RE: Antarvasna kahani प्यासी जिंदगी
ज़ुबैर को उठा कर मेरे पास आईं और मेरे होंठों को चूम कर मेरे बाल सँवारते हुए बोलीं- उठो मेरी जान.. शाबाश, अपना जिस्म साफ करो.. मैं जा रही हूँ।
इसके साथ ही कमरे से बाहर निकल गईं।
मैं उठा तो ज़ुबैर बाथरूम जा चुका था।
मैंने वैसे ही अपना लोअर पहना और बिस्तर पर लेटते ही मुझे नींद आ गई.. शायद कमज़ोरी की वजह से!
शाम को बाजी ने ही मुझे उठाया.. वो दूध लेकर आई थीं।
वे हम दोनों को उठा कर फ़ौरन ही वापस नीचे चली गईं.. क्योंकि उन्होंने रात का खाना भी बनाना था।
दूध पी कर मैंने गुसल किया और बाहर निकल गया।
जब मैं वापस आया तो रात का खाना बाहर ही दोस्तों के साथ ही खा कर आया था।
घर पहुँचा तो 11 बज रहे थे.. सब अपने-अपने कमरों में ही थे.. बस अब्बू टीवी लाऊँज में बैठे न्यूज़ देख रहे थे। अब्बू को सलाम वगैरह करने के बाद मैं अपने कमरे में आया तो ज़ुबैर सो चुका था।
मुझे भी काफ़ी थकान सी महसूस हो रही थी और मुझे यह भी अंदाज़ा था कि आज दिन में हमने सेक्स किया ही है.. तो बाजी अभी रात में हमारे पास नहीं आएँगी।
उनका दिल चाह भी रहा हो तब भी वो नहीं आएंगी क्योंकि वो हमारी सेहत के बारे में बहुत फ़िक़रमंद रहती थीं।
हक़ीक़त यह थी कि इस वक़्त मुझे भी सेक्स की तलब महसूस नहीं हो रही थी.. इसलिए मैं भी जल्द ही सो गया।
सुबह मैं अपने टाइम पर ही उठा.. कॉलेज से आकर थोड़ी देर नींद लेने के बाद दोस्तों में टाइम गुजार कर रात को घर वापस आया.. तो खाने के बाद बाजी ने बता दिया कि वो आज रात में आएँगी।
मैं कुछ देर वहाँ टीवी लाऊँज में ही बैठ कर बिला वजह ही चैनल चेंज कर-करके टाइम पास करता रहा और तकरीबन 10:30 पर उठ कर अपने कमरे की तरफ चल दिया।
मैं कमरे में दाखिल हुआ.. तो ज़ुबैर हमेशा की तरह मूवी लगाए कंप्यूटर के सामने ही बैठा था.. मुझे देख कर बोला- यहाँ आ जाओ भाई.. जब तक बाजी नहीं आतीं.. मूवी ही देख लेते हैं।
मैंने अपनी पैंट उतारते हुए ज़ुबैर को जवाब दिया- नहीं यार.. मेरा मूड नहीं है मूवी देखने का.. तुम देखो।
मैं बिस्तर पर आ लेटा।
थोड़ी देर बाद ज़ुबैर भी कंप्यूटर बंद करके बिस्तर पर ही आ गया और बोला- भाई कल जब मेरे लण्ड ने अपना जूस निकाला.. तो मुझे तो इतनी कमज़ोरी फील हो रही थी कि आँखें बंद किए पता ही नहीं चला कि कब सो गया। मैं तो बाजी के उठाने पर ही उठा था.. मुझे बताओ न.. मेरे सो जाने के बाद आपने बाजी के साथ क्या-क्या किया था?
