Porn Hindi Kahani रश्मि एक सेक्स मशीन
12-10-2018, 02:17 PM,
#97
RE: Porn Hindi Kahani रश्मि एक सेक्स मशीन
रश्मि एक सेक्स मशीन पार्ट -55 

गतान्क से आगे... 
उन्हों ने अपने दोनो हाथों से अपने नितंबों को अलग करके कहा, "हाआँ…..अब ले मेरी गांद को चाट....उम्म्म्म….तू तो पक्की राअंड बन सकतीी हाईईइ…….." मैं चुप चाप बैठी रही मुझे उसके इस तरह की हरकतों से घिंन आ रही थी. मगर वो मानने वाला नही था. उसने पलट कर मुझे एक कस कर झापड़ मारा. 



“ साली जो कहता हूँ चुपचाप कर वरना पूरा कलश उल्टा कर दूँगा. फिर सारे दिन के साथ रात भर भी अपनी चूत मरवाते रहना.” उसने मुझे गुस्से से धमकी दी. मैं चुप चाप अपना सिर झुका कर वैसा ही करने लगी जैसा वो चाहता था. 

इस काम मे तो मुझे सच कह रही हूँ इतनी घिंन आई कि मैं बयान नही कर सकती. सेक्स मे इस तरह की हरकतें भी लोग पसंद करते हैं मैं नही जानती थी. मेने अपनी जीभ बाहर निकाली. और उसके द्वारा अलग किए नितंबों की दरार के बीच उसके गुदा द्वार पर एक बार फिराया. 

" हाआँ आौर अच्छे से चाट वाहा पर अपनी जीईईभ फिराआा.... ....वाह तू तो सेक्स की मांझी हुई खिलाड़ी लगती है. फर्स्ट क्लास रांड़ बनने के सारे गुण हैं तुझमे. खूब कमा सकती है. ले......अपनी जीभ मेरी गांद के अंदर डाल" मैने अब अपने हाथों 
से पकड़ कर उनके गुदा द्वार को कुच्छ चौड़ा किया और अपनी जीभ उसके अंदर घुसाने की कोशिश की. लेकिन जगह इतनी कम थी की जीभ अंदर नही जा सकी. 

कुच्छ देर तक मुझसे अपने बदन को चटवा कर अब वो सीधे हुए उनका लिंग एक दम तना हुआ खड़ा था. उसकी मोटाई और लंबाई देख कर बदन मे झुरजुरी सी दौड़ गयी. 

" चल आजा मेरे उपर.......अगर मुझसे चुदवाना चाहती है तो मुझे चोद. जो कुच्छ करना है उसके लिए खुद को मेहनत करनी पड़ेगी. " मैं उनकी जांघों के जोड़ पर बैठ कर अपने पैरों को फैला कर कुच्छ उठी फिर अपने हाथों से उनके लिंग को अपनी योनि के द्वार पर सेट करकूच्छ पल रुकी. मेरी योनि उसकी हरकतों से उत्तेजित होकर पहले से ही गीली हो रही थी. इसलिए मुझे उम्मीद थी की उस गधे के समान लंड को झेलने मे ज़्यादा दिक्कत नही होगी. मैं धीरे धीरे अपने बदन का वजन अपनी कमर पर डालने लगी. उसका लंड कुच्छ देर तक मेरी चूत मे घुसने के लिए ज़ोर लगाता रहा मगर अंदर नही घुस पा रहा था. 



मैने अपने जबड़े भींच कर उनके लंड पर अपनी कमर से एक ज़ोर धक्का मारा तो लगा मानो मेरी योनि को चीरता हुआ उनका लंड के आगे का हिस्सा मेरे जिस्म मे समा गया. मैं दर्द से कराह उठी. मैं च्चटपटा कर उठने को हुई तो उन्हों ने अपने हाथों से मेरी कमर को ऐसे थाम लिया कि मैं उठ ही नही सकी. कुच्छ देर तक हम इसी पोज़िशन मे रहे. मेरा जिस्म पसीने से लटपथ हो गया था. 



धीरे धीरे दर्द कम होता चला गया. मैं उसके लंड पर धीरे धीरे बत्ती चली गयी. जब मई उसके टाँगों के जोड़ पर पूरी तरह बैठ गयी तो मैने अपने हाथ को नीचे ले जाकर उनके लंड को छ्छू कर तसल्ली की उनका लंड पूरा का पूरा मेरी चूत मे समा चुक्का था. मैं सिर्फ़ लंड को अपने अंदर लेने मे ही हाँफने लगी थी. वो मुझे देख कर मुस्कुरा रहे थे. 



