Porn Hindi Kahani रश्मि एक सेक्स मशीन
12-10-2018, 02:02 PM,
#12
RE: Porn Hindi Kahani रश्मि एक सेक्स मशीन
रश्मि एक सेक्स मशीन पार्ट -11 
गतान्क से आगे.... 


मैने वहाँ पहुँच कर अपना परिचय दिया और आने का मकसद बताया. मुझे अंदर जाने दिया गया. एक आदमी मुझे लेकर मेन बिल्डिंग मे दाखिल हुया. मैं वहाँ स्वामीजी से मिली. 



स्वामीजी बहुत ही आकर्षक व्यक्तित्व के आदमी थे. उनके चेहरे मे एक अद्भुत चमक थी. घने काले दाढ़ी मे चेहरा और भरा भरा लग रहा था. कोई 6'2" या 3" हाइट होगी. वजन भी कम से कम 100-110 किलो होना चाहिए. लंबे घुंघराले बाल, चौड़ा घने बालों से भरा सीना किसी भी महिला को पागल करने के लिए काफ़ी था. उसने नंगे बदन पर एक लाल तहमद बाँध रखी थी और एक लाल दुपट्टा कंधे पर रख रखा था. गले मे ढेर सारी मालाएँ. सब मिला कर उनके व्यक्तित्व को बहुत आकर्षक बना रही थी. 



उन्हों ने बिना कुच्छ बोले मुझे ऊपर से नीचे तक देखा. मेरे बूब्स को देखते हुए मुझे लगा कि उनकी आँखों मे छन भर के लिए एक चमक सी आइ और फिर ओझल हो गयी. मुझे हाथ से बैठने का इशारा किया. वो तब एक आराम दायक कुर्सी पर बैठे हुए किसी पत्रिका के पन्ने पलट रहे थे. मैने आगे बढ़ कर उनके चरण च्छुए और उनको अपने आने का मकसद बताया. उन्हों ने बिना कुच्छ कहे मुझे वापस बैठने को इशारा किया. 

मैं उनके सामने ज़मीन पर बैठने लगी तो एक शिष्या छ्होटा सा एक मूढ़ढा ले आया. मैं उनके बिल्कुल करीब उस मुद्दे पर बैठ गयी. मैने अपना आइडेंटिटी कार्ड उनके सामने कर दिया. उन्हों ने अपने हाथ मे पकड़ी पत्रिका को एक तरफ रख कर मुझे वापस गहरी नज़रों से देखा. उनके चेहरे पर एक बहुत ही प्यारी सी मुस्कान सदा बनी हुई थी. मेरे बारे मे ओपचारिक पूछ ताछ के बाद उन्हों ने अपने एक शिष्या को बुलाया. 

" इनको मेरे बगल वाला रूम दिखा दो. कुच्छ समान हो तो वो भी पहुँचा देना. ये हमारी खास अतिथि हैं इनका पूरा ध्यान रखा जाय. रजनी जी को इनके साथ रहने को कह देना. वो हमारे बारे मे इनकी सारी जिगयसाएँ शांत कर देगी. इनके अतिथ्य मे किसी तरह की कोई कमी नही रहनी चाहिए." धीरे धीरे और बड़े ही मृदु स्वर मे उन्हों ने कहा. उनकी आवाज़ बहुत धीमी और गंभीर थी. 

"स्वामीजी आपके पठन का समय हो गया है." तभी एक आदमी ने उनसे कहा. स्वामी जी उठते हुए मेरे सिर पर हाथ फेरे तो लगा मानो एक चुंबकीय शक्ति उनके हाथों से मेरे बदन मे प्रवेश कर गयी. पूरा बदन मे झुरजुरी सी फैल गयी. 

"तुम आराम करो और चाहो तो आश्रम घूम फिर कर देख भी सकती हो. रजनी तुम्हे सब जगह दिखा देगी. तुम हमारे आस्रम की शिष्या क्यों नही बन जाती. मुझे तुम्हारे जैसी समझदार लोगों की ज़रूरत है." उन्हों ने मेरी आँखों मे झाँकते हुए कहा. 



