RE: Antarvasna kahani प्यासी जिंदगी
मेरा जिस्म ढीला पड़ गया और मैं बाजी के सीने के दोनों उभारों के बीच अपना चेहरा रखे.. आँखें बंद किए तेज-तेज साँसें लेकर अपने हवास को बहाल करने लगा।
मुझे ऐसा ही महसूस हो रहा था.. कि जैसे मेरे जिस्म में अब जान ही नहीं रही है और मैं कभी उठ नहीं पाऊँगा।
मुझे अपने अन्दर इतनी ताक़त भी नहीं महसूस हो रही थी कि अपनी आँखें खोल सकूँ। मेरे जेहन में भी बस एक काला अंधेरा सा परदा छा गया था।
जब मेरे होशो-हवास बहाल हुए और मैं कुछ महसूस करने के क़ाबिल हुआ.. तो मुझे अपनी हालत का अंदाज़ा हुआ। मेरा लण्ड अभी भी बाजी की चूत के अन्दर ही था और पूरा बैठा तो नहीं लेकिन अब ढीला सा पड़ गया था।
मेरे हाथ ढीले-ढाले से अंदाज़ में बाजी के जिस्म के दोनों तरफ कार्पेट पर मुड़ी-तुड़ी हालत में पड़े थे.. मेरा बायाँ गाल बाजी के सीने के दोनों उभारों के बीच में था।
बाजी ने अपनी टाँगों को अभी भी उसी तरह मेरी कमर पर क्रॉस कर रखा था.. लेकिन उनकी गिरफ्त अब ढीली थी। बाजी ने एक हाथ से मेरे गाल को अपनी हथेली में भर रखा था और दूसरा हाथ मेरे बालों में फेरते सिर सहला रही थीं।
मैंने अपनी आँखें खोलीं और काफ़ी ताक़त इकट्ठा करके अपना सिर उठाया।
मैंने बाजी के चेहरे को देखा.. उनके चेहरे पर मेरे लिए गहरे सुकून और शदीद मुहब्बत के आसार थे।
बाजी ने फ़िक्र मंदी से कहा- वसीम क्या हालत हो जाती है तुम्हारी.. बिल्कुल ही बेजान हो जाते हो।
‘कुछ नहीं बाजी बस पहली बार है.. तो ऐसा तो होता ही है..’
‘नहीं वसीम.. तुम्हारी हालत हमेशा ही ऐसी हो जाती है..’
‘बाजी आपके साथ जब से तब ऐसी हालत हो रही है ना.. क्योंकि जो-जो कुछ आपके साथ किया है मैंने.. वो सब पहली-पहली बार ही किया है ना।’
‘अच्छा बहस को छोड़ो.. अब उठो काफ़ी देर हो गई है.. कुछ ही देर में सब उठ जाएंगे।’
बाजी ने ये कहा और मेरे कंधों पर हाथ रख कर उठने लगीं।
मैं सीधा हुआ तो मेरा लण्ड हल्की सी ‘पुचह..’ की आवाज़ से बाजी की चूत से बाहर निकल आया.. मेरा लण्ड बाजी के खून और अपनी औरत की जवानी के रस से सफ़ेद हो रहा था।
मैंने एक नज़र बाजी की चूत पर डाली तो वहाँ भी मुझे कुछ ऐसा ही मंज़र नज़र आया।
अनजानी सी लज़्ज़त और जीत की खुशी मैंने अपने चेहरे पर लिए हुए बाजी से कहा- बाजी उठ कर ज़रा अपना हाल देखो!
बाजी उठ कर बैठीं.. एक नज़र मेरे लण्ड पर डाली और फिर अपनी टाँगों को मज़ीद खोल कर अपनी चूत को देखने लगीं।
फिर वे बोलीं- कितने ज़ालिम भाई हो तुम.. कितना सारा खून निकाल दिया अपनी बहन का!
मैंने हँस कर जवाब दिया- फ़िक्र ना करो मेरी प्यारी बहना जी.. अगली बार खून नहीं निकलेगा.. बस वो ही निकलेगा जिससे तुम्हें मज़ा आता है.. वैसे बाजी मुझसे ज्यादा मज़ा तो तुमको आया है.. मैंने एक मिनट के लिए बाहर किया निकाला था.. कैसी आग लग गई थी ना?
