Porn Hindi Kahani रश्मि एक सेक्स मशीन
12-10-2018, 02:36 PM,
RE: Porn Hindi Kahani रश्मि एक सेक्स मशीन
रश्मि एक सेक्स मशीन पार्ट -62 

गतान्क से आगे... 


मेरे बदन मे उत्तेजना भरने लगी. मैं दबी दबी सिसकारियाँ लेने लगी. रत्ना ने मेरे हाथों को पीछे कर एक पतली डोर से बाँध दिया. फिर हर आदमी एक एक टोकरी ले कर आया. सारी टोकरियाँ लाल गुलाब की पंखुड़ियों से भरी हुई थी. एक एक टोकरी मेरे उपर खाली करने लगे धीरे धीरे मेरा पूरा बदन लाल गुलाब की पंखुड़ियों मे धँस गया. इतना फूल मेरे उपर डाला गया कि मेरे चेहरे को छ्चोड़ कर पूरा जिस्म फूलों से ढक गया था. अब वहाँ एक लाल गुलाब की पंखुड़ियों के ढेर के उपर मेरा चेहरा ही नज़र आ रहा था. 



वो मूर्ति मेरे जिस्म के अंदर उथल पुथल मचा रही थी. मैं दो बार स्खलित भी हो चुकी थी. मुझे इसी अवस्था मे रख कर सारे मर्द और युवतियाँ मुझे घेर कर खड़े हो गये. मैं बार बार अपने सूखे होंठों पर अपनी जीभ फिरा रही थी. 



तभी स्वामी त्रिलोका नंद जी कमरे मे पधारे सारे शिष्य सिर झुका कर खड़े हो गये. वो मुस्कुराते हुए आकर मेरे सामने खड़े हो गये. 



एक युवती आगे बढ़ कर उनके हाथ मे एक लोटा पकड़ा दी. ये लोटा मेरे वाले लोटे से अलग था. स्वामी त्रिलोकनंद ने अपने दोनो हाथों से लोटे को थाम कर उँचा किया. 



“ सबसे पहले तेरा दुग्ध स्नान होगा. ये ताज़ा दूध हमारे आश्रम की ही एक महिला के स्तनो का दूध है. मानव दूध सर्वोत्तम होता है. इससे तुम्हारे जिस्म पर चढ़े सारे कीटाणुओं का नाश होकर तुम्हारी त्वचा निर्मल और सूद्ढ़ हो जाएगी. 



ये कह कर उन्हों ने उस लोटे का दूध एक पतली धार के रूप मे मेरे सिर पर उधलने लगे. दूध सफेद धाराओं के रूप मे बहती हुई नीचे जाने लगी. मेरा जिस्म तो पहले से ही उत्तेजित था उस वाइब्रटर के कंपन की वजह से उपर से इस तरह का रोमॅंटिक स्नान मुझे और उत्तेजित कर रहा था. सारा दूध ख़तम हो जाने पर स्वामी जी ने उस खाली लोटे को वापस उसी युवती को दे दिया. 



उसके बाद एक दूसरी युवती नेआगे बढ़ कर उनके हाथ मे एक दूसरा लोटा दिया. स्वामी जी ने वापस उस लोटे को उपर कर के कहा, 



“ अब तुम्हारा स्नान विलुप्त और बहुत ही दुर्लाब जड़ी बूटियों के रस से किया जाएगा. इस स्नान से तुम्हारे जिस्म मे एक अद्भुत कांती आ जाएगी. तुम्हारे जिस्म के एक एक रोएँ मे कामग्नी भर जाएगी. तुम्हारे जिस्म मे काम की भूख कई गुना बढ़ जाएगी. तुम्हारे जिस्म मे एक अबूझ प्यास उत्पन्न होगी. तुम रति सच के लिए पागल हो जाओगी.” कहकर उन्हों ने उस मे भरा तरल प्रदार्थ मेरे सिर पर धीरे धीरे उधेलना शुरू किया. 



वहाँ मौजूद सारी युवतियाँ आगे बढ़ कर फूलों के ढेर के भीतर अपने हाथ डाल कर उस तरल औस्धी को मेरे बदन पर लगाने लगी. कुच्छ देर बाद वो लोटा भी ख़तम हो गया. 