“ हो गयी तसल्ली?” वो मेरी नज़रों मे झाँकते हुए मुस्कुरा रहे थे,” मैं कह रहा था ना की पहली बार ही थोड़ी परेशानी होगी बाद मे तो खूब मज़ा आ जाएगा. तुम तो बेकार ही घबरा रही थी.” 



मैं अपने जिस्म मे उठ रही दर्द की टीस दबा कर मुस्कुरा उठी. 



मैं अब उनके लिंग पर उपर नीचे होने लगी. उन्हों ने अपने हाथों से मेरे उच्छलते हुए दोनो उरोज थाम लिए और वापस उनको बेरहमी से मसल्ने लगे. मैं अपने निचले होंठ को दाँतों के बीच दबा कर उनको चोद रही थी. कुच्छ देर इसी तरह चोदने के बाद उन्हों ने मुझे अपने से अलग किया. 



“ मज़ा आ गया. क्या धक्के मारती है तू. कितने मर्दो से चुदी है अबतक. क्या सेक्सी माल है. सारा दिन चोद्ते रहो तो भी मन ना भरे.” वो मेरे जिस्म पर अपनी उंगलियाँ फिरा रहे थे. 

उन्हों ने अब मुझे बिस्तर पर पटक कर मेरी टाँगे उठा कर अपने कंधों पर रख लिया और किसी ढोक्नी की तरह मेरी कुटाई करने लगे. मैं उनके धक्कों से हाँफने लगी. एक चीज़ तो मैने देखी थी कि इस आश्रम का हर व्यक्ति सेक्स के मामले मे बहुत बलशाली था. चाहे वो कितना ही बुजुर्ग क्यों ना हो. भले ही उनके साथ सेक्स मे मेरे बदन पर अत्याचार खूब हुए मगर उनकी चुदाई मे इतना मज़ा आया कि मैं सब परेशानी सब दर्द भूल कर उनकी मर्दानगी पर मर मिटी. 



मुझे एक ही पोज़िशन मे लगभग आधे घंटे तक 
चोद्ते रहे. तब जाकर उनका लिंग झटके खाने लगा. वो मेरी बगल मे लुढ़क गये. वो बिस्तर पर चित होकर लेट गये. और मुझे अपने लिंग की ओर इशारा किया. 

मैं ने जल्दी से कलश को लेकर उनके लिंग के सामने रखा. छत की ओर तना हुआ लिंग किसी पिचकारी की तरह वीर्य की धार छोड़ने लगा. जिसे मैं किसी कुशल कॅचर की तरह उस कलश मे इकट्ठा करने लगी. कुछ बूंदे उनकी जांघों पर और पैरों पर भी गिरी जिन्हे मैने अपनी उंगलियों से समेट कर उस कलश मे भरा. इन्हों ने अपने ढेर सारे वीर्य की मुझे सौगात दी. मैं तो इस चुदाई मे पता नही कितनी बार स्खलित हो चुकी थी मैने कलश को हाथों मे संभाल कर उठना चाहा तो एक दम से लड़खड़ा कर गिरने को हुई. तो उन्हों ने फ़ौरन मेरे बदन को अपनी आगोश मे लेकर मुझे गिरने से बचाया. 

"सम्हालकर….कलश ना गिर जाए. इतनी मेहनत से जमा किया हुआ सारा वीर्य नष्ट हो जाएगा. " 

"वो….वो…..थकान के कारण मेरे पैर लड़खड़ा गये थे. आप नही सम्हालते तो मैं सही मे गिर जाती. आख़िर अपने मेरे बदन को थकाया भी तो बहुत." मैने उनकी आँखों मे झाँक कर कहा. 

" तुम हो ही इतनी खूबसूरत. क्या नाम है तुम्हारा देवी?" 

"दिशा…..दिशा नाम है मेरा." 

"यहीं रहती हो? " 

"हां इसी शहर मे रहती हूँ." मैने कहा. 

"मैं तो अब यहाँ आता जाता रहूँगा तुम्हारा साथ भी मिल जाया करेगा. उम्मीद है कि जल्दी ही दोबारा मुलाकात होगी." 

"जी" कहकर मैं लड़खड़ाते कदमो से उठी और अपने वस्त्र पहन कर कमरे से बाहर आई. बाहर रत्ना मुझे सामने से आती हुई दिखी. 

"तुम कहाँ थी?" उसने पूछा 

"आप दिखी नही इसलिए मैं इस कमरे मे गयी थी." मैने कहा. 

" क्या तू अमृत महाराज के पास?....... अरे तभी तेरा ये हाल हो रहा है. तेरा हाल तो बुरा होना ही था. इनके पास तो सबसे आख़िर मे जाना चाहिए था. क्योंकि ये हर औरत को इतनी बुरी तरह मसल्ते हैं कि पूरा बदन ही टूट जाता है. उसके बाद तो दिन भर दोबारा किसी से चुदाई के नाम से ही डर लगने लगता है. फिर भी देख रही हूँ कि तूने इन्हे बड़े आराम से झेल लिया." मैने सिर्फ़ एक बार मुस्कुरा दिया. 