“ मैं आपकी बात पर विचार करूँगी.” 



“ सदा सुखी रहो.” कह कर वो धीमे कदमो से वहाँ से चले गये. 

रजनी नाम की लड़की कुच्छ ही देर मे आई. उसने लाल रंग का एक किमोना जैसा वस्त्र पहन रखा था. जैसा पहाड़ी इलाक़े मे लड़कियाँ पहनती हैं. वैसे वहाँ जितने भी शिश्य या शिष्या आश्रम मे रहते थे सब लाल रंग का लबादा पहनते थे. रजनी बहुत ही खूब सूरत थी और उसका बदन भी सेक्सी था. वो मुझे लेकर आश्रम की गलियारों से होकर आगे बढ़ रही थी और मैं अपने समान का बॅग लेकर उसके पीछे हो ली. 



उसने मुझे एक कमरा दिखाया. कमरा काफ़ी खूबसूरती से सज़ा हुआ था. मानो कोई फाइव स्टार होटेल का कमरा हो. तभी एक युवती कोई शरबत लेकर आई. उसका स्वाद थोड़ा अजीब था मगर उसे पीने के बाद तन बदन मे एक स्फूर्ति सी च्छा गयी. यात्रा की सारी थकावट पता नही कहाँ गायब हो गयी. 



रजनी ने मुझे पूरा आश्रम घुमाया बहुत ही शानदार बना हुआ था. उसने फिर सबसे मेरी मुलाकात कराई. वहाँ 12 आदमी और 5 महिलाएँ रहती थी. महिलाएँ सारी की सारी खूबसूरत और सेक्सी थी. लगता था मानो खूबसूरती और सेक्सी होना वहाँ ज़रूरी होता था. 



सारी महिलाएँ एक जैसा ही गाउन पहन रखी थी. जो कमर पर डोरी से बँधी रहती थी. उस गाउन के भीतर उन्हों ने शायद कुच्छ भी नही पहन रखा था. क्योंकि चलने फिरने से उनकी बड़ी बड़ी चूचियाँ बुरी तरह से हिलती डुलती थी. जब वो झुकती तो गले का हिस्सा खुल जाता और काफ़ी दूर तक नंगी छातियो के दर्शन हो जाते थे. 



आदमी सब कमर पर एक लाल लूँगी बाँध रखे थे. उनके कमर के उपर का हिस्सा नंगा ही रहता था. सारे मर्द हत्ते कत्ते और अच्छि कद काठी के थे. सब को कुच्छ ना कुच्छ काम बाँट रखा था. 



दोपहर को खाना खाने के बाद स्वामी जी कुच्छ देर विश्राम करने चले गये. शाम को उनका हॉल मे प्रवचन था. मैं उनके संग रहने का कोई भी मौका नही छ्चोड़ रही थी. स्वामी जी बहुत ही अच्च्छा बोलते थे. ऐसा लगता था कि कानो मे मिशरी घोल रहे हों. मैं तो मंत्रमुग्ध हो गयी. सारे भक्त जन उनकी बातों को बहुत ही ध्यान से सुन रहे थे. मैं उनसे संबंधित हर छ्होटी छ्होटी बात को अपनी डाइयरी मे लिखती जा रही थी. उनकी बातों को वॉकमॅन के द्वारा टेप करती जा रही थी. 



शाम की आरती के बाद आठ बजे मुझे उन्हों ने इंटरव्यू के लिए बुलाया. मैं उनसे तरह तरह के सवाल पूच्छने लगी. वो बिना झिझक उनके जवाब दे रहे थे. उनके जवाब 
मैं रेकॉर्ड करती जा रही थी. मैं उनके जवाब रेकॉर्ड करने के लिए उनकी तरफ झुक कर बैठी हुई थी. जिसके कारण मेरे टी-शर्ट के गले से बिना ब्रा के बूब्स और निपल्स उन्हे सॉफ दिख रहे. स्वामीजी की नज़रे उनको सहला रही थी. अचानक मेरी नज़रे उनके ऊपर पड़ी. उनकी 
आँखों का पीछा किया तो पता चला कि वो कहाँ घूम रही हैं. मैं शर्मा गयी. लेकिन मैने अपने दूध की बॉटल्स को छिपाने की कोई कोशिश नही की. 