एक युवती तभी वही कलश लाकर उनके हाथों मे थमाया. स्वामी जी ने उस कलश को अपने हाथों मे थामा और उसे पहले अपने सिर से च्छुअया. 



“ यही अमृत है. जीवन अमृत….इसकी एक बूँद से एक नया जीवन शुरू होता है. इस अमृत के बिना जीवन एक रेगिस्तान की तरह हो जाती है. इस अमृत के बिना औरत बांझ और मर्द नमार्द कहलाता है और उसके लिए विषपान के अलावा कोई चारा नही बचता है. इसलिए ही ये अमृत कहलाता है. देवी आज तुम्हारे जिस्म के अंदर अमृत भरने से पहले तुम्हारे जिस्म को अमृत स्नान भी करवाना पड़ेगा. तुम्हारे जिस्म को भीतर और बाहर से अमृत का लेप लगाना पड़ेगा.” उसने कहा और उस कलश को मेरे होंठों से च्छुआ कर कहा,” लो इसमे से एक घूँट ले लो जिससे ये अमृत तुम्हारे जिस्म के अंदर प्रवेश कर जाए और तुम्हारी धमनियों मे खून के साथ एक एक कोशिका तक पहुँच जाए.” 



मैने अपने होंठ खोल कर उस कलश को अपने होंठों के बीच दबाया. मेरे नथुनो मे वीर्य की महक भरती चली गयी. मैने उस कलश से एक घूँट लिया. फिर स्वामी जी ने उस कलश को मेरे होंठों पर से हटा लिया. 



“ अब तुम्हारा अमृत स्नान होगा. जिससे तुम्हारा जिस्म पवित्र हो जाए.” कह कर उन्हों ने उस कलश को मेरे सिर के उपर कर एक पतली धार के रूप मे उसमे भरा वीर्य मेरे सिर पर उधलने लगे. गाढ़ा गाढ़ा वीर्य मेरे बालों से टपकता हुया मेरे नग्न बदन को चूमता हुया नीचे की ओर बह रहा था. मैने अपनी आँखें बंद कर रखी थी लेकिन मेरी पलकें वीर्य से भीग चुकी थी. मेरी नाक मेरे गाल सब वीर्य से सन चुके थे. 



फॉरन वाहा मौजूद युवतिओ ने वीर्य को मेरे पूरे बदन पर मसलना चालू कर दिया था. मेरे एक के अंग को उन सबने वीर्य से सान दिया था. आस पास मौजूद हर व्यक्ति बहुत ही धीमी आवाज़ मे कुच्छ बुदबुदा रहा था. 



कुच्छ देर तक यूँ ही बैठे रहने के बाद स्वामी जी ने मेरे नग्न बदन को धन्पे गुलाब की पंखुड़ियों को हटाना शुरू कर दिया. जब मेरा पूरा बदन फूलों से बाहर आ गया तो स्वामी जी मेरे सामने आ खड़े हुए. उन्हों झुक कर मेरे गीले होंठों को एक बार चूमा. 



उन्हों ने अपनी बाँहें मेरे बगलों मे पिरो कर मुझे उठाया. पहले मुझे भी उठने मे कुच्छ ज़ोर लगाना पड़ा और वो मूर्ति “प्लॉप” की एक आवाज़ के साथ मेरी योनि से निकल गयी. मुझे ऐसा लगा मानो मेरी योनि के रास्ते मेरे जिस्म से सब कुछ बाहर निकल गया हो. और मेरा जिस्म खाली हो गया हो. उस मूर्ति के बाहर निकलते ही ऐसा लगा मानो कोई बाँध टूट गया हो और वीर्य की एक धार तेज़ी से निकल कर मेरी टाँगों से बहती हुई घुटनो के नीचे पहुँच गयी. धीरे धीरे ढेर सारा वीर्य फर्श पर इकट्ठा होने लगा. 



