Antarvasna kahani प्यासी जिंदगी
11-18-2018, 12:51 PM,
#55
RE: Antarvasna kahani प्यासी जिंदगी
मैंने बाजी की बात सुनी और उनके दोनों हाथों को अपने हाथों में पकड़ कर उनके सिर के ऊपर लाया और दीवार से चिपका कर कहा- तो इससे क्या होता है.. मैं उसे नहीं चाटूँगा ना.. और फिर अपने होंठ बाजी के होंठों से लगा दिए और उनके निचले होंठ को अपने दोनों होंठों में पकड़ कर चूसने लगा। 
बाजी ने मुझसे अपना आपको छुड़ाने की कोशिश करते हुए अपने सीने को झटका और मेरे हाथ से अपना हाथ छुड़ा कर मेरे सीने पर रख कर पीछे ज़ोर दिया.. तो मैंने पीछे हटते हुए बाजी के होंठ को अपने दांतों में पकड़ लिया और होंठ खिंचने की वजह से बाजी दोबारा मुझसे चिपक गईं। 
मैंने ज़ोरदार तरीक़े से बाजी के होंठ चूसते हुए उनका हाथ नीचे ला कर अपने लंड पर रखा.. लेकिन बाजी ने हाथ हटा लिया।
वो अभी भी मुझसे अलग होने की ही कोशिश कर रही थीं। 
बाजी ने मेरा लंड नहीं पकड़ा तो मैं खुद ही पीछे हट गया और बुरा सा मुँह बना कर कहा- क्या है यार बाजी.. थोड़ा सा तो साथ दो ना?
बाजी ने बेचारगी से गिड़गिड़ा कर कहा- वसीम प्लीज़.. अभी मैं कुछ नहीं कर सकती ना.. तुम थोड़ा कंट्रोल कर लो।
यह कहते-कहते बाजी की आवाज़ भर गई और उनकी आँखों में आँसू आ गए थे। 
मैंने बाजी की आँखों में आँसू देखे तो मैं तड़फ उठा और एकदम बाजी को अपनी बाँहों में भर कर अपने सीने से लगाता हुआ बोला- नहीं बाजी प्लीज़.. मेरे सामने रोया मत करो ना.. मेरा दिल दहल जाता है.. मुझे क्या पता था कि आपको ऐसे तक़लीफ़ होती है.. अब मैं कभी इन दिनों में आपको नहीं छेड़ूँगा.. मैं वादा करता हूँ आपसे.. बस रोया मत करो.. मैं इन प्यारी-प्यारी आँखों में आँसू नहीं देख सकता..
बाजी कुछ देर ऐसे ही मेरे सीने में अपना चेहरा छुपाए खड़ी रहीं और मैं एक हाथ से बाजी की क़मर को सहलाते दूसरे हाथ से उनके सिर को अपने सीने में दबाए रहा।
कुछ देर बाद बाजी मुझसे अलग होते हुए बोलीं- अच्छा बस तुम अब नीचे जाओ.. मैं कुछ देर बाद आकर तुम्हें नाश्ता देती हूँ.. मैं ऊपर से अपनी चादर भी ले आऊँ.. मैं ये नहीं चाहती कि अम्मी मुझे इस हालत में तुम्हारे सामने घूमते-फिरते देखें..
‘ओके जाऊँ अब नीचे?’ मैंने सीरीयस से अंदाज़ में बाजी की आँखों में देखा.. जो रोई-रोई सी मज़ीद हसीन लगने लगीं थीं.. और बिना कुछ बोले नीचे जाने के लिए वापस घूमा ही था कि बाजी ने मेरा बाज़ू कलाई से पकड़ा और मेरे सामने आकर प्यार भरे लहजे में बोलीं- अब ऐसी शकल तो नहीं बनाओ ना.. एक बार मुस्कुरा तो दो..
मैंने बाजी की आँखों में देखा और मुस्कुराया तो बाजी ने कहा- मेरा सोहना भाई..
उन्होंने आगे बढ़ कर अपने होंठ मेरे होंठों से लगा कर नर्मी से चूमा और मेरी आँखों में देखते हुए ही अलग हो गईं।
मैंने बाजी के चेहरे को अपने दोनों हाथों में थाम कर बारी-बारी से बाजी की दोनों आँखों को चूमा और उन्हें छोड़ कर नीचे चल दिया।
मैं नीचे पहुँचा तो अम्मी टीवी लाऊँज में बैठी दोपहर के खाने के लिए गोश्त काट रही थीं।
मैंने उन्हें सलाम करके अनजान बनते हुए पूछा- अम्मी बाजी कहाँ है.. नाश्ता वाश्ता मिलेगा क्या?
छुरी अपने हाथ से नीचे रख कर अम्मी खड़ी होती हुए बोलीं- तुम्हारा उठने का कोई टाइम फिक्स हो तो बंदा नाश्ता बना कर रखे ना.. तुम बैठो.. मैं अभी बना कर लाती हूँ.. रूही ने आज मशीन लगाई हुई है.. कपड़े धोने में लगी है..
