RE: Hindi Porn Story मीनू (एक लघु-कथा)
कुछ दिनों बाद –
“बिटिया, क्या तुम दोनों ने.. मेरा मतलब, सम्भोग करना शुरू किया?” लक्ष्मी देवी ने खुलेआम उससे पूछ लिया।
मीनू ने शर्म से सर झुका कर ‘न’ में सर हिलाया।
“मुझे मालूम था। मुझे मालूम था कि कुछ नहीं हुआ होगा। तुम दोनों ही बेकार हो – तुम भी, और तेरा पति भी! बस! अब बहुत हो गया! अब मैं इसको और घिसटने नहीं दूंगा। अगर मैं ऐसे ही इंतज़ार करती रही, तो बिना अपने पोते पोतियों का मुँह देखे ही चल बसूँगी...” उन्होंने कुछ क्षण रुक कर कुछ सोचा और आगे कहा, “ठीक है.. अब मैं जैसा कहती हूँ, ठीक वैसा ही कर! इसको अपनी अम्मा का आदेश मान। जा, और जा कर नहा कर आ.. फिर सारी बाते बताऊंगी..”
‘नहा कर..!’ मीनू को समझ नहीं आया, लेकिन अम्मा की बात नकारने की उसकी फितरत नहीं थी। जब वो नहा धो कर बाहर आई, तो लक्ष्मी देवी एक नौकरानी के साथ जेवर, और नए कपडे – लहँगा-चोली, और.. और.. ये क्या है? मीनू को अपनी आँखों पर विश्वास ही नहीं हुआ, जब उसने कपड़ों के बीच में विदेशी चड्ढी, और ब्रा देखी। ‘ये कहाँ से आई!’
“तेरे बाबूजी ने मंगवाया था.. वो क्या नाम है.. हाँ, अमरीका से! तेरा सीना भी मेरे जितना लगता है, तो.. तुझको भी दुरुस्त आएगा। और..” लक्ष्मी देवी ने दबी आवाज़ में मुस्कुराते हुए आगे कहा, “ये सामने से खुलता है..”
मीनू का चेहरा शर्म से चुकंदर के जैसा लाल लाल हो गया।
“तू समझ रही है न बिटिया रानी? आज तेरी सुहागरात है। कल जब तू उस कमरे से बाहर निकले न, तो कुमारी नहीं रहनी चाहिए। न तू, और न ही आदर्श! चल.. अब जल्दी से तुझे तैयार कर देती हूँ! आदर्श भी आने वाला होगा..”
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इसको सुहागरात नहीं, सुहाग-शाम कहना अधिक मुनासिब होगा!
शाम के करीब पांच बजे होंगे, लेकिन लक्ष्मी देवी ने जिद कर के दोनों को उनके कमरे में भेज दिया। उन्होंने मीनू को बिस्तर पर बैठाया, उसका माथा चूमा, और निकलने से पहले उन दोनों से कहा,
“एक बात और... जब तुम दोनों कल इस कमरे से बाहर निकलो, तो मैं तुम दोनों को पूरी तरह से नंगा देखना चाहती हूँ.. समझे? पूरे नंगे.. तुम दोनों को..” और यह कह कर उन्होंने दरवाज़े का पल्ला लगा दिया।
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“मीनू..” आदर्श बिस्तर पर नहीं बैठा; बस खड़े खड़े ही एक नपी तुली आवाज़ में बोला, “आप यह सब कहीं अम्मा के दबाव में आकर तो नहीं कर रही हैं?”
मीनू फिर से चुप!
“भगवान् के वास्ते मीनू! आप कुछ कहती क्यों नहीं..?”
मीनू ने ‘न’ में सर हिलाया।
“इसका क्या मतलब है?”
मीनू के लिए अपनी आवाज़ को पाना ही दूभर हो रहा था। वो कैसे इस अन्तरंग विषय पर बात करे! क्या आदर्श को नहीं मालूम, कि संसर्ग जैसे विषय पर लडकियाँ कुछ बोल नहीं पातीं! खैर, उसने जैसे तैसे तो तमाम हिम्मत बटोर कर कहा.. कहा क्या, बस एक अस्पष्ट फुसफुसाहट सी निकली,
“नहीं.. उन उनके दबाव में न्न्न्नहीं..”
आदर्श ने इतनी दबी हुई बात भी साफ़ सुनी। इस एक छोटे से वाक्य ने उसके जीवन को एक अलग ही दिशा प्रदान कर दी।
“क्या सच?” वो मुस्कुराया! विजय वाली मुस्कराहट नहीं.. चाहे जाने पर प्रसन्न होने वाली मुस्कराहट!
