RE: Antarvasna kahani प्यासी जिंदगी
फिर मैं भी चाय पीकर अपने कमरे में आ गया.. ज़ुबैर पढ़ाई में ही लगा था। मैंने उसके दोनों कंधों पर हाथ रख कर कन्धों को दबाते हुए कहा- और सुना.. छोटू.. कैसे हो रहे हैं पेपर?
वो तक़लीफ़ से कराह कर बोला- उफफ्फ़.. भाईईईईई.. इतने ज़ोर से दबाए हैं कंधे.. बस कल आखरी पेपर है फिर छुट्टी..
मैंने उसकी गुद्दी पर एक चपत मारी और अपनी जगह पर लेट कर बोला- क्या यार थोड़ा सा दबाया है और तुमसे बर्दाश्त नहीं हो रहा.. इसी लिए कहता हूँ कि ज़रा कम पानी निकाला करो.. वैसे तुम्हें तो काफ़ी दिन हो गए हैं पानी निकाले हुए ना?
मेरी बात सुन कर वो खुश होता हुआ बोला- अरे हाँ.. आप तो कल कमरे में आ गए थे.. लेकिन बाजी ने मुझे कल मज़ा करवाया था।
मैंने लेटे-लेटे ही उसकी तरफ देखा और कहा- अच्छा.. मुझे तो पता ही नहीं चला.. तुम्हारे साथ ही बाजी भी आ गई थीं क्या कमरे में?
‘नहीं भाई.. आपको पता भी कैसे चलता.. हम कमरे में नहीं आए थे.. कमरे से बाहर ही सीढ़ियों के पास बाजी ने मेरा लंड चूस कर मुझे डिसचार्ज करवाया था.. लेकिन बाजी ने बस जान छुड़ाने वाले अंदाज़ में ही चूसा था.. पता नहीं वो मेरे साथ ऐसा क्यों करती हैं।’
मैंने ज़ुबैर की बात सुनी तो मुस्कुरा कर उसे जवाब दिया- अबे नहीं यार.. ऐसा मत सोचो कि तुम्हारे साथ वो ऐसा करती हैं.. असल में बाजी को मेनसिस चल रहे हैं.. इसलिए बाजी ने दिल से नहीं चूसा होगा क्योंकि अगर वो दिल से सब कुछ कराएँ.. तो वो भी गर्म हो जाएँगी और फिर उनकी चूत में जलन होती है.. बाजी ने खुद मुझे ये बातें बताई थीं। लेकिन ये देखो कि वो तुमको इतना प्यार करती हैं कि अपनी तक़लीफ़ का बता कर उन्होंने तुम्हें मना नहीं किया.. बल्कि तुम्हारा लंड चूस कर तुम्हें सुकून पहुँचाया है।
वो चंद लम्हें कुछ सोचता रहा.. फिर बोला- हाँ भाई, ये तो बात है!
‘अब दिमाग से चूत को निकाल और चल अब पढ़ाई कर और मैं भी सोता हूँ..’ मैंने ज़ुबैर से कहा और चादर अपने मुँह तक तान ली।
अगला दिन भी बहुत बिजी ही गुज़रा और आम दिनों से ज्यादा थका हुआ सा घर पहुँचा.. तो अब्बू और अम्मी टीवी लाऊँज में ही थे।
अम्मी ने मुझे खाना दिया और खाने के दौरान ही शॉप के बारे में अब्बू से बातें भी होती रहीं।
कमरे में आया तो आज खिलाफे तवक़ा.. ज़ुबैर सोता हुआ नज़र आ रहा था। मुझे भी थकान ने कुछ और सोचने ही नहीं दिया और मैं भी चेंज करके सो गया।
सुबह मैं ज़रा लेट उठा तो अम्मी ने ही नाश्ता दिया कि बाजी यूनिवर्सिटी चली गयी थीं। मैं भी नाश्ता वगैरह करके कॉलेज चला गया और वहाँ से शॉप पर.. वापस घर आते हुए मैंने अपनी शॉप से एक डिजिटल कैमरा भी उठा लिया था कि अब तो हर चीज़ ही पहुँच में थी।
मैं घर पहुँचा तो सवा पाँच हो रहे थे। टीवी लाऊँज में कोई नज़र नहीं आ रहा था। बाजी का और अम्मी का कमरा भी बंद था।
