Porn Hindi Kahani रश्मि एक सेक्स मशीन
12-10-2018, 02:15 PM,
#84
RE: Porn Hindi Kahani रश्मि एक सेक्स मशीन
रश्मि एक सेक्स मशीन पार्ट -43 

गतान्क से आगे... 

“उनसे तो मैं पहले भी कई बार मिल चुकी हूँ. मेरे पड़ोस मे ही तो रहते हैं. आजकल तो अक्सर ही मिल जाते हैं. लगता है तुम्हारे ये सेवक राम बड़े रसिक स्वाभाव के आदमी हैं.” मैने उनसे कहा. 



“ क्यों ऐसा क्या देखा उनमे?” 



“ मैं जब भी बाहर कुच्छ काम करती हूँ तो तुम्हारे ये रसिक लाल जी मुझे घूरते रहते हैं मानो मुझे जिंदा खा जाएँगे.” 



“ दिशा तुम हो ही इतनी खूबसूरत की हर मर्द का लंड सलाम करने लगे तुझे देख कर.” 



“ दीदी आप भी ना हमेशा मेरी खिंचाई करती रहती हो. खुद को देखो. ऐसा सेक्सी बदन है कि इस बदन की एक झलक पाकर ही कोई भी अपने उपर से कंट्रोल खो दे.” 



“ चल छ्चोड़ पहले ये बता कब चलेगी घूमने?” 



“ देखती हूँ. देव आ जाए फिर किसी दिन देख आएँगे उनका आश्रम.” 



“ अरे देवेंदर जी तो जाने कब आएँगे. कल ही हम दोनो चलते हैं आश्रम. मैं ले चालूंगी तुझे वहाँ. तुम तैयार रहना मैं ठीक दस बजे आ जाउन्गी तुम्हे लेने.” रत्ना ने उठते हुए कहा, “सुबह नौ दस बजे तक काम निबटा लेना और नहा धो कर तैयार रहना….” 



“ अरे सुनो तो….” मैं उसे मना करना चाहती थी मगर उसने मेरी एक ना चलने दी.. वो कुच्छ भी सुनने को तैयार ही नही हुई. 



“ कुच्छ नही सुनना तुम बस नहा धो कर और खूब बन संवर कर तैयार रहना. हम दोनो साथ चल चल्लेंगे.” रत्ना कहते हुए चली गयी. मैं उन्हे रोक कर इनकार करना चाहती थी लेकिन उनकी बातों ने कुच्छ ऐसा असर किया था मेरे उपर कि उस आश्रम और वहाँ के मठाधीश से मिलने का मौका भी हाथ से निकलने नही देना चाहती थी. मुझे एक बार लगा कि पता नही कैसी औरत है. अभी जान पहचान ही कितने दिनो की थी. मगर मैने अपने मन मे उठती एक शन्सय को दबा दिया. 



वैसे भी दिन मे किसी औरत के साथ कहीं जाने मे क्या बुराई हो सकती थी. आच्छा नही लगा तो वापस लौट आउन्गी. 



अगले दिन मैं पौने दस बजे तक नहा धो कर तैयार हो गयी थी. अपने चेहरे पर हल्का सा मेकप भी किया था. होंठों पर लिपस्टिक, माथे पर बिंदी माँग मे सिंदूर लगाकर बदन पर एक प्यारी सी गुलाबी सारी पहनी थी. वैसे तो मैं अक्सर सलवार कमीज़ पहनती थी लेकिन किसी धार्मिक स्थल पर जाने के लिए मुझे सारी पहनना ही उचित लगा. गले पर भारी मंगलसूत्रा और हाथों मे कोहनी तक सुंदर रंग बिरंगी चूड़ियाँ मेरे रूप को और निखार रही थी. मुझे बनने सँवरने का शुरू से ही बहुत शौक़ था. जिसे शादी के बाद देव ने और हवा दी थी. वो चाहते थे कि मैं हर वक़्त बनी सन्वरि रहूं.



मॅचिंग ब्लाउस के अंदर मैने एक लेसी ब्रा और जांघों पर मॅचिंग पॅंटी पहनी थी. उन्हे पहनते वक़्त मैं मुस्कुरा दी. किसे पता चल सकेगा कि मैने अंडर गारमेंट्स का भी चयन सारी के मॅचिंग ही किया था. कोई कपड़े उतार कर देखने तो जा नही रहा था कि मैने अंदर क्या पहन रखा है. 



“कौन देखेगा इन अंदरूनी वस्त्रों को. भगवान के घर जा रही हूँ वहाँ पर साधु महात्मा रहते हैं को छिछोरे आशिक़ तो मिलेंगे नही जो मौका मिलते ही कपड़ों के अंदर तक झाँक लें” मैने आईने मे अपने आप को निहारते हुए सोचा. 



रत्ना ठीक दस बजे घर पर आ गयी. आश्रम पास ही था इसलिए हम दोनो पैदल ही वहाँ के लिए रवाना हुए. कोई पाँच मिनिट का रास्ता था. वहाँ मैने देखा की वाकई काफ़ी भव्य आश्रम बन रहा था. काफ़ी बड़ा एरिया घिरा हुआ था. ऑलमोस्ट पूरा ही बनकर तैयार हो गया था अब फिनिशिंग चल रही थी. एक नक्काशी वाले प्रवेश द्वार से अंदर घुस कर सामने रिसेप्षन जैसी जगह पर पहुँचे. 



