Antarvasna kahani प्यासी जिंदगी
11-18-2018, 12:52 PM,
#59
RE: Antarvasna kahani प्यासी जिंदगी
बाजी की कमर पतली होने की वजह से इस वक़्त उनका जिस्म बिल्कुल कोकाकोला की बोतल से मुशबाह था।
सुराहीदार लंबी गर्दन.. सीना भी गोलाई लिए थोड़ा साइड्स पर निकला हुआ.. पतली खंडार क़मर.. और फिर खूबसूरत कूल्हे भी थोड़ा साइड्स पर निकले हुए..
हर लिहाज़ से मुतनसीब और मुकम्मल जिस्म.. आह्ह..
ज़ुबैर की शक्ल किसी ऐसे बिल्ली के बच्चे जैसी हो रही थी कि जिसको उसकी माँ ने दूध पिलाने से मना कर दिया हो.. उसके मुँह से कोई आवाज़ भी नहीं निकल रही थी।
बाजी ने चंद लम्हें ऐसे ही उसके चेहरे पर नज़र जमाए रखे और फिर ज़ुबैर की हालत पर तरस खाते हुए हँस पड़ीं और नीचे बैठने लगीं।
अपने घुटनों और पंजों को ज़मीन पर टिकाते हुए बाजी कुछ इस तरह बैठीं कि उनके कूल्हे पाँव की एड़ियों से दब कर मज़ीद चौड़े हो गए।
उन्होंने ज़ुबैर के लण्ड को अपने हाथ में पकड़ा और उसकी पूरी लंबाई को अपनी ज़ुबान से चाटने लगीं।
ज़ुबैर के मुँह से बेसाख्ता ही एक ‘आहह..’ खारिज हुई और वो बोला- अहह.. बाजीयईई.. बाजी पूरा मुँह में लें ना..
बाजी ने मुस्कुरा कर उसकी बेताबी को देखा और कहा- सबर तो करो ना.. अभी तो शुरू किया है।
यह कह कर बाजी ने ज़ुबैर के लण्ड की नोक पर अपनी ज़ुबान की नोक से मसाज सा किया और फिर लण्ड की टोपी को अपने मुँह में ले लिया।
‘आह्ह.. आअप्पीईईई ईईई पूरा मुँह में लो ना.. उस दिन भी आपने दिल से नहीं चूसा था..’
बाजी ने उसके लण्ड को मुँह से निकाल कर एक गहरी नज़र उसके चेहरे पर डाली और फिर बिना कुछ बोले दोबारा लण्ड को मुँह में लेकर अन्दर-बाहर करने लगीं और 5-6 बार अन्दर-बाहर करने के बाद ही लण्ड पूरा जड़ तक बाजी के मुँह में जाने लगा। 
ज़ुबैर का जिस्म काँपने लगा था.. वो सिसकती आवाज़ में बोला- बाजी मुझसे खड़ा नहीं हुआ जा रहा..