मैं अपनी लेफ्ट साइड पर किचन के अन्दर देखता हुआ राइट पर सीढियों की तरफ मुड़ा ही था कि ‘भौं..’ की आवाज़ के साथ ही मेरे कन्धों को धक्का लगा और ‘हहा.. हाअ डर गए.. डर गए.. कैसे उछले हो डर के..’ बाजी शरारत से हँसते हुए मेरे सामने आ गईं.. जो दीवार की साइड पर छुप कर खड़ी हुई थीं।
बाजी ने इस वक़्त सफ़ेद चिकन की फ्रॉक और सफ़ेद रेशमी चूड़ीदार पजामा पहना हुआ था.. जो पैरों से ऊपर बहुत सी चुन्नटें लिए सिमटा हुआ था, सर पर अपने मख़सूस अंदाज़ में ब्लॅक स्कार्फ बाँधा हुआ था.. सीने पे बड़ा सा दुपट्टा फैला कर डाला हुआ था।
मैंने बाजी को हँसते हुए देखा तो उन्होंने मुँह चिढ़ा कर कहा- ईईईहीईए.. डर कहाँ से गया.. इतने ज़ोर से धक्का मारा है कि अन्दर से मेरा सब कुछ हिल गया है।
मेरी बात सुन कर बाजी एक क़दम आगे बढ़ीं और पैंट के ऊपर से ही मेरे लण्ड को मज़बूती से पकड़ कर दाँत पीसती हुई बोलीं- क्या-क्या हिल गया है मेरे भाई का.. अन्दर से?
मैंने बाजी की इस हरकत पर बेसाख्ता ही इधर-उधर देखा और कहा- क्या हो गया है बाजी.. घर में कोई नहीं है क्या?
बाजी ने मेरे लण्ड को दबा कर मेरी गर्दन पर अपने दांतों से काटा और फिर अपने दांतों को आपस में दबा कर अजीब तरह से बोलीं- सब घर में ही हैं नाआआ.. अम्मी अपने कमरे में.. और हनी अपने में!
बाजी के इस अंदाज़ पर मैं हैरतजदा रह गया और मैंने उन्हें कहा- होश में आओ यार.. कोई बाहर निकल आया तो?
बाजी ने अपने सीने के उभारों को मेरे सीने पर रगड़ा और मेरी गर्दन को दूसरी तरफ से चूम और काट कर कहा- देखने दो सब को.. सारी दुनिया को देख लेने दो कि मैं अपने भाई की रानी हूँ.. अपनी प्यास बुझाना चाहती हूँ अपने सगे भाई के लण्ड से..
मैंने बाजी के दोनों कन्धों को पकड़ कर उन्हें अपने आपसे अलग किया और झुरझुरा कर कहा- ऊओ मेरी माँ.. बस कर दे एक्टिंग.. क्यों फंसवाएगी भाईईइ..
बाजी ने हँसते हुए अपनी आँखें खोलीं और मुझे देख कर आँख मारते हुए नॉर्मल अंदाज़ में बोलीं- यार वसीम आज कुछ करने का बहुत दिल चाह रहा है।
मैंने शरारत से कहा- क्यों बहना जी.. लीकेज खत्म हो गई है क्या?
‘हाँ यार आज सुबह ही नहा ली थी.. तभी तो बेताब हो रही हूँ.. इतने दिन से पानी नहीं निकाला ना..’
मैंने बाजी का हाथ पकड़ा और सीढ़ियों की तरफ घूमते हुए कहा- तो चलो आओ ऊपर.. पानी निकालने का अभी कोई बंदोबस्त कर देता हूँ।
बाजी ने आहिस्तगी से अपना हाथ छुड़ाया और कहा- नहीं यार.. अभी नहीं.. अभी खाना भी बनाना है.. रात में आऊँगी तुम्हारे पास..
मैंने बाजी की बात सुन कर अपने कंधे उचकाए और ऊपर जाने के लिए पहली सीढ़ी पर क़दम रखा ही था कि बाजी बोलीं- अब इतने भी बेवफा ना बनो यार..
मैंने गरदन घुमा कर बाजी को देखा और कहा- क्या मतलब.. खुद ही तो कहा है रात में आऊँगी।
‘हाँ मैंने रात में आने का कहा है.. लेकिन ये तो नहीं कहा कि ऐसे ही ऊपर चले जाओ?’
मैंने अपना क़दम सीढ़ी से वापस खींचा और घूम कर बाजी की तरफ रुख करके कहा- क्या करूँ फिर? साफ बोलो ना?
