Antarvasna kahani प्यासी जिंदगी
11-18-2018, 12:52 PM,
#64
RE: Antarvasna kahani प्यासी जिंदगी
बाजी को तो जो तक़लीफ़ हो रही थी.. वो तो थी ही.. लेकिन उनके दाँत मेरे कंधे में गड़े थे और नाख़ून कमर में घुस से गए थे.. जिससे मुझे भी अज़ीयत तो बहुत हो रही थी.. लेकिन उस तक़लीफ़ पर लज़्ज़त का अहसास बहुत भारी था।
वो लज़्ज़त एक अजीब ही लज़्ज़त थी जिसे सिर्फ़ महसूस किया जा सकता है.. ब्यान नहीं किया जा सकता।
बाजी की चूत अन्दर से इतनी गर्म हो रही थी कि मुझे ऐसा महसूस हुआ जैसे मैंने किसी तंदूर में अपना लण्ड डाला हुआ हो।
उनकी चूत ने मेरे लण्ड को हर तरफ से बहुत मज़बूती से जकड़ रखा था। 
चंद लम्हें मज़ीद इसी तरह गुज़र गए.. अब बाजी के दाँतों की गिरफ्त और नाख़ुनों की जकड़न.. दोनों ही ढीली पड़ गई थीं।
मैंने आहिस्तगी से अपने लण्ड को क़रीब दो इंच पीछे की तरफ खींचा और इतनी ही आहिस्तगी से फिर अन्दर को ढकेल दिया।

मेरी बाजी के मुँह से हल्की सी ‘आह..’ खारिज हुई.. लेकिन इस ‘आह..’ में तक़लीफ़ का तवस्सुर नहीं.. बल्कि मजे का अहसास था।
उन्होंने आहिस्तगी से अपना सिर वापस ज़मीन पर टिका दिया.. उनकी आँखें अभी भी बंद थीं। 
मैंने अबकी बार फिर उसी तरह आहिस्तगी और नर्मी से लण्ड को क़रीब 3 इंच तक बाहर खींचा और फिर दोबारा अन्दर धकेल दिया.. और लगातार यही अमल करना जारी रखा.. लेकिन अपनी स्पीड को बढ़ने ना दिया।
मेरा लण्ड जब बाहर निकालता तो बाजी अपने जिस्म को ज़रा ढील देतीं और जब मैं वापस लण्ड अन्दर पेलता तो उनके जिस्म में मामूली सा तनाव पैदा होता, बाजी के चेहरे पर हल्की सी मुस्कान आ जाती.. उनका मुँह थोड़ा सा खुलता और एक लज्जत भरी नरम सी ‘आह..’ खारिज करते हुए वो मेरी कमर को सहला देतीं।
मैं हर बार इसी तरह नर्मी से लण्ड बाजी की चूत में अन्दर-बाहर करता और हर बार बाजी लज़्ज़त भरी ‘आह..’ खारिज करतीं।
मैंने 12-13 बार लण्ड अन्दर-बाहर किया और फिर पूरा लण्ड अन्दर जड़ तक उतार कर रुक गया और अपने चेहरे पर शरारती सी मुस्कान सजाए.. नजरें बाजी के चेहरे पर जमा दीं।
बाजी कुछ देर तक इसी रिदम में लण्ड अन्दर-बाहर होने का इन्तजार करती रहीं और कोई हरकत ना होने पर उन्होंने अपनी आँखें खोल दीं। 
बाजी की पहली नज़र ही मेरे शरारती चेहरे पर पड़ी और सिचुयेशन की नज़ाकत का अंदाज़ा होते ही बेसाख्ता उनके चेहरा हया की लाली से सुर्ख पड़ गया और उन्होंने मुस्कुरा कर अपनी नज़रें मेरी नजरों से हटा लीं और चेहरा दूसरी तरफ करके दोबारा आँखें बंद कर लीं।
बाजी की इस अदा को देख कर मैं शरारत से बा-आवाज़ हंस दिया.. तो बाजी ने आँखें खोले बिना ही मासनोई गुस्से और शर्म से पूर लहजे में कहा- क्या है कमीने.. अपना काम करो ना.. मेरी तरफ क्या देख रहे हो। 
मैं बाजी की बात सुन कर एक बार फिर हँसा और कहा- अच्छा मेरी तरफ देखो तो सही ना.. अब क्यों शर्मा रही हो.. अब तो..
मैंने अपना जुमला अधूरा ही छोड़ दिया..
बाजी की हालत में कोई तब्दीली नहीं हुई।
मैंने कुछ देर इन्तजार किया और फिर शरारत और संजीदगी के बीच के लहजे में कहा- क्या हुआ बाजी.. अगर अच्छा नहीं लग रहा.. तो निकाल लूँ बाहर?
