Antarvasna kahani प्यासी जिंदगी
11-18-2018, 12:52 PM,
#60
RE: Antarvasna kahani प्यासी जिंदगी
हम अपने-अपने काम में दिल से मसरूफ़ थे कि तभी एक नए ख्याल ने मेरे दिमाग में झटका सा दिया। मैं अपनी जगह से उठ कर अलमारी के पास गया और डिल्डो निकाल लिया।
यह वही भूरे रंग का डिल्डो था जिसकी मोटाई बिल्कुल मेरे लण्ड जितनी ही थी और लंबाई तकरीबन 12 इंच थी, इसके दोनों तरफ लण्ड की टोपी बनी हुई थी।
मैंने डिल्डो निकाला और मेज़ से तेल की बोतल उठा कर वापस आ रहा था.. तो बाजी की नज़र उस डिल्डो पर पड़ी और उन्होंने ज़ुबैर के लण्ड को मुँह में ही रखे हुए आँखें फाड़ कर मुझे देखा।
मैंने मुस्कुरा कर बाजी को आँख मारी और डिल्डो की टोपी को बाजी की आँखों के सामने लहराते हुए कहा- मेरी प्यारी बहना जी.. क्या तुम इसके लिए तैयार हो?
बाजी ने ज़ुबैर के लण्ड को अपने मुँह से निकाला लेकिन हाथ में पकड़े-पकड़े ही कहा- तुम्हारा दिमाग खराब हुआ है क्या वसीम..! ये इतना बड़ा है.. ये तो मैं कभी भी नहीं डालने दूँगी।
मैंने बाजी के पीछे आते हुए कहा- कुछ नहीं होता यार बाजी.. रिलैक्स.. मैं ये पूरा थोड़ी ना अन्दर घुसाने लगूंगा..
बाजी ने इसी तरह अपनी गाण्ड उठाए और चूत को ज़ुबैर के मुँह से लगाए गर्दन घुमा कर मुझे देखा और परेशानी से कहा- लेकिन वसीम इससे बहुत दर्द तो होगा ना?
मैंने अपनी 3 उंगलियों को आपस में जोड़ कर डिल्डो की नोक पर रखा और बाजी को दिखाते हुए कहा- ये देखो बाजी.. ये मेरी 3 उंगलियों से थोड़ा सा ही ज्यादा मोटा है.. और आप मेरी 3 उंगलियाँ अपनी चूत में ले चुकी हो.. इतना दर्द नहीं होगा.. और अगर हुआ तो मुझे बता देना.. मैं इसे बाहर निकाल लूँगा।
अपनी बात कह कर मैंने डिल्डो के हेड पर बहुत सारा तेल लगाया और कुछ तेल अपनी उंगली पर लगा कर बाजी की चूत की अंदरूनी दीवारों पर भी लगा दिया।
अब डिल्डो को हेड से ज़रा पीछे से पकड़ कर मैंने एक बार बाजी को देखा। 
वो मेरे हाथ में पकड़े डिल्डो को देख रही थीं और उनकी आँखों में फ़िक्र मंदी के आसार साफ पढ़े जा सकते थे। 
मैं कुछ देर डिल्डो को ऐसे ही थामे हुए बाजी के चेहरे पर नज़र जमाए रहा.. तो उन्होंने मेरी नजरों को महसूस करके मेरी तरफ देखा। बाजी से नज़र मिलने पर मैंने आँखों से ही ऐसे इशारा किया.. जैसे कहा हो कि ‘फ़िक्र ना करो.. मैं हूँ ना..’ 
फिर आहिस्तगी से बाजी की चूत के लबों के बीच डिल्डो का हेड रख कर उससे लकीर में फेरा.. जिससे बाजी की चूत के दोनों लब जुदा हो गए और हेड डायरेक्ट चूत के अंदरूनी नरम हिस्से पर टच होने लगा।
मैंने 3-4 बार ऐसे ही डाइडो के हेड को चूत के अन्दर ऊपर से नीचे तक फेरा और फिर उसकी नोक को चूत के निचले हिस्से में सुराख पर रख कर हल्का सा दबाव दिया।
बाजी की चूत उनके अपने ही जूस से चिकनी हो रही थी और मैंने काफ़ी सारा आयिल भी चूत के अन्दर और डिल्डो के हेड पर लगा दिया था.. जिसकी वजह से पहले ही हल्के से दबाव से डिल्डो का हेड जो तकरीबन डेढ़ इंच लंबाई लिए हुए था.. एक झटके से अन्दर उतर गया।
उसके अन्दर जाने से बाजी के जिस्म को भी एक झटका लगा और उन्होंने सिर को झटका देते हुए.. आँखें बंद करके एक सिसकारी भरी- उम्म्म्म वसीम..