बाजी ने लण्ड मुँह से निकाला और कहा- ओके नीचे लेट जाओ।
ज़ुबैर एक क़दम पीछे हटा और ज़मीन पर लेट कर अपनी दोनों टाँगों को थोड़ा खोलते हुए बाजी के इर्द-गिर्द फैला लिया। 
इस तरह लेटने से बाजी फ़रहान की टाँगों के बीच आ गई थीं। इसी तरह घुटनों और पाँव की ऊँगलियों को ज़मीन पर टिकाए हो बाजी आगे की तरफ झुकाईं.. जिससे उनकी गाण्ड ऊपर को उठ गई.. और वे ज़ुबैर के लण्ड को चूसने लगीं। 
मैं बाजी के पीछे था.. जब बाजी इस तरह से झुकीं तो उनके कूल्हे थोड़े से खुल गए और बाजी की गाण्ड का खूबसूरत.. डार्क ब्राउन.. झुर्रियों भरा सुराख.. और उनकी छोटी सी गुलाबी चूत की लकीर मुझे साफ नज़र आने लगी।
मैंने मेज से कैमरा उठाया और पहले बाजी की गाण्ड के सुराख को ज़ूम करता हुआ रिकॉर्ड किया और फिर कैमरा थोड़ा नीचे ले जाते हो चूत के लबों को ज़ूम किया।
बाजी की चूत के लब आपस में ऐसे चिपके हुए थे कि अन्दर का हिस्सा बिल्कुल ही नज़र नहीं आ रहा था और बस दो उभरे हुए से लबों के बीच एक बारीक सी लकीर बन गई थी।
मैंने कैमरा टेबल पर सैट करके रखा और बाजी के दोनों ग्लोरी होल्स पर नज़र जमाए हुए अपने एक हाथ से लण्ड को सहलाते दूसरे हाथ से अपना ट्राउज़र उतारने लगा। 
ट्राउज़र उतार कर मैं कुछ देर वहीं खड़ा बाजी के प्यारे से कूल्हों और उनके बीच के हसीन नज़ारे को देखते हुए अपने लण्ड को सहलाता रहा और फिर ट्रांस की कैफियत में बाजी की तरफ क़दम बढ़ा दिए। 
मैं आगे बढ़ा और बाजी के पीछे उन्हीं के अंदाज़ में बैठ कर चूत के पास अपना मुँह लाया और बाजी की चूत से उठती मदहोश कर देने वाली महक को एक लंबी सांस के ज़रिए अपने अन्दर उतारा, फिर अपनी ज़ुबान निकाली और चूत पर रख दी। 
मेरी ज़ुबान को अपनी चूत पर महसूस करके बाजी के जिस्म को एक झटका लगा और उन्होंने ज़ुबैर के लण्ड को मुँह से निकाले बिना ही एक सिसकी भरी और उनके चूसने के अंदाज़ में शिद्दत आ गई। 
मैं कुछ देर ऐसे ही बाजी की चूत की मुकम्मल लंबाई को चाटता और उनकी चूत के दाने को चूसता रहा। तो बाजी ने ज़ुबैर का लण्ड मुँह से निकाला और मज़े से डूबी आवाज़ में कहा- आह वसीम.. पीछे वाला सुराख भी चाटो नाआ..
बाजी की ख्वाहिश के मुताबिक़ मैंने उनकी गाण्ड के सुराख पर ज़ुबान रखी और उसी वक़्त उनकी चूत में अपनी एक उंगली भी डाल दी।
बाजी 2 सेकेंड को रुकीं और कुछ कहे बगैर फिर से अपना काम करने लगीं। 
मैंने बाजी की गाण्ड के सुराख को चाटा और उससे सही तरह अपनी थूक से गीला करने के बाद मैंने अपने दूसरे हाथ का अंगूठा बाजी की गाण्ड के सुराख में उतार दिया और अपने दोनों हाथों को हरकत दे कर अन्दर-बाहर करने लगा। 
मेरा लण्ड शाम से ही बेक़रार हो रहा था और अब मेरी बर्दाश्त जवाब दे चुकी थी। मैंने अपना अंगूठा बाजी के पिछले सुराख में ही रहने दिया और चूत से ऊँगली निकाल कर अपना लण्ड पकड़ा और अपने लण्ड की नोक बाजी की चूत से लगा दी। 
बाजी ने इससे महसूस कर लिया और फ़ौरन अपनी कमर को ऊपर की तरफ उठाते हुए चूत को नीचे की तरफ दबा दिया और गर्दन घुमा कर कहा- वसीम क्या कर रहे हो तुम.. अन्दर डालने की कोशिश का सोचना भी नहीं।
मैंने तकरीबन गिड़गिड़ाते हुए कहा- प्लीज़ बहना.. आपको इस पोजीशन में देख कर दिमाग बिल्कुल गरम हो गया है.. अब बर्दाश्त नहीं होता ना.. और बाजी इतना कुछ तो हम कर ही चुके हैं.. अब अगर अन्दर भी डाल दूँ तो क्या फ़र्क़ पड़ता है।
‘बहुत फ़र्क़ पड़ता है इससे वसीम.. अगर तुम से कंट्रोल नहीं हो रहा.. तो मैं चली जाती हूँ कमरे से..’
