे आपने सुंदर सपना दिखाया अब इनमे रंग भरना भी आपको ही पड़ेगा. आप फिर कब मुझे अपनी आगोश मे लोगे? अपने जिस्म से लगने दोगे? अब मेरी संतुष्टि आपके अलावा किसी और से नही हो सकती.” मैं सूबक रही थी. 



“ तुम्हारी कोख से जब एक नये जीव का जन्म हो तब मैं आउन्गा उसे पहली तालीम देने” स्वामी जी मेरे होंठों पर अपने होंठ रख दिए 



उन्होने मुझे पुच्कार्ते हुए काफ़ी आत्मबल दिया और हम एक बार फिर संभोग मे लिप्त होगये. 



दो घंटे बाद जब मैं घर की ओर जा रही थी तो मेरे कदम उठ नही पा रहे थे. कमज़ोरी की वजह से एक एक पग रखना भारी पड़ रहा था. अगर रत्ना नही रहती तो हो सकता है रास्ते मे चक्कर खा कर गिर पड़ती. घर आ कर रत्ना ने मुझे नहला धुला कर आराम करने दिया. घर का सारा काम वो ही कर दी. 



अगले दिन मैं वापस आश्रम जा पहुँची. स्वामी जी के बिना मन नही लग रहा था. मगर वहाँ जा कर मैं और ज़्यादा मायूस हो गयी. स्वामी जी मुझे रवाना करने के कुच्छ घंटे बाद ही आश्रम छ्चोड़ का जा चुके थे. मुझे ऐसा लगा मानो पूरा संसार सूना हो गया हो. 



दो दिन तक मैं मायूसी से भरी रही. कुच्छ दिन लगे धीरे धीरे नॉर्मल होने मे. लेकिन अब मैं इस आश्रम की सदस्या बन चुकी थी. मेरे पति भी कुच्छ ही दिनो मे इस आश्रम के उन्मुक्त वातावरण मे घुल मिल गये. वो भी इस आश्रम के एक सम्मानित व्यक्ति थे. 



गुरु जी के प्रसाद ने कुच्छ ही दिनो मे अपना असर दिखना शुरू कर दिया. मेरा जी मित्लाने लगा तो मैने डॉक्टर से कन्सल्ट किया तो उन्हों ने मेरा टेस्ट करके प्रेग्नेन्सी की सूचना दी. 



मैं खुशी से फूली नही समाई. मैने अपने प्रेग्नेन्सी की खबर रत्ना को दी तो उस के द्वारा ये सूचना स्वामी जी तक भी पहुँची. स्वामी जी ने मुझसे वादा किया की मेरी डेलिवरी के समय वो मेरे सामने रहेंगे. 



अपने वादे अनुसार जब मेरी डेट आइ उससे पहले ही वो आश्रम मे आ चुके थे. मेरी डेलिवरी के लिए उन्हे दस दिन रुकना पड़ा मगर उन्हे इसका कोई मलाल नही था. मेरी मा और दीदी आए थे. जब तक डेलिवरी नही हो गयी तब तक रोज सुबह उनसे आशीर्वाद लेने मैं उनके आश्रम जाती थी. दीदी और मा को बाहर रहने को कह कर मैं उनके कमरे मे जाती थी. स्वामी जी मुझे बहुत प्यार करते थे लेकिन संभोग से दूर ही रहते थे. जबकि मैं उनको कहती थी कि डॉगी पोज़िशन मे संभोग कर सकते हैं इससे बच्चे को कोई असर नही होता. लेकिन वो किसी तरह का रिस्क नही लेना चाहते थे. 



जिस दिन मेरी डेलिवरी हुई स्वामी जी ऑपरेशन थियेटर के बाहर ही थे. बच्चे के जन्म के कुच्छ ही देर बाद मैने उनको कमरे मे बुलवाया. बच्चा बहुत शांत था और आँखे बंद कर सो गया था. नर्स ने उसे पैदा होते ही मेरे स्तनो पर रखा और मेरे निपल को उसके मुँह मे दिया मगर वो सो गया था. उसने दूध नही चूसा. 



जब स्वामी जी पहली बार कमरे मे आए तो मैने बाकी सबको कुच्छ देर के लिए बाहर जाने को कहा. जब सब लोग बाहर चले गये तो मैने अपनी बगल मे लेटे बच्चे को उठा कर स्वामी जी को सोन्प्ते हुए कहा, 



“ कैसा लगा आपका बेटा?” मैं खुशी के मारे उनकी बाँह से लिपटी हुई थी. 



“ बहुत खूबसूरत है. अपनी मा की तरह ही सुंदर और चंचल.” उन्हों ने बच्चे के सिर पर अपनी हथेली फिराई. 



“ और बाप की तरह कुच्छ भी नही?” मैने मुस्कुराते हुए उनकी बाँह पर अपने दाँत गढ़ा दिए. 



“ ह्म्‍म्म्म देवेंदर जैसा ही पौरुष पाएगा.” उन्हों ने कहा. 



“ नही बाप जैसा….” 



“ चलो बाप जैसा ही पौरुष पाएगा.” स्वामी जी ने अब मेरे सिर पर हाथ फिराया. 



“ स्वामी जी मेरे दोनो स्तन आप के होंठो का इतेज़ार कर रहे हैं.” मैने गले तक पड़ी सफेद चादर को अपने सीने से हटा दी. उस चादर के भीतर मैं सारी और ब्लाउस मे थी. मगर मेरे ब्लाउस के सारे बटन खुले होने की वजह से दोनो स्तन बाहर निकल आए थे. दूध से भरे होकर दोनो छातिया काफ़ी बड़ी बड़ी दिख रही थी. 



मैने अपनी हथेलियों से अपने दोनो स्तनो को उठा कर उनकी ओर किया. 



“ लो इन्हे एक बार चूस लो नही तो बच्चा भी नही पिएगा. उसने अबतक दूध नही पिया है. शायद वो चाहता है कि इनकी सील उसका बाप तोड़े. “ मैने कहा तो स्वामी जी ने अपनी हथेलियों से मेरे स्तनो को दो पल सहलाया. 



“ देवी पागल मत बनो…..यहाँ कोई कभी भी आ सकता है. हम दोनो को इस हालत मे देख कर सारी बात समझ जाएगा. ये अमृत इस बच्चे के लिए है इसे पीने दो.” स्वामी जी ने मेरे स्तनो पर से अपने हाथ हटा लिए. 



“ नही …प्लीईसए. एक बार दोनो से दो दो बूँद तो चूसो.” मैं उस हालत मे भी मचल उठी. 



क्रमशः............
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