अम्मी किचन में नाश्ता बनाने गईं.. तो मैं उनकी जगह पर बैठ कर न्यूज़ देखते हुए गोश्त काटने लगा।
कुछ देर बाद अम्मी नाश्ते की ट्रे लेकर किचन से निकलीं और ट्रे टेबल पर रखते हुए बोलीं- ओहो.. मैं तो भूल ही गई थी.. वसीम.. तुम्हारे अब्बू का फोन आया था.. वो कह रहे थे कि 12 बजे तक उनके ऑफिस चले जाना। वो कह रहे थे तुम्हें साथ ले कर रहीम भाई से मिलने जाना है।
‘जी अच्छा.. अम्मी.. मैं चला जाऊँगा..’ 
यह कह कर मैं नाश्ता करने के लिए टेबल पर बैठा और उसी वक़्त बाजी भी नीचे उतर आईं।
लेकिन अब उन्होंने अपने सिर पर और ऊपरी जिस्म के गिर्द अपनी बड़ी सी चादर लपेटी हुई थी.. जिससे उनके बदन के उभार छुप गए थे।
मुझसे नज़र मिलने पर बाजी ने अम्मी से नज़र बचा कर मुझे आँख मारी और अपने सीने से चादर हटा कर एक लम्हे को मुझे अपने खूबसूरत मम्मों का दीदार करवाया और हँसते हुए बाथरूम में चली गईं।
मैं जज़्बात से सिर उठाते अपने लंड को सोते रहने का मशवरा देता हुआ सिर झुका कर नाश्ता करने लगा। 
नाश्ता करके मैं अब्बू के ऑफिस गया और वहाँ से हम रहीम अंकल से मिलने उनकी शॉप कम शोरूम पर गए।
उनकी शॉप पर 3 आदमी काम करते थे और तीनों बहुत पुराने और ईमानदर वर्कर थे।
वहाँ ही हमने रहीम अंकल से बात-चीत की और सारे मामलात तय करके रहीम अंकल ने वर्कर्स को भी यह बात साफ़ कर दी कि अब शॉप के नये मालिक हम लोग होंगे.. जिसको उन वर्कर्स ने भी बहुत खुशदिली से क़बूल किया।
अगले 3 दिन तक हम पेपर वर्क और दूसरे तमाम मामलात में मसरूफ़ रहे। मैं सुबह जल्दी कॉलेज जाता था और कॉलेज से ही सीधे शॉप पर पहुँच जाता.. और रात 9 बजे शॉप क्लोज़ होने के बाद ही मैं घर जाता था।
मैंने अपने तरीक़े से सारी लिस्ट को मेन्टेन किया कि हमारे पास क्या-क्या आइटम्स हैं.. और हम कितने में खरीदते हैं.. कितने में हमने आगे बेचना है… वगैरह वगैरह..
शॉप पर जाते मेरा चौथा दिन था.. मैं रात 9 बजे घर पहुँचा.. तो सब डाइनिंग टेबल पर ही बैठे थे.. मैं उन्हें 5 मिनट रुकने का कह कर बाथरूम गया और हाथ मुँह धो कर खाने के लिए आ बैठा..
इधर उधर की बातें करते हुए हमने खाना ख़त्म किया।
अब्बू ने अपने पॉकेट में हाथ डालते हुए कहा- अरे हाँ वसीम.. मैं भूल गया था यार.. वो शकूर साहब तुम्हारा लाइसेन्स दे गए थे।
उन्होंने अपने जेब से लाइसेन्स निकाल कर मुझे दे दिया।
मैं अभी लाइसेन्स को हाथ में ले कर देख ही रहा था कि हनी ने मेरे हाथ से लाइसेन्स खींचा और बोली- भाई ऐसे ही सूखा-सूखा तो कुछ भी नहीं मिलता ना.. लाइसेन्स.. अब ज़रा अपना जेब ढीला करो और अभी के अभी हम सबको आइसक्रीम खिलाने ले कर चलो.. तो मैं लाइसेन्स दूँगी.. वरना नहीं..
