Chudai Story ज़िंदगी के रंग
12-01-2018, 12:14 AM,
#2
RE: Chudai Story ज़िंदगी के रंग
ज़िंदगी के रंग--2

गतान्क से आगे..................

ममता:"भूक लग रही हो तो खाना खुद डाल के खा लेना और अगर थॅकी हो तो कमरे मे जा कर आराम कर लो." इस से पहले के मोना कोई जवाब देती, ममता ये कह कर वहाँ से जा भी चुकी थी. ममता के इस ठंडे रवैये पे मोना को दुख तो बहुत पोहन्चा मगर साथ ही साथ ये खुशी के वो देल्ही मे हैं उस के चेहरे पे एक मुस्कान ले आई. ड्राइवर के इलावा घर मे बस एक नौकर ही था, बंसी. वो सॉफ सफाई से ले कर घर का सौदा लाने तक घर के सारे काम खुद ही करता था. ममता बस खाना खुद पकाती थी क्यूँ के डॉक्टर साहब को किसी और के हाथ का खाना पसंद आता नही था. बंसी 19 साल का छोटे से कद और गहरे साँवले रंग का मामूली सा लड़का था. ऐसे जवान लड़के को घर मे रखते पहले तो डॉक्टर किसन को अजीब लग रहा था फिर जब देखा के उसकी वजह से ममता को कितनी आसानी हो गयी है तो उन की भी चिंता दूर हो गयी.

बंसी:"आइए मैं आप को आप का कमरा दिखा दूँ." ये कह कर बंसी दूसरी मंज़िल पे जाने के लिए सूटकेस उठा कर सीडीयाँ चढ़ने लगा. कमरा यौं तो बिल्कुल घर के बाकी कमरों के मुक़ाबले मे मामूली सा था लेकिन मोना के घर के मुक़ाबले मे तो बहुत ही बढ़िया था. मोना तुकर तुकर कमरा देखने मे लगी हुई थी और वो बंसी की नज़रे नही महसूस कर पाई जो उसको घूर घूर के देख रही थी.

बंसी:"में साहब अगर कुछ भी चाहिए हुआ तो मुझे बिंदास बोल देना." वो मुस्कुरा कर बोला.

मोना:"जी." मोना बस इतना ही कह पाई.

बंसी:"क्या खाना गरम कर के कमरे मे ला दूँ?"

मोना:"ना...नही मुझे भूक नही लगी."

बंसी: "ठीक है मेम साहब मे चलता हूँ. वैसे मेरा नाम बंसी है." ये कह कर वो कमरे से चला गया. भूक तो मोना को बहुत लगी थी पर जाने क्यूँ उसने बंसी को इनकार कर दिया था और अब अपने आप को कोस रही थी इनकार करने की वजह से. भूक के साथ साथ सफ़र की थकान भी हो गयी थी इस लिए वो बत्ती बुझा के लेट गयी. खाली पेट बिस्तेर कितना ही अच्छा क्यूँ ना हो, नींद अछी नही आती. शाम को दरवाज़े की दस्तक से उसकी आँख खुली. जब दरवाज़ा खोल के देखा तो बंसी खड़ा था.

बंसी:"मेम साहब खाने की टेबल पे आप को बीबी जी बुला रही हैं."

मोना:"तुम जाओ मे आती हूँ." बंसी एक नज़र उसकी खोबसूरत छाती पे डाल कर चला गया जो लगता था मुस्किल से कमीज़ मे फँसी हुई है. "भगवान बस एक बार हमे भी इस जन्नत के मज़े करवा दो फिर चाहे जीवन भर जहन्नुम मे जलाते रहना" वो मन ही मन मे कहता हुआ वहाँ से चला गया. मोना मूँह हाथ धो कर जल्दी से नीचे खाने की मेज़ पे चली गयी. डॉक्टर साहब ने ममता के मुक़ाबले मे उसका अच्छे तरीके से स्वागत किया और उस के माता पिता का हाल चाल भी पूछा और ये भी कहा के इस को अपना ही घर समझो. मोना को डॉक्टर साहब पहली नज़र मे ही बहुत पसंद आए और उसको उसके पिता जी की याद आ गयी.

ममता:"बंसी खाना परोस दो." खाना बहुत ही स्वादिष्ट पका था. डॉक्टर साहब का मन मोहने के लिए ममता हमेशा मेक अप और खाने पर बहुत ध्यान देती थी. तभी तो शादी के इतने साल बाद भी डॉक्टर साहब उन ही के गुण गा रहे थे. मोना का तो भूक से बुरा हाल था और फिर इतना अच्छा खाना देख के उस से रहा नही गया. उसको खाते देख कर ममता सोचने लगी "ये तो खाती भी जानवरों की तरहा है. हे भगवान कहाँ फँस गयी मैं?"