“ अब मैं क्या बताऊ ऐसा लग रहा था जैसे मेरे बदन को चीर कर इनका लंड मुँह की ओर से ही बाहर निकल आएगा.” 

चौथे दरवाजे पर जाकर हम रुक गये. अंदर से “ अया ऊओ” की आवाज़ें आ रही थी. हम दोनो ने एक दूसरे को देखा और मुस्कुरा दिए. 



“यहाँ तो लगता है पहले से ही कोई कार्यक्रम चल रहा है.” रत्ना ने मुझे टोहका लगाया. मैं उसकी बातें सुन कर अपनी थकान भूल कर मुस्कुरा दी. 



रत्ना ने आगे बढ़ कर दरवाजा खाट खाटाया. दो मिनिट तक कोई आवाज़ नही आई. फिर किसी ने आकर कुण्डी खोली. मैने अंदर झाँका तो सामने बिस्तर पर दो महिलाएँ और एक पुरुष अपनी नग्नता को छिपाने की कोशिश कर रहे थे. दरवाजे पर जो पुरुष खड़ा थॉ ओ भी कुच्छ पल पहले उन्ही मे से एक था. अंदर सेक्स की सुगंध फैली हुई थी. 



तभी दरवाजे पर खड़े पुरुष ने अपना हाथ आगे कर मेरी कमर के इर्द गिर्द लप्पेट दिया. 



“ स्वामी अग्निदेव एक महिला आइ है कलश लेकर. वो अपने बड़े महाराज का अमृत प्रसाद लेना चाहती है. चलो अच्छा हुआ. देवी तृष्णा तो आज बहुत जल्दी झाड़ गयी है. मेरा तो अभी तक तना हुआ खड़ा है. आज इनकी योनि ही संतुष्टि देगी मेरे लिंग को.” कह कर उसने मुझे अंदर कमरे मे खींचा. रत्ना बाहर ही रुक गयी. उन्हों ने दरवाजा बंद कर दिया और मुझे अपनी बाँहों मे भरे हुए बिस्तर तक ले कर आए. 



बिस्तर पर एक महिला थॅकी हुई हाँफ रही थी और दूसरा जोड़ा दरवाजा बंद होते ही सारी शर्मो हया ताक पर रख कर एक दूसरे के उपर टूटा पड़े. वो दोनो मेरे सामने ही पूरे जोश के साथ सेक्स के गेम मे एक दूसरे को हराने की कोशिश करने लगे. मेरे साथ वाले आदमी ने मेरे कपड़े उतार कर मुझे नग्न कर दिया. फिर वो मुझे खींच कर बिस्तर पर ले गये. बिस्तर पर अब जगह ही नही बची थी हम दोनो के लिए. 



उसने अकेली हाँफती उस महिला को धक्का दिया तो वो उठ कर अपने वस्त्र पहन कर लड़खड़ाते कदमो से कमरे से बाहर निकल गयी. उसकी हालत ही बता रही थी कि वो अभी कुच्छ देर पहले जम कर चुदी थी. बिस्तर पर अभी भी दूसरा जोड़ा चुदाई मे व्यस्त था. 



उन्हों ने मुझे ज़मीन पर ही लिटा दिया और मेरे जिस्म पर टूट पड़े. वो मेरी योनि को अपनी जीभ से चाटने लगे. उस वक़्त उनका जिस्म मेरे जिस्म के उपर पसरा हुआ था. मेरे चेहरे के सामने उनका मोटा लिंग काँप रहा था. उनके लिंग को मैने अपने हाथों से थाम लिया. उनके लिंग पर अभी कुच्छ ही देर पहले साथ वाली महिला का वीर्य लगा हुआ था. कुच्छ रस ने तो सूख कर पपड़ी का रूप ले लिया था और कुच्छ रस अभी भी लंड के उपर एक लेप चढ़ा रखा था. लंड के मुँह पर भी रस की कुच्छ बूंदे झूल रही थी. मैने अपनी जीभ निकाल कर उनके लिंग को चॅटा. 



वो उस वक़्त मेरी योनि को अपनी उंगलियों से चौड़ा कर उसके अंदर अपनी जीभ डाल कर चाट रहे थे. मैं उनके लंड पर उपर से नीचे तक अपनी जीभ फिराने लगी. मेरी जीभ नीचे सरकते हुए उनकेअनदकोषों को भी चॅटा. उनके लंड के नीचे लटकते हुए अंडकोष किसी टेन्निस की बॉल जैसे लग रहे थे. 

क्रमशः............ 
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