मैंने जान छुड़ाने के लिए ज़ुबैर से कहा- यार छोड़.. फिर कभी बताऊँगा।
लेकिन ज़ुबैर के पूछने पर मेरे जेहन में भी कल के वाक़यात घूम गए कि कैसे बाजी मेरा लण्ड चूस रही थीं.. किसी माहिर और अनुभवी चुसक्कड़ की तरह।
ज़ुबैर ने मुझसे मिन्नतें करते हुए दो बार और कहा.. तो मैं उससे पूरी स्टोरी सुनाने लगा कि कल क्या-क्या हुआ था।
ज़ुबैर ने सुकून से पूरी कहानी सुनी और बोला- भाई आप ज़बरदस्त हो.. आपने जिस तरह बाजी को ये सब करने पर राज़ी किया है.. उसका जवाब नहीं.. मैं तो ये सोच कर पागल हो रहा हूँ कि जब बाजी मेरा लण्ड चूसेंगी तो.. उफफ्फ़..
यह कह कर ज़ुबैर ने एक झुरझुरी सी ली।
मैंने मुस्कुरा कर ज़ुबैर को देखा और कहा- फ़िक्र ना कर मेरे छोटे.. मेरा अगला टारगेट तो बाजी की टाँगों के बीच वाली जगह है।
ज़ुबैर ने छत को देखते हुए एक ठंडी आह भरी और बोला- हाँनन् भाई.. कितना मज़ा आएगा.. जब बाजी की चूत में लण्ड पेलेंगे।
फिर एकदम चौंकते हुए बोला- लेकिन भाई अगर कोई मसला हो गया तो.. मतलब बाजी प्रेग्नेंट हो गईं या ऐसी कोई और बात हो गई तो फिर?
मैंने एक नज़र ज़ुबैर को देखा और झुंझला कर कहा- चुतियापे की बात ना कर यार.. मैं इसका बंदोबस्त कर लूँगा बस.. एक बार फिर कहता हूँ कि खुद से कोई पंगा मत लेना.. जैसा मैं कहूँ बस वैसा ही कर..
इन्हीं ख़यालात में खोए और बाजी का इन्तजार करते.. हम दोनों ही पता नहीं कब नींद के आगोश में चले गए।
सुबह मैं उठा तो ज़ुबैर जा चुका था। मैं कॉलेज के लिए रेडी हो कर नीचे आया तो अम्मी ने ही नाश्ता दिया क्योंकि बाजी भी यूनिवर्सिटी जा चुकी थीं।
मैं नाश्ता करके कॉलेज चला गया।
कॉलेज से वापस आया तो 3 बज रहे थे मैंने बाजी के कमरे के अधखुले दरवाज़े से अन्दर झाँका.. तो बाजी सो रही थीं और हनी वहाँ ही बैठी अपनी पढ़ाई कर रही थी।
मुझे अम्मी ने खाना दिया और खाना खाकर मैं अपने कमरे में चला गया। ज़ुबैर भी सो रहा था.. मैंने भी चेंज किया और सोचा कि कुछ देर नींद ले लूँ.. फिर रात में बाजी के साथ खेलने में देर हो जाती है और नींद पूरी नहीं होती।
शाम को मैं नीचे उतरा.. तो बाजी अभी भी घर में नहीं थीं.. मैंने अम्मी से पूछा तो उन्होंने बताया कि सलमा खाला की किसी सहेली की छोटी बहन की मेहँदी है.. कोई म्यूज़िकल फंक्शन भी है तो ज़ुबैर, बाजी और हनी तीनों ही उनके साथ चले गए हैं।
मैं भी अपने दोस्तों की तरफ निकल गया।
रात में 10 बजे मैं घर पहुँचा तो बाजी अभी भी वापस नहीं आई थीं.. अब्बू टीवी लाऊँज में ही बैठे अपने लैपटॉप पर बिजी थे।
मैंने कुछ देर उन से बातें कीं और फिर अपने कमरे में चला गया।
मैंने कमरे में आकर ट्रिपल एक्स मूवी ऑन की.. लेकिन आज फिल्म देखने में भी मज़ा नहीं आ रहा था.. बस बाजी की याद सता रही थी।
किसी ना किसी तरह मैंने एक घंटा गुज़ारा और फिर नीचे चल दिया कि कुछ देर टीवी ही देख लूँगा।
मैं अभी सीढ़ियों पर ही था कि मुझे अम्मी की आवाज़ आई- बात सुनिए.. सलमा का फोन आया है वो कह रही है कि वसीम को भेज दें.. रूही लोगों को ले आएगा।
मैं अम्मी की बात सुन कर नीचे उतरा तो अब्बू अपना लैपटॉप बंद कर रहे थे। मैंने उनसे गाड़ी की चाभी माँगी.. तो पहले तो अब्बू गाड़ी की चाभी मुझे देने लगे.. फिर एकदम किसी ख़याल के तहत रुक गए और चश्मे के ऊपर से मेरी आँखों में झाँकते हुए बोले- वसीम तुमने लाइसेन्स नहीं बनवाया ना अभी तक?