अगले दिन कॉलेज का पहला दिन था. पहले ही दिन क्लास रूम मे इतना शोर था जैसे सब एक दूसरे को बरसों से जानते हो. मोना इतने करीब आस पास के अजनबियो को हैरत से देख रही थी तो कभी वहाँ मौजूद लड़कियों के कपड़े देख कर हैरान हो रही थी. ज़्यादा तर स्कर्ट्स मे थी और एक तो इतनी छोटी मिनी स्कर्ट मे थी के लगता था नंगी ही आ गयी है. सब लड़कियों पे भंवरों की तरहा लड़के मंडरा रहे थे और मिनी स्कर्ट वाली पे तो 4 जने ऐक वक़्त मे ही किस्मत आज़माई कर रहे थे के जाने किस की लॉटरी निकल जाए? ऐसे मे मोना से ना किसी ने बात की और ना ही उसे गौर से देखा सिवाए दो आँखो के जो वो जब से क्लास मे आई थी उससे तकने मे लगी हुवी थी. उन आँखो ने दुनियावी पैंट पोलिश, जो बाकी लड़कियो ने किया हुआ था, उन की बजाए इस सादगी मे भी छुपी हुस्न की मल्लिका को पहचान लिया था. ऐसे ही मोना को देखते हुए अली के दिल से बस ऐक ही सदा निकली.....

है जो अगर ये प्यार तो फिर इस प्यार की गहराई मे अब डूब जाने दे

आए खुदा दीदार-ए-यार करवा ही दिया है तो मंज़िल मक़सूद तक भी पोहन्च जाने दे

क्यूँ ऐसा है के दुनिया मे बसे चेहरौं मे से एक चेहरा मन मोह लेता है?

क्या कभी नादान उमऱ की भी मुहब्बत का अंजाम सुर्खुरू होता है?

आज इस हसीना को देख के मेरा मन ये समझ पाया है

क्यूँ तेरे सजदे मे एक शेनशाह भी गुलाम होता है

अली देल्ही का ही रहने वाला था. पिता जी की कपड़ों की बहुत मशहूर दुकान थी जहाँ उसके बड़े भाई इमरान भी पिछले 2 साल से काम कर रहे थे. पढ़ाई पे कभी उसने पूरी तरहा से ध्यान नही दिया था मगर किसी ना किसी तरहा से यहाँ तक पास हो हो के आ ही गया था. अली के पिता असलम साहब ने भी कभी उस पे ज़्यादा ज़ोर नही डाला था के वो पढ़ाई पे ध्यान दे. शायद इसकी वजा ये थी के उनको पता था के कल को इस ने भी उनकी दुकान पे हाथ बटाना है. फिर चाहे 40% ले आए या 90%, धन्दे का इससे भला क्या ऩफा नुकसान होगा?

अली अपने दराज़ कद, खूबसूरत चेहरे और मज़बूत शरीर की वजा से कॉलेज की लड़कियो मे बहुत माशूर था. कुछ चुलबुले मन के लड़के भी उसकी तरफ लालच भरी नज़रौं से देखा करते थे. लड़कियाँ तो उस पे डोरे डालती रहती थी पर वो था के किसी को घास नही डालता था. उसके दोस्त राहुल और रोहन उससे चेहरा कतराते थे के कहीं वो नवाबी शौक तो नही रखता? ऐसा तो खेर नही था मगर उसने अपने मन मे जैसी लड़की की छवि बसा ली थी वेसी उसे कभी नज़र नही आई. फिर ऐसा क्यूँ था के मोना को देख कर उसका दिल तेज़ धड़कने लगा था? साँसे थी के बस थम सी गयी थी और जिस्म बेकरार हो गया था. मोना के शर्मीलेपन को देख कर वो इतना तो समझ ही गया था के ना तो वो दोसरि लड़कियो की तरहा थी और ना ही उससे फटाक से मन की बात कर देना ठीक होगा. थोड़ा समय इसको देल्ही की ज़िंदगी मे ढलने के लिए दे दो फिर कोई अच्छा मौका देख कर पहले दोस्ती का कदम बढ़ाउंगा वो मन ही मन मे प्लान बनाने लगा.