फिर मैंने बाजी की नक़ल उतारते हुए चेहरा बिगड़ा-बिगड़ा कर कहा- हायईईई.. वसीम.. निकाल क्यों लिया.. अन्दर डालो नाआअ वापस..
बाजी एकदम से शर्म से लाल होती हुई चिड़ कर बोलीं- बकवास मत करो.. उस वक़्त मुझसे बिल्कुल कंट्रोल नहीं हो रहा था अच्छा..
बाजी ने बात खत्म की तो मैंने कुछ कहने के लिए मुँह खोला ही था कि बाजी ने एकदम शदीद परेशानी से मेरे कंधे की तरफ हाथ बढ़ा कर कहा- ये क्या हुआ है वसीम?
मैंने अपने कंधे को देखा तो वहाँ से गोश्त जैसे उखड़ सा गया था जिसमें से खून रिस रहा था।
मैंने बाजी की तरफ देखे बगैर अपनी कमर को घुमा कर बाजी के सामने किया और कहा- जी ये आपके दाँतों से हुआ था और ज़रा कमर भी देखो.. यहाँ आपके नाखूनों ने कोई गुल खिलाया हुआ है।
‘या मेरे खुदा.. आह.. वसीम..’
बाजी ने बहुत ज्यादा फ़िक्रमंदी से ये अल्फ़ाज़ कहे.. तो मैं उनकी तरफ से परेशान हो गया और पलट कर उनकी तरफ देखा.. तो बाजी अपने मुँह पर हाथ रखे एकटक मेरे जख्मों को देख रही थीं।
उनके चेहरे पर शदीद परेशानी के आसार थे और फटी-फटी आँखों में आँसू आ गए थे।
मैंने बाजी की हालत देखी तो फ़ौरन उनको अपने गले लगाने के लिए आगे बढ़ते हुए कहा- अरे कुछ नहीं है बाजी.. छोटे-मोटे ज़ख़्म हैं.. परेशानी की क्या बात इसमें?
मैंने अपनी बात खत्म करके बाजी को अपनी बाँहों में लेना चाहा.. तो उन्होंने मेरे सीने पर हाथ रख कर पीछे ढकेल दिया और रोते हुए कहा- ये.. ये मैंने क्या है.. वसीम.. कितना दर्द हो रहा होगा ना तुम्हें?
मैंने अब ज़बरदस्ती बाजी को अपनी बाँहों में भरा.. उनकी कमर को सहलाते और उनके चेहरे को अपने सीने में दबाते हुए कहा- नहीं ना बाजी.. कुछ भी नहीं हो रहा.. क्यों परेशान होती हो.. छोटे से ज़ख़्म हैं.. और सच्ची बात कहूँ.. तो इस छोटी सी तक़लीफ़ में भी बहुत ज्यादा लज्जत है.. और ये ज़ख़्म मुझे इसलिए आए हैं कि मेरी बहन अपनी तक़लीफ़ बर्दाश्त कर रही थी.. जो मैंने दी थी.. तो मुझे तो ये जख्म बहुत अज़ीज़ हैं.. प्लीज़ आप परेशान ना हों।
मैं इसी तरह कुछ देर बाजी की कमर को सहलाता और तस्सली देता रहा.. तो उनका मूड भी बदल गया और वो रिलैक्स फील करने लगीं।
मैंने हँस कर कहा- चलो बाजी अब अम्मी वगैरह भी उठने वाले होंगे.. जाओ आप अपने ज़ख़्म और खून साफ करो और मैं अपना कर लेता हूँ।
बाजी ने भी हँस कर मुझे देखा और मेरे होंठों पर एक किस करके खड़ी हो गईं।
मैं भी उनके साथ खड़ा हुआ.. तो बाजी दरवाज़े की तरफ बढ़ते हो बोलीं- वसीम, इन जख्मों पर एंटीसेप्टिक ज़रूर लगा लेना.. अम्मी उठने वाली होंगी.. वरना मैं ये लगा कर जाती।
मैंने कहा- अरे जाओ ना बाबा.. परेशान क्यों होती हो.. कुछ भी नहीं हुआ है मुझे.. बेफ़िक्र रहो और अपने कपड़े बाहर से उठा लो और पहन कर ही नीचे जाना।
बाजी ने कहा- हाँ अब तो पहन कर ही जाऊँगी.. कोई ऐसे नंगी ही तो नहीं जाऊँगी ना?
