RE: Desi Sex Kahani मुहब्बत और जंग में सब जाय�...
सुल्तान भाई तेज़ी से मेरे करीब आया और आते साथ ही मुझे दो चार ज़ोरदार किसम के थप्पड़ रसीद करते हुआ गुस्से में फूँकारा” मुझे तो तुम्हे बहन कहते हुए भी घिन आती है, आ जाने दो गुल नवाज़ को,आज हम दोनो ने तुम्हारे टोटे टोटे ना किए तो कहना”.
भाई के थप्पड़ और जान से मार देने की धमकी सुन कर मेरे हाथ पावं फूल गये.
मुझे जिस बात का डर था वो ही बात अब होने जा रही थी.
मेरा सारा राज़ भाई के सामने खुल गया था. और अब मुझे पता था कि मेरी इस हरकत का अंजाम सिवाय मौत के कुछ और नही हो गा.
मौत तो अब मुझे अपने सामने आती दिखाई दे रही थी. मगर फिर भी में आख़िरी कॉसिश के तौर पर रोते हुए भाई के कदमों में गिर गई और उस के पावं पकड़ लिए” भाई खुदा के लिए मुझे माफ़ कर दो मैने जो कुछ भी किया निहायत मजबूर हो कर किया है”
“अपने नापाक जिस्म को मुझ से दूर करो ज़लील औरत” भाई गुस्से में मुझे दुतकारते हुआ चीखा.
“ भाई एक दफ़ा मेरी सारी बात तो सुन लो फिर चाहे मुझे क़तल कर देना”मैने भाई के पावं और मज़बूती से पकड़ते हुए कहा.
मेरी आँखों से ज़रो कतर आँसू जारी थे और रोते रोते मेरी आँखे सुराख होने लगीं.
“अच्छा उठ कर बिस्तर पर बैठो और बको कि तुम ने ये जॅलील हरकत क्यों की” मेरा इस तरह रोने और मिन्नत समझाहत से शायद सुल्तान भाई का दिल पसीज गया. और उन्हो ने मुझ फर्श से उठा कर बिस्तर पर बैठाते हुए कहा और खुद भी मेरे साथ ही बिस्तर पर बैठ गया.
बिस्तर पर बैठे हुए मैने अपना सर झुका कर आहिस्ता आहिस्ता शुरू से ले कर आख़िर तक सारी बात सुल्तान भाई को सुना दी.
मैने अपनी बात सुनाते वक़्त पूरी कॉसिश की कि तफ़सील बयान करने के दौरान कोई गंदा लफ़्ज मेरे मुँह से ना निकल पाए.
सुल्तान भाई मेरा भाई होने से पहले एक मर्द था.
और एक मर्द होने के नाते मेरी बातों को सुन कर उस का मर्दाना पन का उभर आना एक बिल्कुल फितरती अमल था.
शायद ये मेरी बातों की गर्मी का ही असर था. कि में अब अपने भाई के लहजे में थोड़ी नर्मी और उस के जिस्म के अंदाज़ को थोड़ा बदला हुआ महसूस करने लगी थी.
“वैसे उस रात तुम्हारी शेव ना होने की वजह से मुझे थोड़ा शक तो हुआ था कि शायद ये मेरी बीवी नुसरत नही है. मगर इस के बाद तुम ने मुझ सोचने समझने का मोका ही नही दिया. लेकिन क्या गुल नवाज़ को भी इस बात का शाक नही हुआ कि उस के साथ बिस्तर पर उस की बीवी नही बल्कि उस की बहन सो रही है” सुल्तान भाई मुझ से सवाल किया.
और साथ ही गैर इरादी तौर पर आहिस्ता से अपना दायां (राइट) हाथ आगाए बढ़ा कर मेरी रेशमी शलवार के उपर से मेरी गोश्त से भरपूर रान पर रख दिया.
सुल्तान भाई का इस तरह अपनी रान पर हाथ रोकने और साथ ही उन के मुँह से पहली बार अपनी चूत की शेव के मुतलक बात सुन मुझ थोड़ी शरम महसूस हुई.
“भाई मुझे इस बात का तो पता नही मगर में उन दोनो को उस रात बाथरूम में प्यार करता हुआ देख चुकी हूँ” मुझे ना चाहते हुए भी सुल्तान भाई को नुसरत और गुल नवाज़ की बाथरूम वाली बात बताना पड़ी.