मोना के कॉलेज का पहला दिन तो जैसे तैसे निकल ही गया पर अपने शर्मीलेपन की वजह से वो लोगो से बात नही कर पाई. खैर कम से कम उसने ऐक सहेली तो बना ही ली जो उसके बाजू वाली कुर्सी पे बैठी थी और उसका नाम किरण था. किरण ने अपने बेबाक अंदाज़ और खूबसूरती से मोना को पहले ही दिन बहुत मुतसिर कर दिया था. किरण वैसे वो ही लड़की थी जो मिनी स्कर्ट मे थी. कॉलेज के ज़्यादा तर लड़के उसपे आवारा भंवरो की तरहा मंडराते रहते थे पर वो थी के फ्लर्ट तो सब से करती थी पर नज़दीक किसी को अपने ज़्यादा नही आने देती थी. उस की ज़ालिम अदाए बेचारे लड़को को दिन मे दो दो बार तेल की शीशी के साथ तन्हाई मे कुछ "खास" समय बिताने पे मजबूर कर रही थी. किरण के पिता कोई 5 साल पहले ही एक हादसे मे चल बसे थे. वो और उसकी माता अब अपने खानदानी मकान मे रह रहे थे. घर का खर्चा चलाने के लिए उन्हो ने घर की दोसरि मंज़िल किराए पे चढ़ा ही दी थी. थोड़ी आमदनी होने के बावजूद उसको देख कर ऐसा हरगिज़ नही लगता था के उसको पैसों की कोई कमी है.

मोना जब कॉलेज से घर पोहन्चि तो घर मे गहरा सन्नाटा था. डॉक्टर सहाब के वापिस आने मे अभी काफ़ी समय था. बंसी भी कहीं दिख नही रहा था. वो चुप चाप अपने कमरे की तरफ जाने लगी के उससे एक अजीब सी आवाज़ सुनाई दी. जाने क्यूँ वो जिस दिशा से आवाज़ आई थी उस तरफ चलने लगी. ममता के कमरे का दरवाज़ा थोडा सा खुला हुआ था और आवाज़ वहीं से आ रही थी. जब वो कमरे के पास पहोन्चि तो जो नज़र आया उसे देख कर उसकी आँखे फटी की फटी रह गयी. ममता नन्गम नंगी बिस्तर पे लेटी हुई थी और उसकी टाँगे खोल के उनके बीच मे बंसी उसकी चूत को ज़ोर ज़ोर से चाटने मे लगा हुआ था.

ममता:"आहा आहा अहाआआआआअ". ये बैगैर्ति का नंगा नाच अपनी आँखौं के सामने देख कर मोना वहीं जड़ हो गयी थी पर जाने क्यूँ ना चाहते हुए भी उसकी निगाहें कमरे से हट ही नही पा रही थी......

ममता ने हवस की आग मे पागल हो कर बंसी को सर से पकड़ा हुआ था और अपनी गांद उठा उठा के और कभी हिल हिल के उससे अपनी फुददी चटवा रही थी. बंसी भी इस महारत के साथ अपनी ज़ुबान से बार बार ऐसे चाट रहा था जैसे कुत्ता बर्तन से पानी पीता है.

ममता:"आह बंसीईइ लूट ले आह लूट लीईई अपनी मालकिन की जवानी को." उस हालत मे चटाई लगाते हुए भी बंसी के ज़हन मे ये सुन कर आया "साली कहाँ की जवानी? मुझे तो तेरी चूत पे भी सफेद बाल दिखाई दे रहे हैं. हाई रे किस्मत किस गटर मे मुँह मारने पे मजबोर कर रही है?"

ममता:"चल बस अब साआआआााअ नही जा रहा. बुझा दे मेरी प्यास". ये कह कर ममता ने उसके सर को थोड़ा ज़ोर से पीछे किया और अपनी दोनो टाँगें हवा मे उठा दी. बंसी को भी इसी समय का इंतेज़ार था. उसकी दोनो टाँगे अपने कंधौं पे रख कर अपने लंड को उसकी चूत के साथ लगा दिया पर अंदर नही डाला. उसको ममता का ऐसे तड़पाना बहुत अच्छा लगता था. ऐसे लगता था उसको जैसे ममता उसकी नौकरानी हो और वो नही.

ममता:"चल मेरी जान डाल भी दे ना अब तो रहा नही जा रहा". ये कह कर ममता ने खुद ही पीछे से उसके चूतर पकड़ कर अपनी तरफ ज़ोर से जो खेंचा तो उसका 6 इंच का लंड आधे से ज़्यादा ममता की चूत मे परवेश कर गया.

ममता:"औईईईईईईईईईईईईईई मर गयी रह. ये मैं नही ले पाउन्गी. साला बाहर निकाल इसे." "रंडी साली हमेशा येई ड्रामा करती है. तेरी चूत का तो वो हाल हो गया है के मेरा सर भी अंदर चला जाए और तुझे महसूस तक भी ना हो" वो मन ही मन मे सोच के मुस्कराने लगा.

क्रमशः....................
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