RE: Chudai Story ज़िंदगी के रंग
ज़िंदगी के रंग--10
गतान्क से आगे..................
अब कहीं ना कहीं तो जाना ही था पर जाए तो जाए कहाँ? आख़िर टॅक्सी वाले को एक घर का पता बता के वहाँ चलने का उसने कह दिया. मोना ने अपनी आँखे बंद कर ली थी और दिमाग़ मे कोई ख़याल नही आने दे रही थी. ऐसे मे उसे टॅक्सी ड्राइवर शीशे से उसकी छाती की तरफ देख ललचाई हुई नज़रौं से देख रहा है ये भी नज़र नही आया. थोड़ी देर बाद टॅक्सी रुकी तो उसने अपनी आँखे खोल दी और टॅक्सी वाले को उसके पेसे दे कर उतर गयी. अब तो उसकी सभी उम्मीदें ही टूट चुकी थी. यहाँ से भी इनकार हुआ तो वो क्या करेगी ये सौचना भी नही चाह रही थी पर साथ ही साथ दिल मे अब कोई उम्मीद भी नही बची थी. ऐसे मे धीरे से उसने घर की घेंटी बजा दी. थोड़ी ही देर मे किरण ने घर का दरवाज़ा खोल दिया. मोना को देखते ही उसका चेहरा चमक उठा.
किरण:"मोना! तू और यहाँ? क्या रास्ता भूल गयी आज?"
मोना:"कुछ ऐसा ही समझ लो."
किरण:"आरे पहले अंदर तो आ बैठ कर बाते करते हैं." ये कह कर वो तो थोड़ा हट गयी लेकिन जब मोना घर मे दाखिल हो रही थी तो उसके पुराने सूटकेस पर पहली बार किरण की नज़र पड़ी. अब वो बच्ची तो थी नही. समझ गयी के कुछ तो गड़-बाड़ है. दोनो सहेलियाँ जा कर ड्रॉयिंग रूम मे बैठ गयी.
किरण:"तो बैठ मे तेरे लिए चाय ले बना कर लाती हूँ." ये कह कर वो उठने लगी तो मोना ने हाथ से पकड़ लिया.
मोना:रहने दे बस थोड़ी देर मेरे पास ही बैठ जा." उसकी आँखौं मे उभरते हुए आँसू देख कर अब तो किरण भी परेशान हो गयी और समझ गयी के ज़रूर कोई बड़ी बात हुई है. उसने किरण को गले से लगा लिया जैसे ही उसकी आँखौं से आँसू बहने लगे और थोड़ी देर उसे रोने दिया. आँसुओ से किरण का वैसे भी पुराना रिश्ता था. वो जानती थी के एक बार ये बह गये तो मन थोड़ा शांत हो जाएगा. थोड़ी देर बाद उसने धीरे से पूछा
किरण:"बस बस ऐसे रोते नही हैं. क्या हुआ है मुझे बता?" आँसू पूछते हुए मोना जो कुछ भी हुआ उसे बताने लगी और तब चुप हुई जब सब कुछ बोल चुकी थी.
किरण:"रोती क्यूँ है? तुझे तो खुश होना चाहिए के उस चुरैल से तेरी जान छूटी. रही बात अली की तो इस मे उसका भी तो कसूर नही है ना? तुझे तो मेरे पास फॉरन आ जाना चाहिए था. अपने बाप के घर मे बिना किसी संबंध के वो तुझे रख भी केसे सकता था? चल अब परेशान ना हो और इसको अब अपना ही घर समझ." ये सुनते साथ ही मोना ने किरण को गले से लगा लिया और एक बार फिर उसकी आँखो से आँसू बहने लगे पर इस बार ये खुशी के आँसू थे.
मोना:"मैं तेरा ये अहेसान कभी नही भूलूंगी. आज जब सब दरवाज़े बंद हो गये तो तू भी साथ ना देती तो जाने मेरा क्या होता?"
किरण:"दोस्ती मे कैसा अहेसान? हां पर एक समस्या है."
मोना:"क्या?" उसने घबरा के पूछा.
किरण:"उपर का कमरा तो किराए पे चढ़ा हुआ है. तुझे मेरे साथ ही कमरे मे मेरे बिस्तर पे सोना होगा."
मोना:"आरे इसकी क्या ज़रूरत है? मैं नीचे ज़मीन पे कपड़ा बिछा के सो जाउन्गी ना."
किरण:"चल अब मदर इंडिया ना बन और घबरा ना डबल बेड है मेरा. पिता जी ने मेरे दहेज के लिए खरीद के रखा था. अब उसपे तेरे साथ सुहागरात मनाउन्गी." किरण के साथ मोना भी हँसने लगी और उसके गम के बादल छाटने लगे. थोड़ी देर बाद किरण ने मोना को अपनी माता जी से मिलाया और उन्हे बताया के वो अब उनके साथ ही रहे गी. उनकी तबीयात दिन बा दिन महनगी दवाइयो के बावजूद बिगड़ रही थी और अब तो वो ज़्यादा बोल भी नही पाती थी. प्यार से बस अपना हाथ मोना के सर पे रख के उसे आशीर्वाद दे दिया. उन्हे देख कर मोना को भी उसकी मा की याद आ गयी. जाने उसके माता पिता केसे होंगे वो सौचने लगी? कभी कभार ही उनसे वो बात कर पाती थी और अब तो बात किए हुए काफ़ी दिन हो गये थे. ममता के फोन से उसने एक बार ही बस फोन किया था और ममता के चेहरे के तेवर देख कर ना सिरफ़ फोन जल्दी बंद कर दिया बल्कि दोबारा उसके फोनसे फ़ोन करने की जुरत भी नही हुई. जब से नौकरी मिली थी मोबाइल लेने के बाद 2-3 बार फोन तो उसने किया था लेकिन कॉल भी तो महनगी पड़ती थी और उसके अपने छोटे मोटे खर्चे पहले ही मुस्किल से पूरे हो रहे थे पहले ही.
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