बाजी के मुँह से जाने की बात सुन कर ज़ुबैर उछल पड़ा.. वो अपने लण्ड पर बाजी के मुँह की गर्मी को किसी क़ीमत पर खोना नहीं चाहता था। 
वो फ़ौरन बोला- नहीं बाजी प्लीज़ आप जाना नहीं.. भाई प्लीज़ आप कंट्रोल करो ना.. अपने आप पर..
मैंने बारी-बारी बाजी और ज़ुबैर के चेहरे पर नज़र डाली और शिकस्तखुदा लहजे में कहा- ओके ओके बाबा.. अन्दर नहीं डालूंगा.. लेकिन सिर्फ़ ऊपर-ऊपर रगड़ तो लूँ ना..
बाजी के चेहरे पर अभी भी फ़िक्र मंदी के आसार नज़र आ रहे थे- क्या मतलब.. अन्दर रगड़ोगे?
मैंने बाजी के कूल्हों को दोनों हाथों से पकड़ कर ऊपर उठाते हुए कहा- अरे बाबा नहीं डाल रहा ना अन्दर.. अन्दर रगड़ने से मुराद है कि आपकी चूत के लबों को थोड़ा खोल कर अन्दर नरम गुलाबी हिस्से पर अपना लण्ड रगडूँगा।
बाजी अभी भी मुतमइन नज़र नहीं आ रही थीं।
उन्होंने अपनी क़मर को नीचे की तरफ खम देते हुए गाण्ड ऊपर उठा दी लेकिन गर्दन घुमा कर मेरे चेहरे पर ही नज़र जमाए रखी। 
मैंने अपने लण्ड को हाथ में लिया और बाजी की चूत के दोनों लबों के बीच रख कर लबों को खोला और चूत के अंदरूनी नरम हिस्से पर लण्ड को ऊपर से नीचे रगड़ने लगा। 
मेरे इस तरह रगड़ने से मेरे लण्ड की नोक बाजी की चूत के अंदरूनी हिस्से को रगड़ दे रही थी और टोपी की साइड्स बाजी की चूत के लबों पर रगड़ लगा रहे थे।
मैंने 4-5 बार ऐसे अपने लण्ड को रगड़ा तो बाजी के मुँह से बेसाख्ता ही एक सिसकारी निकली और मुझे अंदाज़ा हो गया कि बाजी को इस रगड़ से मज़ा आने लगा है।
कुछ देर बाजी ऐसे ही गर्दन मेरी तरफ किए रहीं और अपनी आँखों को बंद करके दिल की गहराई से इस रगड़ को महसूस करने लगीं। अब मेरे लण्ड की रगड़ के साथ-साथ ही बाजी ने अपनी चूत को भी हरकत देनी शुरू कर दी थी। 
मैंने अपने लण्ड को एक जगह रोक दिया तो बाजी ने आँखें खोल कर मुझे देखा और फिर शर्म और मज़े की मिली-जुली कैफियत से मुस्कुरा कर अपना मुँह ज़ुबैर की तरफ कर लिया और अपनी चूत हिला-हिला के मेरे लण्ड पर रगड़ने लगीं।ि
चूत में उंगली
कुछ देर तक ऐसे ही अपना लण्ड बाजी की चूत के अन्दर रगड़ने के बाद मैंने अपना लण्ड हटाया और बाजी की गाण्ड के सुराख पर अपनी ज़ुबान रखते हो अपनी दो उंगलियाँ बाजी की चूत में तकरीबन 1. 5 इंच तक उतार दीं और उन्हें आगे-पीछे करते हुए अपनी तीसरी उंगली भी अन्दर दाखिल कर दी।
बाजी ने तक़लीफ़ के अहसास से डूबी आवाज़ में कहा- उफ्फ़ वसीम.. दर्द हो रहा है!
मैंने बाजी की बात अनसुनी करते हुए अपनी उंगलियों को अन्दर-बाहर करना जारी रखा और उनकी गाण्ड के सुराख को चूसने लगा ताकि इससे तक़लीफ़ का अहसास कम हो जाए..
