RE: Antarvasna kahani प्यासी जिंदगी
अगला दिन भी रूटीन की तरह ही गुज़रा.. रात में जब मैं घर आया तो अब्बू टीवी लाऊँज में ही बैठे टीवी पर न्यूज़ देखने के साथ-साथ अपने लैपटॉप पर काम भी करते जा रहे थे।
मैं उनको सलाम करता हुआ वहाँ ही बैठ गया.. अब्बू ने चश्मे के ऊपर से मुझ पर एक नज़र डाली और अपने लैपटॉप को बंद करते हुए बोले- वसीम तुम्हारे एग्जाम भी होने वाले हैं.. क्या इरादा है तुम्हारा फिर?
‘अब्बू मेरा इरादा तो यही है कि इंजीनियरिंग करूँगा.. इलेक्ट्रॉनिक्स में..’
‘हून्न्न.. नंबर इतने आ जाएंगे कि दाखिला हो जाए तुम्हारा?’
‘जी अब्बू.. मुझे तो पूरी उम्मीद है कि हो जाएगा दाखिला।’
‘वसीम बेटा तुम मेरे दोस्त रहीम को तो जानते ही हो ना..?’
मैंने कहा ‘जी अब्बू.. वो जिनकी इलेक्ट्रॉनिक्स आइटम्स का शोरूम है.. वो ही रहीम अंकल ना..?
अब्बू ने अपना चश्मा उतार कर टेबल पर रखा और मेरी तरफ घूम कर बोले- हाँ वो ही..
अब्बू का सीरीयस अंदाज़ देख कर मैं भी संभल कर बैठ गया और अपना मुकम्मल ध्यान उन पर लगा दिया।
‘बेटा मैं अब रिटायर होने वाला हूँ.. मैं काफ़ी दिन से सोच रहा था कि कोई कारोबार शुरू करूँ.. और अब खुदा ने खुद ही एक रास्ता बना दिया है.. उसी के बारे में तुमसे बात करनी है।’
मैं अपने सीने पर हाथ बांधे सवालिया अंदाज़ में अब्बू को देखता रहा.. कुछ देर खामोश रहने के बाद अब्बू ने कहा- मैं कुछ भी करूँ.. संभालना तो तुमने ही है.. क्योंकि मेरे बाद घर के बड़े तुम ही हो।
‘अब्बू आप फ़िक्र ना करें.. मैं हर तरह आप की उम्मीदों पर पूरा उतरूँगा..’
मेरी बात सुन कर अब्बू के चेहरे पर खुशी के आसार पैदा हुए और वो बोले- रहीम भाई ने बहुत मेहनत से अपनी इलेक्ट्रॉनिक्स शॉप बनाई है.. उन्होंने आज ही मुझसे जिक्र किया है कि वो अपने बेटों के पास अमेरिका जा रहे हैं और अपनी शॉप बेचना चाहते हैं। मैंने उनसे तो ऐसी कोई बात नहीं की है.. लेकिन तुम से मशवरा माँग रहा हूँ कि अगर उनसे शॉप ले ली जाए तो संभाल लोगे तुम?
मैंने अब्बू की बात सुन कर चंद लम्हें सोचा और फिर मज़बूत लहजे में जवाब दिया- अब्बू आप मेरी तरफ से बेफ़िक्र हो जाएँ.. आप जानते ही हैं कि मुझे इलेक्ट्रॉनिक्स में दिलचस्पी भी है.. बस आप देख लें कि पैसों का इन्तज़ाम हो जाएगा ना..?
‘वो सब मैं देख लूँगा.. कुछ पैसे देकर बाक़ी के लिए टाइम भी लिया जा सकता है.. वगैरह.. वगैरह..’
मैं और अब्बू दो घंटे तक इसी मोज़ू पर बात करते रहे.. तमाम पॉज़िटिव और नेगेटिव इश्यूस को ज़ेरे-ए-बहस लाने के बाद हमने ये ही फ़ैसला क्या कि खुदा को याद करके काम शुरू कर देते हैं।
मैं अब्बू के पास से उठ कर कमरे में आया.. तो ज़ुबैर अपनी पढ़ाई में ही बिजी था।
मैंने उससे ज्यादा बात नहीं की और उसकी पढ़ाई की बाबत मालूम करके कपड़े चेंज किए और बिस्तर पर आ गया।
मेरा यह नेचर है कि मैं जब कोई काम करने लगता हूँ.. तो मेरा जेहन.. मेरी तमामतर तवज्जो.. उसी काम पर जम जाती है और बाक़ी तमाम सोचें पासेमंज़र में चली जाती हैं।
इस वक़्त भी ऐसा ही हुआ और मैं अपने शुरू होने वाले नए कारोबार के बारे में प्लान करता हुआ जाने कब नींद की वादियों में खो गया।
सुबह मेरी आँख खुली तो दस बज रहे थे, मैंने मुँह हाथ धोया और नाश्ते के लिए नीचे जाने लगा।
बाजी का भीगा बदन
मैंने अभी पहली सीढ़ी पर क़दम रखा ही था कि मुझे ऊपर वाली सीढ़ियों पर एक साया सा नज़र आया और महसूस हुआ कि जैसे ऊपर कोई है।
मैं चंद सेकेंड रुका और फिर नीचे जाने के बजाए आहिस्ता-आहिस्ता दबे क़दमों से ऊपर जाने वाली सीढ़ियों पर चढ़ने लगा।
जब मैं सीढ़ियों के दरमियानी प्लेटफॉर्म.. जहाँ से सीढ़ियाँ वापस घूम कर ऊपर को चढ़ती हैं.. पर पहुँचा तो..