मैंने अपना गाल खुजाते हो टालमटोल के अंदाज़ में कहा- वो अब्बू.. बस रह गया कल चला जाऊँगा बनवाने।
अब्बू ने गुस्से से भरपूर नज़र मुझ पर डाली और बोले- यार अजीब आदमी हो तुम.. कहा भी है.. जा के बस तस्वीर वगैरह खिंचवा आओ.. अपने साइन कर दो वहाँ.. बाक़ी शकूर साहब संभाल लेंगे.. लेकिन तुम हो कि ध्यान ही नहीं देते हो किसी बात पर.. मैं देख रहा हूँ आजकल तुम बहुत गायब दिमाग होते जा रहे हो.. किन ख्यालों में खोए रहते हो.. हाँ?
मैं अब्बू की झाड़ सुन कर दिल ही दिल में अपने आपको कोस रहा था कि इस टाइम पर नीचे क्यों उतरा।
अम्मी ने मेरी कैफियत भाँप कर मेरी वकालत करते हुए अब्बू से कहा- अच्छा छोड़ो ना.. आप भी एक बात के पीछे ही पड़ जाते हैं.. बनवा लेगा कल जाकर!
अब्बू ने अपना रुख़ अम्मी की तरफ फेरा और बोले- अरे नायक बख़्त.. लोग तरसते हैं कि कोई जान-पहचान वाला आदमी हो.. तो अपना काम करवा लें और शकूर साहब मुझे अपने मुँह से कितनी बार कह चुके हैं कि लाइसेन्स ऑफिस वसीम को भेज दो.. अब पता नहीं कितने दिन हैं वो वहाँ.. उनका भी ट्रान्स्फर हो गया.. तो परेशान होता फिरेगा.. इसलिए कह रहा हूँ कि बनवा ले जाकर..
अम्मी ने बात खत्म करने के अंदाज़ में कहा- अच्छा चलिए अब चाभी दें उसे.. वो लोग इन्तजार कर रहे होंगे।
अब्बू ने अपना लैपटॉप गोद से उठा कर टेबल पर रखा और खड़े होते हुए बोले- नहीं अब इसकी ये ही सज़ा है कि जब तक लाइसेन्स नहीं बनवाएगा.. गाड़ी नहीं मिलेगी।
यह कह कर वे बाहर चल दिए।
अम्मी ने झल्ला कर अपने सिर पर हाथ मारा और कहा- हाय रब्बा.. ये सारे जिद्दी लोग मेरे नसीब में ही क्यों लिखे हैं.. जैसा बाप है.. वैसी ही सारी औलाद..