मैं चंद सेकेंड ऐसे ही रुका और फिर डिल्डो को मज़ीद आधा इंच अन्दर धकेल कर आहिस्ता-आहिस्ता उसे हिलाने लगा। 
बाजी ने अपने सिर को ढलका कर अपना रुखसार (गाल) ज़ुबैर के लण्ड पर टिका दिया और आँखें बंद किए लंबी-लंबी सांसें लेकर बोलीं- उफ्फ़ वसीम.. बहुत मज़ा आ रहा है।
‘देखा मैं कह रहा था ना.. कुछ नहीं होगा.. आप ऐसे ही टेन्शन ले रही थीं।’ 
इतने मे मैंने ज़ुबैर को बाजी की चूत का दाना चूसने का इशारा किया और डिल्डो को अन्दर-बाहर करते हुए आहिस्ता-आहिस्ता और गहराई में ढकेलने लगा। 
डिल्डो अब तकरीबन ढाई इंच तक अन्दर जा रहा था.. मैं इतनी गहराई मेंटेंन रखते हुए बाजी की चूत में डिल्डो अन्दर-बाहर करता रहा। 
कुछ देर बाद मैंने डिल्डो को मज़ीद गहराई में उतारने के लिए थोड़ा दबाव दिया.. तो बाजी ने तड़फ कर एक झटका लिया और सिर उठा लिया।
फिर मेरी तरफ गर्दन घुमा कर मेरी आँखों में देखती हुई सिसक कर बोलीं- बस वसीम.. और ज्यादा अन्दर मत करो.. बहुत दर्द होता है.. बस इतना ही अन्दर डाले आगे-पीछे करते रहो। 
मैं समझ गया था कि अब बाजी की चूत का परदा सामने आ गया है और डिल्डो वहाँ ही टच हुआ था.. जिससे बाजी को दर्द हुआ।
मैं खुद भी बाजी की चूत के पर्दे को डिल्डो से फाड़ना नहीं चाहता था। बल्कि मैं चाहता था कि मेरी बहन की चूत का परदा मेरे लण्ड की ताकत से फटे.. मेरी बहन का कुंवारापन मेरे लण्ड की वहशत से खत्म हो।
मैंने बाजी की बात सुन कर मुस्कुरा कर उन्हें देखा और कहा- अच्छा जी.. तो इसका मतलब है.. हमारी बहना जी को इससे बहुत मज़ा आ रहा है।
बाजी ने मज़े से डूबी आवाज़ में कहा- हाँ.. वसीम.. उम्म्म्म मम.. यह बहुत अलग सा मज़ा है.. बहुत हसीन अहसास है.. आह..
मैंने लोहा गर्म देखा तो कहा- तो बाजी मुझे डालने दो ना अपना लण्ड.. उससे और ज्यादा मज़ा मिलेगा।
‘नहीं वसीम.. वो अलग चीज़ है.. तुम्हें नहीं पता क्या.. उससे मैं प्रेग्नेंट भी हो सकती हूँ।’
‘कुछ नहीं होता बाजी.. मैं कंडोम लगा लूँगा ना..’
‘नहीं ना वसीम.. मुझे पता है कंडोम भी हमेशा सेफ नहीं होता।’
‘मैं छूटने लगूंगा.. तो लण्ड बाहर निकाल लूँगा ना..’
‘अच्छा और अगर तुमने एक सेकेंड के लिए भी अपना कंट्रोल खो दिया तो फिर?’
‘बाजी मैं सुबह गोलियाँ ला दूँगा.. प्रेग्नेन्सी रोकने की.. आप वो खा लेना..’ 