लेकिन बाजी की तक़लीफ़ में कमी ना हुई और वो बोलीं- आआईईई वसीम.. दर्द ज्यादा बढ़ रहा है ऐसे.. निकालो उंगलियाँ उफ्फ़..
मैंने उंगलियाँ निकाल लीं और बाजी से कहा- बाजी ऐसा करो.. ज़ुबैर के ऊपर आ जाओ और उसका लण्ड चूसो.. वो साथ-साथ आपकी चूत के दाने(क्लिट) को भी चूसता रहेगा तो दर्द नहीं होगा।
मेरी बात सुन कर ज़ुबैर खुश होता हुआ बोला- हाँ बाजी ऊपर आ जाएँ.. इससे ज्यादा मज़ा आएगा।
बाजी ने एक नज़र मेरे चेहरे पर डाली और फिर ज़ुबैर को देखते हुए मुँह चढ़ा कर तंज़िया लहजे में उसकी नकल उतारते हुए बोली- बाजी ऊपाल आ जाएं बाअला मज़ा आएगा.. खुशी तो देखो ज़रा इसकी.. शर्म करो कमीनो.. मैं तुम्हारी सग़ी बहन हूँ.. कोई बाज़ारी औरत नहीं हूँ।
बाजी का अंदाज़ देख कर मैं मुस्कुरा दिया.. लेकिन ज़ुबैर ने बुरा सा मुँह बनाया और खराब मूड में कहा- बाजी..!! भाई कुछ भी कहते रहें.. आप उन्हें कुछ नहीं कहती हैं.. मैं कुछ बोलूँ तो आप नाराज़ हो जाती हैं।
बाजी ने ज़ुबैर की ऐसी शक्ल देख कर हँसते हुए उसके गाल पर हल्की सी चपत लगाई और अपनी टाँगें उसके चेहरे के दोनों तरफ़ रखते हुए बोलीं- पगले मजाक़ कर रही थी तुमसे.. हर बात पर इतने बगलोल ना हो जाया करो।
फिर वे अपनी चूत ज़ुबैर के मुँह पर टिकाते हुए झुकीं और उसका लण्ड अपने मुँह में भर लिया।
ज़ुबैर ने अभी भी बुरा सा मुँह बना रखा था.. लेकिन जैसे ही बाजी की चूत ज़ुबैर के मुँह के पास आई तो उनकी चूत की महक ने ज़ुबैर का मूड फिर से हरा-भरा कर दिया और एक नए जोश से उसने बाजी की चूत के दाने को अपने मुँह में ले लिया। 
मैंने बाजी की चूत की तरफ हाथ बढ़ाया और फिर से उनकी गाण्ड के सुराख को चूसते हुए चूत में पहले 2 और फिर 3 उंगलियाँ डाल कर अन्दर-बाहर करने लगा और मेरे आइडिया का रिज़ल्ट पॉज़िटिव ही रहा.. मतलब बाजी को अब इतनी तक़लीफ़ नहीं हो रही थी.. या यूँ कहना चाहिए कि बाजी के मज़े का अहसास उनकी तकलीफ़ के अहसास पर ग़ालिब आ गया था और कुछ ही देर बाद बाजी की चूत मेरी 3 उंगलियों को सहने के क़ाबिल हो गई थीं,अब वो मेरी उंगलियों के साथ-साथ ही अपनी चूत को भी हरकत देने लगीं।
अब पोजीशन ये थी कि बाजी ज़ुबैर का लण्ड चूसते हुए अपनी चूत को भी हरकत दे रही थीं। ज़ुबैर के मुँह में बाजी की चूत का दाना था.. जिसे वो बहुत मजे और स्वाद से चूस रहा था। मेरी 3 उंगलियाँ बाजी की चूत में डेढ़ दो इंच गहराई तक अन्दर-बाहर हो रही थीं और मैं बाजी की गाण्ड के सुराख पर कभी अपनी ज़ुबान फिराता.. तो कभी उसे चूसने लगता।
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