Porn Hindi Kahani रश्मि एक सेक्स मशीन
12-10-2018, 02:16 PM,
#95
RE: Porn Hindi Kahani रश्मि एक सेक्स मशीन
रश्मि एक सेक्स मशीन पार्ट -53 

गतान्क से आगे... 


वो पीछे की तरफ से आकर मेरे बदन से चिपक गये और अपने हाथ मेरे बगलों के नीचे से निकाल कर मेरे दोनो स्तनो को थाम कर उन्हे मसल्ने लगे. उनकी साँसे मैं अपनी गर्दन पर महसूस कर रही थी. उनके होंठ मेरी पीठ पर मेरी गर्देन के पीछे और यहाँ तक की मेरे नितंबों पर भी घूम रहे थे. 



मेरी आँखें उत्तेजना से खुद बा खुद बंद होने लगी और होंठ खुल गये. सारा जिस्म सेक्स की आग से तप रहा था और मेरा दिल व दिमाग़ अपने जांघों के जोड़ पर किसी चिर परिचित मेहमान का इंतेज़ाए कर रहा था. मेरी टाँगें उनके लंड के इंतेज़ार मे अपने आप ही एक दूसरे से अलग होकर उनको रास्ता दिखाने लगी. 

उनके लिंग की छुअन मैं अपने नितंबों के बीच महसूस कर रही थी. उनके होंठ मेरे कंधों पर फिरते हुए मेरे गर्दन पर घूमने लगे. उन्हों ने मेरी गर्दन के पीछे अपने दाँत गढ़ा दिए और हल्के हल्के से काटने लगे. पूरा बदन सिहरन से भर उठा. बदन के रोएँ कांटो के जैसे खड़े हो गये. मेरी योनि से तरल प्रेकुं रिस रिस कर बाहर आ रहा था. 

"आआआहह… ..म्‍म्म्मममम… ..क्यों साताआ रहीए हूऊऊ" कहकर मैने 
अपना एक हाथ दीवार पर से हटाया और पीछे ले जाकर उनके लिंग को दो बार सहलाया. फिर उनके लिंग को अपनी योनि के द्वार पर ले जाकर उससे सटा दिया. ऐसा करने के लिए मैने अपने नितंबों को पीछे की ओर धकेला. 



उन्हों ने मेरे निपल्स को अपनी उंगलियों से दबा कर ज़ोर से खींचते हुए अपने लिंग को मेरी योनि मे डाल दिया. उनका लिंग काफ़ी मोटा है इसलिए जब भी मेरी योनि मे घुसता है तो चाहे जितनी भी गीली हो ऐसा लगता है मानो उसे चीर कर रख देगा. मैं इतनी बार 
उसने संभोग करने के बावजूद आज भी उनके पहले धक्के से कराह उठती हूँ. आआज तक मैं उनके लिंग की अभ्यस्त नही हो पाई. 



वो पीछे की तरफ से मेरी योनि मे धक्के मारने लगे. उनके धक्के इतने ज़ोर दार थे की हर धक्के के साथ मेरे उरोज दीवार से रगड़ खा जाते थे. निपल्स इतने तन चुके थे कि दीवार से रगड़ खा खा कर दुखने लगे थे. कुच्छ देर बाद इस तरह के ज़ोर दार झेलते झेलते मेरे हाथों ने जवाब दे दिया और मेरा पूरा बदन दीवार से जा चिपका. उसी हालत मे वो मुझे आधे घंटे तक चोद्ते रहे. मेरे निपल्स दीवार से रगड़ खाते खाते छिल गये थे. मेरी टाँगें भी उनके वजन को थामे दुखने लगी थी. मैं दो बार इस बीच झाड़ चुकी थी. 

" आअहह…….ऊऊऊहह…….उउउइईई…..हहुूहह….माआ………आब्ब बुसस्स भीइ करूऊ…..सेवकराम जी…….अभी तो बहुत लोगोणणन्न् का लेआणा हाईईईईईईईई…. इससस्स तरह तूऊऊओ….मैईईईई… मार ही जौंगिइइइ……" मैं सिसक उठी थी. 

" चल….आअज मैं तुझे चोदता हूँ……” कहकर उन्हों ने अपने धक्कों की गति बढ़ा दी. मेरे स्तनो को थाम कर तो उन्हे मसल कर रख दिया और पूरे वेग से अपने लंड से मेरी चुदाई करने लगे. मुश्किल से दो मिनिट हुए की उनका बदन अकड़ने लगा. मैं समझ गयी की अब इनका वीर्यपात होने वाला है. 



“ले …..मेरे वीर्य को अपने कलश मे भर ले." कहकर सेवक रामजी ने एक झटके से अपने लिंग को बाहर निकाला. में हन्फ्ते हुए दीवार से सॅट कर ज़मीन पर बैठ गयी और पास रखे कलश को उठा कर उनके लिंग पर लगाया. उन्हों ने अपने लिंग को मेरे कलश की दिशा मे कर रखा था. 

