Chudai Story ज़िंदगी के रंग
12-01-2018, 12:15 AM,
#12
RE: Chudai Story ज़िंदगी के रंग
ज़िंदगी के रंग--7

गतान्क से आगे..................

इतने महीने बीतने के बाद भी मोना ममता को एक आँख ना भाती थी. उसे घर मे मौजूद दोनो मर्दौ को अपनी उंगलियो पे नचाने की आदत पड़ गयी थी. उसके पति और बंसी उसके ही गीत गाते रहे ये ही वो चाहती थी. ऐसे मे डॉक्टर सहाब की ज़रूरत से ज़्यादा मीठी ज़ुबान और बंसी की मोना को देख कर राल टपकाना ममता को गुस्से से पागल बना रहा था. कितने ही दीनो से वो ऐसे मौके की तलाश मे थी के मोना से छुटकारा पा सके पर मोना उसे मौका ही भला कब देती थी? ममता अगर गुस्से से भी उससे बोलती थी तो वो चुप रहती थी और अगर कभी कोई ग़लत बात भी कह जाती तो मोना नज़र अंदाज़ कर देती थी. "साली बहुत ही मेस्नी है ये तो?" ऐसा सौच सौच के उसका गुस्सा उसके अंदर ही रहता पर समय के साथ साथ ये गुस्सा बढ़ते बढ़ते ज्वालामुखी बन चुका था जो एक दिन फॅट ही गया.

जब अली ने मोना को घर छोड़ना शुरू किया तो पहली बार तो देख ममता को भी अच्छा लगा. खुशी उसे इस बात की नही थी के मोना के लिए आसानी हो गयी बल्कि उसकी सौच तो ये थी के "मुझे पता था ये रंडी सती सावित्री बनने का ढोंग करती है. जुम्मा जुम्मा आठ दिन नही हुए और यहाँ पे यार भी बना लिया." ग़लत इंसान हमेशा दूसरो को ग़लत काम करता देख खुश होता है. शायद इस लिए के उससे अपने बारे मे अच्छा महसूस होता है या फिर यौं कह लो के ये आहेसास होता है के चलो हम ही बुरे नही सारी की सारी दुनिया की खराब है. डॉक्टर सहाब कामके सिलसिले मे कुछ दिन के लिए शहर से बाहर गये हुए थे. ऐसा मौका भला कहाँ मिलने वाला था ममता को? खाने की मेज पे जैसे ही मोना आ कर बैठ गयी, मुमता ने अपनी ज़ुबान के तीर चलाने शुरू कर दिया.

ममता:"बंसी खाना परोस दो मेम साहब को. आज कल बहुत कुछ करवा के आती हैं ने इस लिए थक जाती होंगी." अब मोना कोई बच्ची तो थी नही. देल्ही मे इतने महीने बिताने के बाद वो शहर वालो की दो मिनिंग वाली बतो को भी खूब समझने लग गयी थी. ममता की ये बात उसे बहुत अजीब लगी और इस बार वो चुप ना रह पाई.

मोना:"आंटी आप कहना क्या चाहती हैं?"

ममता:"अब तुम इतनी भी बची नही हो. खूब समझ सकती हो के क्या मे कह रही हूँ और क्या नही. हां पर एक बात समझ लो, मैने कोई धूप मे खड़े हो के बॉल सफेद नही किए. ये जो कुछ तुम कर रही हो ना इन हरकटो से बाज़ आ जाओ." हर इंसान के बर्दाशत की भी एक सीमा होती है और वैसे भी मन के सच्चे लोग तो किसी को ना ग़लत बात करते हैं और ना ही सुनना पसंद करते हैं. कितने ही अरसे से तो वो ममता की ज़हर भरी बतो को बर्दाशत कर रही थी पर आज जब उसने मोना के चरित्र पे उंगली उठाई तो मोना से भी बर्दाशत नही हो पाया. वो कहते हैं ना के सांच को कोई आँच नही होती. इसी लिए वो भी बोलना शुरू हो गयी.