बाजी ने अपने निचले होंठ की साइड को अपने दांतों में दबा कर बड़े अजीब अंदाज़ से मेरी आँखों में देखा और कहा- मेरे सोहने भैया जी.. कम से कम दीदार ही करवा दो।
मैं समझ तो गया.. लेकिन फिर भी मज़े लेते हुए कहा- किस चीज़ का दीदार करवा दूँ.. मेरी सोहनी बहना जी?
बाजी ने मेरी आँखों में ही देखते हुए अपना एक क़दम आगे बढ़ाया और मेरी पैंट की ज़िप को खोलते हुए कहा- अपने ‘लण्ड’ का दीदार करवा दो.. कितने दिन हो गए हैं.. मैंने देखा तक नहीं है अपने भाई का ‘लण्ड’..
लण्ड लफ्ज़ बोलते हुए बाजी की आँखें हमेशा ही चमक सी जातीं और लहज़ा भी अजीब सा हो जाता था।
मैंने भी लण्ड लफ्ज़ पर ज़ोर देते हुए कहा- मेरी सोहनी बहना जी मेरा ‘लण्ड’ मेरी बहन के लिए ही तो है.. खुद ही निकाल कर देख लो ना..
मेरी बात पूरी होने से पहले ही बाजी ने मेरी पैंट की ज़िप से अन्दर हाथ डाल दिया था.. उन्होंने अन्दर ही टटोल कर मेरे लण्ड को पकड़ा और पैंट से बाहर निकाल कर कहा- वसीम चलो किचन में चलें.. यहाँ कोई आ ना जाए।
मेरा लण्ड इस वक़्त सेमी इरेक्ट था.. मतलब ना ही फुल खड़ा था और ना ही फुल बैठा हुआ था..
मैं बाजी के साथ ही किचन की तरफ चल पड़ा और कहा- मैं तो पहले ही कह रहा था कि इधर कोई आ जाएगा.. लेकिन उस वक़्त तो रानी साहिबा को एक्टिंग सूझ रही थी ना।
‘बकवास मत करो.. एक्टिंग की बात नहीं है.. उस वक़्त मुझे इतना इत्मीनान था कि किसी की आहट पर ही हम एक-दूसरे से अलग हो जाएंगे.. लेकिन अब तुम्हारा ये ‘भोंपू’ बाहर निकला हुआ है ना.. इसे छुपाना मुश्किल होगा.. बाजी की बात खत्म हुई तब तक हम दोनों किचन में दाखिल हो चुके थे।
बाजी ने मेरा हाथ पकड़ा और रेफ्रिजरेटर की साइड पर ले जाते हुए कहा- यहाँ दीवार से लग कर खड़े हो जाओ.. और ये मुसीबत कि जड़.. बैग तो कंधे से उतार देना था।
बाजी ने ये कहा और अपने हाथ पीछे कमर पर ले जाकर दुपट्टे के दोनों कोनों को आपस में गाँठ लगाने लगीं।
ये जगह फ्रिज की साइड में थी और यहाँ पर खड़े होने से मेरे और किचन के दरवाज़े के बीच रेफ्रिजरेटर आ गया था। मुझे दरवाज़ा या उससे बाहर का मंज़र नज़र नहीं आ सकता था और इसी तरह अगर कोई दरवाज़े में खड़ा हो.. तो वो भी मुझे नहीं देख सकता था.. बल्कि किचन में अन्दर आ जाने के बाद भी मैं उस वक़्त तक नज़र से ओझल ही रहता कि जब तक कोई मेरे बिल्कुल सामने आकर ना खड़ा हो जाए।
मैं दीवार से पीठ लगा कर खड़ा हुआ और कहा- यार, ये सारा दिन कंधे पर लटका होता है.. तो अभी अहसास ही नहीं रहा था कि यह भी लटका है.. आप ही बोल देती ना उतारने का।
मैं बैग नीचे ज़मीन पर रखने लगा तो मुझे अचानक कैमरा याद आया और मैं बैग को हाथ में पकड़े हुए ही बोला- बाजी आज मैं कैमरा लाया हूँ.. डिजिटल है 20 मेगा पिक्सल का.. 52जे ज़ूम का है और अंधेरे में भी क्लियर मूवी बनाता है।
बाजी ने अपने दुपट्टे को अपनी कमर पर गाँठ लगा ली थी और अब अपने सीने पर दुपट्टा सही करते हुए बोलीं- कहाँ से लिया है?
मैंने बैग खोलते हुए कहा- कहाँ से क्या.. मतलब यार.. अपनी शॉप से लाया हूँ.. अभी दिखाऊँ क्या?
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