अपने दूसरे हाथ से उनके लिंग को पकड़ कर सहलाने लगी. दो – तीन बार सहलाते ही एक तेज दूध की तरह सफेद धार निकल कर उस कलश मे इकट्ठा होने लगी. उन्होने ढेर सारा वीर्य मेरे हाथो मे पकड़े उस कलश मे भर दिया. जब तक उनके लंड से आख़िरी बूँद तक ना निकल गयी तब तक मैने उनके लंड को छ्चोड़ा नही. 



मेरी भी योनि से ढेर सारा वीर्य बह निकाला था. वो बाते बाते मेरी जांघों को और मेरे नितंबों को गीला कर रहा था. कुच्छ कतरे ज़मीन पर भी गिर गये थे. 



मेरा गला सूखने लगा था. वो मेरी हालत को समझ कर दो ग्लास ले कर आए. एक मे पानी था और दूसरे मे वही शक्ति वर्धक पेय था. मैने एक घूँट पानी पीकर दूसरे ग्लास को लिया और उसे एक झटके मे खाली कर दिया. आज मुझे सारे दिन इसी पेय की ज़रूरत थी. जिससे मेरे जिस्म मे एक अन्बुझि आग पूरे दिन जलती रहे और मैं अपने कार्य को पूरे मन से संपूर्ण कर सकूँ. 

मैं कुच्छ देर वही दीवार के सहारे नंगी ज़मीन पर बैठी रही. सेवकराम जी मेरे बालों पर हाथ फेर रहे थे और मेरे बदन को सहला कर प्यार कर रहे थे. मैं चुपचाप आँखें बंद किए बैठी अपनी सांसो को व्यवस्थित करती रही. जाब साँसे कुच्छ नॉर्मल हुई तो उठकर सारी को अपने बदन से लपेटा और सेवकराम जी के चरण च्छू कर उस कमरे से निकल गयी. 



मैने अपने दोनो हाथों मे वही कलश थाम रखा था जिसमे सेवकराम जी का गाढ़ा वीर्य इकट्ठा था. कुच्छ ही देर मे वापस मेरे बदन मे सेक्स की ज्वाला सी जलने लगी थी. उस दिन तो मेरा बदन सेक्स की आग से तप रहा था. 

बाहर रत्ना मेरे इंतेज़ार मे मिल गयी. वो मुझे देखते ही खिल उठी. आगे आकर उसने उस कलश मे झाँका और फिर मुस्कुराते हुए पूछा, 



“ कैसा लगा? कोई परेशानी तो नही हुई?” 



“ सेवकराम जी के साथ परेशानी कैसी? वो तो मेरे अंग अंग से अब तक वाक़िफ़ हो चुके हैं. हमेशा की तरह उनके साथ सेक्स मे मज़ा आ गया. उनकी मर्दानगी तो लाजवाब है. एक एक अंग को तोड़ कर रख देते हैं. लेकिन आज उन्हों नेज्यदा परेशान नही किया.” मैने कहा. 



वो मुझे लेकर दूसरे कमरे के द्वार पर गयी. मैने दरवाजे को दो बार खटखटाया. एक 60 – 65 साल के बुजुर्ग ने दरवाजा खोला. काले रंग का वो शिष्य बदन से भी कमजोर था. उसके चेहरे पर चेचक के दाग थे उसपर हल्की दाढ़ी 
किसी कॅक्टस के कांटो समान दिख रही थी. सिर पर एक भी बाल नही थे. 

वो दो पल हमे जिग्यासा भरी नज़रों से देखते रहे. फिर मेरे हाथों मे कलश को देख कर वो बिना कुच्छ कहे दरवाजे से हट गये. रत्ना ने मेरी बाँह पकड़ कर आगे की ओर हल्का सा धकेला. मैं उनकी बगल से होती हुई अंदर प्रवेश कर गयी. अपने पीछे मैने दरवाजे के बंद होने की आवाज़ सुनी. मैं कमरे के बीच चुपचाप खड़ी रही. वो मेरे पास आकर मेरे हाथो से कलश को लेकर एक ओर रखा. 

" अब किसका इंतेज़ार कर रही हो? चलो फटाफट अपने कपड़े उतार डालो. कपड़ों के उपर से तो एक दम गाथा हुआ मजबूत माल लग रही हो. अब मैं तो बुड्ढ़ा होने लगा हूँ. देखो…." कहकर उन्हों ने अपने बदन को ढके इकलौते वस्त्र अपनी धोती को एक झटके मे उतार दिया. मैने भी अपनी सारी को बदन से उतार दिया. 

" वाआह शानदार... .........क्या माल है. काश आज से बीस तीस साल पहले मिली होती तो तुझे चोद चोद कर चौड़ा कर देता.” कहकर उन्हों ने अपने बेजान लटके हुए लिंग को मसला, “लड़की इस उम्र मे इससे दूध निकालने के लिए तुझे खुद मेहनत करनी होगी. इस मे जीवन का संचार करना होगा." उन्हों ने अपने सोए हुए लिंग की तरफ इशारा किया. मैने अपना हाथ बढ़ा कर उनके लिंग को थाम लिया और सहलाने लगी. मुझे गुस्सा आ रहा था. इधर तो मेरा बदन जल रहा था और यही बुड्ढ़ा मिला था अपने तन की आग बुझाने के लिए. रत्ना अभी तो किसी कड़क मर्द से मेरी मुलाकात करवा सकती थी. इससे तो बाद मे जब मैं थक जाती तब ही मिलना बेहतर होता. 