मेरे बहस करने से बाजी के अंदाज़ में थोड़ी झुंझलाहट पैदा हो गई थी.. उन्होंने कहा- बस नहीं ना वसीम.. खामखाँ ज़िद मत करो।
बाजी किसी तरह भी नहीं मान रही थीं.. तो मैंने अपने आपको समझाया कि शायद अभी वक्त ही नहीं आया है।
इन सब बातों के दौरान मेरे हाथ की हरकत भी रुक गई थी और ज़ुबैर ने भी बाजी की चूत से मुँह हटा लिया था और हमारी बातें सुन रहा था कि शायद कोई बात बन ही जाए। 
लेकिन बात ना बनते देख कर उसने बेचारगी से मुझे देखा.. तो मैंने उसे वापस चूत का दाना चूसने का इशारा किया और उदास सा चेहरा लिए हार मान कर बाजी से कहा- अच्छा छोड़ें इसको.. आप अभी अपना मज़ा खराब नहीं करो। 
ज़ुबैर ने फिर से चूत से मुँह लगा दिया था.. तो मैंने भी अपने हाथ को हरकत देनी शुरू कर दी और बाजी की चूत में डिल्डो अन्दर बाहर करने लगा और बाजी ने भी फिर से अपना सिर झुकाया और ज़ुबैर का लण्ड चूसने लगीं।
डिल्डो के बदले लंड
लेकिन मेरा जेहन वहाँ ही अटका हुआ था कि मैं कैसे चोदूँ बाजी को।
ये ही सोचते-सोचते मैंने चंद सेकेंड्स में अपने जेहन में प्लान तरतीब दिया और अमल करने का फ़ैसला करते हुए ज़ुबैर को इशारा किया कि वो डिल्डो को पकड़े।
ज़ुबैर ने कुछ ना समझने के अंदाज़ में मुझे देखा और डिल्डो को पकड़ लिया। मैंने इशारों-इशारों में ज़ुबैर को समझाया कि डिल्डो को ज्यादा अन्दर ना करे और इसी रिदम से.. जैसे मैं अन्दर-बाहर कर रहा हूँ.. ऐसे ही करता रहे। 
ज़ुबैर मेरी बात को समझ गया और उसी तरह आहिस्ता-आहिस्ता डिल्डो बाजी की चूत में अन्दर-बाहर करने लगा। 
मैं अपनी जगह से उठा और बाजी के पीछे अपनी पोजीशन सैट करके ऐसे बैठा कि मेरा जिस्म बाजी के जिस्म से टच ना हो।
मैं अपने लण्ड को हाथ में पकड़ कर बाजी की चूत के क़रीब लाया और ज़ुबैर को इशारा किया कि वो 3 बार ऐसे ही अन्दर-बाहर करे और चौथी बार इसी रिदम में डिल्डो बाहर निकाल कर ऊपर कर ले। 
ज़ुबैर को अब अंदाज़ा हो गया था कि मैं क्या करने लगा हूँ और उसकी आँखों में जोश सा भर गया था।
उसने मेरी बात समझ कर आँखों से इशारा किया कि वो तैयार है!
मैंने अपनी पोजीशन को सैट किया और अपना लण्ड बाजी की चूत के जितने नज़दीक ले जा सकता था.. ले आया।
लेकिन इस बात का ख्याल रखा कि लण्ड बाजी की चूत से टच ना हो.. फिर मैंने हाथ के इशारे से ज़ुबैर को रेडी का इशारा किया और खुद भी लण्ड अन्दर डालने के लिए तैयार हो गया।
जैसे मैंने ज़ुबैर को समझाया था उसी तरह उसने 3 बार इसी रिदम में लण्ड अन्दर-बाहर किया और चौथी बार में लण्ड बाहर निकाल कर ऊपर उठा लिया। 
जैसे ही ज़ुबैर ने डिल्डो बाहर निकाला मैंने एक सेकेंड लगाए बगैर अपना लण्ड अन्दर ढकेल दिया। 
बाजी उस वक़्त एक लम्हे को ठिठक कर रुकीं और फिर से लण्ड चूसने लगीं। बाजी को इस तब्दीली का पता नहीं चला था और वो ये ही समझी थीं कि डिल्डो गलती से बाहर निकल गया था.. जो मैंने दोबारा अन्दर डाल दिया है।
बाजी की चूत में मेरा लण्ड दो इंच चला गया था, मैं कोशिश कर रहा था कि डिल्डो वाला रिदम कायम रखते हुए ही अपना लण्ड अन्दर-बाहर करता रहूँ।
बहुत अजीब सी सिचुयेशन थी.. मेरा लण्ड चूत के अन्दर था.. लेकिन मैं मज़े को फील नहीं कर पा रहा था और वो बात ही नहीं थी जो चूत में लण्ड डालने से होनी चाहिए थी। शायद इसकी वजह यह थी कि मैंने बाजी की मर्ज़ी के बगैर उनकी चूत में लण्ड डाला था।
शायद बाजी की नाराज़गी का डर था.. या अपनी सग़ी बहन की चूत में लण्ड डालने से गिल्टी का अहसास था.. या शायद मेरी पोजीशन ऐसी थी कि मैं अकड़ा हुआ था और कोशिश यह थी कि मेरा जिस्म बाजी से टच ना हो.. और रिदम भी कायम रहे। 
इसलिए मैं अपना बैलेन्स बनाए रखने की कोशिश कर रहा था। बरहराल पता नहीं क्या बात थी कि मुझे रत्ती भर भी मज़ा नहीं फील हो रहा था।
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