फिर उन्हों ने जो किया उसे देख कर मैं उनकी ताक़त का लोहा मान गयी. उन्हों ने एक झटके मे मुझे अपनी बाँहों मे उठा लिया. मैने उनके गले मे अपनी बाँहों का हार डाल दिया और उनके जिस्म से लिपट गयी. वो मुझे अपनी बाँहों मे उठाए उस कमरे से बाहर आ गये. इतनी उम्र मे भी वो मुझे उठा कर चलते हुए मुझे आश्रम के बीच बने उसी कुंड पर लेकर आए जहाँ से आज सुबह मैने शुरुआत की थी. मुझे कमरे से वहाँ लाते हुए वो एक बार भी नही लड़खड़ाए. आच्छे अच्छे मर्द मे इतनी ताक़त नही होती. 



कुंड भी अब लाल गुलाब की पंखुड़ियों से अटा पड़ा था. उन्हों ने मुझे उस कुंड मे उतार दिया. मैने पानी मे उतर कर एक डुबकी लगाई. पानी मे इत्र घुला हुआ था पूरा बदन रोमांचित था. जीवन मे इतना मज़ा कभी नही आया था. मैं पानी के उपर आइ तो मैने देखा की स्वामी जी ने अपने कमर मे लिपटे वस्त्रा को उतार दिया और वो भी बिल्कुल नग्न हो चुके थे. सारे मर्द और युवतियाँ उनके लिंग को अपने हाथों मे लेकर चूम रहे थे. सेक्स का ऐसा खेल कभी किसी पिक्चर मे भी नही देखने को मिला था. 



वो बिल्कुल नग्न अवस्था मे उस कुंड मे उतर गये. कुंड मे गर्देन तक पानी था. सारे शिष्य और शिष्याएँ उस कुंड को घेर कर खड़े हो गये. 


त्रिलोका नंद जी कुंड मे उतर कर मेरे नग्न जिस्म से लिपट गये. मैने भी उनकी गर्देन के इर्द गिर्द अपनी बाँहें लप्पेट दी. इससे पहले की वो कुच्छ करते मैने अपने प्यासे होंठ उनके होंठो पर रख दिए और अपने सीने को उनके सीने पर दबा दिया. उनके खड़े हो चुके लिंग की ठोकर मैं अपनी जांघों के बीच महसूस कर रही थी. 



मैने अपना एक हाथ नीचे ले जा कर उनके लिंग को सहलाया और उसे अपनी जांघों के बीच रख कर दोनो जांघों से उसे दबा दिया. उनके हाथ मेरे स्तनो को सहला रहे थे. फिर उन्हों ने नीचे झुक कर मेरे दोनो निपल्स को चूमा और अपने दाँतों के बीच लेकर कुरेदा. 



मैने अपनी उंगलियाँ उनके बालों मे धंसा दी और उनके चेहरे को अपने स्तनो पर भींच लिया. उन्हों ने अपने एक हाथ को नीचे ले जाकर पहले मेरे नितंबों को सहलाया फिर उनके हाथ मेरी जांघों के बीच मेरी योनि को सहलाने लगे. दो उंगलियों ने मेरी योनि के अंदर प्रवेश कर सहलाना शुरू कर दिया. 



उनके होंठ मेरे जिस्म पर उपर से नीचे तक फिसल रहे थे. ऐसा करते हुए वो पानी के भीतर डुबकी लगा कर मेरी योनि को चूमने लगे. मैने भी पानी के भीतर घुस कर उनके लंड को चूमा और अपने मुँह मे लेकर उसे दो बार चूसा. 



फिर र्वो मुझे साथ लेकर कुंड के पानी मे अठखेलिया करने लगे. महॉल इतना रोमॅंटिक था कि मैं तो मदहोश ही हो चुकी थी. सब कुच्छ एक दम नशीला नशीला सा लग रहा था. 



वो मुझे पकड़ने की कोशिश कर रहे थे और मैं किसी मच्चली की तरह उनकी गिरफ़्त से बचती जा रही थी. इस खेल मे कभी मैं उनके किसी अंग को चूमती तो कभी उनसे लिपट जाती. ऐसे वक़्त वो खुद मेरी गिरफ़्त से निकल जाते. ऐसा लग रहा था कि वो कोई 20 – 30 साल के नौजवान हों. उनकी हरकतों, उनकी चपलता को देख कर अच्छे मर्द अपनी दाँतों तले उंगलियाँ दबा सकते थे. 