मैने अपने बातों की दिशा थोड़ा बदल कर उसे सेक्स की तरफ मोड़ा. मैं मौके का पूरा फ़ायदा उठना चाहती थी. मैं उनके कामोत्तेजक स्वाभाव को अपने अन्द्रूनि बदन का दर्शन करा कर उनसे वो बातें उगलवा लेना चाहती थी. समझ गयी कि आश्रम मे चारों ओर रंगीन महॉल बना हुआ है. उनके कमरे मे दीवारो पर भी उत्तेजक तस्वीर लगे हुए थे. 

"स्वामी जी आपके बारे मे तरह तरह के अफवाह भी सुनने को मिलते हैं" मैने पूछा लेकिन उनके चेहरे पर खिली मुस्कुराहट मे कोई चेंज नज़र नही आया. 



“किस तरह के अफवाह देवी?” उन्हों ने पूछा. 



“यही की आश्रम मे कुच्छ उन्मुक्त वातावरण फैला हुआ है. यहाँ पर सेक्षुयल खेल भी चलते हैं. यहाँ के लोगों का आपस मे शारीरिक संबंध भी बना हुआ है. इत्यादि इत्यादि…” 


" जब भी कोई लोगों की भलाई के लिए अपना सब कुच्छ लगा देता है तो कुच्छ आदमी उस से जलने लगते हैं. आच्छे मनुश्य का काम होता है कि बगुले की तरह सिर्फ़ मोती चुन ले और कंकड़ को वहीं पड़े रहने दे." उन्हो ने बड़े ही मधुर आवाज़ मे मेरे प्रश्न का जवाब दिया. 

“लेकिन क्या आपको लगता नही कि कुच्छ लोग आपके बारे मे आश्रम के बारे मे अफवाहें फैला कर बदनाम करने की कोशिश मे लगे हुए हैं.” 



“देवी कोई जानवर आपको काट ले तो क्या पलट कर आप भी उसे कटोगी? नही ना. इसलिए किसी की बातों को ध्यान नही देना चाहिए. मनुष्य इन संसारिक बातों से उपर उठे तो संसार बहुत ही अच्छा दिखने लगेगा.” उन्हों ने उसी तरह बिना किसी आवेश के उसी तरह मुस्कुराते हुए कहा. मैं तो मंत्रमुग्ध सी एक तक उनके चेहरे को निहारती रही. 



“ देवी मेरे आश्रम के द्वार हर मनुश्य के लिए खुले हैं कोई भी यहा आकर जाँच पड़ताल कर सकता है. देवी तुम भी हमारे आश्रम मे रहो देखोगी कि यहाँ के महॉल मे इतना नशा है कि तुम आश्रम से दूर होना भूल जाओगी.” 



इसी तरह काफ़ी देर तक बातें होती रही. उन्हों ने बातों बातों मे मुझे कई बार उनके आश्रम को जाय्न करने का ऑफर दिया. मियने हर बात मुस्कुरा कर उनके ऑफर को नज़र अंदाज कर दिया. 


रात के साढ़े नौ बजे मैने उनसे घर जाने कि इजाज़त माँगी. वो मुझे छ्चोड़ना नही चाहते थे. 



“देवी आज रात आप यही आश्रम मे रुकें आज हमारी मेहमान बन कर रहें. रात विश्राम करके कल अपने हिसाब से चली जाना. मैं आपके रुकने का इंटेज़ाम करवा देता हूँ. आपको यहाँ किसी तरह की परेशानी नही होगी.” उन्हों ने मुझे रोकते हुए मेरा हाथ थाम लिया. 
क्रमशः............
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