बाजी ने अपनी टाँगों को मज़ीद ऊपर उठाया और मेरे कूल्हों से थोड़ा ऊपर कमर पर अपने पाँव क्रॉस करके मेरी कमर को जकड़ लिया और अपने दोनों बाजुओं को मेरी गर्दन में डाल कर मुझे नीचे अपने चेहरे की तरफ खींचा और अपना चेहरा मेरी तरफ घुमाते हुए बोलीं- अब निकाल कर तो देखो ज़रा.. मैं तुम्हारी बोटी-बोटी नहीं नोंच लूँगी। 
अपनी बात कहते ही बाजी ने मेरे होंठों को अपने होंठों में ले लिया और मेरा निचला होंठ चूसने लगीं। 
मेरी बर्दाश्त भी अब जवाब देती जा रही थी। बाजी ने होंठ चूसना शुरू किए.. तो मैंने अपने हाथों से उनके चेहरे को नर्मी से थामा और आहिस्ता आहिस्ता अपना लण्ड अन्दर-बाहर करना शुरू कर दिया।
यह मेरी ज़िंदगी में पहला मौका था कि मैं किसी चूत की नर्मी व गर्मी को अपने लण्ड पर महसूस कर रहा था.. अजीब सी लज़्ज़त थी.. अजीब सा सुरूर था..
पता नहीं हर चूत में ही ये सुरूर… ये लज़्ज़त छुपी होती है या इसका सुरूर इसलिए बहुत ज्यादा था कि ये कोई आम चूत नहीं.. बल्कि मेरी सग़ी बहन की चूत थी.. और बहन भी ऐसी कि जो इंतहाई हसीन थी, जिसे देख कर लड़कियाँ भी रश्क से ‘वाह..’ कह उठें।
अब बाजी की तक़लीफ़ तकरीबन ना होने के बराबर रह गई थी और वो मुकम्मल तौर पर इस लज़्ज़त में डूबी चुकी थीं। हर झटके पर बाजी के मुँह से खारिज होती लज़्ज़त भरी सिसकी.. इसका सबूत था।
मैंने अपनी स्पीड को थोड़ा सा बढ़ाया.. जिससे मेरा मज़ा तो डबल हुआ ही.. लेकिन बाजी भी माशूर हो उठीं, उन्होंने अपनी आँखें खोल दीं और खामोशी और नशे से भरी नजरों से मेरी आँखों में देखते हुए अपने हाथ से मेरा सीधा हाथ पकड़ा.. जो कि उनके गाल पर रखा हुआ था। 
अपने उस हाथ को उठा कर अपने सीने के उभार पर रखते हुए बोलीं- आह.. वसीम.. इन्हें भी दबाओ न.. लेकिन नर्मी से..
मैंने लण्ड को उनकी चूत में अन्दर-बाहर करना जारी रखा और बाजी की आँखों में देखते हुए ही मुस्कुरा कर अपने हाथ से बाजी के निप्पल को चुटकी में पकड़ते हुए कहा- बाजी मज़ा आ रहा है.. अब तक़लीफ़ तो नहीं हो रही ना..
बाजी ने भी मुस्कुरा कर कहा- बहुत ज्यादा मज़ा आ रहा है वसीम.. मेरा दिल चाह रहा है.. वक़्त बस यहाँ ही थम जाए और तुम हमेशा इसी तरह अपना लण्ड मेरी चूत में ऐसे ही अन्दर-बाहर करते रहो!
मैंने कहा- फ़िक्र ना करो बाजी.. मैं हूँ ना अपनी बहना के लिए.. जब भी कहोगी.. मैं हमेशा तुम्हारे लिए हाज़िर रहूँगा।
‘वसीम मैंने कभी सोचा भी नहीं था.. कि मेरा कुंवारापन खत्म करने वाला लण्ड.. मेरी चूत की सैर करने वाला पहला हथियार मेरे भाई.. मेरे अपने सगे भाई का होगा..’
बाजी ने यह बात कही लेकिन उनके लहजे में कोई पछतावा या शर्मिंदगी बिल्कुल नहीं थी। 
मैंने बाजी की बात सुन कर कहा- बाजी, मेरी तो ज़िंदगी की सबसे बड़ी ख्वाहिश ही यह थी.. कि मेरा लण्ड जिस चूत में पहली दफ़ा जाए वो मेरी अपनी सग़ी बहन की चूत हो.. मेरी प्यारी सी बाजी की चूत हो..
मेरे अपने मुँह से ये अल्फ़ाज़ अदा हुए तो मुझ पर इसका असर भी बड़ा शदीद ही हुआ और मैंने जैसे अपना होश खोकर बहुत तेज-तेज झटके मारना शुरू कर दिए।
मेरे इन तेज झटकों की वजह से बाजी के मुँह से ज़रा तेज सिसकारियाँ निकलीं और वो अपने जिस्म को ज़रा अकड़ा कर घुटी-घुटी आवाज़ में बोलीं- आह नहीं वसीम.. प्लीज़ आहहीस.. आहिस्ता.. अफ दर्द होता है.. आह.. आहिस्ता करो प्लीज़..