मीनू ने उसको मुस्कुराते हुए तो नहीं देखा – वो तो अपना सर अपने घुटनों में छुपाए बैठी हुई थी। लेकिन वो भी मुस्कुराई। उसने हलके से सहमति में सर हिलाया। इस एक छोटे से संकेत से आदर्श के शिश्न में जीवन का संचार हो गया। युवावस्था तो होती ही ऐसी है! पल पल भर में शिश्न संभोगरत को तैयार हो जाता है।
“मीनू.. आप तो हमारे दिल की रानी हो..” कहते हुए वो मीनू के समीप पलंग पर बैठा, और उंगली से उसकी ठोढ़ी उठा कर उसके रसीले गुलाब से होंठों को चूम लिया।
मीनू भी आदर्श के लिए अपने में, अपने ह्रदय में उमड़ते घुमड़ते प्रेम के सागर में डूबने लगी; जब आदर्श ने उसको चूमा, तो उसके सब्र का बाँध भी टूट गया – उसने आदर्श के चुम्बन का समुचित उत्तर दिया। उसको नहीं मालूम था कि चुम्बन कैसा होता है, या कैसे करते हैं.. लेकिन फिर भी, उसने कोशिश करी। और फिर एक चुम्बन के बाद दूसरा चुम्बन के बाद तीसरा चुम्बन.. प्रेमी युगल जल्दी ही अपने चुम्बनों के आदान प्रदान में गिनती भूल गया।
जब वो एक दूसरे से अलग हुए, तो भावना की दीवार जिसके भीतर मीनू ने स्वयं को बंद कर रखा था, वो टूट गई, और आंसू के रूप में उसके गालों पर ढलक गई। आदर्श को समझ में नहीं आया कि मीनू दुखी है या प्रसन्न – लेकिन उसने उसको अपने प्रेममय आलिंगन में बाँध लिया।
प्रेममय आलिंगन तो था ही, लेकिन उस आलिंगन में दो युवा शरीर बंधे हुए थे। पहली बार दोनों विपरीत लिंग के संसर्ग में बंधे हुए थे। आदर्श को मीनू के स्तन अपने सीने पर दबते हुए महसूस हुए। मीनू को भी महसूस हुआ – ऐसे कोमल और अन्तरंग एहसास लडकियों से चूक नहीं सकते। उसने मीनू की आँखों में देखा, मानो उससे कुछ कहना चाहता हो.. लेकिन उसने कुछ नहीं कहा। मीनू भी कुछ देर रुकी – उसको भी लगा कि आदर्श उससे कुछ कहना चाहता था, लेकिन जब उसने कुछ नहीं कहा, तो उसने आगे बढ़ कर एक बार फिर से आदर्श के होंठों को चूम लिया। हलके से ही सही, यह चुम्बन मीनू की पहल की निशानी था। दोनों प्रेमी पुनः अधर-रस-पान करने में लीन हो गए। जब तक दोनों का चुम्बन छूटा, तब तक दोनों की साँसें भारी हो चली थीं।
दोनों ने पुनः एक दूसरे की आँखों में देखा। तेज़ साँसों के साथ साथ मीनू के स्तन भी तेजी से ऊपर नीचे हो रहे थे। ऐसा मनोहारी दृश्य आदर्श की आँखों से बच नहीं सका – उसकी कौतूहल और उत्साह भरी दृष्टि मानों मीनू के स्तनों पर ही चिपक गई। मीनू को मालूम था कि वो क्या देख रहा है, लेकिन फिर भी सहज रूप से आदर्श की दृष्टि का पीछा करते हुए उसकी आँख अपने ही स्तनों पर चली गई। ऐसे देखे जाने पर मीनू को लगा जैसे आदर्श उसको आँखों से ही निर्वस्त्र कर रहा हो। मीनू को लगा जैसे आदर्श उसकी मूक बढ़ाई करा रहा हो.. वैसी अनुभूति जैसे खुद को बड़ी शिद्दत से चाहे जाने पर होती है। लेकिन साथ ही साथ उसको शर्म भी आई कि उसके वक्षस्थल को इस प्रकार की निर्लज्जता से देखा जा रहा है! लज्जा से उसका चेहरा पुनः लाल हो गया... अपनी योनि के भीतर उसको एक अपरिचित सी झुनझुनी महसूस हुई। शर्म के मारे, उसने अपना चेहरा अपने हाथों से ढक लिया।
समय बस पास ही था! आदर्श से अब रहा नहीं जा रहा था। उसने आगे बढ़ कर मीनू की चोली के निचले किनारे को ऊपर की तरफ हलके से खींचा। यह इशारा उसने समझा।
“प्प्पीछे.. से..” उसने हलकी सी घबराहट के साथ कहा।
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