क्यों कि में सोच रही थी. कि शायद ये बात जान कर सुल्तान भाई का मुझ पे आने वाला गुस्सा थोड़ा ठंडा हो जाए.
कि अकेले मुझ से ही ये गुनाह सर्ज़ाद नही हुआ. बल्कि जाने अंजाने में गुल नवाज़ और नुसरत भी एक दूसरे के साथ ये हसरत कर चुके हैं.
“क्य्ाआआआआआआआआ यानी मेरे साथ साथ गुल नवाज़ भी बहन चोद बन चुका है ” मेरी बात सुन कर सुल्तान भाई का मुँह खुला का खुला रह गया.
हालाकी में अंधेरे कमरे में दो दफ़ा अपने भाई से अपनी फुद्दी मरवा चुकी थी.
मगर फिर भी आज यूँ दिन की रोशनी में अपने साथ जुड़ कर बैठे भाई के मुँह से खुलम खुल्ला इस किसम के इलफ़ाज़ सुन कर मुझे शरम आ रही थी.
“हां भाई वो दोनो भी ये सब कुछ कर चुके हैं” मैने अपने खुसक होते हुए होंठों पर अपनी ज़ुबान फेरते हुए भाई को जवाब दिया.
“रुखसाना में सारी बात समझ चुका हूँ.मगर फिर भी जो कदम तुम ने मजबूरी की हालत में उठाया वो एक बहुत बड़ा गुनाह है”सुल्तान भाई बोला.
“ठीक है भाई अगर अपना घर बचाना एक गुनाह है तो मैने ये गुनाह किया है. अब तुम चाहो तो मुझ सज़ा के तौर पर फाँसी चढ़ा दो” इतना जवाब दे कर में फिर रोने लगी.
“ अच्छा जो हो गया सो सो गया अब तुम ये रोना धोना बंद करो”. मुझ दुबारा रोता देख कर सुल्तान भाई के दिल में शायद “रहम” आ गया.
और भाई ने मेरी रान से हाथ हटा कर अपने बाज़ू को मेरे जिस्म के गिर्द लपेटा और मेरे सर को अपने चौड़े कंधे पर रख लिया.और मेरे आँसू पोछने के लिए प्यार से अपना हाथ मेरे गालों पर फेरने लगा.
अपने साथ अपने भाई का बदलता हुआ सलूक देख कर में ये सोचने लगी कि रात के अंधेरे में दो दफ़ा तो में पहले ही अपने भाई से चुदवा चुकी हूँ.
और अब जब कि मेरा सारा राज़ भी सुल्तान भाई के सामने खुल ही चुका है. तो फिर क्यों ना में हिम्मत कर के इस मोके से फ़ायदा उठा लूँ. और अपने भाई को पूरी तरह अपने काबू में कर के अपनी जान बचा लूँ.
इस लिए मैने इस मोके को “गनीमत” जानते हुए अपना रोना बंद कर दिया. और सुल्तान भाई के मज़ीद नज़दीक होते हुए सख्ती के साथ उस के जिस्म से लिपट गई.
मेरे इस तरह लीपटने से मेरे बड़े बड़े मम्मे सुल्तान भाई के जिस्म के साथ टच होने लगे.
जब कि इसी दौरान अब मैने अपना हाथ सुल्तान भाई की शलवार के उपर से उन की टाँग पर रख दिया था.
मुझे यूँ अपने साथ चिपटा देख कर भाई ने प्यार से मेरे सर के बलों में एक प्यारा सा बोसा (किस) दिया.
में भाई के इस प्यार को पा कर अब ये बात ब खूबी जान चुकी थी. कि सुल्तान भाई का गुस्सा अब रफू चक्कर हो गया है.
“रुखसाना मुझे एक बात अभी तक समझ नही आई कि तुम ने इस काम के लिए मेरा चुनाव ही क्यों किया. क्या तुम और के साथ ये गुनाह नही कर सकती थी” सुल्तान भाई ने मुझ से फिर एक सवाल पूछा.
“भाई आप जानते हो कि गाँव में कोई भी बात राज़ नही रह सकती और जब भी ये बात खुलती.तो ना सिर्फ़ मेरा बल्कि हमारे पूरे खानदान का इस गाँव में जीना मुश्किल हो जाता” मैने अपने हाथ को आहिस्ता आहिस्ता भाई की मज़बूत टाँग के उपर घुमाते हुए जवाब दिया.
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