RE: Hindi Porn Story मीनू (एक लघु-कथा)
कुछ देर और उसके स्तनों का भोग लगाने के बाद, वो उसके शरीर के अन्य हिस्सों को भी चूमते हुए नीचे की तरफ जाने लगा। मीनू के योनिस्थल पर बाल थे। कौतूहलवश, उसने उँगलियों से बालों को अलग किया, और योनि के होंठों पर एक प्रगाढ़ चुम्बन रसीद दिया। मीनू आनंद से सिहर उठी! हद तो तब ही गई, जब आदर्श ने उसकी योनि के चीरे की लम्बाई पर ऊपर नीचे कई बार चाट भी लिया।
“ईइस्स्स्स! ऐसे मत करिए.. ये गन्दा है..”
“मुझे लगा कि आपने नहाया है..” कह कर आदर्श वापस उसी काम में लग गया।
“हाँ.. लेकिन.. ऊऊह्ह्ह्ह!” उसका वाक्य अधूरा ही रह गया। आदर्श ने जो कुछ भी किया था, वो उसको अत्यंत आनंद दे रहा था।
लेकिन, आदर्श को भी इस विषय में कोई ज्ञान नहीं था। जो भी उसको समझ में आ रहा था, वो कर रहा था.. यह सोच कर कि शायद मीनू को पसंद आये! उसको नहीं मालूम था की सम्भोग के समय में क्या कार्य करने होते हैं, कैसे करने होते हैं, और कितनी देर करने होते हैं! अपनी सीमा में उसको जो भी समझ आ रहा था, वो बढ़िया कर रहा था।
न तो आदर्श, और न ही मीनू को इस बात का भान भी हुआ कि मीनू पहले अपने स्तन पिए जाने, और अब अपनी योनि पिए जाने पर – मतलब दो बार यौन चरमोत्कर्ष प्राप्त कर चुकी है! खैर, मुँह का इस्तेमाल कब तक करे कोई! इसलिए अब वो रुक गया। समय हो गया था!
आदर्श ने जल्दी जल्दी निर्वस्त्र होना शुरू किया। मीनू ने एक बात पर गौर किया कि आदर्श अपनी उम्र के हिसाब से सुगढ़ और अच्छी डील डौल वाला नवयुवक था।
‘कुछ और समय में वो पूर्ण पुरुष बन जायेगा तो कितना आकर्षक लगेगा!’ उसने सोचा।
लेकिन अभी भी वो एक आकर्षक, और मंत्रमुग्ध कर देने वाला नवयुवक था। खेतों में श्रम, व्यायाम इत्यादि से बाहों की मछलियाँ साफ़ दिख रही थीं, सीने और कंधे मज़बूत, और कमर पतली थी। अपने पति को ऐसे देख कर मीनू का गला सूख गया। जब आदर्श अपनी जांघिया उतार रहा था, तो मीनू का दिल धाड़ धाड़ कर बज रहा था।
‘कैसा होगा इनका छुन्नू!’