हनी की बात सुन कर ज़ुबैर भी उसके साथ मिल गया और दोनों ‘आइस्क्रीम.. आइस्क्रीम..’ का शोर करने लगे।
अब्बू ने मुस्कुराते हुए उन दोनों को चुप करवाया और गाड़ी की चाबी मुझे देते हुए बोले- जाओ यार.. ले जाओ सबको.. आइसक्रीम भी खिला लाओ.. और अपने लिए दूसरी चाबी भी बनवा लाओ। 
मैं ज़ुबैर.. हनी.. और बाजी.. तीनों को आइस्क्रीम खिलाने ले गया और गाड़ी की चाबी भी बनवा कर हम घर वापस पहुँचे तो 11 बज रहे थे।
अम्मी अपने कमरे में थीं और अब्बू न्यूज़ देख रहे थे। हमें अन्दर आता देख कर अब्बू उठते हुए बोले- मुझे बहुत सख़्त नींद आ रही है.. मैं बस तुम लोगों के इंतज़ार में जाग रहा था.. तुम लोग भी अब जाओ.. सो जाओ.. अब गप्पें मारने नहीं बैठ जाना।
यह कह कर अब्बू कमरे में चले गए। 
हनी भी ना जाने कब से पेशाब रोके बैठी थी.. अन्दर आते ही सीधी बाथरूम की तरफ भागी।
बाजी भी अपने कमरे की तरफ जाने लगीं तो ज़ुबैर आहिस्ता आवाज़ में मुझसे बोला- भाई आज बाजी को बोलो ना.. थोड़ा मज़ा करते हैं.. आज बहुत दिल चाह रहा है ना.. अब तो सिर्फ़ 2 पेपर बचे हैं।
ज़ुबैर ने कहा तो आहिस्ता आवाज़ में ही था.. लेकिन बाजी ने उसकी बात सुन ली.. और मेरे कुछ बोलने से पहले ही गर्दन घुमा कर हमारी तरफ देखा और मेरे चेहरे पर नज़र जमाते हुए बोलीं- तुम्हारा भी दिल चाह रहा है क्या?
मैंने चंद सेकेंड सोचा और कहा- नहीं यार.. मैं सुबह 7 बजे से निकला हुआ हूँ और शॉप से घर पहुँचा ही था कि तुम लोगों ने आइस्क्रीम का शोर कर दिया.. इस टाइम बस नींद के अलावा और कोई बात मेरी समझ में नहीं आ रही है.. मैं तो चला ऊपर..
अपनी बात कह कर मैं रुका नहीं और अपने कमरे को चल दिया।
कमरे में आते ही मैं बिस्तर पर गिरा और कुछ ही मिनटों में दुनियाँ ओ माफिया से बेखबर हो गया।
अगले रोज़ भी मैं तक़रीबन सवा नौ बजे घर पहुँचा तो थकान से चूर था। सब खाना खा रहे थे.. मैं फ्रेश हो कर नीचे आया तो सब ही खाना खा चुके थे और अब्बू हस्बे-मामूल टीवी लाऊँज में ही बैठे न्यूज़ देखते हो चाए पी रहे थे। 
मैं खाने के लिए टेबल पर बैठा और खाना शुरू किया ही था कि अब्बू ने मेरा थका हुआ चेहरा देख कर कहा- बेटा तुम कॉलेज से 2 बजे तक तो शॉप पर पहुँच ही जाते हो.. तो ऐसा किया करो कि 5 बजे घर आ जाया करो.. सलीम (शॉप का मुंतज़ीं) बहुत ईमानदार और मेहनती लड़का है.. वो रहीम भाई के होते हुए भी अच्छा ही संभाल रहा था.. अब भी संभालता रहेगा.. और मैं भी एकाध चक्कर लगा ही लेता हूँ.. तो इतनी परेशानी उठाने की क्या जरूरत है कि अपना ख़याल भी ना रख सको।
मैंने खाना खाते-खाते ही अब्बू को जवाब दिया- वो अब्बू.. मैं तो अपने अनुभव के लिए वहाँ बैठा रहता हूँ.. और सारी लिस्ट मैं अपने हिसाब से तरतीब दे रहा था.. इसलिए टाइम ज्यादा लग जाया करता है। 
‘बेटा मेरी एक बात याद रखना कि जब तक सांस चल रही है.. ये काम धन्धा चलता रहेगा.. ऐसा तो है नहीं कि आज हम सब ख़त्म कर लेंगे और फिर चैन से सोएंगे.. बेटा मरने के बाद ही इन चक्करों से छुटकारा मिलता है.. इसलिए मेरा हमेशा ये ही उसूल रहा है कि काम को अपने ऊपर इतना मत सवार करो कि अपनी सेहत और ज़ेहनी सुकून को तबाह कर बैठो.. जान है तो जहान है.. और तुम्हारी अभी ज़िंदगी पड़ी है.. अभी तो जुम्मा-जुम्मा आठ 8 दिन भी नहीं हुए.. होता रहेगा तजुर्बा.. लेकिन अपने आप पर तवज्जो देना बहुत जरूरी है.. और इस तरह तुम्हारी पढ़ाई का भी हर्ज होगा।
‘अब्बू बस अब सारी लिस्ट वगैरह तो तक़रीबन फाइनल हो ही चुकी हैं और जहाँ तक पढ़ाई की बात है.. तो मैं शोरूम में ही अपने केबिन में बैठ कर पढ़ाई कर ही लेता हूँ.. लेकिन चलिए मैं कल से 5 बजे तक घर आ जाया करूँगा।’ 
इसके बाद भी कुछ देर अब्बू मुझसे शॉप के बारे में ही पूछते रहे और मैं उनसे बातें करता हुआ खाना ख़ाता रहा।
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RE: Antarvasna kahani प्यासी जिंदगी - by sexstories - 11-18-2018, 12:51 PM

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