मैं चुपचाप सिर झुकाए खड़ा था कि दोबारा अम्मी की आवाज़ आई- अब जा ना बेटा.. दरवाज़ा खोल वरना हॉर्न पर हॉर्न बजाना शुरू कर देंगे।
मैं झुंझलाए हुए ही बाहर गया और अब्बू के गाड़ी बाहर निकाल लेने के बाद दरवाज़ा बंद करके सीधा अपने कमरे में ही चला गया।
मेरा मूड बहुत सख़्त खराब हो चुका था.. पहले ही बाजी के साथ सेक्स ना हो सकने की वजह से झुंझलाहट थी और रही-सही कसर अब्बू की डांट ने पूरी कर दी।
मैं बिस्तर पर लेटा और तय किया कि सुबह सबसे पहला काम यही करना है कि जा कर लाइसेन्स बनवाना है।
इसी ऑफ मूड के साथ ही नींद ने हमला करके मेरे शरीर को सुला दिया।
बाजी आज भी नहीं आई
मैं सुबह उठा तो मेरे जेहन में अब्बू की डांट ताज़ा हो गई, मैं जल्दी-जल्दी तैयार हुआ और नाश्ता करके लाइसेन्स ऑफिस चल दिया। वहाँ जा कर मैं शकूर साहब (अब्बू के दोस्त) से मिला.. उन्होंने एक आदमी मेरे साथ भेजा।
खैर.. सब पेपर वर्क निपटा कर मैं शकूर सहाब के पास गया और पूछा- तो अंकल ये लर्निंग तो कल मिल जाएगा ना.. उसके कितने अरसे बाद मुझे पक्का लाइसेन्स मिलेगा?
उन्होंने एक नज़र मुझे देखा और हँसते हुए बोले- बेटा अगर तुम्हारे लाइसेन्स में भी अरसा-वरसा या लर्निंग और कच्चे-पक्के लाइसेन्स का झंझट हो.. तो फिर तो हम पर लानत है ना।
मुझे उनकी बात कुछ समझ नहीं आई.. तो मैंने दोबारा पूछा- क्या मतलब अंकल?
वो बड़े फखरिया से लहजे में बोले- बेटा मैं सब देख लूँगा.. बस तुम्हारा काम खत्म हो गया है.. तुम जाओ घर.. और हाँ अब्बू को मेरा सलाम कहना.. मैं किसी दिन चक्कर लगाऊँगा।
मैंने अपने कंधों को लापरवाह अंदाज़ में झटका दिया.. जैसे मैंने कह रहा होऊँ कि ‘मेरे लण्ड पर ठंड.. मुझे क्या’
मैं वहाँ से सीधा कॉलेज चला गया।
कॉलेज से घर आया तो ज़ुबैर टीवी देख रहा था, मुझे देख कर बोला- भाई खाना टेबल पर रखा है.. खा लो।
मैंने अम्मी का पूछा.. तो ज़ुबैर ने बताया कि अम्मी और हनी मार्केट गई हैं और बाजी को सलमा खाला अपने साथ कहीं ले गई हैं।
मैं खाना खा कर कमरे में गया और जाते ही सो गया क्योंकि आज थकान भी काफ़ी हो गई थी।
शाम में मैं सो कर उठा.. तो फ्रेश हो कर दोस्तों की तरफ निकल गया और रात को घर वापस पहुँचा.. तो 9 बज रहे थे।
मैंने सबके साथ ही रात का खाना खाया और अपने कमरे में आ गया।
काफ़ी देर बाजी का इन्तज़ार करने के बाद भी बाजी नहीं आईं.. मैंने टाइम देखा तो 11:30 हो चुके थे।
मैं ज़ुबैर को वहाँ ही लेटा छोड़ कर खुद नीचे बाजी को देखने के लिए चल दिया।
मैं टीवी लाऊँज में पहुँचा.. तो बाजी के कमरे का दरवाज़ा थोड़ा सा खुला था। बाहर लाइट ऑफ थी.. लेकिन अन्दर लाइट जल रही थी और अम्मी और हनी बाजी को वो कपड़े वगैरह दिखा रही थीं.. जो उन्होंने आज शॉपिंग की थी।
अम्मी और हनी की कमर मेरी तरफ थी और बाजी उनके सामने बैठी थीं। मैं दरवाज़े के पास जा कर खड़ा हो गया और दरवाज़े की झिरी से हाथ हिलाने लगा कि बाजी मेरी तरफ देख लें.. लेकिन काफ़ी देर कोशिश के बाद भी बाजी ने मेरी तरफ नहीं देखा और मैं मायूस हो कर वापस जाने का सोच ही रहा था कि बाजी की नज़र मुझ पर पड़ी और फ़ौरन ही उन्होंने नज़र नीची कर लीं।
लेकिन मैंने देख लिया था कि बाजी को मेरी मौजूदगी का इल्म हो चुका है।
कुछ ही देर बाद बाजी बिस्तर से उठीं और कहा- हनी तुम वो पीला वाला शॉपिंग बैग खोलो.. मैं पानी पी कर आती हूँ।
बाजी यह कह कर दरवाज़े की तरफ बढ़ी ही थीं कि हनी ने आवाज़ लगाई- बाजी प्लीज़ एक गिलास मेरे लिए भी ले आना प्लीज़..
