RE: Desi Sex Kahani मुहब्बत और जंग में सब जाय�...
शादी से पहले गुल नवाज़ और सुल्तान दोनो रात के वक़्त अक्सर गाँव के दूसरे लड़कों के साथ मिल कर देसी शराब पीते और कभी कभार साथ वाले शहेर जा कर किसी रंडी को भी चोद लेते थे.
उन की इन हरकतों का हम सब घर वालों को भी पता था. मगर हमारे माँ बाप उन को “ मुंडे खुंदे” समझ कर कभी भी इन हरकतों से मना नही करते थे.
घर के लड़कों की अपेक्षा मैं और नुसरत शरीफ और घरेलू लड़कियाँ थीं जो शादी से पहले बिल्कुल कुँवारी थीं.
बचपन ही में मेरी मँगनी गुल नवाज़ के साथ और नुसरत की मँगनी मेरे भाई सुल्तान के साथ तय हो चुकी थी.
इस लिए जब गुल नवाज़ और मेरा भाई सुल्तान दोनो काम काज में अपने वालिद का हाथ बंटाने लगे तो फिर एक दिन गुल नवाज़ की शादी मुझ से और मेरे बड़े भाई सुल्तान की शादी गुल नवाज़ की बेहन नुसरत से कर दी गई.
ये “वाटे साटे” की शादी थी. जिस की बिना पर में नुसरत की और वो मेरी भाभी बन गईं.
जिस वक़्त हमारी शादी हुई उस वक़्त हम सब की उम्र कुछ यूँ थीं.
गुल नवाज़ अहमद (उमर 24 साल)
नुसरत बीबी (गुल नवाज़’स बेहन उमर 23 साल)
सुल्तान अहमद (मेरा भाई उमर 25 साल)
में: रुखसाना बीबी (उमर 23 साल)
एक ही हवेली में साथ साथ रहने की वजह से हम दोनो नये शादी शुदा जोड़ों को जो कमरे दिए गये वो एक दूसरे के साथ जुड़े हुए थे.
सुहाग रात को में और नुसरत दोनो दुल्हन बन कर अपने अपने कमरे में सुहाग की सेज पर बैठी हुई अपने शोहरों का इंतिज़ार कर रही थीं.
तकरीबन आधी रात से कुछ टाइम पहले गुल नवाज़ और सुल्तान दोनो देसी शराब पी कर अपने अपने कमरे में दाखिल हुए.
कमरे में आते ही मेरे शोहर गुल नवाज़ ने कमरे का दरवाज़ा अंदर से बंद कर दिया.
गुल नवाज़ आहिस्ता आहिस्ता चलता हुआ मेरे पास पलंग पर आ कर बैठ गया.
पलंग पर बैठने के साथ ही बिना मुझ से को बात किए गुल नवाज़ ने मेरा हाथ पकड़ कर मुझे अपनी तरफ खेंच लिया.
कमरे में एक लालटेन बिल्कुल मध्यम लो में जल रही थी.जिस की वजह से कमरे में हल्की हल्की रोशनी थी.
गुल नज़वान के इस तरह मुझे अपनी तरफ खींचने पर मुझे बहुत शरम आ रही थी.
गुल नवाज़ ने अपने मुँह को मेरे मुँह के नज़दीक किया तो उस के मुँह से आती हुई शराब की बदबू ने मुझे परेशान कर दिया.
मैने अपना मुँह गुल नवाज़ के मुँह से हटाने की कॉसिश की. मगर में इस कोशिश में कामयाब ना हो सकी.और देखते ही देखते गुल नवाज़ के होंठ मेरे होंठो पर आ कर जम गये.
गुल नवाज़ ने मेरे होंठो को अपने होंठो में कसते हुए चूमा.जिस की वजह से मेरा मुँह बेइख्तियार खुलता चला गया और मेरी ज़ुबान भी थोड़ी बाहर निकल आई.
मेरे शोहर ने मेरी ज़ुबान को अपने मुँह में लिया और फिर मेरे होंठो के साथ साथ मेरी ज़ुबान को भी चूसने लगा.
में जो एक लम्हे पहले तक गुल नवाज़ के मुँह से आती शराब की बदबू से परेशान हो कर उस के नज़दीक आने से कतरा रही थी.
अब दूसरे ही लम्हे में मेरी ये हालत हो गई कि में अपने शोहर के लबों के लामास के मज़े से एक दम पागल सी होने लगी थी.
अपने होंठो को पहली बार किसी मर्द के होंठो के साथ टकराने का ये तजुर्बा मेरे लिए बिल्कुल नया था . और इस मज़े को महसूस करते ही मुझे ऐसा लगा जैसे में हवाओं में उड़ रही हूँ.
मुझे नहीं मालूम था कि होंठो की चूमा चाटी करने में भी इतना मज़ा आएगा.
में सोचने लगी कि अगर होंठो की चूमा चाटी करने में इतना मज़ा आ रहा है तो चुदवाने मे कितना मज़ा आता होगा.
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