बाहर खड़े लोग हमारे उपर पुष्प वर्षा कर रहे थे. तभी त्रिलोकनंद जी ने मुझे टाँगों से पकड़ कर उनको कुच्छ उपर किया और अपने कंधे पर रख दिया. तैरते हुए मेरा पूरा बदन पानी के उपर था. उन्हों ने अपने चेहरे को मेरी जांघों के बीच रख कर मेरी क्लाइटॉरिस को अपने दाँतों से कुरेदने लगे. मैं उनके ऐसा करने से तड़प उठी. टाँगे स्वतः ही भींच गयीं. उन्हों ने कुच्छ देर तक मेरे क्लिट को अपनी जीभ से और अपने दाँतों से कुर्दने के बाद मेरी योनि मे अपनी जीभ डाल कर चाटने लगे. 



“ आआआहह……गुरुउुऊउदीएव……..माआई माअर जवँगिइिईई…….उफफफफफ्फ़….प्ाअनीिइ मईए भी बदान जाल रहाआ हााईयईईई” मैं तड़प रही थी संभोग के लिए. मन कर रहा था स्वामी जी मेरे एक एक अंग को मोड़ तोड़ कर रख दें. इसी हालत मे मेरा एक स्खलन हो गया. कुच्छ देर तक जब गुरुदेव ने नही छ्चोड़ा तो मैं ही उनसे दूर भाग गयी. 



वो मेरी ओर झपते. उन्हों ने पीछे से पकड़ कर कुंड की दीवार से टीका दिया. मैने अपनी बाँहें किनारों पर रख कर सहारा लिया. वो मेरे जिस्म से पीछे की ओर से लिपट गये. उन्हों ने मेरी बगलों के नीचे से अपनी बाँहें निकाल कर मेरे स्तनो को थाम लिया और पीछे की तरफ से अपने लिंग को मेरे नितंबों के बीच फँसा दिया. 



मैने अपनी हथेली पीछे कर उनके लिंग को थामा और फिर अपने कमर को कुच्छ पीछे कर उनके लिंग को नितंबों की दरार पर नीचे की ओर सरकाया. फिर अपनी टाँगें फैला कर उनके लिंग को अपनी योनि के मुहाने पर ले गये. बाकी कुच्छ भी करने की ज़रूरत नही हुई. 



उन्हों ने अपनी कमर को आगे की ओर धकेला. मेरी योनि का मुँह दिन भर की चुदाई से इतना खुल गया था कि कोई परेशानी ही नही हुई उनके उस शानदार लंड को जड़ तक घुस जाने मे. फिर मुझे उसी तरह पकड़ कर चोद्ते रहे. जब वो अपने लंड को खींच कर बाहर निकालते तो कुंड का ठंडा पानी उनकी जगह लेने के लिए मेरी योनि मे घुस जाता और फिर अगले धक्के के साथ अंदर का पानी पिचकारी के रूप मे बाहर आ जाता था. इस अनोखी चुदाई मे खूब मज़ा आ रहा था. 



तकरीबन पंद्रह मिनिट तक मेरी चूत को ठोकने के बाद उन्हों ने मुझे घुमा कर सीधा कर लिया. उनकी मदद से मैं उनकी कमर तक उठ कर अपनी टाँगें उनकी कमर के इर्द गिर्द डाल कर उन्हे अपनी टाँगों की गॉश मे क़ैद कर लिया. उनका लंड वापस मेरी योनि मे घुस गया था. मैं अपनी बाँहे कुंड के किनारों पर रख कर उनके कमर की सवारी कर रही थी. उनके हर धक्के के साथ मेरी पीठ उस कुंड की दीवार से रगड़ खा रही थी. हल्का सा छिल भी गया था. मगर ऐसी चुदाई पाने के बाद किसे परवाह रहती है छ्होटे मोटे दर्द की. 
क्रमशः............ 
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