मैं फ़ौरन दरवाज़े से साइड को हो गया कि दरवाज़ा खुलने पर अम्मी या हनी की नज़र मुझ पर ना पड़ सके।
बाजी के साथ थोड़ी बेतकल्लुफ़ी
बाजी कमरे से बाहर निकलीं और अपनी पुश्त पर दरवाज़ा बंद करके किचन की तरफ जाने लगीं.. तो मैंने उनका हाथ पकड़ कर उन्हें अपनी तरफ खींचा।
बाजी इस तरह खींचे जाने से डर गईं और बेसाख्ता ही उनके हाथ अपने चेहरे की तरफ उठे और वो मेरे सीने से आ लगीं। बाजी मुझसे टकराईं.. तो मैं भी पीछे दीवार से जा लगा और बाजी को अपने बाजुओं में जकड़ लिया।
बाजी के दोनों बाज़ू उनके सीने के उभारों और मेरे सीने के बीच आ गए थे।
उन्होंने हाथ अपने चेहरे पर रखे हुए थे और मैंने बाजी को अपने बाजुओं में जकड़ा हुआ था।
बाजी ने अपने चेहरे से हाथ हटाए और सरगोशी में बोलीं- वसीम.. कमीने कुछ ख़याल किया करो.. मेरी तो जान ही निकल गई थी.. ऐसे अचानक तुमने मुझे खींचा है।
मैंने भी सरगोशी में ही जवाब दिया- मैं समझा आपने मुझे दरवाज़े से हट कर दीवार से लगते हुए देख लिया होगा।
‘नहीं मैंने नहीं देखा था.. और अभी छोड़ो मुझे.. अम्मी और हनी दोनों अन्दर हैं.. बाहर ना निकल आएँ और अब्बू भी अपने कमरे में ही हैं।
बाजी ने यह कहा और एक खौफजदा सी नज़र अब्बू के कमरे के दरवाज़े पर डाली।
मैंने बाजी की कमर से हाथ हटाए और उनकी गर्दन को पकड़ कर होंठों से होंठ चिपका दिए।
बाजी ने मेरे सीने पर हाथ रख कर थोड़ा ज़ोर लगाया और मुझसे अलग हो कर बोलीं- वसीम क्या मौत पड़ी है.. पागल हो गए हो क्या?
मैंने बाजी का हाथ पकड़ा और अपने ट्राउज़र के ऊपर से ही अपने खड़े लण्ड पर रख कर कहा- बाजी ये देखो मेरा बुरा हाल है.. आओ ना कमरे में..
‘वसीम पागल हो गए हो क्या.. अभी कैसे चलूं.. अम्मी और हनी कमरे में ही हैं.. तुम देख ही चुके हो।’
बाजी ने ना जाने की वजह बताई.. लेकिन अपना हाथ मेरे लण्ड से नहीं हटाया और ट्राउज़र के ऊपर से ही मुठी में पकड़ कर मेरा लौड़ा दबाने लगीं।
मैंने बाजी के सीने के राईट उभार को क़मीज़ के ऊपर से ही पकड़ कर दबाया और पूछा- तो कब तक फ्री होओगी? बाजी आज चौथी रात है कि मैंने कुछ नहीं किया.. मेरा जिस्म जल रहा है।
‘मैं क्या कहूँ वसीम.. पता नहीं कितनी देर लग जाए।’
बाजी ने अपनी बात खत्म की ही थी कि मैंने अपना ट्राउज़र थोड़ा नीचे किया और अपना लण्ड बाहर निकाल लिया और बाजी को कहा- बाजी प्लीज़ थोड़ी देर मेरा लण्ड चूस लो ना!