बाजी वहाँ साइड में होकर दीवार से लगी खड़ी थीं, बाजी ने एक प्रिंटेड लॉन का ढीला-ढाला सा सूट पहन रखा था और दुपट्टे.. चादर.. स्कार्फ वगैरह से बेनियाज़ थीं।
बाजी ने अपने दोनों हाथ से प्लास्टिक का लाल रंग का टब पकड़ रखा था.. जिसको उल्टा करके अपने सीने पर रखते हुए बाजी ने अपने दोनों सीने के उभारों को छुपा लिया था।
उनके बाल मोटी सी चुटिया में बँधे हुए थे और चंद आवारा सी लटें पानी से गीली हुईं उनके खूबसूरत गुलाबी रुखसारों से चिपकी हुई थीं।
क़मीज़ की कलाइयाँ कोहनियों तक चढ़ी हुई थीं और सलवार के पायेंचे आधे पाँव के ऊपर और आधे पाँव के नीचे थे और खूबसूरत गुलाबी पाँव चप्पलों की क़ैद से आज़ाद थे।
मैंने सिर से लेकर पाँव तक बाजी के जिस्म को देखा और हैरतजदा सी आवाज़ में पूछा- बाजीयईई.. मुझसे छुप रही हो?
बाजी ने सहमी हुई सी नजरों से मुझे देखते हुए कहा- वो तुम.. तुम जाओ नीचे.. म्म… मैं आ कर तुम्हें नाश्ता देती हूँ।
मैं समझ नहीं पा रहा था कि बाजी ऐसे क्यों बिहेव कर रही हैं। मैं एक क़दम उनकी तरफ बढ़ा.. तो वो एकदम से साइड को हुईं और अपने एक हाथ से टब को अपने सीने पर पकड़े.. दूसरे हाथ से मुझे रोकते हुए बोलीं- तुम जाऊऊओ ना वसीम.. मैं आती हूँ ना नीचे..
बाजी की माहवारी
मैंने शदीद हैरत के असर में कहा- बाजी क्या बात है.. इतना घबरा क्यों रही हो.. ऊपर से कहाँ से आ रही हो?
बाजी बोलीं- वो मैं ऊपर धुले हुए कपड़े लटकाने गई थी.. तुम जाओ नीचे.. मैं बाद में आऊँगी.. अम्मी टीवी लाऊँज में ही बैठी हैं।
‘इतनी परेशान क्यों हो.. मैं आपके इतने क़रीब कोई पहली बार तो नहीं आ रहा ना..’
मैं यह कह कर आगे बढ़ा और बाजी के हाथ से खाली टब खींच लिया।
बाजी के सीने से टब हटा तो एक हसीन-तरीन नज़ारा मेरी आँखों के सामने था।
बाजी ने क़मीज़ के अन्दर ब्रा या शमीज़ नाम की कोई चीज़ नहीं पहनी हुई थी। उनकी क़मीज़ गीली होने की वजह से दोनों खड़े उभारों के बीच गैप में सिमट कर उनके सीने के उभारों से चिपकी हुई थी। जिसकी वजह से बाजी के निपल्स और निप्पलों के गिर्द का खूबसूरत दायरा क़मीज़ से बिल्कुल वज़या नज़र आ रहा था।
मैंने टब नीचे रखा और एक हाथ से बाजी का लेफ्ट उभार थामते हुए अपना मुँह उनके उभारों के बीच और अपना दूसरा हाथ उनकी टाँगों के बीच ले जाते हुए हँस कर कहा- ये छुपा रही थीं मुझसे? मैं ये कोई पहली बार थोड़ी ना देख रहा हूँ।
अपनी बात कह कर मैंने क़मीज़ के ऊपर से ही बाजी के निप्पल को मुँह में ले लिया और उसी वक़्त मेरा हाथ भी बाजी की टाँगों के बीच पहुँच गया।
मेरा हाथ बाजी की टाँगों के बीच टच हुआ तो मैं एकदम ठिठक गया और बाजी का निप्पल मुँह में ही लिए अपने हाथ से बाजी की टाँगों के बीच वाली जगह को टटोलने लगा।
मेरे ज़हन में तो यह ही था कि मेरा हाथ बाजी की चूत की चिकनी नरम जिल्द पर टच होगा.. उनकी चूत के उभरे-उभरे से नरम लब मेरे हाथ में आएंगे.. लेकिन हुआ ये कि मेरा हाथ एक फोम के टुकड़े पर टच हुआ.. और चंद सेकेंड में ही मेरी समझ में आ गया कि बाजी ने अपनी चूत पर पैड लगा रखा है।
मैंने बाजी के निपल्लों पर काट कर उनकी आँखों में देखा तो उन्होंने मेरा चेहरा पकड़ कर मुझे झटके से पीछे किया और चिड़चिड़े लहजे में बोलीं- बस अब देख लिया ना.. इसी लिए मैं तुमसे छुप रही थी।
|