मैंने तेज-तेज 6-7 झटके ही मारे थे कि बाजी की आवाज़ जैसे मुझे हवस में वापस ले आईं और मैं एकदम ठहर सा गया.. मेरा सांस बहुत तेज चलने लगी थी।
मैं रुका तो बाजी ने अपने जिस्म को ढीला छोड़ा और मेरे सिर के पीछे हाथ रख कर मेरे चेहरे को अपने सीने के उभारों पर दबा कर कहा- वसीम इन्हें चूसो.. इससे तक़लीफ़ का अहसास कम होता है।
मैंने बाजी के एक उभार का निप्पल अपने मुँह में लिया और बेसाख्ता ही फिर से मेरे झटके शुरू हो गए और उस वक़्त मुझे ये पता चला कि जब आपका लण्ड किसी गरम चूत में हो तो कंट्रोल अपने हाथ में रखना तकरीबन नामुमकिन हो जाता है।
मुझे महसूस होने लगा कि मैं अब ज्यादा देर तक जमा नहीं रह पाऊँगा.. मेरे झटकों की रफ़्तार खुद बा खुद ही मज़ीद तेज होने लगी। अब बाजी भी मेरे झटकों को फुल एंजाय कर रही थीं.. शायद उनकी मामूली तक़लीफ़ पर चूत का मज़ा और निप्पल चूसे जाने का मज़ा ग़ालिब आ गया था।
या शायद वो मेरे मज़े के लिए अपनी तक़लीफ़ को बर्दाश्त कर रही थीं.. इसलिए वो अब मुझे तेज झटकों से मना भी नहीं कर रही थीं। 
लेकिन अब बाजी ने मेरे झटकों के साथ-साथ अपने कूल्हों को भी हरकत देना शुरू कर दिया था। जब मेरा लण्ड जड़ तक बाजी की चूत में दाखिल होता.. तो सामने से बाजी भी अपनी चूत को मेरी तरफ दबातीं और मेरी कमर पर अपने पाँव की गिरफ्त को भी एक झटके से मज़बूत करके फिर लूज कर देतीं और उनके मुँह से ‘आह..’ निकल जाती। 
डिस्चार्ज होने का वक्त
मैं अब अपनी मंज़िल के बहुत क़रीब पहुँच चुका था, लम्हा बा लम्हा मेरे झटकों में बहुत तेजी आती जा रही थी लेकिन मैं अपनी बहन से पहले डिसचार्ज होना नहीं चाहता था.. मैंने बहुत ज्यादा मुश्किल से अपने जेहन को कंट्रोल करने की कोशिश की और बस एक सेकेंड के लिए मेरा जेहन मेरे कंट्रोल में आया और मैंने यकायक अपना लण्ड बाहर निकाल लिया।
बाजी ने फ़ौरन झुंझला कर ज़रा तेज आवाज़ में कहा- रुक क्यों गए हो.. प्लीज़ वसीम अन्दर डालो ना वापस.. मैं झड़ने वाली हूँ.. डालोऊऊ नाआअ..
बाजी की बात सुनते ही मैंने दोबारा लण्ड अन्दर डाला और मेरे तीसरे झटके पर ही बाजी का जिस्म अकड़ना शुरू हुआ और मुझे साफ महसूस हुआ कि बाजी की चूत ने अन्दर से मेरे लण्ड पर अपनी गिरफ्त मज़ीद मज़बूत कर ली है.. जैसे चूत को डर हो कि कहीं लण्ड दोबारा भाग ना जाए। 
अभी मेरे मज़ीद 6-7 झटके ही हुए थे कि बाजी का जिस्म पूरा अकड़ गया और उन्होंने मेरे सिर को अपनी पूरी ताक़त से अपने उभार पर दबा दिया और अब मुझे बहुत वज़या महसूस होने लगा कि बाजी की चूत मेरे लण्ड को भींच रही है और फिर छोड़ रही है..
और उस वक़्त ही मुझे पहली बार ये बात मालूम हुई कि जब लड़की डिस्चार्ज होती है.. तो उसकी चूत लण्ड को इस तरह भींचती है.. कि कभी सिकुड़ती है.. तो कभी लूज होती है।
बाजी ‘आहें..’ भरते हुए डिस्चार्ज हो गईं लेकिन मैंने अपने झटकों पर कोई फ़र्क़ नहीं आने दिया और अगले चंद ही झटकों में मेरा जिस्म भी शदीद तनाव में आया.. मेरा लण्ड इतना सख्त हो गया था कि जैसे लोहा हो। 
फिर जैसे मेरे पूरे बदन से लहरें सी उठ कर लण्ड में जमा होना शुरू हुईं और मेरे मुँह से एक तेज ‘आहह..’ के साथ सिर्फ़ एक जुमला निकला- अहह.. ऊऊऊऊ.. मैं गया.. बाजी.. में मैं गया.. आआअ..
इसके साथ ही मेरा लण्ड फट पड़ा और झटकों-झटकों के साथ पानी की फुहार बाजी की चूत के अन्दर ही बरसाने लगा।
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