बाजी ने मेरे नंगे लण्ड को अपने हाथ में पकड़ा और कहा- वसीम..! पागल हो गए हो क्या.. अपने आप पर थोड़ा कंट्रोल करो.. मैं फारिग हो कर तुम्हारे पास आ जाऊँगी ना!
मैंने बाजी की बात सुनते-सुनते अपना राईट हैण्ड पीछे से बाजी की सलवार के अन्दर डाल दिया था। मैंने बाजी की गर्दन पर अपने होंठ रखते हुए अपने हाथ को उनके दोनों कूल्हों पर फेरा और उनके दोनों चिकने और सख़्त कूल्हों को बारी-बारी दबाने लगा।
मेरे होंठ बाजी की गर्दन पर और हाथ बाजी के कूल्हों पर डाइरेक्ट टच हुए.. तो उनका बदन लरज़ गया और वो सरगोशी में लरज़ती आवाज़ से बोलीं- वसीम.. आहह.. नहीं करो प्लीज़.. में. मैं बर्दाश्त नहीं.. कर पाऊँगी नाआ..
मैंने बाजी की बात का कोई जवाब नहीं दिया और उनकी गर्दन को चाटता हुआ अपना मुँह गर्दन की दूसरी तरफ ले आया.. साथ-साथ ही मैंने अपना लेफ्ट हैण्ड बाजी की सलवार में आगे से डाला और उनकी मुकम्मल चूत को अपनी मुठी में पकड़ते हुए दूसरे हाथ की ऊँगलियों को कूल्हों की बीच दरार में घुसा दिया और पूरी दरार को रगड़ने लगा।
बाजी पर आहिस्ता-आहिस्ता मदहोशी सी सवार होती जा रही थी और वो अपनी आँखें बंद किए आहिस्ता-आवाज़ में बेसाख्ता बड़बड़ा रही थीं- बस वसीम.. वसीम छोड़ दो मुझे.. बस करो..
उनकी आवाज़ ऐसी थी जैसी किसी गहरे कुँए में से आ रही हो।
मैंने बाजी की चूत को अपने हाथ से छोड़ा और दोनों लबों के बीच में अपनी ऊँगली दबा कर चूत के अंदरूनी नरम हिस्से पर रगड़ते हुए दूसरे हाथ की एक उंगली बाजी की गाण्ड के सुराख में दाखिल कर दी।
मेरे इस दो तरफ़ा हमले से बाजी ने तड़फ कर अपनी आँखें खोल दीं और होश में आते ही उन्हें अहसास हुआ कि हमारी पोजीशन कितनी ख़तरनाक है और किसी के आने पर हम अपने आपको बिल्कुल संभाल नहीं पाएंगे।
इसी ख़तरे के पेशेनज़र बाजी ने लरज़ती आवाज़ में कहा- वसीम कोई बाहर आ जाएगा.. मेरे प्यारे भाई प्लीज़.. अपनी पोजीशन को समझो न.. खुदा के लिए!
