RE: Chudai Story ज़िंदगी के रंग
ज़िंदगी के रंग--13
गतान्क से आगे..................
पूजा:"नही नही ये ठीक नही. पहले ही आप ने इतना कुछ किया है के समझ नही आती के आप के अहसानो का बदला केसे चुका पाउन्गी?" कमज़ोर सी आवाज़ मे उसने ये कह दिया. ये सुन कर असलम सहाब को भी अंदाज़ा हो गया के वो चाह क्या रही है और सच कहते उसे क्यूँ शर्मिंदगी महसूस हो रही है.
असलम:"मैने आज तक वोई किया जो मेरा फ़राज़ बनता है. अगर मैं नही करूँगा तो और कौन करेगा? आप ये पेसे रख लें और मेघा बेटी और अपने लिए कपड़े बनवाने शुरू कर दें. मैं मोना को ले कर कल शहर वापिस जा रहा हूँ और जल्द ही और पैसों का बंदोबस्त कर के यहाँ आ के शादी की सब ज़िम्मेदारी संभाल लूँगा." मोना भी वहीं पास ही बैठी ये सब सुन रही थी. किरण मेघा के साथ किसी काम से बाहर गयी हुई थी. उसे भी समझ नही आ रहा था कि क्या कहे? "सच मे अली बहुत ही खुशनसीब है जो इतने अच्छे पिता मिले उसे. काश पिता जी इन से मिल पाते?" वो सौचने लगी. पूजा तो असलम सहाब की बात सुन कर बस अपनी मजबूरी पर रोने लगी. असलम सहाब और मोना ने उन्हे चुप कराया. असलम सहाब ने पूजा को कोई 2 लाख पकड़ा दिए. नौकरी और कॉलेज की समस्या ना होती तो इतनी जल्दी वापिस जाने को मोना का मन तो नही कर रहा था पर जाना पड़ा. असलम सहाब दोनो लड़कियो को साथ ले कर वापिस देल्ही आ गये. किरण के घर पहुचने पर जब किरण ने उन्हे चाइ की सलाह दी तो वो भी उनके साथ घर मे आ गये.
असलम:"किरण बेटी अगर आप बुरा ना मानो तो मे मोना से कुछ अकेले मे बात करना चाहता था."
किरण:"जी अंकल आप बात कर लें मैं बाज़ार से कुछ खाने के लिए ले आती हूँ." ये कह कर वो चली गयी और मोना उनके साथ ड्रॉयिंग रूम मे बैठ गयी.
असलम:"मोना आप के साथ थोड़े ही आरसे मे जितना कुछ हुआ उसका मुझे बहुत दुख है. ख़ास कर आप के पिता के देहांत का. काश मैं आप की कुछ मदद कर सकता होता पर ज़िंदगी मौत पे किस का ज़ोर है?"
मोना:"ऐसा ना कहे. आप ने तो पहले ही इतने कुछ कर दिया है और अभी भी इतना कर रहे हैं जब अपनो मे से कोई मदद के लिए आगे नही बढ़ा."
असलम:"ये दुनिया ऐसी ही है बस. क्या पराए और क्या अपने, सब का ही खून सफेद हो चुका है. इसी लिए मैं आप को ये कहना चाह रहा हूँ के आप ही को अपने परिवार का अब सहारा बनना पड़ेगा. पर इस छोटी सी उमर मे ये बोझ आप के लिए बहुत ज़्यादा है ये भी एक सच है. ऐसे मे आप को एक मज़बूत सहारे की ज़रूरत है. आप को अपनी खुशी से बढ़ कर अपनी मा बेहन की खुशी के बारे मे सौचना पड़ेगा. अगर आप को एतराज ना हो तो वो सहारा मैं बनना चाहूँगा."
मोना:"मैं समझी नही...."
असलम:"मोना मैं आप से शादी करना चाहता हूँ."...
असलम:"मोना मे आप से शादी करना चाहता हूँ." ये सुन कर मोना का तो मुँह खुला का खुला रह गया और वो काँपने लगी. उसकी ये हालत असलाम सहाब ने भी महसूस कर ली.
असलम:"मोना मुझे ग़लत नही समझना. मेरी बीबी को गुज़रे कितने ही साल बीत गये हैं. अकेले ही बच्चो को मा बाप दोनो का प्यार और साथ ही साथ काम का सारा बोझ भी मैने खुद ही ने उठाया है. अगर बस शादी ही करनी होती तो वो तो कब की कर सकता था. मैं तो अपनी ख्वाहिसे ही अपने अंदर ही मार ली थी. आप को जो देखा तो ये आहेसास हुआ के अभी भी मेरे अंदर का इंसान ज़िंदा है. थक गया हूँ मैं ज़िंदगी के सफ़र मे अकेले चलते चलते. क्या मुझे हक़ नही के अपने बारे मे भी सौचू?" ये कह कर धीरे से उन्हो ने मोना का हाथ थाम लिया.
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