जब आदर्श पूरी तरह से निर्वस्त्र हो गया तब मीनू का मन हुआ कि कहीं और देखे.. किसी और तरफ! लेकिन चाह कर भी वो ऐसा न कर सकी। वो सम्मोहित सी आदर्श के शिश्न को निहारने लगी। मीनू के पास किसी भी अन्य तरह की उपमा नहीं थी, आदर्श ले लिंग को देने के लिए। यह एक पुष्ट अंग था – एक सीधे केले के समान। उत्तेजनावश वो लगभग ऊर्ध्व खड़ा हुआ था और उसका सिरा कमरे की छत को निहार रहा था। उसका आकार, लम्बाई और मोटाई.. देख कर मीनू को डर लग गया।
ऐसे आदर्श के अंग को देख कर उसको कहीं न कहीं अपराध बोध सा हुआ, लेकिन वो बेबस थी। उसको इस अंग का उद्देश्य भी मालूम था। और यह भी मालूम था की यह उसके लिए बहुत बड़ा है। इसलिए उसको डर लग रहा था.. लेकिन यह इतना प्यारा सा अंग था कि उसकी दृष्टि वहां से हट ही नहीं पा रही थी। एक जादुई छड़ी के समान आदर्श के लिंग ने मीनू पर मोहिनी डाल दी।
आदर्श वापस बिस्तर पर आया। मीनू धड़कते दिल के साथ होने वाले सम्भोग की प्रत्याशा में लेटी हुई थी। आदर्श ने मीनू की टाँगे फैलाईं। ऐसा करने से मीनू के योनि-ओष्ठ थोड़े से अलग हो गए। सायंकाल की ढलती रौशनी में टाँगों के बीच छुपी योनि चमक रही थी। योनि रस लगातार रिस रहा था – मीनू का शरीर उसके अनजाने में ही अपने प्रथम प्रणय की प्रत्याशा में तैयार हो गया था।
उसने खुद को दोनों टांगों के बीच में स्थापित किया, और अपने शिश्न को उसकी योनि मुख पर व्यवस्थित किया। उंगली की मदद से उसने कुछ जगह बनाई, जिससे मीनू के होंठ उसके लिंग को पकड़ लें, और फिर उसके रस से शिश्नाग्र को सरोबार कर लिया।
मीनू घबरा रही थी, लेकिन फिर भी मुस्कुराई, “आप थोड़ा.. आराम से.... ये.. चोट लग सकती है..” उसने पूरा वाक्य नहीं कहा, लेकिन आदर्श को समझ में आ गया।
वो भी लज्जा से लाल होते हुए बोला, “मैंने कभी नहीं किया..”
मीनू की मुस्कान अभी भी बरकरार थी, “कोई बात नहीं.. आराम से.. मैं आपकी हूँ.. कहीं भागी नहीं जा रही हूँ.. जितना समय लेना हो, लीजिए..”
मीनू की योनि का छेड़ दरअसल छोटा था। शायद सभी कुंवारी लड़कियों का ऐसे ही होता हो। आदर्श जानता था कि उसको दर्द होगा.. लेकिन क्या करे! आज उनका मिलन तो अपरिहार्य था! मीनू को वो किसी भी तरह का दुःख, दर्द देने के ख़याल से ही घृणा करता था, लेकिन आज उसको अपनी बनाना ही था। या उसकी इच्छा भी थी, और इसमें मीनू की रजामंदी भी थी.. इसलिए आज वह स्वार्थी हो गया।
“बहुत आराम से.. ठीक है?” उसने फुसफुसाते हुए कहा।
मीनू ने हामी में सर हिलाया। आदर्श ने मीनू के गर्भ के द्वार में अपना लिंग बैठाया, और सावधानी से धीरे धीरे लिंग को अन्दर की तरफ ठेला। आदर्श के लिंग के गोल और बड़े सिरे ने तुरंत ही मीनू के योनि मुख को फैला दिया। प्रतिक्रिया में मीनू ने एक तेज़ साँस ली और घूँट कर के पी ली। आदर्श रुक गया – अभी तो वो कही गया भी नहीं! जब मीनू ने साँस छोड़ी, तब आदर्श ने पुनः लिंग को ठेला – इस बार थोड़ा और बलपूर्वक। तनाव में आकर मीनू का शरीर अकड़ गया; उसने आदर्श को कांपते हुए आलिंगन में भर लिया। उसके घुटने खुद-ब-खुद ऊपर की तरफ उठ गए, और उसके पैर आदर्स के नितम्बो के गिर्द लिपट गए। इस आसन में मीनू की योनि ने अनचाहे ही आदर्श को रास्ता दे दिया। दरअसल असली अवरोध तो उसकी योनिमुख का छोटा सा द्वार था, जो की खुल गया था। आदर्श अभी भी लिंग को आगे ठेल रहा था, अभी वो कुछ अन्दर चला गया था। लेकिन फिलहाल उसने और आगे बढ़ना रोक लिया, जिससे मीनू को कुछ आराम मिल सके।
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