Antarvasna kahani प्यासी जिंदगी
11-18-2018, 12:50 PM,
#50
RE: Antarvasna kahani प्यासी जिंदगी
बाजी नाश्ते की ट्रे लेकर आईं और टेबल पर मेरे सामने रखते हुए आहिस्ता- आवाज़ में बोलीं- अल्ल्लाआअ मेरी जान.. नाराज़ है मुझसे..
मैंने बाजी को कोई जवाब नहीं दिया।
उन्होंने ट्रे से निकाल कर ऑमलेट परांठा मेरे सामने रखा और मेरे गाल पर चुटकी काट कर अपने दाँतों को भींचते हुए बोलीं- गुस्से में लगता बड़ा प्यारा है.. मेरा सोहना भाई।
मैंने बुरा सा मुँह बना कर बाजी के हाथ को झटका.. लेकिन मुँह से कुछ ना बोला और ना ही नज़र उठा कर उनको देखा। 
मुझे यह खौफ भी था कि अगर मैंने नज़र उठाई तो बाजी के खूबसूरत गुलाबी गाल और उनकी हसीन आँखें.. जो काजल की वजह से मज़ीद सितम ढा रही हैं.. मुझे ऐसे क़ैद कर लेंगी कि मैं अपनी नाराज़गी कायम रखना तो दूर की बात.. दुनिया ओ माफिया ही से बेखबर हो जाऊँगा।
मैंने चुपचाप नज़र झुकाए हुए ही नाश्ता करना शुरू कर दिया।
बाजी कुछ देर वहाँ ही खड़ी रहीं.. फिर अम्मी के पास जाकर मटर छीलने में उनकी मदद करने लगीं। 
मैंने नाश्ता खत्म किया ही था कि बाजी ने पौधों को पानी देने वाली बाल्टी उठाई और अम्मी को कुछ कहते हुए बाहर गैराज में रखे गमलों को पानी लगाने के लिए चली गईं। 
मैं टीवी लाऊँज के दरवाज़े पर पहुँचा ही था कि अम्मी की आवाज़ आई- वसीम मोटर चला दो.. ये लड़की पौधों को पानी लगाते-लगाते पूरी टंकी ही खाली कर देगी।
टीवी लाऊँज के दरवाज़े से निकल कर राईट साइड पर हमारे घर का छोटा सा लॉन है.. और लेफ्ट साइड पर गाड़ी खड़ी करने के लिए गैरज है। गैरज के अन्दर वाले सिरे पर ही मोटर लगी हुई है और गैरज के बाहर वाले सिरे पर तो ज़ाहिर है हमारे घर का मेन गेट ही है।
बाजी ने मुझे मनाया
मैं मोटर का बटन ऑन करके मुड़ा ही था कि बाजी ने मेरा हाथ पकड़ कर झटका दिया और अपने दोनों हाथ अपनी कमर पर रख कर बोलीं- ये क्या ड्रामा है वसीम.. बात क्यों नहीं कर रहे हो मुझसे?
मैंने अभी भी बाजी की तरफ नहीं देखा और नज़र झुकाए हुए ही नाराज़ अंदाज़ में कहा- बस नहीं करनी मैंने बात.. मेरी मर्ज़ी..
बाजी ने मेरी ठोड़ी को अपने हाथ से ऊपर उठाया और मुहब्बत भरे अंदाज़ में कहा- वसीम.. मैं भी तो मजबूर हूँ ना.. बस अब नाराज़गी खत्म करो.. चलो शाबाश मेरी तरफ देखो.. मेरा सोहना भाई.. नज़र उठाओ अपनी।
मैंने नज़र नहीं उठाई लेकिन बाजी के हाथ को भी नहीं झटका- बाजी कितने दिन हो गए हैं.. आप नहीं आई हो.. आप का अपना दिल चाहता है तो आती हो.. मेरी खुशी के लिए तो नहीं ना..