बाजी ने यह कहा ही था कि हमें एक खटके की आवाज़ आई और बाजी फ़ौरन मुझे धक्का देकर पीछे हटीं और किचन की तरफ भाग गईं।
बाजी के धक्का देने और पीछे हटने से मेरे हाथ भी बाजी की सलवार से निकल आए थे। मैंने फ़ौरन अपना ट्राउज़र ऊपर किया.. मेरा दिल भी बहुत ज़ोर से धड़का था।
मैं कुछ सेकेंड वहीं रुका रहा और फिर दबे क़दम सीढ़ियों की तरफ बढ़ने लगा।
वो खटका शायद कमरे के अन्दर ही हुआ था.. बाजी किचन से पानी लेकर निकलीं तो मैं सीढ़ियों के पास ही खड़ा था।
बाजी को किचन से निकलता देख कर मैं उनकी तरफ बढ़ा.. तो बाजी ने गर्दन को नहीं के अंदाज़ में हिला कर मुझ पर एक गुस्से भरी नज़र डाली और मेरे क़दम रुकते ना देख कर भाग कर कमरे की तरफ चली गईं।
बाजी ने कमरे के दरवाज़े पर खड़े हो कर पीछे मुड़ कर मुझे देखा।
मैं बाजी को भागता देख कर अपनी जगह पर ही रुक गया था। बाजी ने मुझे देख कर मेरी तरफ एक फ्लाइंग किस की.. लेकिन मैंने बुरा सा मुँह बना कर बाजी को देखा और घूम कर सीढ़ियों की तरफ चल दिया।
तीन दिन से बाजी हमारे कमरे में नहीं आई थी। चौथे दिन भी जब वक्त बीत गया तो मैं बाजी को देखने निकला। बाजी अपने कमरे में अम्मी और हनी के साथ थी। बाजी ने मुझे देख लिया और बाजी बाहर आई, मैंने वासना से उनको छुआ तो वो कुछ गुस्सा हुई और मुझे अपने कमरे में जाने को कहा।
बाजी ने मेरी तरफ एक फ्लाइंग किस की.. लेकिन मैं बुरा सा मुँह बना कर घूम कर सीढ़ियों की तरफ चल दिया।
मैंने पहली सीढ़ी पर क़दम रखा ही था कि मुझे पीछे दरवाज़ा बंद होने की आवाज़ आई.. बाजी कुछ देर तक वहीं रुकी.. मुझे देखती रही थीं। लेकिन मैंने पलट कर नहीं देखा.. तो वो अन्दर चली गईं।
मैं भी अपने कमरे में वापस आया तो ज़ुबैर सो चुका था.. मुझे बाजी पर बहुत गुस्सा आ रहा था और मैं उसी गुस्से और बेबसी की ही हालत में लेटा और फिर पता नहीं कब मुझे भी नींद ने अपने आगोश में ले लिया।
सुबह ज़ुबैर ने उठाया तो कॉलेज जाने का दिल नहीं चाह रहा था.. इसलिए मैंने ज़ुबैर को मना किया और फिर सो गया।
दूसरी बार मेरी आँख खुली तो 10 बज रहे थे। मैं नहा धो कर फ्रेश हुआ और नीचे आया तो अम्मी टीवी लाऊँज में बैठी टीवी देखते हुए साथ-साथ मटर भी छीलती जा रही थीं।
मैंने अम्मी को सलाम किया और डाइनिंग टेबल पर बैठा ही था कि बाजी भी मेरी आवाज़ सुन कर अपने कमरे से निकल आईं और उसी वक़्त अम्मी ने भी मटर के दाने निकालते हुए आवाज़ लगाई- रुहीई..! बाहर आओ बेटा.. भाई को नाश्ता दे दो..
‘जी अम्मी आ गई हूँ.. देती हूँ अभी..’ बाजी ने अम्मी को जवाब देकर किचन की तरफ जाते हो मुझे देखा।
मैंने भी बाजी को देखा और गुस्से में मुँह बना कर नज़र फेर लीं।
इस एक नज़र ने ही मुझे बाजी में आज एक खास लेकिन बहुत प्यारी तब्दीली दिखा दी थी.. बाजी ने हमेशा की तरह अपने सिर पर स्कार्फ बाँधा हुआ था और बड़ी सी चादर ने उनके बदन के नशेबोफ़राज़ को हमारी नजरों से छुपा रखा था..
लेकिन खास तब्दीली थी कि बाजी की बड़ी-बड़ी खूबसूरत आँखों में झिलमिलता काजल.. बाजी ने आज आँखों में काजल लगा रखा था और उससे बाजी की खूबसूरत आँखें मज़ीद हसीन और बड़ी नज़र आ रही थीं।
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