बाजी ये कह कर बाहर निकल गईं..
मैंने एक नज़र कार्पेट को देखा, गहरे रंग का होने की वजह से बहुत गौर से देखने पर मुझे वहाँ खून के चंद धब्बे नज़र आए। मैंने किसी कपड़े की तलाश में आस-पास नज़र दौड़ाई तो कोई कपड़ा ऐसा ना नज़र आया कि जिससे मैं ये साफ कर सकूँ।
मैं बाहर निकला.. तो बाजी अपनी सलवार पहन चुकी थीं और अब क़मीज़ पहन रही थीं।
मैंने बाजी को देख कर कहा- बाजी वो कार्पेट पर खून के धब्बे हैं यार वो..
मैंने अभी इतना ही कहा था तो बाजी मेरी बात काट कर बोलीं- हाँ वो मैं पहले ही देख चुकी हूँ.. तुम जाओ अपने कमरे में.. वो मैं साफ कर दूँगी।
मैंने बाजी की बात सुन कर सोचा यार बहन हो तो ऐसी कि हर बात का ख़याल रहता है बाजी को..
मैंने कहा- चलो ठीक है बाजी.. मैं जाता हूँ.. ज़रा फ्रेश हो लूँ।
ये कह कर मैं अपने दरवाज़े पर पहुँचा तो बाजी ने आवाज़ दी- वसीम बात सुनो।
मैं रुक कर बाजी की तरफ घूमा.. तो वो अपने कपड़े पहन चुकी थीं।
बाजी मेरे पास आईं और मेरे कंधे के ज़ख़्म पर फिर से हाथ फेरा और फिर मेरे होंठों को चूम कर शरारत से कहा- वसीम याद है.. जब तुमने मेरी टाँगों के बीच में थप्पड़ मार कर बदला लिया था.. जब मुझे मेनसिस चल रहे थे और पैड होने की वजह से मुझे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ा था तुम्हारे थप्पड़ का याद है वो दिन?
मैंने कुछ ना समझ आने वाले लहजे में जवाब दिया- हाँ याद है मुझे.. क्यों वो बात क्यों याद करवा रही हो?
बाजी ने अपने निचले होंठ को दाँतों में दबा कर काटा और बोलीं- उस दिन मैंने तुमसे कहा था कि मैंने भी तुमसे एक बात का बदला लेना है.. मैं सही टाइम पर ही बदला लूँगी.. अभी नहीं.. देखो शायद वो टाइम आ जाए और हो सकता है कि ऐसा टाइम कभी ना आए.. याद है मेरा ये जुमला..??
मैंने कहा- हाँ याद है मुझे.. कि आपने ऐसा कहा था।
बाजी ने शरारत से भरी एक गहरी नज़र मेरे चेहरे पर डाली और कहा- जब मैंने तुम्हारी टाँगों के बीच में मारा था ना.. तो उस वक़्त तुमने गुस्से में मुझे गाली दी थी.. तुमने थप्पड़ खाते ही चिल्ला कर कहा था ‘बहन चोद बाजीयईईई..’ बस मुझे उस गाली का बदला लेना रहता था। और वो बदला में अब लूँगी क्यों कि अब टाइम आ गया।
फिर बाजी हँसते हुए बोलीं- मैं नहीं तुम खुद हो बहन चोद.. समझे?
यह बोल कर बाजी सीढ़ियों की तरफ चल दीं और मैं वहीं दरवाज़े पर खड़ा बेचारा सा मुँह लेकर अपना कान खुजाने लगा।
बाजी सीढ़ियों से नीचे उतर गईं और मैं बाजी की बात को सोचता हुआ अपने कमरे की तरफ चल पड़ा।
कमरे में जाते ही मैंने अपना लण्ड साफ किया और बहुत थका हुआ होने की वजह से लेटते ही सो गया।
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