‘मुझे पता है.. आज 5 दिन हो गए हैं मैंने अपने सोहने भाई को खुश नहीं किया.. मैं क्या करूँ मेरी जान.. मौका ही नहीं मिल पाया है.. लेकिन मैं आज रात लाज़मी कोशिश करूँगी.. ओके..’
बाजी ने ये कहा और मेरी ठोड़ी से हाथ हटा लिया और मेरे चेहरे पर अपनी नजरें गड़ा दीं।
मैंने बाजी की बात सुन कर भी अपना अंदाज़ नहीं बदला और हल्का सा गुस्सा दिखाते हुए बोला- अभी भी ये ही कह रही हो कि कोशिश करूँगी.. यानि कि आज रात को भी आने का प्रोग्राम नहीं है?
‘यार तुम्हें पता ही है कि ज़ुबैर और हनी के फाइनल एग्जाम होने वाले हैं.. हनी रात में 3-4 बजे तक पढ़ाई करती रहती है.. मैं उसके सामने कैसे आऊँ? तुम भी तो एक बार ज़िद पकड़ लेते हो.. तो कोई बात समझते ही नहीं हो।
अब बाजी के लहजे में भी झुंझलाहट पैदा हो गई थी।
थोड़ी देर तक ऐसे ही बाजी मेरे चेहरे पर नज़र जमाए रहीं और मेरी तरफ से कोई जवाब ना सुन कर.. कुछ फ़ैसला करके बोलीं- ओके ठीक है.. ऐसी बात ही तो ये लो..
बाजी नंगी हो गई
ये कहते हुए बाजी ने अपनी सलवार में अपने दोनों अंगूठों को फँसाया और एक ही झटके में अपने पाँव तक पहुँचा दिया और अपनी चादर और क़मीज़ को इकठ्ठा करके अपने पेट तक उठा लिया और मेरी तरफ पीठ करते हुए बोलीं- चलो अभी और इसी वक़्त चोदो मुझे.. मैं कसम खाती हूँ कि तुम्हें नहीं रोकूँगी.. आओ चोदो मुझे..
अपनी बहन का ये अंदाज़ देख कर मैं दंग ही रह गया और हकीक़तन डर से मेरी गाण्ड ही फट गई।
मैं खुद भी ऐसी हरकतें करता ही था.. लेकिन जब बंदा खुद कर रहा हो.. तो समझ आता है.. जेहन मुतमइन होता है कि कोई मसला हुआ तो मैं संभाल ही लूँगा.. लेकिन बाजी की ये हरकत मेरे वहमोगुमान में भी नहीं थी।
हम से चंद क़दम के फ़ासले पर ही टीवी लाऊँज का दरवाज़ा था और अन्दर अम्मी बैठी थीं और सामने घर का मेन गेट था। अगर कोई भी घर में दाखिल होता तो पहली नज़र में ही हम दोनों सामने नज़र आते।
अब हालत कुछ ऐसी थी कि बाजी ने मेरी तरफ पुश्त की हुई थी और थोड़ी सी झुकी खड़ी थीं.. उनके खूबसूरत गुलाबी.. चिकने कूल्हे मेरी नजरों के सामने थे।

झुकने से बाजी के दोनों कूल्हों के बीच का गैप थोड़ा बढ़ गया था और बाजी की गाण्ड का डार्क ब्राउन सुराख भी झलक दिखला रहा था।
उससे थोड़े ही नीचे बाजी की खूबसूरत चूत के लब नज़र आ रहे थे.. जो थोड़े उभर गए थे और आपस में ऐसे मिले हुए थे कि चूत की बारीक सी लकीर बन गई थी। 
बाजी की साफ और शफ़फ़ गुलाबी रानें अपनी मुकम्मल गोलाई के साथ कहर बरपा रही थीं। 
मुझे हैरत का शदीद झटका लगा था। मैं गुमसुम सा ही खड़ा था और मेरी नज़र बाजी की नंगी रानों और कूल्हों पर ही थी कि बाजी की आवाज़ मुझे होश की दुनिया में वापस ले गई।
‘चलो ना.. रुक क्यों गए हो.. आओ डालो अपना लण्ड मेरी चूत में..’
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