मैं उसके लिंग को अपने हाथों मे लेकर सहलाने लगी. लेकिन उसमे कोई हरकत नही हुई. 

"देवी इस तरह कुच्छ भी नही होगा. इसे अपने मुँह मे लेकर प्यार करो." कहकर उसने अपने दोनो हाथ मेरे कंधों पर रख कर मुझे नीचे झुकने का इशारा किया. मुझे उस आदमी के साथ और एस्पेशली उसके लिंग को अपने मुँह मे लेने मे घिंन आ रही थी. क्योंकि उसके बदन से पसीने की बू भी आ रही थी. 



लेकिन मेरी मर्ज़ी का यहा कोई महत्व ही नही था. यहाँ तो मैं तो आज सिर्फ़ एक सेक्स मशीन थी. मुझे बिना किसी लग लप्पेट के इनसे चुदना था और अपना काम निकालना था. मैने अपने घुटने मोड़ लिए और उनके सामने ज़मीन पर बैठ गयी. 



मेरे आँखों से कुच्छ इंच की दूरी पर उनका लिंग किसी मरे चूहे की तरह लटक रहा था. मैने झिझकते उसके लिंग को अपने एक हाथ से थामा और उसे उठा कर अपने होंठों के सामने ले कर आई. मैने अपने होंठों से उनके लिंग को चूमा फिर कुच्छ देर अपने होंठ उनके लिंग पर फिराती रही. 



“ इसे मुँह मे लेकर चूसो कुच्छ देर तब जाकर इसमे हरकत आएगी.” कह कर वो नीचे झुक कर मेरे स्तनो को अपनी हथेलियों मे थाम कर उन्हे मसल दिए. 



उनके लिंग से एक अजीब सी बदबू आ रही थी. मेरा जी मचल रहा था और उबकाई सी आने लगी. मैने साँस रोक कर अपना मुँह खोला और उनके लिंग को अपने मुँह मे ले लिया. साँस लेते ही ज़ोर से उबकाई आई. 

मैं उनके लिंग को मुँह से निकाल कर अपनी उबकाई रोकने के लिए अपने मुँह को हथेली से दाब कर बाथरूम की तरफ जाना चाहती थी लेकिन उन्हों ने मेरे बाल सख्ती से पकड़ 
लिए. 

" कहाँ जा रही है. मेरे लिंग का अनादर करके तू बच नही सकती. हरामजादी पता नही कितनो से चुद चुकी है और मेरे लंड को मुँह मे लेने मे तुझे उल्टी आ रही है. चल नखरे मत कर. मुँह खोल और इसे अंदर ले." उनके बोलने का लहज़ा ऐसा था मानो वो किसी दो टके की वेश्या से बातें कर रहे हों. इतने बड़े महात्मा के शिष्य होकर बाजारू भाषा का प्रयोग कर रहे थे. 



मुझे गुस्सा तो बहुत आया लेकिन उसे अपने चेहरे पर नज़र आने नही दिया. मैने अपना 
मुँह खोल कर उनके लिंग को अंदर ले लिया. मैं अपनी दो उंगलियों से उनके लिंग को थाम कर उसे चूसने लगी. वो झुक कर मेरी पीठ पर हाथ फेर रहा था और मेरे गालों को सहला रहा था. काफ़ी देर तक चूसने के बाद उसके लिंग मे हरकत आनी शुरू हुई. धीरे धीरे उसका लिंग तनने लगा. 



जिस लिंग को मैं बेजान समझ रही थी उसका आकार जब बढ़ने लगा तो मैं अस्चरय से रुक गयी. उसकी मोटाई और लंबाई अद्भुत रूप से बढ़ने लगी थी. उसका आकार बड़ा ही विकारल हो गया. वो मेरे सिर को अपने हाथों से थाम कर अपने लिंग पर दबाने लगे. अब उनके लिंग को पूरा मुँह मे लेने मे भी परेशानी हो रही थी. 



उनका तना हुआ लिंग आधा भी मुँह मे नही जा पा रहा था. जब उनका लिंग अपने आकर मे आ गया तो उसे देख अब मुझे भी मुख मैथुन मे मज़ा आने लगा. अब उनके लिंग को मैं तेज़ी से मुँह मे लेने लगी. मेरी रफ़्तार काफ़ी तेज हो गयी थी. उन्हों ने अपना कमर आगे की ओर बढ़ा दिया था और मेर हर धक्के का साथ वो भी अपनी कमर से धक्का लगा कर दे रहे थे. ऐसा लग रहा था मानो वो मेरे मुँह को नही बल्कि मेरी चूत को ठोक रहे हों. 
क्रमशः............
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