मोना:"अपने माता पिता से दूर होने के बावजूद भी मे आज भी उनके दिए संस्कार नही भूली. कभी ज़िंदगी मे ऐसी कोई हरकत ही नही की जिस के लिए शर्मिंदा होना पड़े. आप ने मुझे घर मे रखा और ये अहेसान मे कभी नही भूलूंगी पर उसका ये मतलब नही के आप मेरे चरित्र पे कीचड़ उछालो और मैं चुप चाप देखती रहू."

ममता:"आरे वाह बंसी देखो तो ज़रा. इन मेडम के तो पर निकल आए हैं. एक तो चोरी उपर से सीना ज़ोरी. कहाँ जाते हैं तुम्हारी मा के दिया संस्कार जब रोज़ाना मुँह काला करवा के अपने यार के साथ आती हो?" बस अब तो मोना का गुस्सा भी ज्वाला मुखी की तरहा फॅट गया ये सुन कर.

मोना:"बस! दूसरो को बात करने से पहले अपनी गेरेबान मे झाँक कर देखो पहले. अपने नौकर के साथ पति के पीछे मुँह काला करवाते तुम्हे शरम नही आती और दूसरो पे इल्ज़ाम लगा रही हो? मैं तुम्हारी तरहा गिरी हुई नही जो ऐसी घटिया हरकते कारू." ये कह कर मोना तो गुस्से से उठ कर अपने कमरे की तरफ तेज़ी से चली गयी और जा के दरवाज़ा अंदर से बंद कर लिया पर ममता वहीं बुत बन गयी. "क्या इसको मेरे और बंसी के बारे मे पता है? अगर इसने ऐसे ही अपनी ज़ुबान उनके सामने खोल दी तो मेरा क्या होगा?" कुछ लम्हो बाद जब उसने अपने आप पे काबू पाया तो उसका गुस्सा पहले से भी ज़्यादा शिदत के साथ वापिस आ गया. गुस्से से चिल्लाति हुई वो मोना के कमरे की तरफ चिल्लाते हुए जाने लगी.

ममता:"आरे ओ रंडी तेरी जुरत केसे हुई ये बकवास करने की? तुम छोटे ज़ात वाले लोगो को ज़रा सी इज़्ज़त क्या दे दो सर पे चढ़ के नाचने लगते हो. जाने किस किस से मुँह काला करवा के आ के तू मेरे ही घर मे मुझ पे ही इल्ज़ाम लगाती है हराम जादि? निकल बाहर कुतिया तेरा मे आज खून पी जाऔन्गि." वो ऐसे ही कितनी ही देर कमरे के बाहर खड़े हो कर आनाप शनाप बकती रही पर कमरे के अंदर से मोना ने कोई जवाब ना दिया. फिर जब कुछ देर बाद कमरे का दरवाज़ा खोला तो मोना हाथो मे अपना सूटकेस पकड़े खड़ी थी. उसकी आँखो मे जो आग ममता को नज़र आई उसने उसका मुँह बंद कर दिया.

मोना:"कहना चाहू तो बहुत कुछ कह सकती हूँ और अगर चाहू तो तुम्हारी असलियात पूरी दुनिया के सामने ला सकती हूँ. कैसा लगे गा डॉक्टर सहाब को ये जान कर के उनकी धरम पत्नी एक रंडी से भी ज़्यादा गिरी हुई है जो अपना और अपने परिवार का पेट भरने के लिए अपना शरीर बेचती है. पर मे ऐसा करौंगी नही. इसको मेरी कमज़ोरी मत समझना बल्कि तुम्हारे अहेसान का बदला उतार के जा रही हूँ. एक बात याद रखना. तुम्हारे जैसी औरत औरतज़ात पे एक काला धब्बा है. आइन्दा दूसरो पे उंगली उठाने से पहले हो सके तो अपना चेहरा आईने मे देख लेना." ममता का तो मुँह खुले का खुला रह गया ये सब सुन कर और उसके मुँह से फिर एक शब्द भी नही निकल पाया जब मोना उसके सामने घर से बाहर जा रही थी. घर से बाहर निकलते समय मोना को भी पूरी तरहा से नही मालूम था के अब वो क्या करेगी और कहाँ जाएगी पर ये ज़रूर जानती थी के ये दुनिया बहुत बड़ी है और जहाँ मन मे चाह हो वहाँ राह मिल ही जाती है......
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