रिसेप्षन पर दीवारों से लगे काफ़ी मुलायम सोफे बिछे हुए थे. रत्ना जी ने मुझे वहाँ बैठने का इशारा किया. रिसेप्षन मे उस वक़्त केवल एक आदमी गेरुआ वस्त्र पहने मौजूद था. उसने रत्ना जी को झुक कर अभिवादन किया. जिससे लगा की रत्ना जी काफ़ी परिचित व्यक्तियों मे हैं. मैं सोफे पर जाकर बैठ गयी. 



“ मैं अभी आती हूँ दो मिनिट वेट करो.” कहकर रत्ना जी एक विशाल दरवाजे से अंदर चली गयी. मैं वहाँ बैठे हुए दीवारों पर बने हुए पत्थर से तराशे हुए देवी देवताओं की मूर्तियाँ देख रही थी. मुझे लग रहा था कि पता नही मैं किस लोक मे आ गयी हूँ. सारे अश्रमवसी गेरुए रंग के लबादे पहने हुए थे. जो आगे से खुलते थे. ये वस्त्र कमर पर किसी नाइट गाउन की तरह एक डोरी से कसे हुए थे. 



वहाँ कुच्छ औरतें भी दिखी वो भी इसी तरह के वस्त्र मे थी. चलने फिरने से उनके वस्त्र सामने से खुल जाते थे और उनकी जांघों का काफ़ी हिस्सा सामने से दिखने लगता था. 



मैं अपनी नज़रें इधर उधर दौड़ने लगी. मैने देखा की वहाँ जितनी भी मूर्तियाँ नक्कासी की हुई थी वो अजंता या खजुराहो की मूर्तियों की तरह काम रस मे डूबी हुई थी. मर्द और औरत सेक्स के अलग अलग पोज़ मे दिख रहे थे. तस्वीरें जो दीवार पर लगी थी वो भी काफ़ी उत्तेजक और कामुक थी. हर ओर काम रस बिखरा पड़ा था. मैं उन सब को देख कर वहाँ के रहने वालो के रहण सहन के बारे मे सोचने लगी. 



तभी एक आदमी एक ट्रे मे शरबत जैसा कोई पेय प्रदार्थ ले आया. रंग से रूह आफ्ज़ा की तरह दिख रहा था. उसने मुझे झुक कर नमस्कार किया और ट्रे सामने की. मैने उसे शरबत समझ कर एक ग्लास ले लिया. उसमे से बहुत भीनी भीनी सुगंध आ राझी थी.. मैने उस ग्लास को लेकर उसमे से एक घूँट सीप किया. शीतल पेय का स्वाद बड़ा ही अजीब था. वैसा नशीला स्वाद मैने कभी नही चखा था. एक घूँट पीते ही मन झूम उठा. 



“ ये कौन सा शरबत है?” मैने पूछा. 



“ ये एक ख़ास आयुर्वेदिक पेय है. खास खास जड़ी बूटियों से बना है ये. इस आश्रम मे जो भी मेहमान आता है उनका स्वागत इसी पेय से किया जाता है. यहाँ चाइ या कोल्ड ड्रिंक्स तो मिलेगी नही. आपको इससे ही काम चलना पड़ेगा. आपको पसंद नही आया?” उसने पूछा. उसके इस तरह पूच्छने से मैं हड़बड़ा गयी और एक झटके मे पूरा ग्लास खाली कर दिया. 



मुझे इस तरह हड़बड़ा कर पीता देख वो मुस्कुराता हुया पलटा और अंदर चला गया. उसकी महक काफ़ी देर तक मेरे नथुनो मे भरी रही. उसे पीने के बाद मैं अपने बदन को बहुत हल्का महसूस करने लगी. 



कोई दस मिनिट बाद रत्ना जी वापस आई. वो भी अपने वस्त्र खोल कर उसी तरह के गेरूए वस्त्र पहन कर आई थी. उनके हाथ मे भी एक वैसा ही लबादा था जैसा उन्हों ने पहन रखा था. उन्हे आते देख मैं उठ खड़ी हुई. 



“क्या हुआ आप अपने कपड़े चेंज कर आई?’ मैने उनसे पूछा मगर उन्हों ने मेरे सवाल का कोई जवाब देने की ज़रूरत नही महसूस की. 



“आओ..” कहकर रत्ना जी मेरा हाथ पकड़ कर अपने साथ उस दरवाजे से अंदर ले गयी.. सामने एक कॉरिडर था जिसके दूसरी ओर काले काँच का एक और दरवाजा था उसमे प्रवेश करते ही दरवाजा अपने आप पीछे बंद हो गया. हम एक कमरे मे थे कमरे के अंदर घुप अंधेरा था. कुच्छ भी दिखाई नही दे रहा था. मैने घबरा कर रत्ना जी की कलाई को सख्ती से थाम लिया. 

क्रमशः............ 
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